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एक दर्दनाक सत्यघटना से शुरूआत करते हैं :
जम्मू का एक गरीब परिवार था।
गाय का दूध बेचकर अपना जीवन यापन कर रहा था। शायद अपनी गाय का दूध अपने बच्चे को भी वे नहीं दे पाते होंगे। लॉकडाउन और सब कुछ ऑनलाईन ने कमर तोड़ दी उस परिवार की। दूसरी और चौथी कक्षा में पढने वाली दो संतानो की शिक्षा जारी रखने के लिए स्मार्टफोन लाना अनिवार्य था और स्मार्टफोन खरीदने के लिए गाय को बेचना।
ऐसे फालतू खर्चे आज घर-घर में अनिवार्य मानकर किए जा रहे है। आज चार बच्चों के लिए घर में चार स्मार्टफोन बसाना अनिवार्य हो गया है। पहले हमें यह सिखाया जाता रहा कि, बच्चों को मोबाईल फोन से दूर रखा जाए क्योंकि उन मोबाईल के रेडिएशन, बच्चों की सेहत के लिए भयानक नुकसानकारी हैं और अब उसी स्मार्टफोन से बच्चों को चिपकाकर पढ़ाने की नौबत आ गई।
जो भी नूतन होता है, वह हमेशा आवकार्य नहीं होता है। अतिथि देव जैसा होता है मगर आतंकवादी दानव जैसा। नवीन विश्व व्यवस्था आतंकी जैसी है या अतिथि जैसी? शायद आपको यह लेख पढ़ने के बाद अंदाज़ा लग जाएगा।
पता नहीं, वर्तमान की सरकारों की क्या मजबूरी है कि वह लगातार सब कुछ ऑनलाईन करने पर उतारू हो गई है। चाहे वह पैसों का लेन-देन हो, या विद्या का दान-ग्रहण हो, चाहे व्यापार हो या चाहे मनोरंजन के विविध उपाय हो, चाहे खाने-पीने की चीजें हो, चाहे खेल विश्व हो, चाहे न्याय व्यवस्था हो, चाहे स्वास्थ्य से जुडे़ मुद्दे हो। इतना ही नहीं, अब धर्मक्षेत्र भी ऑनलाईन होने जा रहा है।
पहले व्यापार की बात करते हैं। पिछले कुछ महीनों से भारत देश के 9 करोड़ से अधिक व्यापारी बड़ी चिंता में हैं। कुटीर उद्योग और सामान्य दुकानदार स्वरोज़गार के ताकतवर स्तंभ हैं। लॉकडाउन की परेशानियों में सरकार ने व्यापारियों को सीधे या बेंको द्वारा भी कोई मदद नहीं दी। वहीं बेंको ने जब से अपनी बीमा कंपनियां बनाकर या एजेंसी लेकर बीमा कारोबार शुरू किया है, तब से बेंक अपने ही खातेदार व्यापारी के ऊपर लगातार बीमा कराने का दबाव बना रहे हैं।
दूसरी ओर, कॉर्पोरेट घरानों के खुदरा बाजार में उतरने को छोटे व्यापारियों के लिए बड़ा खतरा माना जा रहा है। सर्वत्र यही शंका है कि बड़ी मछली, उन्हें छोटी मछली की तरह गटक जाएगी। 10 प्रतिशत व्यापारी तो इसी दीपावली पर अपनी अंतिम कमाई करके दुकान बेचने के मूड में हैं, क्योंकि दुकान खुद की, निवेश खुद का, जोखिम खुद उठाने का और मेहनत भी खुद की, फिर भी इन्कम टेक्स, जी.एस.टी. सरकार को जाए, घाटा जाए तो खुद का, कमाई हो तो सरकार भागीदार।
राजा-महाराजाओं के जमाने में व्यापारियों को महाजन कहा जाता था, और आज चोर बताया जाता है। अधिकांश जैनधर्मावलंबी व्यापारी हैं।
किसान यदि अन्न व्यवस्था का आधार है, तो व्यापारी अर्थव्यवस्था की नींव है। मगर ऑन-लाईन प्लेटफोर्म के सामने यह नींव खोखली होती जा रही है। वॉलमार्ट जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनीयाँ, हजारो करोडों रूपये का लोस टार्गेट लेकर बेठी है। उसमें सामान्य दुकानदार कहाँ जाएगा? पहले नोकर बनेंगे, फिर मजदूर और आखिर में भिखारी।
