दूसरा रास्ता
- Muni Shri Krupashekhar Vijayji Maharaj
- Nov 28, 2024
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एक बहुत ही महत्वाकांक्षी लड़का, उसका नाम अब्दुल था। बचपन से ही उसे हवाई जहाज का बहुत ही शौक था। हवाई जहाज देखते ही वह रोमांचित हो जाता था। उसे कुतूहल (जिज्ञासा) होता था कि यह विमान उड़ता कैसे होगा? उसे उड़ाने वाले कैसे होंगे? विमान में बैठने की कितनी मज़ा आती होगी?
उम्र के बढ़ते ही विमान का शौक एक महत्व की महत्वाकांक्षा बन गयी। स्कूल का शिक्षण पूर्ण होते ही बचपन के शौक को व्यवसाय बनाने के लिए - ऐअरफोर्स के पायलोट बनने का निश्चय कर लिया। वह दिन-रात मेहनत करने लगा। ऐअरफोर्स पायलोट बनने के लिए उसका अभ्यासक्रम उसने पूर्ण कर लिया। उसके लिए उचित परीक्षाएँ दी और वह पास हो गया। अब उस लड़के की और उसकी महत्वाकांक्षा के बीच मात्र एक कदम की ही दूरी थी। ऐअरफोर्स पायलोट की फाइनल नियुक्ति के लिये वह लड़का दहेरादून गया।
अब्दुल नौवे क्रमांक पर था। उसने सोचा था कि वह ज़रूर सिलेक्ट हो जाएगा। पर मेडिकल एकझमीनेशन में उसे रीजेक्ट कर दिया गया। बाक़ी के आठ सिलेक्ट हो गये। कितना बड़ा आघात! बरसों की मेहनत और महत्वाकांक्षा मिट्टी में मिल गई थी।
अब्दुल पायलोट नहीं बन सका। सामान्य इंसान होता तो ऐसी घटना से तूट जाता, चूर-चूर हो जाता, पर अब्दुल हिमंत नहीं हारा, वह अड़िग रहा। अब वह कभी-भी ऐअरफोर्स पायलोट नहीं बन सकता था। यह बात तय थी। पर उसने निर्धार किया। चाहे कुछ भी हो जाए, मैं ऐअरफोर्स के विमान में अवश्य बैठूँगा।
समय गुजरता गया। साल बीतते गये। अब्दुल ने बहुत मेहनत करी। एक दिन देश के सर्वाच्च पद – राष्ट्रपति पद तक पहुँच गया। वह अब्दुल यानी की हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति आदरणीय अब्दुल कलाम साहब।
एकबार ख़ुद स्पीच देते हुए उन्होंने कहा था की, “आख़िर में मैंने मेरी महत्वाकांक्षा को पूर्ण कर ही लिया। एक नहीं तो दूसरे रास्ते से। राष्ट्रपति बनने के बाद मैं ऐअरफोर्स के विमान में बैठा और मुझे उड़ने का मौक़ा मिल गया।”
इस बात का तात्पर्य यह है कि – आपका संकल्प, मनोरथ, महत्वाकांक्षा दृढ़ हो तो एक रास्ता बंद हो जाता है तो भी आपको हार नहीं माननी चाहिए। अन्य कई रास्ते होते है, कदम बढ़ाते जाओ...।
भौतिक जगत में, आर्थिक क्षेत्र में मंदी या नुकसानी हो जाये, तो हिमंत नहीं हारके पुरुषार्थ करना चालू रखना चाहिए, अन्य रास्ता ज़रूर मिल ही जाएगा।
शारीरिक क्षेत्र में असाध्य बीमारी आते ही तूट मत जाना। ट्रीटमेन्ट चालू रखना और मन को समाधि में रखना। अन्य रास्ते मिल ही जाएँगे।
उसी तरह मानसिक – कौटुंबिक – सामाजिक – पारिवारिक क्षेत्र में कोई अन्याय – पक्षपात हो जाए तो ना हिमंत मत होना, डटे रहना यही हमारी ताक़त है।
आध्यात्मिक क्षेत्र में भी बीमारी या बाहर गाँव आदि कारणवश एक आराधना बंद हो जाए, तो निराश ना होकर दूसरी आराधना शुरू कर देनी चाहिए। दूसरा रास्ता पकड़ लेना चाहिए।
· पैर में फ्रेक्चर हो गया, घुटने का दर्द हो गया तो पूजा करना बंद हो गइ हो तो घर बैठे-बैठे सामयिक करूँगा।
· पेरेलीसीस हो गया तो 1 करोड़ नवकार जाप का संकल्प करूँगा।
· तपस्या नहीं होती हो तो स्वाध्याय करूँगा।
· दान नहीं दे सकता हूँ तो ब्रह्मचर्य का पालन करूँगा। इत्यादि
इस प्रकार से किसी कारणवश धर्मक्रिया नहीं हो सके, तो आर्तध्यान करने के बजाय दूसरा विकल्प, नये योग का प्रारंभ कर देना चाहिए।
चलिए, हम संकल्प करते है, जीवन के किसी भी क्षेत्र में एक रास्ता बंद हो जाने पर हताश – निराश नहीं होकर मैं दूसरा रास्ता खोजने का प्रयत्न करूँगा!!!
Superb inspiring story