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Everything is Online, We are Offline 3.0

Updated: Apr 12




विगत दो लेखों से लगातार हम Online के दुष्परिणामों को बताते आ रहे है। उसी कड़ी में आज, इस Online के और एक खतरनाक पहलू की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहेंगे।

(आपको जानकर आश्चर्य होगा कि, हमने दूसरे पार्ट में जिन व्यसनों के बारे में आपको सचेत करना चाहा था, उसी की बात अब मेईनस्ट्रीम मीडिया में भी खुलकर आने लगी है, उसी का उदाहरण है ऑनलाईन फैंटसी गेमींग एप। 22.11. 2020 दैनिक भास्कर – जो जुआ के रास्ते देश के बच्चों को एवं युवाओं को बर्बाद कर रहा है।)

क्रिकेट में शॉट मारना महत्त्वपूर्ण नहीं है, सही टाईम पर शॉट मारना ही मायने रखता है। उसी प्रकार ऑनलाईन के दुष्परिणामों को यदि सही समय पर नहीं बताया गया तो जीवनभर पछतावा हो सकता है। हम सिर्फ नुकसान ही नहीं बताना चाहते है, अगले लेख में उन सारे नुकसानों से बचने के रास्ते या आपदा को अवसर में बदलने के उपाय भी बताना चाहेंगे।

व्हॉट्सेप चेट के माध्यम से बॉलीवु़ड की हस्तियों का ड्रग कनेक्शन पकड़े जाने के बाद कईं लोग व्हॉट्सेप छोड़कर टेलिग्राम पर जाने लगे हैं। वे लोग टेलिग्राम को सेफ मान रहे हैं, मगर उन्हें पता नहीं है कि, टेलिग्राम हो या चाहे कोई भी एप हो पूरा इन्टरनेट ही (असुरक्षित है) अनसेफ है। 

तकलीफ यह है कि हमें अपनी गंदी आदतें छोड़नी नहीं है, छुपानी है और इसी कारण से हमें फाँसने वाले कहीं न कहीं पर मिल ही जाते है।

आंकड़े बयां कर रहे हैं, रोज इन्टरनेट पर 180 करोड़ फोटोज़ अपलोड़ हो रहे हैं। उसमें अधिकांश फोटो डालने वाली महिलाएँ हैं। टेलिग्राम ग्रुप में सज्जन सन्नारी के फोटो के साथ भी छेड़छाड़ करके उन्हें गलत तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है, जिस फोटो को नकली होने पर भी नकली सिद्ध करना असंभव सा हो जाता है। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इन्टरनेट पर अपलोड़ किया गया एक फोटो भी कभी डिलीट नहीं किया जा सकता है। वो कहीं ना कहीं पर सेव रहता है और कभी ना कभी आपको मुसीबत में डाल सकता है। इन्टरनेट पर ऐसी लाखों-करोड़ों वेबसाइट्स है, जहाँ पर यह फोटो पहुँच जाता है और बाद में उसे रीमूव करना नामुमकिन सा हो जाता है।

ऐसी अनेक महिलाएँ आज भी अपने पुराने फोटो के लिए पछता रही हैं, क्योंकि अदालत में अनेक बार धक्के खाने के बावजूद बड़े-बड़े न्यायाधीश भी उन्हें न्याय नहीं दिला पाये हैं। इन्टरनेट की आज की दुनिया में किसी को भी बदनाम करना दो मिनट का खेल है, या कहो बच्चों का खेल है।

ऐसी हालत में किसी गुरु भगवंत के या साध्वीजी भगवंत के फोटो के साथ छेड़छाड़ हो सकती है और उस आधार पर उन्हें सरलता से बदनाम भी किया जा सकता है, अरे! गुरुभगवंत की बात छोड़ों, बदमाश लोग परमात्मा को भी अब नहीं छोड़ रहे है तो महात्मा की कहाँ बात करना? इन्स्टाग्राम जैसी एप पर अनेक हिंदु देवी-देवता की तस्वीर से भी छेड़छाड़ करके धार्मिक भावनाएँ आहत करना आम होता जा रहा है।

आपके संस्कारों की सेहत को कैसे बर्बाद किया जा रहा है, उसका सबसे बड़ा उदाहरण विभिन्न एप पर प्रसारित वेबसीरीज़ है। हमें बड़ा आश्चर्य इस बात का है कि, जो फिल्म देखने के लिए 200/ 500 रुपये का खर्चा होता था, वह अब बिलकुल मुफ्त में अनेक एप दिखा रही है। आपको श्रद्धा-भ्रष्ट कर दे, ऐसी अनेक बातें बिंदास OTT प्लेट-फॉर्म पर धड़ल्ले से प्रसारित हो रही है।

भारत राष्ट्र पर अभी जिस प्रकार के आक्रमण आ रहे है, लगता है कि यदि इसका प्रतिकार अभी नहीं किया गया तो हम हमेशा-हमेशा के लिए गुलाम बना लिए जायेंगे।

