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चिकित्सा : रोग से भी भयानक ???

[यह लेख किसी राजेश जी आर्य ने लिखा हुआ है और अंग्रेजी भाषा में डॉ. बिश्वरूप रॉय चौधरी की ऑनलाइन मैग्जीन में छपा है, मगर सांप्रत कालीन वैक्सीन के बारे में सटीक जानकारी प्रदान कर रहा है, अतः हम इसका हिंदी अनुवाद करके यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं। 

कोई भी प्रबुद्ध व्यक्ति इसे पढ़े बिना ना रहे, यह हमारी करबद्ध प्रार्थना है। इस लेख में लिखे सारे तथ्यों के सबूत हमने जुटा लिए हैं।] 

 

रमण : ‘अरे सुमन! तेरा घोड़ा जब बीमार पड़ा तब तूने कौनसी दवाई पिलाई थी?’ 

सुमन : ‘रमण! मैंने दवाई तो नहीं मगर पेट्रोल पिला दिया था… अरे, सुन तो सही… रमण… ओ रमण…!’ 

सुमन की बात सुनकर रमण तो भाग गया।

दूसरे दिन रमण वापिस आकर चिल्लाने लगा, 

‘सुमन! मेरा घोड़ा तो मर गया, तेरे घोड़े का क्या हाल हुआ था?’ 

सुमन : ‘मेरा भी मर गया था, मगर तू पूरी बात सुने तब ना…’ 

आधी बात सुनकर भागने वाले रमण जैसे बेवकूफ ना बनना हो तो इस लेख में वैक्सीन के बारे में लिखी पूरी बात पढ़ने का जरूर कष्ट करें। 

 

***

 

बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, मीडिया और राजनेताओं की गठजोड़ से पैदा हुए एक वायरस ने लोगों को इतना ज्यादा डरा दिया है कि, वे किसी भी तरह से और किसी भी कीमत पर जल्द से जल्द एक समाधान चाहते हैं। वे नौकरी पर वापस लौटना चाहते हैं, वे चाहते हैं कि सब कुछ जल्द से जल्द फिर से खोल दिया जाए।

 

बचपन से हम सुनते आये हैं कि, जिंदा रहना हो तो खुराक और औषधियाँ (हल्दी, सोंठ इत्यादि) आवश्यक होती है, मर जाना हो तो ज़हर लेना चाहिए, मगर वैक्सीन ना तो औषधि है, ना ही ज़हर…. 

 

तो वैक्सीन क्या है? आगे देखते हैं। 

 

कुछ लोग ऐसा सोच रहे हैं कि केवल टीका ही हमें बचा सकता है। 

 

मगर वे लोग, (जो पैसे उधार लेकर भी एक बार वैक्सीन लगवाने की सोच रहे हैं) वैक्सीन की असलियत यदि जान लेंगे तो काँप उठेंगे। शायद वैक्सीन ऐसा ज़हर नहीं है कि लगाने के तुरंत बाद ही सभी को मार दे मगर ऐसा जरूर कह सकते हैं कि, कोरोना की आने वाली वैक्सीन ज़हर से भी ज्यादा खतरनाक है। 

 

प्रश्नः मगर कोरोना को खत्म करने का दूसरा रास्ता भी तो नहीं है, वैक्सीन तो लेनी ही पड़ेगी ना? 

 

उत्तर : बिल्कुल नहीं लेनी पड़ेगी क्योंकि कोरोना खत्म करने के अनेक विकल्प है। डॉ. बिश्वरूप रॉय जी जैसे अनेक कर्मठ विशेषज्ञ लोगों ने हजारों लोगों को अच्छा किया है और अभी भी कर रहे हैं। हमारी रिसर्च (संशोधन) में यह बात सामने आई है कि, कोरोना में 90 प्रतिशत लोग बिना दवाई स्वस्थ हो गये और 90 प्रतिशत मृत्यु ऐलोपैथी दवाई लेने के बाद भी हुई है, यहाँ पर दवाई खतरनाक माननी चाहिए या कोरोना? सबसे ज्यादा खतरनाक है आप का डर, अज्ञान और भ्रम …..। 

 

वैक्सीन बनाने वाली कंपनियाँ खुद स्वीकार कर रही है कि हमारी वैक्सीन कोरोना मिटाने में 50 प्रतिशत ही कारगर हो सकती है। 

 

प्रश्न : मगर 50 प्रतिशत तो सफल है ना? 

