[ Disclaimer : इस लेख में लिखें जा रहे तथ्य, मेरे दिमाग की कोई हवा-हवाई सोच-भ्रमणा या कल्पना नहीं है, लेकिन असलियत हैं, हालांकि मैं कोई मेडिकल एक्सपर्ट नहीं हूँ, लेकिन इस लेख में बताई गई बातें मेडिकल एक्सपर्ट से प्राप्त जानकारी के आधार पर ही की जा रही हैं।
आज एक संवेदनशील विषय को इस लेख में, मैं कवर करना चाहता हूँ। भारत की आधी आबादी (महिलाओं) की सुरक्षा के मद्देनज़र इस लेख में लिखी गई मेरी बातों को कोई अन्यथा ना लें।
माताएँ, बहनें और बेटियों से भी आगे, महिलाएँ समस्त सृष्टि के लिए अत्यधिक सम्माननीय ऐसे सर्जक के पद पर प्रतिष्ठित है। उन पर होने वाले हमलें समस्त विश्व की व्यवस्था पर असर डालने की ताकत रखते हैं।
अपनी धरोहर की हम उपेक्षा कैसे कर सकते हैं?
जो स्वास्थ्य के नाम से दिया जा रहा है, वो ही उत्पाद स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने का काम तो नहीं कर रहा है? आईये जानने की कोशिश करते हैं। ]
आज से 80 साल पहले सिगरेट को स्वास्थ्य वर्धक बताया जाता था और वो भी किस के माध्यम से !!!
जिस का दायित्व आपके स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने का है, उसी डॉक्टरों के माध्यम से?
आप यह पढ़कर चौंक गए होंगे, सिगरेट का प्रमोशन डॉ. के माध्यम से!!!
जी, हाँ, आप सही पढ़ रहे हैं। सिगरेट को 80 साल पहले केन्सर को मिटाने के नाम पर लेने की सलाह डॉक्टरों के द्वारा दी जाती थी (जैसे आज वेक्सीन लेने की सलाह डॉक्टरों के माध्यम से ही दी जाती हैं।)
दिन की दो सिगरेट पीने की सलाह देने के लिए डॉक्टर स्वयं सिगरेट पी रहे हो, ऐसे विज्ञापन के पर्चे कुछ मेग्जीन में और अखबारों में छपे भी थे।
ठीक उसी प्रकार 60 साल पहले प्लास्टिक का उपयोग करने के लिए भी जनता को प्रोत्साहित किया जाता था। उस वक्त प्लास्टिक के सिर्फ और सिर्फ फायदे ही बताये जाते थे।
( जैसे आज 5G के सिर्फ फायदे ही बताये जाते है, जैसे आज मेन्स्ट्रुअल कप के सिर्फ और सिर्फ फायदे ही गिनाये जाते हैं।)
ठीक उसी प्रकार आज अक्षय कुमार जैसे (नकली) हीरो सेनेटरी पैड्स के फायदे ही फायदे बताते जा रहे हैं। हमारी टीम के सदस्यों ने भेजी महत्वपूर्ण जानकारी के आधार पर मैं यह लेख लिख रहा हूँ, बाकी नारी विषय में मेरा रिसर्च शून्य सा ही हैं, लेकिन जब मैंने इस खौफनाक सच को जाना तब मुझे प्राथमिकता से इसे प्रकाशित करना उचित लगा।
सब से पहले अक्षयकुमार कैसे मोटीवेट करता है, देख लेते हैं। अक्षयकुमार किसी सिगरेट पीनेवाले को पूछता हैं, --। ‘ओ! होस्पिटल के सामने खड़े रहकर फूँ-फूँ कर रहे हो, क्या बात हैं?’
जवाब में वो बंदा बोलता हैं, ‘बीवी बिमार हैं’
अक्षय पूछता है, ‘क्या हुआ?’
जवाब : ‘वो ही औरतोंवाली बिमारी!!’
अक्षय पूछता हैं, ‘सिगरेट कितने की हैं?’ ‘10 रुपये की।’
फिर पूछता हैं, ‘और जेब में कितनी पड़ी है?’ ‘और एक है।’
अक्षय हैरानी से कहता हैं, ‘मरने के लिए तेरे पास पैसे हैं लेकिन बीवी को मौत से बचाने के लिए तेरे पास बिल्कुल भी पैसे नहीं? बंदा कहता है, ‘क्या बक रहा है?’
