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[जैसे कुछ पिक्चर सिलेक्टेड दर्शकों के लिए ही होती है, इसीलिए उस पिक्चर की शुरूआत से पहेले लिखा हुआ आता है, “ONLY FOR ADULTS”
यानी उस पिक्चर को 18+ सर्टिफिकेट दिया जाता है, वैसे ही यह लेख भी सिलेक्टेड पाठकों
के लिए ही इसलिए यह लेख “ONLY FOR MATURE (मैच्योर)” यानी M सर्टिफिकेट वाला है।
सिर्फ़ परिपक्व लोग ही इस लेख को पढ़ने के बाद हज़म कर पायेंगे, अतः किसी अनधिकृत पाठकों को इस लेख की बाते पढ़कर यदि अरुचि हो तो अग्रिम क्षमायाचना………..]
क्या चॉकलेट को समझने में हम लेट तो नहीं हुए है?
गत वर्ष मेरा चौमासा घाटकोपर सांघाणी में था। जब प्रवचन में मैंने कहा था की,
‘वर्तमान में उपयोग मैं आ रही चॉकलेट में आनेवाला कोको पाउडर (प्रायः) अभक्ष्य होता है और उस में कॉक्रोच इत्यादि इंसेक्ट्स मिले हुए होते है,’ तब वहाँ पर प्रवचन सुन रहे कुछ श्रावक-श्रविकाओ को मेरी बात सुनकर बड़ा झटका लगा था।
भरोसा नहीं हुआ होगा अत: एक खोजी श्रावक ने इंटरनेट इत्यादि खंगालने का काम किया, तब पता चला कि, मैंने जो कहा था, वो सच था।
एक श्रीमंतपरिवार के श्राविका का बहन तो अपनी बेटी को स्कूल में जो पढ़ाई जाती थी वह टेक्स्ट बुक की फोटो लेकर आयी। उनकी बेटी कैंब्रिज यूनि. का IGCSE का कोर्स कर रही थी और छट्ठीं कक्षा में थी। बायोलॉजी की उनकी पाठ्यपुस्तिका में चॉकलेट बनाने की प्रक्रिया साफ-साफ शब्दों में लिखी थी जिसे पढ़कर उस बहन ने मुझे बताया गुरुदेव! आप सच्चे हो........!
सब से पहेले पाठ्यपुस्तक का रेफरेन्स देख लेती है।
CHOCOLATE It takes lot of Different microorganisms to make chocolate to begin the process, cocoa ponds are split open and the beans and pulp inside them are left to ferment. One after another, different fungi and bacteria feed on the pulp and release a mixture of chemicals that improves the flavor of coco beans. [ फँजाई कहो या फ़ंगी, फ़ंगस जिसे हम फफूँद बोलते है- जो अंतनकाय है और बैक्टीरिया के रूप में स्पस्टतया दिख रही है।]
When the fermentation is complete only the beans remain. They are dried roasted and powdered to make the coco that gives chocolate its flavor.
[फ़रमेंटेशन यानी किसी चीज़ को सड़ने की प्रक्रिया]
Yeasts- making ethanol [फफूँद से इथनॉल बनता है।]
Bacteria- making lactic acid [बैक्टेरिया लैक्टिक एसिड बनाता है।]
Bacteria- making vinegar acid, chocolate flavors….