 

उत्तर : इसकी गारंटी भी वे लोग देने के लिए तैयार नहीं है। 

 

जिस इलाज में फायदा शत प्रतिशत संदेह के दायरे में हो और नुकसान शत-प्रतिशत निश्चित हो उस इलाज का स्वीकार मूर्ख लोग ही करते हैं। 

 

रेमदेसीविर, हाईड्रोक्सीक्लोरोक्वीन इत्यादि अनेक दवाईयों के निष्फल परीक्षण के पश्चात् W.H.O. ने अब ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल से उसे हटाने का ऐलान किया है। 

 

कोरोना से मरने वाले 10,000 में से 1 भी नहीं हैं (डर पैदा करने में मीडिया का रोल है) और इन दवाइयों के नाम से दिए गए जहर से हर 100 में से 12 की मृत्यु हो चुकी है। 

 

प्रश्न : मगर सरकार खुद कह रहे हैं कि, कोरोना के लिए वैक्सीन ही कारगर उपाय है। क्या सरकार भी झूठ बोल रहे हैं? 

 

उत्तर : आपको जानकर बड़ी हैरानी होगी, सरकार ही गौवध से निर्मित वैक्सीन लगवाने की भरपूर प्रेरणा दे रही है। फिटल बोवाइन सीरम, नामक पदार्थ तकरीबन हर वैक्सीन में आता है और इस (कोरोना) वैक्सीन में भी आयेगा, जो कि गर्भवती गायों को अवैध रूप से बूचड़खाने में काटकर उनके भ्रूणस्वरूप बछड़े में से निर्मित पदार्थ है। 

 

वैक्सीन कंपनियों की वेबसाईट पर भी यह डाटा उपलब्ध है और टाइम्स ऑफ इंडिया में भी यह स्वीकृत सच छापा गया है कि, गाय के शरीर में एन्टीबॉडीज़ ज्यादा बनते हैं। इसलिए वैक्सीन बनाने में गाय उपयुक्त हैं (यहाँ पर कटी हुई गाय’ पढ़ना चाहिए)। 

 

और आगे की बात बताऊँ तो, वैक्सीन में हर धर्म के अनुयायियों के लिए आपत्तिजनक पदार्थ डाले जाते हैं। मुस्लिमों के लिए सूअर, हिन्दुओं के लिए गाय, क्रिश्चियन के लिए मनुष्य भ्रूण, जैनों के लिए किसी भी प्रकार के पंचेन्द्रिय प्राणी (बंदर-कुत्ते-घोड़े) से प्राप्त आपत्तिजनक पदार्थ, विगत कईं वर्षों से डाला जाता आया है। 

 

हमें खोज है, एकाध मंगल पांडे की, जो इस देशी अंग्रेजों के सामने बगावत कर सके, मगर… चुलबुल पांडे जैसे अनेक मिल जाते है, मंगल पांडे जैसा एक मिलना भी मुश्किल है। 

 

प्रश्न : मगर सरकार या अन्य राज्य सरकारें वैक्सीन मुफ्त में देने की बात कर रही है, क्या इसमें भी उनका कोई फायदा है? (वैक्सीन मुफ्त में देने में किसे लाभ हो सकता है?) 

 

उत्तर : आज के कलयुगी जमाने में बूढ़े बाप को भी निःस्वार्थ भाव से रोटी खिलाने वाले बेटे के दर्शन दुर्लभ है, तब पूर्ण रूप से प्रोफेशनल (धंधादारी) वैक्सीन कंपनियाँ, हम पर दया करने के लिए इतनी उत्सुक क्यों है? 

 

कोल्ड्रिंक में नशे की दवाई डालकर मुफ्त में जवान लड़कियों को पिलाने वाला शुरूआत में बड़ा उपकारी ही लगता होगा। क्योंकि, वह लड़की भोली-भाली है, उसे पता नहीं है कि, एक बार का यह मुफ्त का उपकार कितना महँगा पड़ेगा? 