अक्षय कहता है, ‘ये देख! मौत लिखी है मौत, (सिगरेट का पैकेट दिखाते हुए...) और ये देख! सेनेटरी पैड। जिसमें ज़िंदगी है ज़िंदगी।
हँस मत, दो सिगरेट के पैसों से भाभीजी को ऐसी खतरनाक बिमारी जो माहपारी के वक्त गंदा कपड़ा यूज़ करने से हो सकती हैं, उससे बचाने का काम यह करता हैं।
खतरनाक बिमारी से और सिगरेट ना पीने से अपने आप को भी तू बचा सकता है।
यानी मौत के पैसों से दो ज़िंदगी बचा सकता हैं। एक अपनी और एक अपनी बीवी की...
सोच!
अंत में अक्षयकुमार डायलोग मारता है,
हीरोगिरी ये (सिगरेट) पीने में नहीं है,
ये (सेनेटरी पैड) देने में है।
ज़िंदगी चुनिए, मौत नहीं।
विज्ञापन में जब ये सारी बातें सुनते है तो लगता हैं, ये लोग हमारे कितने बड़े हितचिंतक! सुखचिंतक (?) हैं। यदि इनका कहा हमने नहीं माना तो हम खतरनाक रोगों के शिकार हो जायेंगे।
लेकिन जब रिसर्च करते है या सच जानते है, तब पता लगता हैं कि, ये लोग अपनी प्रोडक्ट बेचने के लिए कितना नीचे उतर सकते हैं, सोरी गिर सकते हैं। सीधा ही मूल विषय पर आते हैं।
आज बाज़ार में बिकने वाले सारे के सारे सुप्रसिद्ध कंपनियों (चाहे वो Whysper हो या StayFree हो, या Kotex, Sofy, CareFree या Paree हो) के सेनेटरी पैड्स कितने खतरनाक हैं, उस की बात निकिता ठाकुर के मुख से ही सुन लेते हैं।
दक्षिण कोरिया की 3000 लड़कियाँ अचानक रीप्रोडक्टिव हेल्थ इश्यूज का अनुभव करने लगी। सभी की सभी लड़कियों को हुए मेजर प्रॉब्लम्स के पीछे एक ही मेजर कारण सामने आया।
वो सारी की सारी बेटियाँ एक ही सुप्रसिद्ध कंपनी के सेनेटरी पैड्स यूज़ कर रही थी।
स्टडी किया तो पता चला कि, बहनों के शरीर में कोई भी ज़हर जब मुख के माध्यम से जाता है, तो जितना नुक़सान कर सकता है, उस से दस गुना ज़्यादा नुक़सान यौनमार्ग के माध्यम से शरीर में प्रवेश करने पर होता हैं। (क्योंकि वहाँ की स्कीन ज़्यादा सेन्सेटिव होती है: ज़्यादा अब्सोर्ब कर लेती है, सोख लेती हैं...) एस्ट्रोजन होर्मोन का डोज़ मुख के माध्यम से जाये और योनि के माध्यम से जाये, दोनों में ज़मीन आसमान का अंतर हैं।
फिर सर्वे किया तो पता चला कि, सेनेटरी पैड्स में खतरनाक ज़हरीले केमिकल डाले गये थे और यह बात सिर्फ दक्षिण कोरिया तक ही सीमित नहीं है, आज भारतराष्ट्र में बिकने वाले सारे सुप्रसिद्ध कंपनियों के पैड्स में वो ही खतरनाक केमिकल पाये जाते है।
आश्चर्य की एक बात यह भी है कि, मेडिकल प्रोडक्ट के नाम से बिकने वाले पैड्स में इंग्रिडिएंट्स की लीस्ट भी नहीं लिखी जाती हैं, ताकि जनता को अंधेरे में रखा जाये। हेल्थ के नाम से प्रचारित ये सारे पैड्स आपकी कौन-सी हेल्थ Destroy (ख़त्म) करते है, चलो जान ही लेते हैं।
1. PHTHALATS (थेलेट्स / थाइलेट्स)
हाईजेनिक के नाम से पैड्स को क्लीन और व्हाईट करने के लिए ब्लीच करना पड़ता है और ब्लीच के लिए थेलेट्स नाम का केमिकल उपयोग में लिया जाता है, जो की बड़ा ख़तरनाक हैं। ज़हरीला हैं।
थेलेट्स कभी भी उत्पाद (Product) के साथ बंधा हुआ नहीं रहता है, अलग (डीटेच) होकर शरीर के अंदर चमड़ी के माध्यम से चला जाता हैं। जिस के कारण महिलाओं के
(1 ) Reprdouctive Health (प्रजनन स्वास्थ्य),
(2) Neurologicle Health (दिमागी स्वास्थ्य),
(3) Chardiovescular Health (हृदय संबंधित स्वास्थ्य) पर गहरी चोट पहुँचती है।
बहनों में ब्रेस्ट केन्सर भी इसी केमिकल से होता हैं। यानी थाइलेट्स या थेलेट्स एक, रोग अनेक।
