top of page

जज-कायदा

Updated: Apr 15




छगन वकील ने जज को कानून की किताब दी, और कहा, “इस पुस्तक के पंद्रहवें पेज के आधार से आरोपी को निर्दोष मुक्त कर देना चाहिए।” जज ने पंद्रहवा पन्ना खोल कर देखा। उसमें से 500 की पांच नोट निकली। जज ने पैसे जेब में रखते हुए कहा, “अच्छा! ऐसे और दो गवाह पेश कर दो।”


एक बार एक जज को एक पक्ष ने पगड़ी दी, तो दूसरे पक्ष ने भैंस भेंट की। जज ने भैंस वाले की तरफदारी में फैसला दिया। पगड़ी वाले ने पूछा, "पगड़ी का क्या हुआ?" जज ने कहा, “भैंस चबा गई।”


 

वर्तमान में जिस न्यायालय के दम पर न्याय पाने के प्रयत्न होते हैं, वह न्यायालय भी स्वच्छ नहीं है, ऐसा बार-बार कईं लोग बोलते हैं। कईं लोग कहते हैं, न्याय गवाहों से नहीं, पैसों से मिलता है। कुछ लोग तो सच्चे, अच्छे, सज्जनों को परेशान करने के लिए ही कोर्ट में केस कर देते हैं, और कोर्ट को फैसला सुनाने में सालों बीत जाते हैं।


वर्तमान में तकरीबन संघ श्रमणप्रधान ना होने के कारण, और किसी ज्ञानी आचार्य के निर्णय को स्वीकार ना रखने के कारण, बात-बात में मामला कोर्ट-कचहरी में पहुँच जाता है। वर्षों तक मुकदमा चलता है। वकीलों को तो जैसे हर दिन दी जा रही तारीख में पेंशन के रूप में कुछ रकम मिल ही जाती है। जिस रकम से अच्छे कार्य हो सकते थे, वह रकम वकीलों के घर भरती है। और कुछ सरफिरे तत्त्व ऐसा भी समझते हैं कि, कोर्ट में पैसे बिखेर के मनचाहा फैसला करवा लेंगे। फिर संघ में दादागिरी भी चलेगी और 'हम ही श्रेष्ठ हैं' ऐसा दावा भी होगा।


खैर! जाने दो यह बात! असली कोर्ट तो कर्म की ही है। वह कोर्ट छोटी से छोटी, सिर्फ मन में भी सोची गई बातों का भी हिसाब रखती है। उसके निर्णय जल्दबाजी में नहीं आते, ना ही देर लगाते हैं। जब-जब, जहाँ-जहाँ जिस तरह से वह फैसला देना चाहे, तब-तब वहाँ निर्णय आ ही जाता है। अनंत जीवो की निरंतर फाइल तैयार होती है, और प्रत्येक पल में फैसला सुना दिया जाता है। उसमें कभी कोई चूक नहीं होती, भूल नहीं होती है। इसलिए इस उस कोर्ट से ही डरने जैसा है, और मन में सावधानी भी रखनी है।

Comments


Languages:
Latest Posts
Categories
bottom of page