 

वैक्सीन एक बार लेने के बाद, उससे उत्पन्न अनेक नये-नये रोगों के लिए बार-बार नई-नई दवाइयाँ और वैक्सीन लेने की नौबत अपनी जिंदगी में ना लानी हो तो प्रथम बार में ही सचेत हो जाओ। 

 

उस लड़की को नजर के सामने रखो जो भोलेपन में बदमाश लड़कों की गंदी चाल में फंसकर एक बार बलात्कार करने का मौका दे देती है, बाद में इस गलती के कारण बार-बार बलात्कार का फंदा तैयार हो जाता है। 

 

मुझे लगता है कि, इस बारे में मुस्लिम कौम ज्यादा समझदार है, जो ऐसी वैक्सीन मुफ्त में भी लेना नहीं चाहती है और शायद इसी कारण से डीपोप्युलेशन एजेन्डा के समर्थकों की आँखों में वह कौम काँटें की तरह चुभ रही है। 

 

कोई भी कंपनी वैक्सीन मुफ्त में बनाती भी नहीं है, बना सकती भी नहीं है, देती भी नहीं है, दे भी नहीं सकती। गरीब की पत्नी को भुगतने के लिए सज्जन का मोहरा पहनकर बैठा गाँव का गुंडा नौकरी देकर उन गरीब पर उपकार करता दिखे तो भ्रमित नहीं होना चाहिए क्योंकि सीधा अत्याचार करने पर गाँव में विद्रोह खड़ा होने की संभावना होती है, अतः उपकार की आड़ में अन्याय किया जाता है। 

 

मगर… वह अन्याय सामान्य बुद्धिवालों को जल्दी दिखता नहीं है। उन्हें तो सिर्फ उपकार ही दिखाई देता है। 

 

मुफ्त में वैक्सीन बाँटने वाली सरकारों के कुछ चुनिंदा प्रतिनिधियों की जेब भरी जाती है, जनता की जेब खाली करने के लिए। 

 

प्रश्न : इस वैक्सीन से और कोई नुकसान…? 

 

उत्तर : जो भी गरीब या श्रीमंत वैक्सीन लेते हैं उन्हें, अन्फर्टीलीटी (बांझपने) की समस्या का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी आने वाली पीढ़ी ही अदृश्य हो जाती है, उन्होंने अर्जित की हुई (श्रीमंत हो तो) संपत्ति या (गरीब हो तो) जमीन, इत्यादि संपदा पर सीधा-अधिकार बचे हुए लोगों का हो जाता है। 

 

संपत्ति खत्म हो, उसका कोई मलाल नहीं है मगर यदि बच्चे पैदा होने की ही समस्या हो जाये तो भविष्य में धर्म के एवं राष्ट्र के अस्तित्व पर भी संकट खड़ा हो जायेगा। 

 

इस बार की कोरोना वैक्सीन में तो आपकी आस्था ही खत्म हो जाये, ऐसे केमिकल्स डाले जाने वाले हैं। आपके शरीर का DNA चेंज हो जाये। (यानी आप यदि पुरुष हो तो महिला में और महिला हो तो पुरुष में तब्दील हो जायेंगे यानि नपुंसक बना दे) ऐसी चीजें डाली गई हैं। 

 

क्या हमें यह परिवर्तन स्वीकार्य है? यह बात सिर्फ मैं नहीं कहता हूँ, डॉ. रशीद बट्टर, डॉ. केनेडी ॐकार मित्तल, डॉ. बिश्वरूपराय चौधरी इत्यादि अनेक डॉक्टर्स कह रहे हैं। 

 

भूतकाल में बांझपने की समस्या उतनी नहीं थी, जितनी आज है, आजकल वर्तमान पत्र में प्रथम पन्ने पर, पूरा पन्ना भरकर IVF ट्रीटमेंट (बच्चा पैदा ना होता हो तो कृत्रिम गर्भाधान से बच्चा पैदा करने की विधि) के विज्ञापन आने लगे हैं, क्यों? भूतकाल में दी गई वैक्सीन ने अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया है। 

 