बैंगलोर के आस-पास (दक्षिण भारत) में रहते, डॉ.खादिरवली (जिन्होंने मिलेट्स के माध्यम से हज़ारों मरीज़ों को ठीक किया है।) की बेटी जनहित में एक जानकारी सभी के साथ शेयर करते हुए कहती है कि, ‘चॉकलेट में कॉक्रोच के अंग उपांगों को सीमित मात्रा में मिलाने की छूट FDA ने दे रखी है।‘
घारा प्रवाह अंग्रेज़ी भाषा में बोल रही यह बेटी सभी को सचेत करने हेतु कहती है कि, प्रति 100 ग्राम की चॉकलेट (कैडबरी) में 4 ग्राम कॉक्रोच पार्ट को मिक्स करने की अनुमति के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण छिपा हुआ है।
बेटी आगे बताती है कि, दक्षिण अमेरिका और अफ़्रीका जैसे देशों में कोको पाँड्स के फल लगते है। अब तो वह दक्षिण भारत में भी उगाया जाता है। उसे प्रोसेसिंग यूनिट में लाकर उसमे से कोको बीज एवं पल्प को निकालकर बंद डिब्बे में पैक करके फ़रमेंटेशन के लिये रखा जाता है। [फ़रमेंटेशन यानी किसी चीज़ को नमी (wet) युक्त वातावरण में रख कर सड़ाने की प्रक्रिया अथवा खट्टे-सिरके जैसे द्रव्य को मूल वस्तु में मिलाकर उसमे ख़मीर लाने की प्रक्रिया]
कोको के पल्पयुक्त बीज को गिलाकर के सड़ाने की प्रक्रिया आठ से दस दिन तक चलती रहती है। जब किसी चीज़ को सड़ाया जाता है तब उस में से निकालने वाली बदबू हमारे लिए असहनीय होती है, लेकिन एसी बदबू कॉक्रोच को अतिशय प्रिय होती है, इसलिए वे कोको के सड़े हुए बीज को पल्प समेत खाने के लिए बंद डिब्बे की दिशा में दौड़ पड़ते है।
जब यह प्रक्रिया चालू होती है, तब उस यूनिट में रहे चॉकलेट निर्माताओं के लिए कॉक्रोच का जमावड़ा सिरदर्द बन जाता है। चाहने पर भी वे इससे छुटकारा नहीं पा सकते है। प्रक्रिया समाप्त होने के बाद बहुत प्रयास करने पर भी कॉक्रोच को कोको बीज से अलग नहीं किया जा पाया तब चॉकलेट मैन्युफ़ैक्चर्स FDA (फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ) की शरणों में इस समस्या के निराकरण के लिए गये थे। FDA ने अपनी शरण में आये चॉकलेट निर्माताओं को कॉक्रोच से संलिप्त कोको बीज को कतिपय शर्तों के साथ क्रश (चुरा) करने की अनुमति दे दी।
बेटी आगे बता रही है कि FDA ने जो स्टेण्डर्ड (मानक) तय किये हो, वो मानक संपूर्ण विश्व के सभी देशों को स्वीकारने पड़ते है और FDA ने अपने स्टेण्डर्ड के मुताबिक़ कैडबरी-चॉकलेट के सौ (100) ग्राम के बार (टुकड़े) में चार ग्राम कॉक्रोच के अंगोपांग के पाउडर को मिलाने की छूट दे रखी है, चार ग्राम कॉक्रोच यानी सोलह कॉक्रोच, 100 ग्राम की चॉकलेट में!!!
डॉ. खादीरवली की बेटी आगे कहती है कि, कॉक्रोच कोको पाउडर में मिक्स हो जाये और हमे उस मिश्रण को खाना पड़े वो जुगुप्सनीय तो है इतना ही नहीं, ऐसा कॉक्रोच पाउडर आरोग्य के लिए जोखिम से भरा भी है। जिसके पीछे का कारण ये है कि, कॉक्रोच हमारी बॉडी में इस प्रकार जाने से हमारे फेफड़े कमजोर होते है।
आज कल छोटे बच्चो में जो दमा (अस्थमा) और श्वसन तंत्र के रोगों ने दस्तक दी है, इस का एक महत्वपूर्ण कारण अति मात्रा में खाई जानेवाली चॉकलेट्स है और उन चॉकलेट्स में आ रहा कॉक्रोच मिश्रण कोको पाउडर है।
एसी ख़तरनाक जानकारी पाने के बाद हमारी टीम के सक्रिय कार्यकर्ता श्री वीरेन्द्रसिंह ने इस दावे की सत्यता को परखना चाहा। अमेरिका की FDA की वेबसाइट पर जाकर देखा तो चौंक गये।
वहाँ पर नियम नंबर CPG 515-700 है, कि जो चॉकलेट के बारे में हमें सूचित करता है
वहाँ ‘Chocolate and Chocolate Liquor Adulteration with Insect and Rodent Filth’ की हेडलाइन के नीचे कुछ नियमावली दी हुए है। जिस में लिखा हुआ है कि प्रति 100 ग्राम के 6 सैंपल में से एवरेज 60 से ज़्यादा (इंसेक्ट्स कॉक्रोच कीड़े इत्यादि) के पार्ट मिले तो कारवाई करनी यदि एवरेज (औसतन) 60 से कम निकले तो उन सैंपलो को निर्दोष का प्रमाणपत्र दे देना।
उदाहरण के तौर पर, FDA के अधकारियो ने रेड के दौरान (इंस्पेक्शन में) चॉकलेट के 100/100 ग्राम के 6 सैंपल लिये.
