आपकी उम्र
- Aacharya Shri Ajitshekhar Suriji Maharaj Saheb
- Sep 10, 2024
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छगन: “लिली! तेरी उम्र कितनी है?”
लिली: “17 साल।”
छगन: “ओहो! तूने तो जिंदगी भर के शनि-रवि को जोड़ा ही नहीं है।”
यदि शनि-रवि जोड़ दिए होते तो, शायद और तीन-चार साल और बढ़ जाते। पर शनि-रवि तो छुट्टी के, आराम के दिन हैं इसलिए गिने नहीं जाते। शायद लिली का गणित ऐसा होगा, जिस दिन में कुछ काम ना किया हो, उस दिन की क्या गिनती करना?
तूंगिया नगरी के श्रावको के बारे में ऐसा सुना जाता है कि, वे जितने समय सामायिक में होते थे, उतने ही समय को अपनी जिंदगी का गिनते थे। यानी कि 30 सामायिक हो जाए, तब खुद को 1 दिन का, नौ सौ सामायिक हो जाए तब एक महीने का, और दस हजार आठ सौ सामायिक हो जाए तब एक साल का मानते थे।
उपधान में पौषध कराते समय दो गाथाएँ बोली जाती हैं। उसमें दूसरी गाथा का तात्पर्य यह है कि, जितना समय सामायिक-पौषध में अच्छे से बिताया हो, उतना ही सफल है, बाकी का सारा समय तो संसारजनक होने से दुःखमय परंपरा सर्जक होने से निष्फल ही है।
अनंत भवों की गिनती नहीं की जाती है। सम्यक्त्व पाने के बाद के भव ही गिने जाते हैं, क्योंकि उसके बाद में ही जीव सही मायने में जीता है।
सच्चा आस्तिक अपनी उम्र को धर्मक्षेत्र में जुड़ने के बाद से ही गिनता है। अपनी संपत्ति धर्म-सुकृत में जितनी लगी हो, उतनी ही गिनता है। अपने स्वजन भी उन्हीं को मानता है जो धर्म में सहायक, प्रेरक और साथ देने वाले होते हैं।
बात यह है कि, सिर्फ समय ही बीतता हो तो उसमें आत्महित का कुछ भी नहीं होता है। यह भी कोई जीवन है? उसे जी लिया, क्या ऐसा कह सकते हैं? ऑक्सीजन लेना और कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ना तो प्रदूषण है, पर्यावरण को बिगाड़ता है। जीव अच्छे से जीने के नाम पर पुण्य को छोड़ता है, और पाप को पकड़ता है, यह आत्मा की दृष्टि से महाप्रदूषण है।
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