और आज भी जिन गरीबों ने किसी भी प्रकार की वैक्सीन नहीं लगवाई है, वहाँ पर यह समस्या बिल्कुल भी नहीं है। आपकी फर्टिलिटी और इम्यूनिटी तोड़ने वाले कई पदार्थ वैक्सीन में डाले जाने हैं। 

 

  • हकीकत में जिसे एक बार कोरोना हो चुका है, उन्हें वैक्सीन लेने की आवश्यकता ही नहीं है, (क्योंकि एण्टीबॉडीज़ बन गये) फिर भी सभी को वैक्सीन लगवाने की घोषणा क्यों की जाती है? यह बात समझ से परे है, इतना ही नहीं, संदेह के दायरे में भी है। 

 

  • दूसरी महत्त्व की बात, दूसरी सारी वैक्सीन में मृत या कमजोर वायरस डाला जाता रहा है (ऐसा वे लोग बताते है मगर इसमें भी वे लोग झूठे है क्योंकि 4 अक्टूबर को ही दिल्ली की एक गली में कुछ स्वास्थ्यकर्मी पोलियो वैक्सीन लगाने आये थे, जिसके अंदर लाइव यानी जीवित वायरस और बंदर की किडनी के सेल डाले जाने की बात लिखी है।) 

 

मगर इस बार की (कोरोना वायरस की) वैक्सीन में कुछ ऐसे केमिकल्स डाले गये हैं कि, वह वैक्सीन आपके शरीर में घुसने के बाद नया कोरोना वायरस पैदा करेंगे, आपको बीमार करेंगे आपका DNA परिवर्तित करेंगे। यह जानकारी आधारभूत सूत्रों से प्राप्त हुई है। 

 

वैक्सीन का भूतकालीन इतिहास वैसे भी सामान्य-असामान्य नुकसान की लंबी सूची से भरा पड़ा है।

 

1. गठिया, 2. चक्कर आना, 3. झटके लगना, 4. सीने में दर्द, 5. चेतना खोना, 6. दौरे पड़ना, 7. कपाल तंत्रिका पक्षाघात, 8. मस्तिष्क की सूजन, 9. आँखों में दर्द, 10. ऑटिज्म, 11. कैंसर। मगर जो कोरोना की वैक्सीन है, वो इससे भी दो कदम आगे हैं 12. DNA परिवर्तन, 13. धर्म की आस्था में भंग, 14. फर्टिलिटी तोड़ना, 15. तड़प-तड़प कर मौत आदि। 

 

हमने पहले ही कह दिया है कि, वैक्सीन जीवित रहने के लिए या मौत के लिए नहीं, बीमार बना कर आपको जिंदा रखने के लिए या तड़पा-तड़पा कर मारने के लिए बनाई गई है। 

 

प्रश्न: आप ऐसा इल्जाम कैसे लगा सकते हो? 

 

उत्तर : अमेरिका इत्यादि राष्ट्रों में जैसे-जैसे वैक्सीन बढ़ती गई, वैसे वैसे ऑटिज्म और कैंसर के मरीज भी बढ़ते गये हैं। जो माँ-बाप अपने बच्चों को टीके से दूर रख रहे हैं, उन्हें टीका लगाने वाली कंपनियाँ, जेल में क्यों डलवाना चाहती है? और खुद अपने ऊपर दायर होने वाले मुकदमों से क्यों बचना चाहती है? 

 

सन् – 1986 में, अमेरिका में वैक्सीन कंपनियों के दबाव में एक कानून बनवाया गया था, ‘चाइल्डहुड वैक्सीन इन्जुरी एक्ट।’ इस कानून का मकसद यह था कि, यदि वैक्सीन लगाने के बाद आपके बच्चे को कोई भी नुकसान हो या आपका बच्चा मर जाये तो भी आप वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों पर केस नहीं कर सकते हो। 

 

यदि आप वैक्सीन का विरोध करते हैं तो वैक्सीन बनाने वाले आपको जेल में डलवाना चाहते हैं और यदि वैक्सीन से नुकसान होता है तो जेल की बात दूर, वह खुद अदालत में भी पेश नहीं होना चाहते हैं। यह कैसा दोगलापन है? यह कैसी दादागिरी है? 