जिसमें से पहेला सैंपल में पचास, दूसरे में पचासी (85), तीसरे में पचपन, चौथे में पचास पाचवे में तीस और छट्ठें सैंपल में से साठ कॉक्रोच के पार्ट मिले हो तो 6 चॉकलेट बार में कॉक्रोच की एवरेज पचपन की निकल कर आ रही है, अत: वो चॉकलेट बाज़ार में रख सकते है। उसे अप्रूवल मिल जाएगा।
वेबसाईट में वहीं पर दूसरा नियम ऐसा लिखा है कि, एक ही सैंपल में से यदि 90 (नब्बे) से ऊपर कोक्रोच इत्यादि इंसेक्ट्स के पार्ट निकलते है तो सभी रिजेक्ट करने है, भले ना वहाँ पर भी एवरेज 55 ही क्यों न आती हो।
उदारहण के तौर पर देखे तो 6 सैंपल FDA अधिकारी ने लिये हो और पहले में तीस, दूसरे में साठ, तीसरे में पचाणवें (95) चौथे में पचास, पाँचवें में तीस और छठें में पैसठ कॉक्रोच पार्ट होने पर सारे सैंपल रिजेक्ट हो जाएँगे। यहाँ पर भी नियम एक की संख्या की तरह एवरेज पचपन की ही आ रही है फिर भी यहाँ एक सैंपल में नब्बे से ऊपर, 95 की संख्या में इन्सेक्टस पार्ट मिले, इसलिए वो कैंसिल किया गया।
रोडेंट फ़िल्थ यानी चूहे के बाल....प्रति 100 ग्राम की चॉकलेट में एक बाल मिले तो अलाउड किया है। [आप ज़रा सोचिए, अमेरिका जैसे स्वच्छता प्रेमी देश में भी कोको पाउडर निर्माता चूहे को रोक नहीं पाते, कॉक्रोच को अलग नहीं कर पाते तो भारत जैसे देश में ऐसा ध्यान कौन रख पाएगा कि कोको बनाते वक्त कीड़े-कॉक्रोच ना घुसे.....]
नियम- 1 के मुताबिक़ | नियम- 2 के मुताबिक़ |
100 ग्राम चॉकलेट्स | कॉक्रोच इत्यादि पार्ट्स | 100 ग्राम. चॉकलेट | कॉक्रोच इत्यादि पार्ट्स |
1. सैंपल | 50 | 1. सैंपल | 30 |
2. सैंपल | 85 | 2. सैंपल | 60 |
3. सैंपल | 55 | 3. सैंपल | 95 |
4. सैंपल | 50 | 4. सैंपल | 50 |
5. सैंपल | 30 | 5. सैंपल | 30 |
6. सैंपल | 60 | 6. सैंपल | 65 |
Approved | Average– 55 | Rejected | Average- 55 |
यह जानकारी FDA की वेबसाइट पर दिनांक 1–5–1985 के दिन अपलोड हुई थी फिर 1995 में रिवाइज़ भी की गई थी और बाद में सन्- 2000 को फिर से रिपीट भी हुई, अभी यह लेख लिखा जा रहा है तब तक इस जानकारी में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है।
इसका सीधा अर्थ यह निकल कर सामने आ रहा है, आप जिस चॉकलेट को चाव से खा रहे हो, उन में कॉक्रोच कीड़े इत्यादि घुसे तो भी FDA के द्वारा उस चॉकलेट को निर्दोष प्रोडक्ट का प्रमाणपत्र जारी किया जा रहा है।
यह पर एक बात का खुलासा ज़रूरी है, एक एक चॉकलेट बार (100ग्राम) में साठ कीड़े या कॉक्रोच की अनुमति है, 60 अंगोपांग की बात नहीं है, और चार प्रतिशत की बात भी ओफ़िशियल नहीं है।
रिसर्च में दूसरा ये जानने को मिला कि एक कॉक्रोच का टोटल वजन सिर्फ़ 0.105 ग्राम होता है, यानी वो बेटी जो एक चॉकलेट बार (100 ग्राम के टुकड़े) में 16 कॉक्रोच का दावा कर रही थी (चार प्रतिशत के हिसाब से सोलह कॉक्रोच की जो बात थी) वह ग़लत सिद्ध हो रही है।
चार प्रतिशत के हिसाब से चार ग्राम होता है, और चार ग्राम का भी सच मानें तो 38 कॉक्रोच एक चॉकलेट बार में!!!
