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Everything is Online, We are Offline 2.0

Updated: Apr 12




वर्षों पहले आगरा में एक स्थान पर रुके थे। मंदिर जाने के लिए सुबह-सुबह बाहर निकले तो बाहर बैठा चौकीदार बड़ा उदास दिख रहा था। मुझे दया आ गई, सहजता से पूछा तो रोती सूरत में जवाब मिला, ‘मेरा सब कुछ लुट गया।’ रात भर जागने के कारण लाल और दुःख के कारण भीगी आंखों से उसने बताया, ‘एक महिला से बातें होती रहती थी, चेटिंग भी चलती रहती थी, उसने ना बोल दी, रिश्ता बनते-बनते बिगड़ गया। वो भी शादीशुदा थी, मैं भी शादीशुदा हूँ।’ 

चौकीदार की बातें सुनकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ, फिर एक प्रश्न और पूछ लिया, ‘क्या आपने कभी उस महिला से मुलाकात की थी ?’

‘ना जी ! मैंने तो उन्हें देखा तक नहीं था।’ यह सुनकर मेरा वैराग्य बहुत ही दृढ होने लगा।

वहाँ पर मैंने बातचीत का पूर्णविराम रख दिया, मगर यह तो सिर्फ एक झांकी है। मोबाइल से फैले विनाश की पूरी कथा कहनी अभी बाकी है। 

आए दिन ऐसे समाचार कानों में  आते रहते हैं कि, किसी की शादी मोबाईल के कारण टूट गई और कोई शादी के पहले ही टूट गया। किसी का परिवार बिखर गया तो किसी ने आत्महत्या कर ली। 

जिसको कभी देखा ही नहीं, ना कभी उसका किसी भी तरह का परिचय किया हो, ना कभी उसके बारे में सुना हो, उससे घण्टों तक बातें करते रहना। उनके साथ हवाई रिश्ता बना लेना और ख्वाबों की दुनिया में सैर करना, मगर जब सपनों के आसमान से टूटकर वास्तविकता की धरती पर गिरना होता है, तब हमारा अस्तित्व चूर-चूर होता है और हम दुनिया से दूर-दूर हो जाते हैं।

गूगल प्लेस्टोर से डाउनलोड की जाने वाली अनेक एप (फेसबुक-इन्स्टाग्राम इत्यादि) आज हमें एक वर्चुअल वर्ल्ड में ले जाती है, साथ-साथ इस वास्तविक दुनिया से अलग कर देती है।

मोबाइल बड़े काम का हो सकता है, मगर हमारे काम का बड़ा समय भी वो ही खा जाता है, यदि सचेत ना रहे तो !

आजकल बच्चों को, स्कूल टीचर्स टास्क देते हैं और टास्क भी अजीबों-गरीब। मैंने जब सुना तो मैं भी हैरान हो गया, क्योंकि टास्क में, बच्चों को Best Video बनाने का लक्ष्य दिया जा रहा था।

एक विडियो बनाने के लिए बच्चों को यूट्यूब जैसी अनेक एप की सफर करनी पड़ती है। और आप तो जानते ही होंगे कि, इन्टरनेट की दुनिया में प्रवेश करते ही बच्चों के कोमल मस्तिष्क को प्रभावित करने वाले बहुत सारे दृश्य, जो उसे देखने लायक नहीं हैं वो देखने पड़ते हैं।

बच्चों को ‘हैरी पोटर’ की कहानी इन्टरनेट से सर्च करने को कहा जा रहा है, मगर वो माँ-बाप कहाँ जानते है कि ‘हैरी पोटर’ की कहानी को ढूंढने का टास्क देने के पीछे आखिरी मकसद क्या है ?

(इतना ही नहीं, ‘हैरी पोटर’ की कहानी में भी कितने सारे गुप्त संदेश डाले गये है, वह भी कहां पता है ?)

