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बिंदुसार का जन्म



बिंदुसार का जन्म

“तो क्या महान सम्राट अशोक भी जैन धर्मावलंबी था?”भावेश का यह प्रश्न सुनते ही मैं सोच में पड़ गया। कितना सटीक और प्रासंगिक प्रश्न! उस समय, विहार की रफ्तार प्रति घंटे 7-8 किलोमीटर थी। भावेश स्कूटर चला रहा था और मैं विहार चल रहा था। मन ही मन इस प्रश्न पर विचार कर रहा था। हमने अभी-अभी 'सम्राट अशोक' पर स्वाध्याय शुरू किया था।


चूँकि चंद्रगुप्त जैन धर्म के अनुयायी थे, उनके पुत्र बिंदुसार भी जैन धर्म को मानते थे। स्वाभाविक रूप से यह मानना सही लगता है कि अशोक भी जैन ही रहे होंगे। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनाया। क्यों? इसके पीछे के कारणों को समझने से पहले, बिंदुसार के नामकरण और ‘चाणक्य नीति’ पर दृष्टि डालते हैं।


उस समय राजाओं की हत्या के लिए विष का प्रयोग आम बात थी। इसे रोकने के लिए चाणक्य ने चंद्रगुप्त के भोजन में नियमित रूप से विष मिलाने की योजना बनाई। यह विष धीरे-धीरे शरीर की सहनशक्ति बढ़ाने के लिए था। अनुभवी वैद्यों की देखरेख में विष की मात्रा को संतुलित किया जाता था। इससे चंद्रगुप्त का शरीर विष को सहन करने में समर्थ हो गया।


इसी बीच, चंद्रगुप्त ने नंद वंश को हराकर सत्ता स्थापित की। उन्होंने अंतिम नंद राजा को मारा नहीं, बल्कि उसे देशनिकाला दिया, जिससे प्रजा की सहानुभूति चंद्रगुप्त के पक्ष में हो गई। इसी दौरान नंद की बेटी दुर्धरा, जिसे सुनंदा भी कहा जाता है, चंद्रगुप्त की रानी बनी।


कुछ समय बाद, सुनंदा गर्भवती हो गई। आठवें माह में, उसने अनजाने में चंद्रगुप्त की थाली से भोजन कर लिया, जिसमें विष मिला था। जैसे ही यह बात चाणक्य को पता चली, वह तुरंत वहाँ पहुँचे। सुनंदा की हालत गंभीर थी। चाणक्य ने सोचा ये तो बचने वाली नहीं, इसके संतान को बचा ले। लेकिन उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को बचाने का साहसिक निर्णय लिया।


उन्होंने रानी के पेट को चीरकर बच्चे को बाहर निकाला। बच्चे पर विष का असर नहीं हुआ था, सिवाय उसके सिर पर गिरे विष की एक बूंद के, जिसने उसकी त्वचा का एक हिस्सा काला कर दिया। चाणक्य ने उस बालक का नामकरण करते हुए कहा, 'बिंदुसार'


लेकिन नियति का खेल देखिए—जिस चाणक्य ने बिंदुसार को जीवनदान दिया था, उसने चाणक्य को मृत्यु के लिये विवश किया। बाद में बिंदुसार के शासनकाल में ही चाणक्य ने अनशन स्वीकार कर मृत्यु को प्राप्त किया। उन्होंने अपने पापों का प्रायश्चित और सत्कर्मों की अनुमोदना करते हुए इच्छामृत्यु को अपनाया। स्वर्ग को प्राप्त किया।


अब बिंदुसार के पुत्र अशोक की बात करें। अशोक भी प्रारंभ में जैन धर्म से जुड़े रहे। लेकिन उनकी अपार राज्य विस्तार की महत्वाकांक्षा ने उन्हें जैन धर्म से दूर कर दिया। राज्यारोहण के चौथे वर्ष में, उन्होंने बौद्ध भिक्षुओं के साथ एक महत्वपूर्ण समझौता किया और बौद्ध धर्म को अपना लिया।


यह रहस्यमय घटनाक्रम आज भी एक पहेली बना हुआ है। यदि चंद्रगुप्त और बिंदुसार जैन थे, तो अशोक ने बौद्ध धर्म क्यों अपनाया? इतिहासकारों ने इस पर गहराई से विचार करने की कोशिश नहीं की। यह सवाल आज भी अनुत्तरित है।

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