FDA द्वारा जो स्टैण्डर्ड तय हुआ है यदि उसे स्वीकार किया जाये तो 60 कॉक्रोच की अनुमति है।
हर एक को पता है कि ऑफिशियल जो छूट दी जाती है, उन से अधिक ही अनऑफिशियल छूट लोग ले ही लेते है, अत: 60 कॉक्रोच की यदि परमिशन दी गई है तो आप स्वयं ही सोच लीजिए कि कितने कॉक्रोच अंदर जाते होगे? कोई ध्यान रखने या कॉक्रोच गिनने थोड़ी ना बैठने वाला है। छूट मिली ही है तो उसका भरपूर लाभ उठा लेने वाले बहुत पड़े है।
वो बेटी ने फेफड़े के रोगों की जो बात बताई थी, वह सच निकली है। अमेरिकन लंग एसोसिएशन की वेबसाइट पर जाकर खोजी वीरेन्द्रसिंह ने देखा तो पता चला कि कॉक्रोच से फेफड़ो के रोगों में बाढ़ आ सकती है [ यहाँ पर इस बात को ख़ास ध्यान में रखे, क्योंकि वर्तमान में कबूतर के दाने बंद करवाने के लिए कबूतरों की गंध को फेफड़ो के रोगों में कारण बताया जा रहा है, मगर हक़ीक़त कुछ और ही लग रही है।]
कोरोना के बाद तो अपने फेफड़ो पर जोखम बढ़ा ही है, तब ऐसे समय में चॉकलेट दो हाथों से खानेवालों की क्या गति होगी, वो तो भगवान जाने....
जैन मीडिया वाले मेहुलभाई के रिसर्च के मुताबिक़ कोको के बीज पल्प सहित जब बंद डिब्बे में सड़ाने के लिए रखा जाता है, तभी उस में यीस्ट (फफूँद) एवं हज़ारो-लाखों की संख्या में
बेइन्द्रिय जीव उत्पन्न हो जाते है। जब कोको बीज के रोस्टिंग-ग्राइंडिंग की प्रक्रिया शुरू होती है तब संख्यातीत विकलेंद्रिय एवं अनंतकाय के अनंत जीवों का चुरा हो जाता है। डिब्बे के अंदर बेइन्द्रिय (कीड़े जैसे) जीव और बाहर कॉक्रोच के जीव चउरिन्द्रिय दोनों का चुरा कोको पाउडर में मिल जाता है।
यदि हमे कच्चे आलू-प्याज़ नहीं खाते है तो उस की सब्ज़ी भी नहीं खाते है, भले ही वो निर्जीव क्यों ना हो। आलू के त्यागी आलू के पाउडर के भी त्यागी ही होते हैं ना? तो जिस प्रक्रिया में स्पष्ट रूप से फफूँद उनपन्न हो गई हो, फिर क्रश की गई हो, से कोको पाउडर को कैसे खा सकते है?
