सहिष्णुता से सिद्धगति

सहिष्णुता से सिद्धगति

एक भाई मिलने के लिए आए, और बोले, “महाराज जी ! हमारा घर चौमुखी मन्दिर जैसा है।” मैंने पूछा, “कैसे?” तो वे बोले, “चौमुखी मन्दिर में चार प्रतिमाएँ होती हैं, सभी अपनी-अपनी दिशा में होती हैं। हमारा घर भी ऐसा ही है, बेटा घर में घुसते ही अपने कमरे में चला जाता है, बेटी अपने रूम में। घरवाली किटी पार्टी में बिज़ी रहती है। किसी को किसी से कोई जुड़ाव ही नहीं। किसी का सर मोबाइल से ऊपर ही नहीं उठता। पूरा परिवार मिलकर एक साथ कभी बैठता ही नहीं।”

 

पास बैठे दूसरे भाई बोले, “साहेब जी ! अच्छा है कि मिलकर एक साथ नहीं बैठते, यदि बैठने लग जाए, तो आपस में झगड़े चालू हो जाएँगे। आज सब लोग असहिष्णु हैं, सबका टोलेरेंस पॉवर घट गया है। कोई भी व्यक्ति अन्य की बात सुनने को तैयार नहीं है।

 

जहाँ सब सुनते थे, वह सतयुग था,

 

जहाँ सब सुनाते हैं, वह कलियुग है।

 

जिस घर में सब सुनाने वाले हों, सुनने वाला कोई न हो, वह घर कभी भी बिखर कर टूट सकता है।

 

यदि बेटा असहिष्णु होगा तो माता-पिता के सामने बोलेगा, यदि भाई असहिष्णु होगा तो घर के टुकड़े होंगे। यदि बहू असहिष्णु होगी तो माँ और बेटे को अलग करने का पाप करेगी, और इस पाप के उदय के समय उसका खुद का बेटा उससे सम्बन्ध तोड़ देगा।

 

एक बार चौपाटी पर घूमते हुए चार वर्ष का एक बच्चा गुम हो गया, छः घण्टे के बाद मिला। छः घण्टे तक उसकी माँ बिलख-बिलख कर रो रही थी। बेटा और बहू, सास-ससुर से अलग रहते थे। सास-ससुर को पता चला कि पोता गुम हो गया है, तो वे भी आश्वासन देने पहुँचे। जब पोता मिल गया, तो सास-ससुर जाने लगे, तो बहू बोली, “मम्मी जी ! आज से आपको यहीं हमारे साथ रहना है। मेरा बेटा सिर्फ छः घण्टे के लिए मुझसे दूर हुआ, तो मुझ पर क्या बीती, मुझे पता है। और मैंने आपसे आपके बेटे को जीवन भर के लिए अलग कर दिया, तो आप पर क्या बीत रही होगी? अब मुझे पता चल रहा है। आप मुझे माफ़ कर दीजिए। अब आपको कहीं नहीं जाना, हमारे साथ ही रहना है।”

 

“सहन करो, और एक साथ रहो”

 

संसार में हर क्षेत्र में सहिष्णुता की जरूरत रहती है। शारीरिक क्षेत्र हो या पारिवारिक, आर्थिक क्षेत्र हो या धार्मिक-आध्यात्मिक, हर क्षेत्र में सहि-ष्णुता की जरूरत रहती ही है।

 

गजसुकुमार मुनि हो या खन्धक मुनि, सबने सहि-ष्णुता रखी, जो भी कष्ट मिले उन्हें हंसते-हंसते सहन करने की मानसिकता रखी, तभी तो सिद्ध-गति मिली। कहा भी है:

 

? जो सहन करता है, वह शुद्ध बनता है,

 

? जो शुद्ध बनता है, वही सिद्धगति पाता है।

 

? जो अपने स्वजनों को सहन नहीं करता, उसे दुनिया का सहन करना पड़ता है। 

 

आइए आज हम सब कम से कम इतना संकल्प अवश्य करें, कि “मैं अपने उपकारी माता-पिता आदि की बात का कभी विरोध नहीं करूँगा, सहन करूँगा, स्वीकार करूँगा।”

 

 

About the Author /

authors@faithbook.in

रात्रि प्रवचन, जाहिर प्रवचन और शिविरों के माध्यम से पूज्य मुनिवर युवाओं को जिनशासन के रागी बना रहे हैं और जिन के प्रवचन सुनने के लिए लोग कायल है। ऐसे मुनिवर की कलम को पढ़कर आप भी जरूर आनंद विभोर हो जाएंगे। दृष्टांत से सिद्धांत की समझ देने वाली यह लेखमाला वाचक वर्ग को जरूर पसंद आएगी।

3 Comments

  • Paresh salot
    June 15, 2020

    Good

  • dr kiran shah mulund mumbai
    June 15, 2020

    Mathhayen Vandami Gurudev ,thank you gurubhagavant for your eye opening comments , , aapake Ashirvad hum par hamesha rahe .

  • Mehul Shah
    June 15, 2020

    ખૂબજ સરળ અને સાલસ સ્વભાવિ મુનિ શ્રી ક્રુપાશેખર મ. સા.
    ગત વર્ષે અમારા સંઘ માં એમનું ચાતુર્માસ હતું અને એમના પરિચય અને રાત્રિ પ્રવચન થી મારા જીવનમાં ધર્મ નું મહત્વ વધ્યું અને એમની કૃપા થી શ્રાવક ના બાર વ્રત ઉચાર્યા.
    એમનું પ્રવચન તેજી ને ટકોરો એવું છે, જે સાંભળે એ ધર્મ જરૂર થી પામે.

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