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नकल से असल



nakal se asal

चार्ली चैप्लिन का नाम तो आपने सुना ही होगा। वह एक हास्य कलाकार था। उसका पचासवां जन्मदिन बहुत जोर-शोर से मनाया गया था और उस समारोह में पूरे यूरोप और अमेरिका में एक विशेष आयोजन किया गया था। चार्ली चैप्लिन की नकल कर सके, ऐसे अभिनेताओं की प्रतिस्पर्धा हर नगर में की गई, फिर अंतिम प्रतियोगिता में ऐसे श्रेष्ठ तीन व्यक्तिओ को ईनाम दिया जाएगा, जो चार्ली चैप्लिन का रोल अदा करने में कुशल होगा।


चार्ली चैप्लिन को मन हुआ कि, मैं खुद इसमें हिस्सा क्यूं ना लूँ? मुझे तो ईनाम मिल ही जाएगा। मुझे कौन हरा सकेगा? और जब मैं घोषणा करूँगा कि मैं ही असली हूँ, तो लोगों को नया मजाक मिल जाएगा। लोग कहेंगे कि इस हास्य कलाकार ने अच्छा मजाक किया। 


चार्ली ने भी छोटे से गाँव से फॉर्म भरा। अंतिम राउंड तक पहुँचकर वह स्टेज पर आया। वहाँ पर खड़े सभी प्रतियोगी चार्ली चैप्लिन जैसे ही दिखाई दे रहे थे। एक जैसी मूँछ, एक जैसी चाल, एक जैसा तरीका। प्रतियोगिता शुरू हुई। श्रेष्ठ तीन प्रतियोगियों को ईनाम भी दिए गए। मजाक भी बहुत हुई। परंतु चार्ली चैप्लिन ने जैसा सोचा था वैसा नहीं हुआ, बल्कि उलटा हुआ। असली चार्ली को खुद को तीसरा इनाम मिला। अन्य अभिनेता, जिन्होंने चार्ली की नकल की, वे नंबर एक और दो पर आए। और जब सबको हकीकत का पता चला तब पूरी दुनिया हैरान रह गई कि, असली चार्ली को नंबर तीन का ईनाम कैसे मिला?


हमें बात चार्ली चैप्लिन की नहीं करनी, पर इससे निष्कर्ष निकालकर दूसरी बात करनी है।


पूरी दुनिया इतना तो मानती ही है कि, हिंसा करना, झूठ बोलना, चोरी करना, विकृत चेष्टाएं करना, पैसे के लिए गलत मार्ग पकड़ना यह सब गलत है, अपराध है, पाप है। और जो व्यक्ति ये सब दुष्प्रवृत्तियां करता है, वह हमेशा शंका में रहता है, संक्लेश और संताप में रहता है। उसके अपराध की सजा उसे कभी ना कभी तो मिलती ही है। यह बात दुनिया के नास्तिक माने जाने वाले लोग भी मानते ही हैं। 

उसके सामने, दूसरी तरफ जो लोग सत्यवादी हैं, प्रामाणिक हैं, नीतिमान हैं, पवित्र और ब्रह्मचारी हैं, परोपकार का जीवन जीते हैं, वे लोग सत्कर्म करते हैं जो पुण्य रूप है। ऐसे लोग सदा यश-कीर्ति को प्राप्त करते हैं। वे निर्भय, निश्चिंत और निशंक होकर मस्ती का जीवन जीते हैं। वे जहाँ जाते है वहाँ खुद भी प्रसन्न रहते हैं और दूसरो को भी प्रसन्नता देते हैं। 


तो फिर क्यों न ऐसे ही महापुरुषो को आदर्श बनाया जाए? हम भले ही राजा हरिश्चंद्र जैसी पूर्ण सत्यवादिता स्वीकार नहीं कर सकते, पर उन्हें आदर्श बनाकर, उनकी नकल करके किसी एक क्षेत्र में तो असत्य नहीं बोलना है, ऐसा संकल्प तो कर ही सकते है ना?


इसी तरह से, आराधना करनी ही है, सत्कर्म करना ही है, तो किसी को आदर्श बनाकर, किसी की नकल करेंगे कि, उसकी नकल करते-करते असल तक पहुँच जाये। 


जैसे पेथड़शा मंत्री की पूजा, पुणिया श्रावक की सामायिक, जगडूशा का दान, सुदर्शन सेठ की शील-पवित्रता, धन्नाजी का तप, जीरण सेठ के भाव, सागरचंद्र का पौषध, महावीर प्रभु की क्षमा, गौतमस्वामी का विनय, माषतुष मुनि की सरलता आदि को आदर्श बनाकर, उनकी नकल करना चालू करें।


चार्ली चैप्लिन की नकल करने से लाभ होगा या नहीं, पर इन महापुरुषों की नकल करने से इस लोक में शांति और समाधि तथा परलोक में सद्‌गति और सिद्धगति अवश्य मिलेगी।


तो चलिए, हम संकल्प करते हैं कि, हर सप्ताह एक-एक महापुरुष को आदर्श बनाकर उस आराधना को शुरू करने के प्रयत्न जरुर करेंगे!

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