 

वैक्सीन मानव स्वास्थ्य के लिए भयानक नुकसानप्रद है, इसका और एक प्रमाण आपके सामने प्रस्तुत है (हमें पता है कि वैक्सीन में आने वाले मनुष्य भ्रूण गाय या सूअर के अंग भी अब आपकी संवेदना जगाने में निष्फल है, अतः आप के स्वास्थ्य की हानि की बात आपके सामने रखनी पड़ रही है।) 

 

यदि कोई कंपनी खाद्य सामग्री में एल्युमिनियम के क्षार का उपयोग करता है तो उसका लाइसेंस रद्द किया जाता है और उस पर केस किया जाता है, मगर वैक्सीन में एल्युमिनियम अवश्य डाला जाता है। शरीर में एल्युमिनियम जाने के कारण दिमाग के और ज्ञानतंत्र के रोग हो सकते हैं और एल्युमिनियम से भी जहरीली धातु मरक्यूरी (पारा) है, जिसे कहीं पर भी (खाद्य सामग्री में) डालने पर प्रतिबंध है। मगर यह वैक्सीन में डाला जाता है। पारे में से बनने वाला थिमेरोसोल नामक कैमिकल वैक्सीन में प्रिजर्वेशन के रूप में डाला जाता है। 

 

पारा, सीसा से 500 गुनी ज्यादा जहरीली धातु है। वो छोटी सी मात्रा में हो तो भी दिमाग में जमा हो जाता है, निकलता नहीं है। पारे के (मर्क्युरी के) कारण बच्चों में ऑटिज्म की बीमारी होती है, जिसके कारण बच्चे मंदबुद्धि के हो जाते है। पारा एक न्यूरोटॉक्सिक रसायन है, फिर भी इसका उपयोग अभी भी क्यों किया जा रहा है? 

 

सीधी सी बात है, वे लोग आप को हमेशा-हमेशा के लिए बीमार बनाये रखना चाहते हैं, ताकि उनके मार्केट में कभी भी मंदी ना आये। 

 

बचपन से ही यदि अधिक से अधिक टीके लग जाये तो भविष्य की गुलामों की फौज उनके लिए तैयार हो जाएगी। 

 

प्रश्न : क्या वैक्सीन से बचने का कोई रास्ता है? 

 

उत्तर: ज्यादा से ज्यादा लोगों को वैक्सीन के दुष्परिणामों के बारे में जागृत करें, यदि जन आंदोलन हो गया तो जबरदस्ती वैक्सीन लगाने की मुहिम पर रोक लग जाएगी। अमेरिका में भी पहले ट्रम्प ने वैक्सीनेशन के लिए आर्मी लगाने की बात की थी मगर, 50 प्रतिशत जितनी वहाँ की जनता वैक्सीन के विरोध में आ जाने से, मेन्डेटरी (अनिवार्य) करना नामुमकिन हो गया है।

 

‘My Body – My Right’ मेरे शरीर में वैक्सीन लेना या नहीं लेना, मेरे अधिकार क्षेत्र की बात है, इसमें दुनिया की कोई सरकार हस्तक्षेप नहीं कर सकती है, इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट में सामूहिक रूप से जनहित याचिका (PIL) दायर कर सकते हैं।

 

अपने-अपने धर्म के अधिकार क्षेत्र में, धर्म स्वातंत्र्य की बात रखकर वैक्सीन लेने से इन्कार कर सकते हैं।

 

वे लोग यदि आप को बिना वैक्सीन बस-ट्रेन इत्यादि में सफर ना करने दे तो एक बार आप पैदल जाना, स्वीकार कर लेना मगर जीवित ही नहीं रहेंगे तो बस-ट्रेन क्या काम लगेगी? सरकार की दमनकारी, अन्यायकारी नीतियों के सामने झुक जाना भविष्य के लिए हानिकारक है।

 

यदि जबरदस्ती वैक्सीन लगवाने के लिए आपको बाध्य किया जाये तो तर्क प्रस्तुत करें कि, यदि मैं वैक्सीन ना लूँ तो वैक्सीन लेने वाले को संक्रमण कैसे होगा?

