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एक गाँव में एक कुत्ता रहता था। एक दिन सदनसीब से उस कुत्ते को किसीने बहुत अच्छी-सी बड़ी रोटी दी। पूरी रोटी मिलने पर कुत्ता तो खुश-खुशहाल हो गया। नाचने और कूदने लगा। खुश होता-होता मुँह में रोटी लेकर उस गाँव से अपने घर की ओर चलने लगा।
रास्ते में एक छोटी-सी नदी आयी। नदी में थोड़ा ही पानी था। कुत्ता इस पानी में से गुजर रहा था। तब उसे पानी में अपना प्रतिबिंब दिखाई दिया। नदी में दिखाई दे रहे इस प्रतिबिंब को देखकर कुत्ता वहाँ पर ही खड़ा रह गया। दूसरे के मुँह में भी खुदके पास है, वैसी ही रोटी को देखी, इसलिए उसे वह रोटी भी हड़प लेने का ख़याल आया। कुत्ता तो तुरंत ही सोचने लगा कि पानी में दूसरा कोई कुत्ता भी मेरे जैसी ही रोटी लेकर जा रहा है। यदि में उसकी रोटी छीन लूँ तो मेरे पास दो रोटीयाँ हो जाएगी।
कुत्ते ने प्रतिबिंब में दिखाई दे रही कुत्ते की रोटी छीनने के लिए जैसे ही अपना मुँह खोला की तुरंत ही उसके मुँह में दबी हुई रोटी पानी में गिर गई।
ना तो दूसरे की रोटी मिली और ना ही खुद की रोटी बची। कुत्ता तो सहम-सा गया और उदास भी हो गया।
हम सभी के भी हाल इस कुत्ते के जैसे ही है। जो मिला है उसका आनंद लेने के बदले दूसरे का भी हड़प लेने का प्रयत्न करते रहते हैं और उसमें खुदका जो है वह सब कुछ गँवा बैठते हैं।
हम दुःखी है उसका कारण यह नहीं है, कि हमें कुछ मिला नहीं है। पर हम दुःखी इसलिए है कि, हमें जो मिला है उसे पर हमारी नजर नहीं है, पर दूसरों को जो मिला है और मुझे नहीं मिल सका है, उसी पर हमारी नजर होती है।
संतोषी और लोभी के बीच में यही फर्क होता है।
“जो मिला है उस पर नजर है” वह संतोषी और सुखी है।
“जो नहीं मिला है उस पर नजर रहती है” वह लोभी और दुःखी है।
अनंतज्ञानी हमें सुखी होने के लिए यह Happiness Formula बताते है।
“जो अच्छा लगता है वह मिलता नहीं है,
तो जो मिला है, उसे पसंद कर लों।”
चलिए हम संकल्प करते हैं,
दूसरों को जो मिला है, उसे देखकर दुःखी नहीं बनूँगा और खुदको जो मिला है, उसमें खुश रहूँगा।
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