आज से 13 साल पहले मेरे गुरुदेवश्री (जैनाचार्य श्री रत्नसुंदर सूरिजी म.सा.) के अथक प्रयास से भारत राष्ट्र में बच्चों को पढ़ाने हेतु लाई जा रही यौनशिक्षा रूक गई थी, मगर मुझे अब लग रहा है कि, वे लोग ऑनलाईन शिक्षा के माध्यम से घर पे ही यौनशिक्षा पढ़ाने में सफल हो जाये तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

बच्चों को मोटिवेट किया जा रहा है कि, सात साल के (सिद्धांत नामक) बच्चे ने एप बना ली और पाँच साल की बच्ची यूट्यूब के प्लेटफोर्म पर विडियो अपलोड करके करोड़ों रूपये की कमाई कर चुकी है, मगर, बच्चों को इस बात का ज्ञान कौन देगा कि, मोबाइल से ज्ञान लेते-लेते कहीं आँखे गुम ना हो जाये, पवित्रता अदृश्य ना हो जाये। शिक्षा, स्वास्थ्य और संस्कार में, संस्कारों को ही प्राथमिकता देनी जरूरी है। स्टीव जोब्स ने भी 18 साल तक अपने बच्चों को मोबाईल से दूर रखा था।

अभी एक बहन ने अपना अनुभव बताया था कि, ‘हमारे घर के सारे बच्चों को इस ऑनलाईन के चक्कर में चश्में आ गये और वो भी सिर्फ छः महीनों में ही।’ शिक्षा आवकार्य है मगर स्वास्थ्य एवं संस्कारों के बलिदान पर? हरगिज़ नहीं। बच्चों को सिखाने के लिए अब नए-नए क्लासिस शुरू हो चुके है, जो बच्चों को वेबसाईट, एप और नई-नई गेम्स डेवलप करने के लिए कोडिंग, डी-कोडिंग सीखाते है। बच्चों को किसी का डाटा हैक कैसे करना, वो भी सिखाया जाता है, अहो आश्चर्यम्, चाईना में तो ऐसे क्लास धड़ल्ले से खुल चुके है यानी चोरी सीखाने की कला।

’99 रूपये भरो और जीतो करोड़ों रुपये’ के विज्ञापनों की भरमार भी सोशल मीडिया पर जगह-जगह दिखने लगी है, यानी जुआ भी अब खुलेआम खेला जाने लगा है। शिकार, शराब, परस्त्रीगमन, वेश्यागमन, मांसाहार, चोरी, जुआ, इन सातों व्यसनो को जीवन में लाने के लिए अब सिर्फ एक व्यसन की जरूरत रह जाती है और उस आठवें व्यसन का नाम है, मोबाइल का व्यसन। (Addiction of mobile)

आपको भरोसा ना बैठता हो तो, किसी से भी पूछ लो, पिछले छः महीनों में जितनी बिरयानी ज़ोमेटो और स्विगी ने बेची होगी, उतनी पहले कभी भी नहीं बेची है, ऐसा क्यों? मांसाहार से भरी चिकन बिरयानी बार-बार दिखाकर आपके दिमाग में कुछ ना कुछ जगह अवश्य बनाकर रहता है। सिर्फ 79 ₹ या सिर्फ 149 ₹ में यदि होम डिलीवरी हो रही है, तो मम्मी-पापा की अनुपस्थिति में मोबाईल की लत लगा चुका छोटा बेटा घर पर मंगवाकर खाने से हिचकिचायेगा नहीं, क्योंकि, कोई देखने वाला ही नहीं है कि, हमारे घर पर बच्चा क्या कर रहा है। 

जिस घर को सुरक्षित जगह माना जा रहा था वह घर भी अब सुरक्षित नहीं रह पाया है।

जो चीजें बाजार में खरीदने में शर्म महसूस होती थी, ऐसी चीजें अब होम डिलीवरी से घर पर मंगवाना अच्छे खानदान-कुलीन परिवारों की सुशील सन्नारीयों को भी अब सुविधाजनक हो गई। Online से संस्कारों की शमशान यात्रा निकलने लगी। सभी लोग अपनी-अपनी मस्ती में मस्त है। भगवान मौन हैं और  गुरु भगवंत लोक कल्याण के कार्यों में व्यस्त हैं, जन चिंतित एवं त्रस्त है। क्या इससे बड़े नुकसान की संभावनाएँ Online मोड में है ? 

जानते है, अगले एपिसोड में…

(क्रमशः)

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