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Red signal for instant food

Updated: Apr 7, 2024




इन्स्टन्ट फुड ….

पिछले तीन दशकों में तेजी से विकसित इन इन्स्टन्ट पेक्ट्रियों ने बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी की जरूरत पूर्ण की हैं। स्कूल से आते ही भूखे बच्चों को तुरन्त दें सके ऐसे ‘नूडल्स’ इन कम्पनियों ने तैयार किए है। ऑफिस से आने पर बड़े लोगों के लिए आरामदायक ‘इन्स्टन्ट टी’ और ‘इन्स्टन्ट कॉफी’ शीघ्र तैयार हो सकती है। इडली, ढोसा, गुलाब जामुन, पीत्झा आदि तुरन्त तैयार हो जाए, ऐसे इन्स्टन्ट पैकेट बाजार में मिलते हैं। इससे काफी मुनाफा होता है। इसी से डॉक्टर, हॉस्पीटल और मेडिकल स्टोर्स वाले को भी अच्छी खासी कमाई होती है। बाजार में मिलते ये फास्ट फूड शरीर को पोषक तत्त्व नहीं दे सकते हैं।

पश्चिमी जीवन शैली और विचारधारा के रंग में रंगी हुई युवा पीढ़ी ‘रेडी टु इट’ फुडों से बहुत आकर्षित है। जैसे-जैसे इन ‘फास्ट फुड’ की बिक्री बढ़ रही है, वैसे–वैसे आरोग्यता घट रही है। आज की युवा पीढ़ी को कृत्रिम खाद्य सामग्री की आदत चिपके जा रही है। विश्व आरोग्य संस्थान ने भी फास्ट फूड से हृदयरोग की बीमारी की चेतावनी दी है। वैसे भी ग्रामीण बस्ती से शहर में बसने वाले लोगों में हृदयरोग की बीमारी का प्रमाण अधिक है। क्योंकि गाँवों में फास्ट फूड की आवश्यकता महसूस नहीं होती है।

आरोग्य, शक्ति और दीर्घायु होने के लिए शुद्ध और ताजा भोजन आवश्यक है। फास्ट फुड को लज्जतदार बनाने हेतु उपयोग में लिए गए विविध मसाले और एसेन्स भी ऊँची क्वालीटी के नहीं होते है।

बाजारु पेय, अचार, होट डोग, जाम जेली में आने वाले अमारन्थ से केन्सर होता है और शरीर में रहे शुक्राणु की मात्रा घटती है, जिसका असर भविष्य में होने वाली संतति पर पड़ता है ।

हमारे देश में बड़ी संख्या में लोग गाँवों में बसते हैं। उन्हें अभी तक इन्स्टन्ट फुड के दूषण ने स्पर्श नहीं किया है। और महंगी कीमत के कारण भी यह निर्धन प्रजा के पास नहीं पहुंचा है। इस प्रकार इसकी महंगी कीमत गरीबों के लिए आशीर्वाद समान है, कि जिससे वे खरीदते नहीं और रोग के भोग नहीं बनते हैं। अस्पताल दर्दियों से खाली नहीं हो पा रहे हैं। रोग व मृत्युकारी इन्स्टन्ट फुड का त्याग ही लाभप्रद है।

डॉ. डेवीड रूबे द्वारा रेड सिग्नल

अमेरिकन डॉ. डेबीड रूबे (एम.डी) ने अपने देशवासियों को बाजारू तैयार भोजन के दुष्परिणाम बताकर सचेत किया है। आज हम उसी राह पर जा रहे हैं । अतः डॉ. रूबे की बात को समझकर हमें खराब आहार के दुष्परिणाम से बचना चाहिए । अमेरिकन डाक्टर के महत्वपूर्ण लेख का सारांश: 

“मेरे प्रिय देशबंधुओं “

‘जागो ! आप सुबह में नारंगी-मोसंबी का अकुदरती रस पी रहे हैं ? जिससे कुदरती पके हुए ताजे और आरोग्यवर्धक फल खाने की इच्छा मिट गई है। | आपके समक्ष ब्रेड (डबल रोटी), मार्जेरीन (कृत्रिम मक्खन), रासायनिक पदार्थों से निर्मित कॉफी रखी जाती है। आपको सेक्रीन और कृत्रिम रंगों वाले अकुदरती विटामीन खाने की आदत हो गई है।”

“मित्रों ! आप जानते हैं ? आप अपने भोजन में प्रतिदिन पांच हजार से अधिक अकुदरती रसायन ले रहे हैं। आप प्रतिवर्ष छह रतल (लगभग पौने तीन किलो) से अधिक कृत्रिम संरक्षक दवाइयाँ (Preservatives) आरोग रहे हैं । जिसके परिणाम स्वरूप मेदवृद्धि, हृदयरोग, मधुमेह और केन्सर जैसे रोगों का शिकार बन रहे हैं।‘