जिस में अनेक बेइंद्रिय जीवों का चुरा हो, एसे कोको पाउडर से हमारे मुख कों हम कैसे कलंकित कर सकते है? वो बात तो स्पष्ट ही है कि, बाहर से कॉक्रोच आये या ना भी आये अंदर से बेइन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति होती ही है, जो की कोको के बीज से जुड़े पल्प को खा खाकर तगड़े बन जाते है। उस फ़रमेंटेशन के आठ दस दिन के दौरान कोको बीज को सड़ाते वक्त बेइन्द्रिय जीवों के शरीर की गर्मी के कारण उस डिब्बे बंद पैक डिब्बे का टेम्परेचर 40/50 डिग्री से भी ऊपर चला जाता है, और फिर उसे ठंडा करने के लिए पानी का छिड़काव करते रहना पड़ता है। बेइन्द्रिय का सत्यानाश होने के बाद जो कोको पाउडर बनता है, उस में से जो टेस्ट फ्लेवर तथा सुगंध आती है, वो नार्मल कोको बीज को उसी दिन तोड़कर Fermentation की प्रक्रिया किए बिना ही, क्रश करने से नहीं ला पाते है।
कोको बीज को सड़ाने से दूसरे भी नुक़सान कारक कैमिकल्स उन में उत्पन्न होते है। कोको पाउडर बनाते वक्त उस पेटी में सूर्यप्रकाश एवं ऑक्सीजन न जाये उस का ख़याल रखा जाता है, जिस से सड़ने की प्रक्रिया तेज़ी से चले। पेटी के अंदर उत्पन्न होने वाले बेइन्द्रिय जीव (विज्ञान की नज़रों में बैक्टीरिया) कार्बन डाइऑक्साइड इथनॉल और गर्मी छोड़ते है। उन जीवों का चूरा करने के बाद बनने वाले कोको की चॉकलेट ही टेस्टी एवं नशाकारक बनती है। जिसके चलते उन में अल्कोहोलिक फ्लेवर ऐड होता है। जो अच्छे अच्छे को चॉकलेट खाने के लिए लालायित कर देता है। चॉकलेट की लत लग जाती है और वह लत छोड़ने की लाख प्रेरणा होने के बावजूद छोड़ने नहीं देता।
कुछ स्टडीज़ का दावा है (daily guide network) की, कोको पाउडर खाने से हमारे अंदर यौन आसंशा (वासना) भड़क सकती है, (coco is sexual stimulant and mood booster) डार्क चॉकलेट और कोको मिल्क इत्यादि से अति मात्रा में कोको पाउडर कंज्यूम करने वाले बच्चे आगे जाकर पोर्न एडिक्ट भी बने हो एसा देखा गया है। कोकोपाउडर और उसमे डाली गई अत्यधिक शक्कर के कारण बनी कैडबरी चॉकलेट में अल्कोहोलिक टेस्ट आने से वही टेस्टी एवं एडिक्टिव नशाकारक बन जाती है। अपने दिमाग में Enkephalin नामक केमिकल होता है। जब कोई ड्रग्स या हेरोइन लेता है तो यह केमिकल की वृद्धि हो जाती है। जिस प्रकार हेरोइन मॉर्फिन या ड्रग से नशा होता है वैसा नहीं पर आंशिक नशा कैडबरी-चॉकलेट से भी आता है। क्योंकि चॉकलेट में रहा कोको मादक होने से दिमाग़ का Enkephalin का स्तर बढ़ जाता है। धीरे धीरे उस की आदत होने लगती है।
ISKCON जैसी संस्था में अनुयायियों के लिए अनेक नियम बनाये गये हैं उनमें से एक नियम है नशाकारक खान-पीने से दूर रहना। इस नियम को पालन के लिए ही इस संस्था में चाय कॉफी की तरह चॉकलेट भी प्रबंधित है। हमें आश्चर्य है इस बात का कि जैन समाज में ऐसा कोई नियम कायदा कानून नहीं है। चॉकलेट के प्रतिबंध के पीछे ISKCON वाले यह तर्क देते हैं कि चाय कॉफी की तरह चॉकलेट में caffeine (कैफ़ीन) आता है। इसलिए उन सभी का निषेध है। हकीकत में कोको पाउडर Theobroma नामक विदेशी फल से प्राप्त होता था। सन् 1798 में अंग्रेज लोग पहली बार भारत में ही लाए थे और सन् 1960/1970 के बाद दक्षिण भारत में भी उसकी खेती शुरू हो गई। खोज करने पर यह भी पता चला कि कोको पाउडर में से चॉकलेट बनाकर पूरी दुनिया में बेचने में मुख्य रोल यहूदी फ़ैमिलियो का हि रहा है, उस में भी Rothschild Family का, जो की इल्युमिनाटी के 13 ख़ानदान में से एक ख़ानदान है। जो विश्व का पूर्ण नियंत्रण अपने हाथों में लेने के लिए कई सालों से सक्रिय है।
