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पर से मुक्त होने की कला



बोकोजु... ज़ेन परंपरा के महान संत। वे गुफाओं में रहकर ध्यान साधना करते थे। कभी-कभी वे अपने शिष्यों के साथ भी रहते, और जब-जब वे शिष्य समूह के बीच आते, तो एक अद्भुत दृश्य देखने को मिलता।


अचानक ही वे ज़ोर से चिल्लाते – "बोकोजु!"अर्थात्, वे अपना ही नाम पुकारते। फिर कुछ क्षण आँखें बंद करके रुकते और पुनः ज़ोर से कहते – "हाँ, मैं यहीं हूँ!"


शिष्यगण यह देख विस्मित रह जाते। जब यह कई बार घटित हुआ, तो एक दिन एक जिज्ञासु शिष्य ने विनम्रतापूर्वक पूछ ही लिया–


"गुरुदेव! आप बार-बार अपना ही नाम ज़ोर से क्यों पुकारते हैं? और फिर क्षणभर बाद स्वयं ही उत्तर देकर कहते हैं कि हाँ, मैं यहीं हूँ?"


सस्मित वदन बोकोजु ने कहा:


"जब-जब मैं विचारों में डूबने लगता हूँ, तो सजग होने के लिए अपना नाम जोर से पुकारता हूँ  और तुरंत ही कहता हूँ — 'हाँ, मैं यहाँ हूँ, पूरी तरह उपस्थित हूँ।' इसका अर्थ यह है कि बोकोजु विचारों में भटक गया था और अब वह वापस वर्तमान में लौट आया है।"


इस अभ्यास से सच में चेतना में लौट आना संभव हो जाता था।


वर्षों तक यह क्रम चलता रहा, लेकिन अपने जीवन के अंतिम दिनों में उन्होंने अपना नाम जोर से पुकारना ही बंद कर दिया। समय बीतता गया। फिर एक दिन, सहज ही एक शिष्य ने विनम्रतापूर्वक प्रश्न किया—


"गुरुदेव! अब आप अपना नाम जोर से क्यों नहीं पुकारते?"


बोकोजू ने कहा: "अब इसकी आवश्यकता नहीं है। अब मैं सदा यहीं उपस्थित हूँ, कहीं भटकता नहीं हूँ, तो फिर नामोल्लेख करने की जरूरत ही कहाँ? जब मैं भटक जाता था, तब मुझे पुकारना पड़ता था। अब नहीं।"


यह प्रक्रिया वास्तव में करने योग्य है। जब आप गहरी चिंता में हों, भारी तनाव से घिरे हों, तब ज़ोर से अपना नाम लें, और क्षणभर बाद फिर से ज़ोर से कहें— "हाँ, मैं यहीं उपस्थित हूँ!"


आप अनुभव करेंगे कि आप चिंता के बंधन से मुक्त हो गए हैं। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान, आपको एक पल के लिए किसी नए अनुभव की झलक मिलेगी। और समय के साथ, यही झलक एक गहन अनुभूति में परिवर्तित हो जाएगी। इस अनुभव की निरंतरता से एक दिन ऐसा भी आएगा जब आपके जीवन में कोई चिंता या मानसिक उलझन शेष ही नहीं रहेगी!

1 comentario


Pragnesh Shah
12 minutes ago

Very nice explanation for reducing negative and unnecessary thoughts. Thank you for your valuable time for explaining is. Khub khub anumodna sahebji

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