2. Volatile Organic Compounds (Voc’s) (वोलेटाईल आर्गेनिक कम्पाउण्ड...)
यह केमिकल सेनेटरी पैड्स को सुंदर सुवासित (फ्रेगरन्स) करने में काम आता है। लम्बे अरसे तक पैड्स का उपयोग करने वाली महिलाओं में इस केमिकल के कारण केन्सर हो सकता है और कभी-कभी यूज करने वाली बहनों को भी पेरालीसीस एवं मैमरीलोस (याददाश्त कमजोर हो जाने) की दिक्कत होना संभव हैं।
3. Plastic.. 4. Pestisides
पर्यावरण के लिए प्लास्टिक कितना खतरनाक है, वो अब बताने की बिल्कुल भी ज़रूरत नहीं है। एक बड़ी सी प्लास्टिक बेग में जितना प्लास्टिक आता हो, उस से चार गुना प्लास्टिक (यानी चार प्लास्टिक बेग जितना प्लास्टिक) एक सेनेटरी पैड्स में आता हैं। एक प्लास्टिक बेग को डिकम्पोज़ होने में 500 से 600 साल लग जाते हैं, तब सोचो एक पैड कितना भयानक नुकसान पर्यावरण को पहुँचाता होगा।
प्लास्टिक सिर्फ पर्यावरण के लिए ही हानिकारक नहीं हैं, हमारी स्किन के लिए भी हानिकर हैं। भले ही डायरेक्ट संपर्क में नहीं आता होगा, लेकिन इनडायरेक्ट प्लास्टिक यूज़ भी खतरनाक ही हैं।
पेस्टीसाइड्स (जंतुनाशक) केमिकल पैड्स में होना, कितना अजीब है ना? ज़हरीले केमिकल से भरे पैड्स कितने खतरनाक हो सकते है, अब तो आप समझ ही गए होंगे।
पहले तो कचरा पैदा करो, फिर उसे निस्तारित करने, दूर करने के लिए अपना सिर खपाओ। इससे अच्छा तो ये ही रहेगा का, Use and Throw की थ्योरी पर बने पैड्स को ही आप Throw (फेंक देने का कार्य) करो।
5 . Graphine – (ग्रेफ़ाईन)
एक खतरनाक तत्त्व भी अब सेनेटरी पैड्स में डालने की शुरुआत हो चुकी है, जिस के बारे में भोली जनता अनभिज्ञ हैं। ग्रेफ़ीन से बने पैड्स इतने खतरनाक है कि बात मत पूछो, ग्रेफ़ीन (ग्रेफ़ाईन) एक नैनो मटीरियल है, जो खून में घुल-मिल जाता है। शरीर में घुसकर खतरनाक तबाही मचाने में समर्थ हैं। अभी चलते-फिरते, हट्टे-कट्टे – तंदुरस्त युवाओं को भी जो हार्टअटैक (कार्डियक अरेस्ट) आ रहे है, मौते हो रही है, इसके पीछे ग्रेफ़ाईन का बहुत बड़ा रोल है, जो वैक्सीन के माध्यम से कई लोगों की बोडी में पहुँचा दिया गया था। उसी ग्रेफिन (ग्रेफ़ाईन) की उपस्थिति पैड्स में होना, क्या आप को भयावह नहीं लगता हैं?