कोको पाउडर यदि आरोग्य की दृष्टि से अति जरुरी हो तो मेरा इसमें विरोध करने का कोई इरादा नहीं था, अपवाद के रूप में शायद कोको पाउडर की छूट भी आपको मिल जाती लेकिन कोको पाउडर से बनने वाली चॉकलेट को लोग स्वास्थ्य नहीं स्वाद हेतु से ही खाते हुए देखा है। आरोग्य बाजू पर रहा जाता है, ऐसी चीजों में। आसक्ति ही मुख्य बन जाती है।
और अब तो जैन शासन के अधिकांश उत्सव महोत्सव में कोको मुख्य अतिथि के रूप में भोजन की थाली में विराजित होने लगा है। उसके बिना तो मानो किसी का स्वाद नहीं हो, इस प्रकार जैनों में उसका प्रचलन बढ़ रहा है। मेरे जैसे ने साधु जीवन में भी भूतकाल में कोको से बनी हुई चीजें खाई हैं, लेकिन अज्ञानता के पाप से वह खाई थी। अब उसे बंद करने का आंतरिक संकल्प भी है और वर्तमान में बंद भी है। आजकल उपधान का चौका हो, चाहे 99 यात्रा का चौका हो या छ’रि पालक संघ आयोजन हो, या चातुर्मास के भोजन समारोह, पूजा-पूजन या अनुष्ठान हो, दीक्षा हो, या दीक्षार्थी के अंतिम वायणे हो, साधु साध्वीजी के पात्रे हो, या श्रावक श्राविका की थाली हो, सभी के पेट में चुपचाप कोको पाउडर घुस चुका है।
अब तो स्वास्थ्य एवं शक्ति के लिए खाई जाने वाली मिठाईयों में भी कोको घुस चुका है। चॉकलेट श्रीखंड, चॉकलेट बर्फी या चॉकलेट रसगुल्ला आम होने लगे हैं। चॉकलेट के अंदर आने वाला कोको स्वयं तो हानिकारक है, उनके साथ उनके ही मित्र जैसे मैदा और शक्कर भी बड़े हानिकारक हैं। शक्कर और मैदा के बिना चॉकलेट बननी मुश्किल है। कोको से बनी चॉकलेट खाने वाले बच्चों के दाँत और बड़ों के पेट सड़ते हुए देखा हैं। कब्ज, आज के जमाने की सामान्य समस्या है जिसकी जड़ में शायद कोको एवं मैदा है। साहिबजी, यह कैडबरी घर में ही बनाई है, इसलिए आप इसे ले लो, ऐसा कहने वाले श्राविक बहन को शायद पता नहीं होगा कि कैडबरी चॉकलेट घर में बनाने मात्र से वह भक्ष्य नहीं बन जाती है, कोको पाउडर घर में जयणा के साथ उसी दिन के तोड़े क्रश किए कोको बीज से बनाया हो तो भक्ष्य बनता है।
Top of Form
विदेशी ब्रांड की चॉकलेट में तो अंडे का मिश्रण भी आता है अतः उसमें तो पंचेंद्रिय हिंसा का भी पाप है लेकिन कई बार कई घरों में कुछ बहनें बाहर से तैयार हार्ट (दिल) चॉकलेट कैडबरी घर पर लेकर उसे चूल्हे पर उबालकर अलग-अलग हाथ की आकृति में बने तैयार मॉडल में उसे ढालकर महात्मा को घर में बनाई चॉकलेट खाकर बहराते हुए देखा हैं। पाप से डरने वालों को अब सावधानी रखनी जरुरी है। कुछ डॉक्टर डार्क चॉकलेट खाने की सलाह देते दिख रहे हैं। वह भी आरोग्य को सुधारने के नाम पर। लेकिन हकीकत में इस प्रकार तैयार हुई चॉकलेट स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। डॉक्टर से यदि WHO हिसाब से चले तो हम क्या कर सकते हैं क्योंकि WHO भी किसी के हाथों की कठपुतली ही तो है।