 

 यदि वैक्सीन ना लेने के कारण मुझे प्रॉब्लम होगा तो वह मेरी जिम्मेदारी है, इसमें आपको क्या लेना-देना? वैक्सीन मेरे द्वारा लेने पर भी यदि वैक्सीन ना लेने वालों के कारण मुझे संक्रमण हो सकता है, तो वैक्सीन का क्या फायदा?

 

अन्य धर्मियों के साथ संवाद करके एकता कीजिए। यदि एकता ना कर सको तो भी महाहिंसक वैक्सीन को समर्थन देना बंद कीजिए।

 

W.H.O. की दृष्टि में गद्दार डॉक्टर्स मिल जाये तो उनसे झूठा वैक्सीन सर्टिफिकेट बनवाकर भी यदि बच सकते हो तो अपने आप को बचा लो।

 

जो भी डॉक्टर्स इत्यादि ऐसा बोले कि ‘मैं सबसे पहले वैक्सीन लूंगा, ताकि आपको डर ना लगे’ उन्हें हाथ जोड़ कर कह दो कि ‘आप खुशी से ले लो, हम पाँच साल पश्चात् लेने का सोचेंगे, अभी नहीं।’

 

यदि कोई कहे कि, वैक्सीन नहीं लेने वाले (सुपर स्प्रेडर) के कारण कोरोना फैलेगा, इसलिए सभी को वैक्सीन अनिवार्य की जाये, तो उन्हें कहो कि यह बात साबित करने के लिए सबूत प्रस्तुत करें।

 

प्रश्न: कोई भी प्रकार की वैक्सीन ना ली हो, फिर भी निरोगी हो ऐसे परिवार आपके ध्यान में हैं ? 

 

उत्तर : बिल्कुल… ऐसे अनेक परिवार आज भी मेरी नजरों के सामने हैं। इतना ही नहीं कि वे लोग आज भी निरोगी हैं, आज भी वे लोग शक्ति संपन्न है। दौड़ने में, कूदने में, खाने-पीने में, सभी प्रकार के कार्यों में वे बच्चे, वैक्सीन लगवाने वाले बच्चों से कईं गुना ज्यादा ताकतवर हैं। 

 

प्रश्न : यदि हमारी इच्छा ना हो, फिर भी दबाव बनाये तो? 

 

उत्तर : आप नौ दो ग्यारह हो जाओ, यह एक सरल रास्ता है। यदि बच्चे को स्कूल से निकाल दे तो ऑनलाइन पढ़ाई का रास्ता अब खुल चुका है। 70 प्रतिशत अभिभावक भी यदि वैक्सीन के खिलाफ आ जायेंगे तो स्कूल वालों को यह कहना पड़ेगा कि हमारी स्कूल में वैक्सीन नहीं लगाई जायेगी। दूसरी बात यह है कि शिक्षा से अब रोजगार की कोई गारंटी ही नहीं है तो बेवजह सर्टिफिकेट के चक्कर में हम हमारे बच्चों का द्रोह क्यों करे? 

 

इस बार की वैक्सीन यदि लग गई तो…

 

बंतासिंह शादी में ठूंस-ठूंस कर नान-पराठे खा कर आया। दो-चार दिन के बाद भी जब पेट में ट्रैफिक जाम रहा तो बंतासिंह ईश्वर के मंदिर में जाकर प्रार्थना करने लगा। 

 

हे भगवान् ! या नान निकाल दे… 

या जान निकाल दे…

 

***

 

यदि हम समय पर जागृत नहीं हुए तो हमारी भी यही स्थिति हो सकती है, हमें भी प्रार्थना करनी पड़ेगी कि, हे भगवान! या वैक्सीन मेरे शरीर से हटाओ या इस जहां से मुझे ही हटाओ…

 

चयन आपको करना है –

शाइनिंग इंडिया या स्लोटरिंग इंडिया 

About the Author /

authors@faithbook.in

जिनशासन के लिए जोश और जुनून के साथ जिनकी कलम चलती है, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में शासन और सत्य क्या है, इसकी जानकारी देने वाली लेखमाला पू. युवामुनि द्वारा लेखांकित हो रही है। धारदार, असरदार और कटार लेखक सबको निश्चय ही नया दृष्टिकोण देंगे और मनोमंथन के लिए विवश करेंगे।

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