यह लोग तो अपनी प्रोडक्ट्स बेचने के लिए ग्रेफ़ाईन को मैजिक मटीरियल बताकर स्पेशल चार्ज भी वसुले जा रहे हैं। ‘ये सेनेटरी पैड्स ग्रेफ़ाईन युक्त है, इसलिए ज़्यादा अच्छे है’ ऐसी ऐडवर्टाईज भी बिंदास करते जा रहे हैं।
इस विषय में पाकिस्तान वाले कुछ ज़्यादा समझदार निकले है, वे लोग सेनेटरी पैड्स इम्पोर्ट ही नहीं करते है, वहाँ की अधिकांश महिलाएँ यूज़ भी नहीं करती हैं। परिणाम ये आ रहा हैं कि वहाँ आबादी बढ़ती जा रही है, और यहाँ उच्च शिक्षित लोग बेवकूफ बनते जा रहे हैं।
यहाँ भारत में आये दिन चुनाव में वोटिंग करने गई लड़कियों को नेताजी सेनेटरी पैड्स फ्री में बाँट कर मानो जनता की अभूतपूर्व सेवा कर रहे हैं। गरीब तबके की बस्ति में, झुग्गी-झोपड़ियों में या सरकारी स्कूलों में, छोटे-छोटे गाँवों में स्वास्थ्य के नाम पर फ्री में पेडमेन बनकर कुछ सेवाभावी (?) लोग ज़हर का सामान (सेनेटरी पैड्स) बाँटते ही जा रहे हैं और भोली-भाली बहनें उसे अच्छा समझकर यूज़ करती ही जा रही हैं। नेता हो, चाहे अभिनेता हो, सभी किसी ना किसी संस्था के पेईड दलाल जैसे ही है, जो ऐसे खतरनाक पैड्स स्वास्थ्य के नाम से वितरित करते जाते हैं।
गंदे कपड़ों से माहवारी में दिक्कत आ सकती है तो स्वच्छ कोटन के (सूती) कपड़े बाँटने चाहिए, ना कि प्लास्टिक-पेस्टीसाईड्स थेलेट्स वोलेटाईल ओर्गेनिक कम्पाउण्ड, ग्रेफ़ाईन से बने पैड्स...
आज महिलाओं में माहवारी से जुड़ी समस्याएँ चरम पर हैं। यदि सेनेटरी पैड्स से मेन्स्ट्रुअल हेल्थ सुधरी होती (जो विज्ञान दावा करता रहता हैं) तो आज PCOD, ओवेरियन केन्सर, IVF ट्रीटमेण्ट सेन्टर की बाढ़ नहीं आई होती। विज्ञान ने प्रगति के नाम पर अधोगति के सारे रास्ते खोल दिये हैं। मैं विज्ञान का विरोधी नहीं हूँ, लेकिन विज्ञान के नाम से परोसे जानेवाले अज्ञान-एवं विकृतज्ञान का धूर विरोधी हूँ।
अंतिम बात करके लेख को विराम दूँगा। भारत देश में वर्तमान में जो भी किसान, जो कुछ फसल पैदा कर रहा है, उन फसलों के बीज वे मल्टी नेशनल (बहुराष्ट्रीय) कंपनियों के पास से खरीद रहा हैं, ऐसा मेरी जानकारी में आया हैं। सभी किसान ऐसा नहीं करते लेकिन उधार बीज लेनेवाले किसानों की संख्या बढ़ती जा रही हैं। कंपनियों के बीज इस प्रकार लेने से भविष्य में समस्त अन्न भंडारों पर एकाधिकार मुट्ठिभर संपन्न लोगों के हाथों में आ जाने का डर हैं, कारण ये कि, मल्टीनेशनल कंपनियों के द्वारा दिये गये बीज, निर्बीज अर्थात् बार-बार फसल उगाने में असफल होने से आपको हमेशा कंपनियों पर ही निर्भर रहना पड़ता हैं। अब Seedless Fruits and Vegetables का भी जमाना आ रहा हैं। मक्का हो चाहे अंगुर हो या फिर अन्य फल... सभी के बीज के लिए आत्मनिर्भरता खत्म होती जा रही हैं। कंपनी निर्भरता बढ़ती जा रही है। ऐसी ही परिस्थिति अब हम मनुष्यों में भी पनप रही हैं। हमारी Comfort Zone में रहने की आदत एवं अज्ञान ही इस का मुख्य कारण हैं।
धरती अपनी हो और बीज दूसरे के हो तो क्या होगा? धरती का मालिक (किसान) मजदूरी करेगा, बीज का मालिक राज करेगा। आज किसान की जो चिंता है, वो ही चिंता अपने बहनों की भी हैं। निर्बीज बीज की तरह भविष्य में यदि अपनी बहनें भी संतान पैदा करने में असमर्थ हो जाये तो? तो मजबूरी में हमें मल्टीनेशनल कंपनियों के रेडीमेड बीज से ही बच्चा पैदा करने की बारी आयेगी।
और उनके दिये गये बीज (IVF सेन्टर्स से प्राप्त) शायद DNA चेन्ज का बड़ा नुकसान कर दें तो आनेवाली पीढ़ी तक आप का धर्म-आपका राष्ट्रप्रेम आपका मजबूत स्वास्थ्य भी नहीं पहुँच पायेगा।
आप समझदार हो, और समझदार को इशारा काफ़ी है, सेनेटरी पैड्स यदि आप की Reproductive System या Reproductive Health को ही हानि पहुँचाता हो तो आप मजबूरन मल्टीनेशनल कंपनियों के ग़ुलाम बन जाओगे।
क्या पैड्स के बदले में ये Paid करना चाहेंगे?
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