टेस्ट का भूखा जैन आज अहिंसा के बेस्ट सिद्धांत को खानपान में वेस्ट कर रहा है।
आपको जिन्दा कॉकरोच यदि कोई खाने के लिए दे तो क्या आप उसे खा सकते हो? अरे, खाने की बात छोड़ो, खाने का विचार तक नहीं कर सकते हो। किसी को खाते देख भी नहीं सकते हो और गलती से भी कोई सब्जी खाते वक्त कॉकरोच का स्मरण हो जाए तो खाई हुई सब्जी भी वोमिट में निकल जाए। परंतु हाय!! यह स्वाद की आसक्ति इस दो इंच की जीभ की लोलुपता कितनी खतरनाक है कि मेरे जैसा कोई यदि इस पर लिखे तो कहने वाले निर्मोहसुंदर विजयजी को कोई अकल जैसी चीज कहा है, गेहूँ से बनी रोटी भी बिना हिंसा नहीं बनती है, कितने केचुए, कीड़े, मकोड़े इत्यादि खेत में मरते हैं, तब जाकर आपकी थाली में रोटी आती है। यदि हिंसा– अहिंसा की ज्यादा सोचने बैठे तो संथारा लेकर मरने की नौबत आ जाए।
मुझे ऐसे कुतर्क करने वालो को इतना ही जवाब देना है, कि मानता हूँ कि गेहूँ चावल को उगाने में भी कीड़े इत्यादि की विराधना है लेकिन साक्षात् गेहूँ इत्यादि अन्न पेट में डालते वक्त विकलेन्द्रिय की विराधना प्रत्यक्ष रूप में नहीं है, वहाँ पर सिर्फ एकेन्द्रिय की ही विराधना है, अतः मांसाहार का पाप भी नहीं है, जबकि कोको पाउडर से बनी चॉकलेट खाने में तो मांसाहार का अनजाने में परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप में पाप लग रहा है।
दूसरा कारण चॉकलेट छोड़ने का यह भी है कि चॉकलेट खाये बिना भी जीवित रह सकते हैं, यदि कोई चॉकलेट न खाए तो मर नहीं जाएगा। क्योंकि चॉकलेट लक्जरी आइटम है। गेहूं चावल लक्जरी नहीं नेसेसिटी यानी आवश्यकता है, वह यदि न खाए तो जीना मुश्किल है।
कुछ लोग कह सकते हैं इतने समय से चॉकलेट खाते आए थे तो अब खाने में क्या दिक्कत है? मैं हाथ जोड़कर उन्हें पूछना चाहूंगा कि चार निवाले भोजन करने के बाद यदि पता चले कि इसमें जहर है तो भोजन चालू रखेंगे या उल्टी करके जहर बाहर निकालना चाहेंगे? जब जागे तब से सवेरा’
पता ना हो और खाते रहो तो भूल मानी जाएगी लेकिन पता चलने पर भी खाते रहो तो पाप माना जाता है और वही पाप जब पुनरावर्तन रिपीट रिपीट होता रहे बार-बार, रस पूर्वक पक्षपात के साथ जानबुझकर प्रचार प्रसार के साथ होने वाले पाप मोह बन जाते हैं।
भूल का छोटा सा प्रायश्चित आता है, पाप का प्रायश्चित बड़ा होता है और मोह की तो बात ही कुछ और है।
शुभ लाभ नहीं केवल लाभ कमाने के लिए ही चॉकलेट का धंधा कर रही मल्टी नेशनल कंपनियों के शुभ के लिए उन्हें समर्थन देने की बिल्कुल ज़रूर नहीं है। केक, चॉकलेट, बाहर की बाज़ारूँ बिस्कुट, कुकीज़ में आने वाले कोको यदि आप छोड़ ना भी सको तो उसे खाते वक्त रो तो सकते हो।
चॉकलेट में एक अपेक्षा से मांसंसार और मादकता (कामवासना वर्धक नशा) इस प्रकार दो पाप हैं। विकलेन्द्रिय के चूरे से बनने वाली चॉकलेट में मांस और मद्य (मदिरा) जैसे दो-दो महाविगईयों का कॉम्बिनेशन भी बन जाता है। (एक अपेक्षा से....)
अत: प्रत्येक जैन को चॉकलेट खाना छोड़ ही देना चाहिए। कॉक्रोच से भरे कोको पाउडर को चॉकलेट कहेंगे या कोकलेट?
निर्णय आप स्वयं ही कर लें।
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