परिवार का प्रेम
Life को Change करने वाले लेख जीवन को नई दिशा देंगे।
दिलीप भाई ऑफिस पहुँचे, पूरा स्टाफ अपनी सीट से खड़ा हो गया, प्यून, क्लर्क, मैनेजर – सबकी आँखों में आश्चर्य था। दिलीप भाई ने रूमाल निकाला और उससे दो कार्य साथ में किए, एक चेहरा छिपाने का, और दूसरा अपने आँसू पोंछने का। कोई कुछ भी पूछ नहीं पाया। तेज रफ्तार से दिलीप भाई अपनी केबिन में चले गए। सभी स्टाफ अपने मन मे तरह-तरह की सोच को आकार दे रहे थे। दस मिनिट के बाद मैनेजर किसी कार्य के लिए केबिन में गया, किन्तु सर की यह स्थिति देखकर वह थोड़ा उलझन में पड़ गया।
कुछ पल ऐसे ही बीते, फिर उसने पूछा, “क्या हुआ सर?” दिलीपभाई ने कुछ जवाब नहीं दिया, बस अपने मोबाइल की तरफ इशारा किया। मैनेजर ने मोबाइल की स्क्रीन देखी। दिलीपभाई ने सिग्नल के पास खड़ी अपनी कार में से फुटपाथ के एक दृश्य का फोटो लिया हुआ था। कुछ २७ मिनिट पहले यह फोटो लिया गया था। मैनेजर ने फोटो में देखा कि एक भिखारी, उसकी पत्नी और उसके दो लड़के और दो लड़कियाँ किनारे पर बैठे, किसी पुराने बैनर की कार्पेट बिछाए एक थाली और दो-तीन ग्लास और कटोरी लेकर खाना खा रहे थे। वह भिखारी और उसकी पूरी फैमिली अतिशय खुश नजर आ रहे थे। रस्ते में दो-तीन कुत्ते अपनी पूंछ हिलाते हुए वहाँ आए थे और भिखारी द्वारा दिए गए थोड़े खाने को खा रहे थे।
इसमें रोने जैसा क्या था? यह बात मैनेजर को थोड़ी ही देर में अपने आप समझ आ गई थी। वह भिखारी फुटपाथ पर होते हुए भी हकीकत में बंगले में रहने जैसा आनन्द उठा रहा था, और सर अपने भव्य बंगले में रहकर भी मानो फुटपाथ पर थे। मैनेजर को समझ आ गया था, कि सर को कौनसा दुःख सता रहा है।
आज मुझे Save Family की बात करनी है।
यदि आतंकवादी हमले में पूरी फैमिली की मौत की बात की जाए, तो शायद आप सुनेंगे किन्तु आतंकवादी हमले भी अनेक प्रकार के होते हैं और ये अनेक प्रकार से हमारी फैमिली को ख़त्म भी कर रहे हैं, जिसका हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते है।
दिलीप भाई का क्या लुट गया था, यह बात उन्हें फुटपाथ का नजारा देखकर पता चल रहा था । आज हमें भी ग्राउण्ड लेवल पर आना है, न्यूट्रल बनना है और खुले दिल से समझने का प्रयास करना है, कि हमारा क्या लुट रहा है, और क्यों?
(१) Fantacy : Family शब्द का पहला अक्षर है F, और यहाँ F stands for Fantacy. I ask you, आपके सपनों के विशिष्ट घर और विशिष्ट जीवन की आपकी डेफिनिशन क्या है? लेटेस्ट कार्पेट हो, उसे विशिष्ट घर कहेंगे? या कार्पेट कैसा भी हो, किन्तु उस पर बैठे हुए परिवार का मेला सा लगा हो वह विशिष्ट घर है। सेन्ट्रल एयर-कण्डीशन हो वह विशिष्ट घर है? या कैसी भी कण्डीशन में सबका माथा ठण्डा हो, वह विशिष्ट घर है। ड्राइंग रूम में होम थियेटर हो या हर रूम में पर्सनल टीवी हो वह विशिष्ट घर है? या जहाँ सतत एक-दूसरे पर स्नेहदृष्टि जाती रहे और एक-दूसरे का ख्याल रखते रहें, वह विशिष्ट घर है। नौकरों के कारण सभी लोग आलसी और सुस्त होकर मक्खियाँ उडा रहे हों वह विशिष्ट घर है? या सब लोग अपना विनय-व्यवहार निभाते हुए सेवा में एक्टिव हों, वह विशिष्ट घर है।
आप लोग नकली फेंटसी के मायाजाल में फंसे हुए हैं। मृगजल को अमृत मानकर उसके पीछे-पीछे भागते हैं और अन्ततः प्यासे ही रह जाते हैं। इस फेंटसी का 99% सत्य यही है, कि यह जैसे-जैसे बढ़ती है, वैसे-वैसे परिवार की पारिवारिकता घटती जाती है। जब आपके परिवार में पैसा नहीं था, उस समय का दृश्य और आज के दृश्य की तुलना कीजिए। जब आपके घर में महँगे टीवी, ऐ.सी., वॉशिंग मशीन आदि नहीं थे, उस समय के दृश्य और आज के दृश्य को याद कीजिए। जब आप किराए के घर में रहते थे, और आज के दृश्य के बीच तुलना कीजिए।
फेंटसी लगभग फैमिली की कोस्ट पर मिलती है। आप अपनी बेटी को बेच कर महँगा टीवी लाते हैं, अपने बेटे को बेचकर महँगी कार लाते हैं, अपनी पत्नी को बेचकर फॉरेन टूर पर जाते हैं, अपने–आप को बेचकर हाई सेलेरी या हाई प्रॉफिट लाते हैं, अपनी शान्ति को बेचकर महँगा मोबाइल लाते हैं, अपने स्वास्थ्य को बेचकर हाई–फाई होटल का फूड खाते हैं, अपनी एकता को बेचकर बड़ा घर खरीदते हैं, और अपने प्रेम को बेचकर प्रॉपर्टी लाते हैं।
आप ज़रा तटस्थ भाव से सोचिए, पुत्र और पुत्री आपके हाथ से निकल जाए, पत्नी और यहाँ तक कि आप ख़ुद अपने नियन्त्रण में न रहें, प्रेम, शान्ति, स्वास्थ्य और एकता घर से निकल जाए, उस समय आपके द्वारा लाई गई साधन-सामग्रियाँ किसी शव के श्रृंगार से अधिक और क्या है?
