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नमस्ते मित्रों !
C.A को किसी पेशन्ट का हार्ट का ऑपरेशन करने का कहो, वह मना कर देगा, डॉक्टर को किसी मल्टीनेशनल कंपनी का रीटर्न क्लीयर करने को कहो, वह ना कह देगा… सुतार कभी लुहार का काम नहीं करता, लुहार कभी सुनार का काम नहीं कर पाता, सुनार की हथौड़ी और शिल्पकार की छैनी वो आपस में बदल नहीं सकते, न सुतार सुनार बन पाता है और नहीं सुनार सुतार बन सकता है कभी भी…
कॉमर्स का स्टुडन्ट चाहे कितना ही इन्टेलिजन्ट क्यों न हो, पर वो इंजिनियरिंग के Exam Paper को Solve नहीं ही कर पाता, तो इंजिनियर कॉलेज में पढने वाला कभी भी सायन्स के कॉर्स की महारत हासिल नहीं कर पाता।
इस दुनिया में हर एक व्यक्ति अपना-अपना काम करते है, प्रकृति का भी तो कानून है कि चीकू के पेड़ पर कभी संतरे नहीं पकते, और आम का पेड़ कभी चीकू को नहीं पकाता… मिरची के बेले पर कभी टमाटर नहीं पकता और टमाटर के बेले कभी भी मिर्ची को पैदा नहीं करते…।
सूरज कभी भी ठंडक नहीं देता और चांद कभी भी आग नहीं उगलता, धुआँ ऊपर की ओर जाता है और पत्थर नीचे ही गिर जाता है, आग जलाने काम करती है और पानी ठंडा करने का… पानी कभी जलता नहीं, और पेट्रोल जले बिना रहता नहीं….
प्रकृति हर एक चीज अपने-अपने निश्चित काम, निश्चित कानून, खुद का एक सरीखा तौर तरीका, अपना अलग अंदाज, एक स्वतंत्र तर्ज पर ही काम कर रही है और चल रही है…।
परंतु एक मात्र हम ही ऐसे है, जो हमारे निश्चित धर्म, निश्चित स्वरूप का पालन नहीं करते है वरन उससे लगभग बिलकुल उलटा ही चलते है। क्या कोयल के मुंह से कभी कौए जैसी कर्कश आवाज निकल सकती है? नहीं ना… पर यहाँ तो ऐसा ही हो रहा है, हमारा धर्म है कि हमें कुछ भी खाने की जरूरत न पड़े, परंतु है तो उल्टा, पेट भरने के लिए या फिर टेस्ट पाने के लिए दिन और रात हम खाते ही रहते है। देखो, हमें जो करना चाहिए वह हम नहीं कर रहे, और जो काम हमारा हरगिज नहीं, उसी पर हम जोर दे रहे है। हमारी अंतिम मंजिल तो मोक्ष ही है, और वहाँ पर न कुछ करना है, न कुछ पाना… वहाँ कोई 5G Network नहीं, वहाँ कोई पावरफुल एप्पल मोबाईल नहीं, वहाँ कोई दुश्मन नहीं, कोई दोस्त नहीं… फिर भी वहाँ पर आनंद ही आनंद है… आनंद किसी बाहरी चीज से मिलने वाली चीज नहीं है, आनंद तो एक सहज सी अनुभूति है, एक ऐसी अनुभूति जो भीतर से उठती है, और वह अनुभूति हमारा खुद का स्वरूप है। परंतु, हम वह काम नहीं कर रहे है, कुछ अच्छा मिल जाए तो खुश हो जाते है, कुछ खराब मिल जाए, तो रोने लगते है, क्या रोना और हँसना, कभी खुशी-कभी गम क्या यही हमारा स्वरूप है? नहीं, यह तो हम नहीं है, हम है डॉक्टर लेकिन कंपाउंडर का काम कर रहे है, यह हमारा काम नहीं, यह हम नहीं।
और जब कभी भी हमें इस वास्तविकता का ज्ञान हो जाए कि हम यह नहीं, हम वह है… बस उसे बोलते है सम्यग्दर्शन, सत्यप्रतीति, सम्यक् अनु-भूति… और यह पल कभी भी-किसी भी कंडीशन में आ सकती है, चाहे दिन का उजाला हो, चाहे रात का अंधेरा, चाहे नगर की भीड़-भाड़ हो, चाहे जंगल की बीहड़ता… कभी भी कोई भी स्थल में, किसी भी काल में, किसी भी स्वरूप में, किसी भी व्यक्ति के द्वारा हमें यह ज्ञान प्रकट होता है। और तब आत्मा के भीतर जो प्रसन्नता का महासागर उमड़ता है, उसकी तीव्रता की अनुभूति में हर गम, हर दुःख-दर्द, सब कुछ खो जाता है, मिट जाता है।
दोस्तों! जिंदगी में तीन प्रकार के नज़रिये होते है-
पहला नज़रिया : Devil Vision
दानव की आंखों से देखना। आदमी जैसा देखता है वैसा ही करता है, अगर राक्षस की तरह ही सोचता रहा, तो यकीनन एक दिन राक्षस ही बन जाएगा।
दूसरा नज़रिया है : Right Vision
सही नजरिया। इससे आदमी इंसान बन पाता है, यह अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा दिखाता है।
पर भगवान बनना चाहो तो चाहिए..
तीसरा नज़रिया : Holy Vision
यानी कि सम्यग्दर्शन। जो बुरे व्यक्ति पर भी द्वेष नहीं करने देता, जो हमेशा अच्छाइयों पर भरोसा रखने की समझ देता है। सम्यग्दर्शन वह है, जो हर एक आदमी में हर एक जीव में भगवान का दर्शन कराये, और जो व्यक्ति हर एक जीव में भगवान का दर्शन करता है, वही स्वयं भगवान भी बनता है।
चलिए, ऐसे इस सम्यग्दर्शन का गुणगान करें…
।। सम्यग्दर्शन पद ।।
(मेरी सांसो में तू है समाया…)
मैंने जब से प्रभु को है चाहा, गुरुचरणों में शीश झुकाया;
और सच्चा धरम अपनाया, मेरे भागे भरम, मिला सम्यग्दर्शन:
हुआ संसार कम, टूटा पापों का दम।
मौके हजारों मुझे भी मिले थे, ज्ञान देने की किसी ने मेहनत की थी;
पात्रता मेरी विकसित नहीं थी, बन के यूं पत्थर गँवाये सभी ही;
अब नहीं भागना, एक यहीं कामना; साथ देना मुझे उम्रभर… मेरे भागे… 1
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