मार्केट में बिकने वाली हर चीज के भाव अब खुल्ले हो गए हैं, और कईं ग्राहक दुकान में सिर्फ माल देखने आते हैं, फिर वो ही चीज ऑनलाईन मंगवा लेते हैं। दुकान में माल लेने जाने में, पार्किंग की, ट्रैफिक की एवं टाईम की समस्या है, जो ऑनलाईन में नहीं है। कईं लोगों ने दुकान किराये पर ली है तो किराया भरने की चिंता और दुकान खुद की है तो तेजी से परिवर्तित हो रहे बाजार में दुकान की कीमत जितना ब्याज भी धंधे से मिलना मुश्किल। अनेक-अनेक समस्याओं का सामना करने की क्षमता नहीं रखने वाले व्यापारी अब धंधा छोड़ देने का मन बना चुके हैं। इससे तो भारत गुलामी की ओर ही आगे बढ़ रहा है। सबसे बड़ा डर इस बात का है कि, भारत भर के 9 करोड़ से अधिक खुदरा व्यापारी आत्महत्या में किसानों से आगे ना निकल जाए, क्योंकि इज्जत जिंदगी से भी ज्यादा प्यारी होती है।
जो बच्चे मैदान में खेलने नहीं जा पा रहे है, वो बच्चे इन 6 महीनों में ऑनलाईन गेम खेलने को मजबूर थे, और अब उसके आदी भी होने लगे है। M.P. इन्दौर के लसुडिया में 11 साल के बच्चे ने, 10 साल की एक बच्ची का सर पत्थर से कुचल कर इसलिए फोड़ दिया क्योंकि वो बच्ची ने ऑनलाईन गेम में उसे हरा दिया था। महाहिंसक गेम पबजी प्रतिबंधित होने पर बंगाल में बच्चे ने जान कुर्बान कर दी, यानी आत्महत्या कर ली। यह तो ऑनलाईन के दुष्परिणामों की अभी शुरूआत मात्र है। क्योंकि पबजी भले ही बंद हो गई, मगर इससे भी खतरनाक 5G आ रहा है।
लॉकडाउन के दौरान और स्कूल-कॉलेज की छुट्टियों के चलते अलग-अलग लोगों ने या संस्थाओं ने सोशल मीडिया पर जैन गीत गाने की या संगीत-नृत्य-नाट्यमंच की प्रतियोगिता का प्रारंभ किया, जिसमें अपनी जैन श्राविका बहनों ने भी हिस्सा लिया था।
चौंकाने वाली बातें सामने आ रही है, ऐसी प्रतियोगिता में बहने अपना नाम, नंबर, एरिया, फोटो भी शेयर करती है, जो जानकारियां लम्बे अरसे तक सोशल मीडिया में उपलब्ध रहती है। ऐसी जानकारी, जो कि सभी के लिए Open हो चुकी है, जिससे कोई भी व्यक्ति आसानी से बहनों की पर्सनल जानकारी प्राप्त कर सकता है और उसका दुरुपयोग भी कर सकता है। आप आश्चर्य करेंगे, ऐसी सिंगिंग कम्पीटीशन और एप लोकेशन से लीक हुए डाटा से अहमदाबाद में एक जैन लड़की को फँसाकर विधर्मीयों के द्वारा भगाया गया, बलात्कार किया गया, ब्लेकमैल भी किया गया। समाचार है कि ऐसा सिर्फ एक स्थान ही नहीं, अनेक स्थानों में रही संस्कारी, धर्मप्रेमी श्राविका बहनों को फाँसने का भी प्रयास हुआ।
ऊपर लिखी गई जानकारियाँ, हकीकत में जैन-शासन में हडकंप मचाने के लिए काफी है।
हम कब तक आँखें मूंद कर सोते रहेंगे? और अपनी संस्कारों की विरासत खोते रहेंगे?
यदि अभी भी कुंभकर्ण निद्रा से जागृत नहीं हुए तो जीवन भर रोते रहेंगे।
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