यदि महंगा टीवी आपकी बेटी के संस्कार के लिए फांसी का फन्दा बन रहा हो, तो यह फेंटसी नहीं, बल्कि ट्रैजेडी है, यदि महंगा मोबाईल आपके बेटे की पवित्रता का कत्ल कर रहा हो तो वह फेंटसी नहीं है, मगर ट्रैजेडी हैं । यदि महंगी कार आने के बाद आप अपने रिश्तेदारों से दूर हो जाते हों, तो यह फेंटसी नहीं, बल्कि ट्रैजेडी है; कहने को तो भले सभी सुख मिल रहे होंगे, किन्तु प्रेम, शान्ति, स्वास्थ्य और एकता सब भूतकाल की बात हो जाए तो यह फेंटसी नहीं, बल्कि ट्रैजेडी है।
यदि आप यह तर्क देते हैं, कि यदि ये सब उपभोग की सामग्रियाँ नहीं लें, तो फिर इतनी कमाई करने का क्या अर्थ है? तो जवाब में मैं यही कहूँगा कि इतना पैसा कमाना नितान्त मूर्खता है। जरूरत से ज्यादा कमाई की ही क्यों? पारिवारिक गैप बढ़ाने के लिए? अपनों से दूर रहने के लिए? सगे बेटो में झगड़ा करवाने के लिए? संस्कारों के सत्यानाश के लिए?
यदि आप सेफ्टी के लिए अधिक आय की वकालत कर रहे हो, तो पवित्र उत्तराध्ययन सूत्र आप को जवाब दे रहा है :
वित्तेण ताणं ण लभे पमत्ते , इमम्मि लोए अदुवा परट्ठा ।।
हे आत्मन् !
अपना पागलपन छोड़ दे, पैसे से तेरी सुरक्षा नहीं होने वाली, इस भव में भी नहीं, और परभव में भी नहीं।
नीतिसूत्र में कहा है: अर्थो हि कन्या परकीयमेव।
संपत्ति, कन्या की भाँति है आप उसे जन्म देते हैं, पोषण-पालन करते हैं, उसका अपने प्राणों से भी अधिक जतन (संरक्षण) करने पर भी वह पराई ही होती है।
धर्मसूत्र में लिखा है: वित्तमायाति याति च।
पैसा तो आता है, और चला जाता है।
अध्यात्मसूत्र कहता है: स्वप्नलब्धधनविभ्रमं धनम्।
धन को स्वप्न में प्राप्त धन मान लो या, इससे अधिक अच्छा यह होगा, कि इसे मात्र भ्रम मानो।
वैराग्यसूत्र में लिखा है: संपत्तिओ तरंगलोलाओ।
समुद्र की लहरें, जितनी स्थिर होती हैं, उतनी ही स्थिरता सम्पत्ति की होती है।
अस्थिर पैसे से खरीदी हुई अस्थिर फेन्टसी आपके परिवार को पूर्णतया अस्थिर कर डालेगी, और साथ ही स्थिर समस्या में डाल देगी; क्या यह आपको समज में नहीं आता?
Ronak jain
Appreciate…Thanks for sharing such a beautiful post.. it’s a realistic truth that we see in our real life..
Dipti shah
Really we are running for only n only money not thinking about our loved ones
DEVANG DINKARBHAI VORA
KISHIKI HELP KARNA
TIRTH KI RAKSHA KARNA
JIVDAYA KA KAM KARNA
SADHU SADHVI JI BHAGVAN KI VAYAVACH KARNA HI MERA MAKSHAT HAI
ISH KARYA ME AAP KOI SAHAYTA KARNA CHAHTE HAI TO JARUR BATAYEGA