जैसे कुछ दिनों से हमें कहा जा रहा है कि, ‘आप अपना स्वास्थ्य संभाल नहीं पा रहे हो, अतः हम जो भी कानून स्वास्थ्य रक्षा के लिए बनाएंगे उसका अनुसरण आपको करना ही करना है। ऐसी ज्यादती हो रही है। ठीक वैसे ही भविष्य में कहा जाएगा कि आप अपने बच्चों को संभाल नहीं पा रहे हो अतः हम जैसा बताये वैसे ही संभालना है’ (आज भी अमरीका जैसे अनेक राष्ट्रों में ऐसे कानून आने लगे हैं।)

आप अपने पैसे संभाल नहीं पा रहे हो, अतः हम  जहाँ पर निवेश करना बताये या रखने के लिए बोलें, आपको वहीं पर रखना है। (जैसे बैंक में रखना अनिवार्य किया जाने लगा)

ठीक वैसे ही, आगे के भविष्य में यह बात भी आ सकती है कि, ‘आप अपना धर्म भी सुरक्षित नहीं रख पायेंगे। आप अपने धर्म के कानून में परिवर्तन करेंगे तो ही हम आपको इस राष्ट्र में रहने की इजाजत देंगे’ ऐसा कहकर हमारे धार्मिक स्वातंत्र्य का हनन किया जाये तो भी आप कुछ भी प्रतिकार नहीं कर पायेंगे।

मैं यह सब इसलिए कह रहा हूँ, क्योंकि मोबाइल के द्वारा और आधार कार्ड के द्वारा आपके बायो-मेट्रीक डाटा हासिल करने के पश्चात कोरोना टेस्टिंग के द्वारा अभी आपके डी.एन.ए. (DNA) भी संगृहित किए जा रहे है। DNA का डाटा और बायोमेट्रीक डाटा पूरे देश की अमूल्य धरोहर है। इसके आधार पर आपको पूर्णरूप से गुलाम बनाने का खाका तैयार हो रहा है। मोबाइल में सेल्फी खींचने वाले यह सब बातों को कैसे समझ पायेंगे? आप जब (विजेता) विक्टरी की मुद्रा में दो उंगली उठाकर सेल्फी लेते हो तब आपकी आँखों की पुतलियाँ (कॉर्निया) एवं आपकी उंगली-अंगूठे का बायोमेट्रीक डाटा विदेशी कंपनियों के हाथों में स्वतः पहुँच जाता है। आप किससे बातें कर रहे हो? आप कहाँ जा रहे हो? आप क्या करने जा रहे हो? इत्यादि अनेक बातें अब उन लोगों के पास पहुँच रही है, जो आपके सबसे बड़े हितशत्रु है। कोई भी सरकार आपके यह डाटा सुरक्षित होने की आपको पूर्ण गारंटी नहीं दे रही है। 

संस्कारों की, धर्म की, आस्था की, संयम की, दया-करुणा-परोपकार से बनाई इज्जत की भी बातें एक बार बाजू पर रख दे तो अब जो सवाल उठने जा रहा है, वह आपके शांतिपूर्ण, सुख चैन से भरे अस्तित्व पर है। 

आपको लगेगा कि, ‘महाराज अतिशयोक्ति कर रहे है। मोबाईल स्मार्टफोन और ऑनलाईन, इन्टर-नेट की बातों में हमारे अस्तित्व को क्या जोखिम है ?’ हमारी जान को क्या खतरा है ? क्या मोबाईल बंदूक की गोली छोड़ने वाली है ? क्या हमें मोबा-ईल मार डालेगा ? जी ना! आप जो सोच रहे हो, ऐसा कोई भी नुकसान मोबाईल से नहीं है, फिर भी ऐसा ही कुछ होने जा रहा है, मैं ऐसा कह दूँ तो क्या आप मान सकते है? अगले लेख में जो बतायेंगे, आप जानकर हैरान हो जायेंगे। मानने से इनकार भी नहीं कर पायेंगे और उसके दुष्परि-णामों का स्वीकार भी नहीं कर पायेंगे।

पिछले पाँच महीनों में 267 चीनी एप पर राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर पाबंदियाँ लगाने वाली वर्तमान सरकार से मेरा तो सिर्फ एक ही प्रश्न है कि, राष्ट्र की प्रजा ही जब नहीं बचेगी, तो किसकी सुरक्षा करनी है ?

विकास के नाम पर असीम गति से आगे भाग रही बुलेट जैसी राष्ट्र नीति कहीं राष्ट्र को समृद्ध बनाने के नाम पर राष्ट्र की प्रजा के अस्तित्व को ही समाप्त ना कर दें। फिर तो हमें कहना पड़ेगा कि, ‘प्राण जाये, पर विकास न जाये।’

(क्रमशः)

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