‘मानव जाति के इतिहास में इतनी अधिक मात्रा में रोग कभी विकसित नहीं हुए। आपके सड़े हुए भोजन Routine Diets का यही परिणाम है, जिनके उत्पादक दूसरा कोई नहीं अपनी अमेरिका के राक्षसी कारखाने ही है । इन कारखानों के संचालक और इन्हें बेचने वाले दलाल, इन कृत्रिम रासायनिक पदार्थों को आरोग्यवर्धक कहते हैं। इस असत्य को सत्य साबित करने के लिए बड़े केन्द्र की स्थापना की है। इनके प्रचार में दो अरब डॉलर से भी अधिक धनराशि खर्च की जाती है।‘

‘अमेरिकन भाई-बहनों ! अन्तिम में अन्तिम आधारभूत वैज्ञानिक तथ्यों की बात भी सुन लीजिए । इस जगत में सबसे अधिक आरोग्यप्रद आहार लेने वाले आप और आप ही है ।“

You eat one of the worst diets in the world and it is hursting you and your children more then you are willing to admit.

डॉ. डेवीड अपनी वेदना की चरमसीमा पर पहुंचकर कहते है । 

मित्रों !

आपको कचरे जैसा भोजन Garbage food दिया जाता है। उस भोजन को

Modern Diet कहा जाता है ।‘

‘ओ अमेरिकन लोगों ! तुम्हारे और तुम्हारे संतानों के सामने भयंकर अणुशस्त्र भयरूप नहीं है। परन्तु आज रात्रिभोजन में आप क्या खाएँगे, यह ज्यादा भयरूप है।“

‘आफ्रिका सहित तीसरे विश्व की गरीब प्रजा भी अमेरिका से अधिक पोषणक्षम खुराक लेती है। सर्वेक्षण में प्राप्त हकीकत कहती है कि तीसरे विश्व के इन गरीब लोगों को केन्सर, हृदयरोग, मधुमेह जैसे रोग, जो कि अमेरिका के लिए सहज है, वह उनको बहुत कम होते है। और जो लोग अमेरिकनों का अनुकरण कर बाजारू बासी, सड़ा हुआ आहार खाते हैं, वे सभी भयंकर रोगों की पकड़ में फँसते हैं।

आरोग्यवर्धक (?) कहे जाने वाले कोकोकोला, सेवन-अप, पेप्सीकोला जैसे मादक पेय के भयस्थानों को वैज्ञानिक साक्ष्य द्वारा इस लेखक ने प्रस्तुत किया है। इस मानवतावादी डाक्टर ने ऐसे पेय के सामने लालबत्ती रखकर, उससे दूर रहने के लिए अमेरिकन जनता को अंतरस्पर्शी सलाह भी अपनी इस पुस्तक में दी है । साथ ही ऐसे पेय व खाद्य पदार्थ बनाने वाली फूड इन्डस्ट्री और सभी कार्पोरेशनों को वे भगवान के लिए और अमेरिका की भावी पीढ़ी के भले के लिए यह आर्थिक प्रवृत्ति छोड़कर बाहर निकल जाने की सलाह और भयपूर्वक विनती करते है।

नमक में आयोडिन मिलाने के विरुद्ध यह डाक्टर अन्य तथ्यों पर भी भार देते है। दूध, कितने ही फल और साग-भाजी में सहजता से पर्याप्त आयोडिन प्राप्त हो जाते है । अतः  कृत्रिम रूप से तैयार किया गया आयोडिन नमक में मिलाने की कोई आवश्यकता नहीं है । अनावश्यक आयोडिन से रोगों को आमंत्रण प्राप्त होता है। कितने ही आरोग्यप्रेमी अपने भोजन में नमक का सम्पूर्ण त्याग करते है। ये लोग ज्यादा अच्छा आरोग्य प्राप्त करने हेतु भाग्यशाली बनते है। इस अनुभव सत्य को भूलना नहीं चाहिए । 

डॉ. डेवीड ने ऐसे अनेक कारणवश अमेरिका में बिकने वाले आहार को अपनी पुस्तक में बार-बार Junk food, Rutten food, Garbage food. जैसे शब्दों से पुकारा है। उन्होंने पाँच हजार अकुदरती रसायनों के प्रति लोगों का ध्यान आकर्षित किया है। हमारे लिए भी डॉ. डेवीड की बातें रेड सिग्नल समान हैं, हमें सावधान हो जाना चाहिए ।

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