top of page

चाणक्य की कूटनीति



The Mysterious Saga

उस लड़के का नाम था – भावेश... भावेश राजपूत। वह मेरी बातें बड़े ध्यान और दिलचस्पी के साथ सुन रहा था। मैंने कहा:


उस समय धर्म और जातियों का इतना कठोर बंधन नहीं था। चाणक्य जन्म से ब्राह्मण थे, लेकिन धर्म से वे जैन थे।

जैन धर्म के अनुयायी होने के बावजूद, वे एक राजकूटनीतिक पुरुष थे। इसी कारण उन्हें कई पाप करने पड़े। चाणक्य और चंद्रगुप्त के संघर्ष के दौरान तो कई पाप हुए ही, लेकिन जब उन्होंने नौंवे नंद के राज्य को छीनकर पूरे साम्राज्य पर अधिकार कर लिया, उसके बाद भी चाणक्य को अनेक पाप करने पड़े।


अगर मैं उन पापों का वर्णन करूं, तो शायद आपको यकीन न हो कि जैन धर्म को मानने वाला और अहिंसा में विश्वास रखने वाला व्यक्ति ऐसा कर सकता है। मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि इन घटनाओं को सुनने के बाद आपके मन में चाणक्य के प्रति जो आदर और मोह है, वह या तो पूरी तरह टूट जाएगा या उसमें गहरी दरारें पड़ जाएंगी। आपकी ‘चाणक्य फ्रेम’ शायद बिखर ही जाए।


संघर्ष के दिनों की एक घटना है। एक बार चाणक्य और चंद्रगुप्त किसी गांव के पास से गुजर रहे थे। चंद्रगुप्त भूख से बेहाल हो गए थे, उनकी हालत ऐसी थी कि वे चल भी नहीं पा रहे थे। भोजन के लिए गांव में जाना आवश्यक था, लेकिन वहां बड़ा जोखिम था। नंदराज के जासूस हर तरफ फैले हुए थे और पकड़े जाने का खतरा था।


इतने में चाणक्य ने देखा कि एक बलिष्ठ ब्राह्मण सामने से आता हुआ दिखाई दिया। वह अपने मोटे पेट पर हाथ फेरते हुए और डकार लेते हुए चला आ रहा था। चाणक्य ने उससे पूछा तो उसने बताया कि वह एक भोज समारोह से आ रहा है, जहाँ उसने भरपेट दही-चावल खाए हैं। यह सुनते ही चाणक्य ने तुरंत निर्णय लिया। उन्होंने छुरी निकाली और ब्राह्मण के पेट को चीर दिया। उसके जठर और आँतों में जो ताजा अन्न भरा हुआ था, उसे निकालकर चंद्रगुप्त को भोजन करवाया। यह घटना अत्यंत हिंसक, भयंकर और जुगुप्सित थी।


चंद्रगुप्त के राजा बनने के बाद, राजगृह के निकट स्थित एक गाँव के निवासियों को चाणक्य ने आदेश भेजा। संदेश में कहा गया, "आपके गाँव में बबूल के पेड़ों के चारों ओर आम के पेड़ों की बाड़ लगानी है।" जब दूत ने यह संदेश सुनाया, तो गाँव वालों ने अपनी समझ के अनुसार सोचा, “भला बबूल के पेड़ों को आम की बाड़ की क्या ज़रूरत? आम को तो बबूल से सुरक्षा चाहिए।” इसके परिणामस्वरूप उन्होंने आम के पेड़ों के चारों ओर बबूल के पेड़ लगा दिए।


जब यह समाचार चाणक्य तक पहुँचा, तो वह क्रोधित हो उठे। संघर्ष के समय यही गाँव वाले थे जिन्होंने चाणक्य को भोजन देने से इनकार कर दिया था। तभी से चाणक्य के मन में प्रतिशोध की आग धधक रही थी, और अब बदला लेने का अवसर मिल गया।


उन्होंने गाँव वालों पर आरोप लगाया कि उन्होंने राजाज्ञा का अपमान किया है। इसके बाद चाणक्य ने उन सभी विरोधियों को पकड़वा कर जमीन में गड्ढे खोदकर उल्टे मुँह आधे शरीर तक दफन करवा दिया। उनके पैरों की एक दीवार बनवाकर पूरे गाँव को चारों ओर से घेर दिया। इस घटना के बाद पूरे मगध साम्राज्य में यह संदेश फैल गया कि चंद्रगुप्त का शासन कठोर और उसका दंड अति क्रूर है।


चंद्रगुप्त मौर्य और चाणक्य ने अखंड भारत के निर्माण और उसकी सुरक्षा के लिए अनगिनत कठिनाइयों और पापों का सामना किया। विंध्याचल से हिमालय तक फैला हुआ एक सुदृढ़ और स्थिर "आर्यावर्त" साम्राज्य स्थापित करने का सपना तब पूरा हुआ, जब भारत भूमि को यूनानी आक्रांताओं के खतरों से मुक्त कर दिया गया।


सेल्युकस, जो सिकंदर महान का सेनापति था, उससे चंद्रगुप्त ने यह ऐतिहासिक संधि की कि हिंदूकुश के उस पार का क्षेत्र यूनानियों के अधीन रहेगा और इस पार का क्षेत्र भारत का होगा। इस समझौते ने भारत को आक्रमणों से सुरक्षित कर दिया। आज के अफगानिस्तान से लेकर बांग्लादेश तक का पूरा भूभाग शांति और स्थायित्व प्राप्त कर सका।


जब साम्राज्य स्थिर हो गया और राज्य संचालन का कार्य सुचारु रूप से चलने लगा, तब चाणक्य ने यह अनुभव किया कि जिस उद्देश्य से उन्होंने इतने संघर्ष किए थे, वह सिद्ध हो चुका है। लेकिन उन्होंने यह भी महसूस किया कि अत्यधिक पाप करने के कारण मन और आत्मा पर भारी बोझ आ चुका है। उनके मन में यह विचार गहराई तक बैठ गया – "राजेश्वरी सो नरकेश्वरी।"


इसलिए चाणक्य ने चंद्रगुप्त को धर्म की ओर प्रेरित किया। उन्होंने उन्हें समझाया कि यदि अब धर्म के मार्ग पर नहीं चलेंगे, तो नर्क का मार्ग देखना पड़ेगा। चंद्रगुप्त ने चाणक्य की बात मानी और जैन धर्म के प्रति गहरी श्रद्धा जागृत की।


धीरे-धीरे, चंद्रगुप्त जैन धर्म के अनुशासनों को अपनाने लगे। उन्होंने पौषध व्रत, प्रतिक्रमण और श्रावक धर्म के आचारों का पालन करना प्रारंभ किया। अंततः जीवन के अंतिम समय में उन्होंने आराधना की और देवलोक को प्राप्त किया।

चंद्रगुप्त की मृत्यु के बाद भी चाणक्य जीवित रहे। वह ब्रह्मचारी, अर्थशास्त्र के प्रणेता, और एक महान जैन धर्म अनुयायी के रूप में अपने जीवन के अंतिम समय तक समर्पित रहे।

Comments


Languages:
Latest Posts
Categories
bottom of page