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पिंटू: “चिंटू! तुझे तो स्वीटी अच्छी लगती थी ना! फिर क्या हुआ?”
चिंटू: “मुझे उससे शादी नहीं करनी, वह तो बहरी है।”
पिंटू: “बहरी? तुझे कैसे पता चला?”
चिंटू: “बहरी ही तो है। मैं पूछता हूँ कुछ, और वह जवाब देती है कुछ और! तो क्या समझूँ? बहरी ही ना!”
पिंटू: “तुझे ऐसा कब लगा?”
चिंटू: “मैंने उसे प्रपोज करते हुए पूछा कि, तू मेरे प्रेम को कबूल करेगी? तो उसने मुझे कहा कि मैंने आज ही नए सैंडल लिए हैं। बोल! बहरी ही है ना! इसलिए मैंने उसे छोड़ दिया।”
पुरानी कथा में सियार ने लटकते अंगूर खाने के बहुत प्रयत्न किए, पर निष्फलता मिली। लेकिन निराश होने के बजाय उसने अपने मन को मना लिया कि, ‘ये अंगूर तो खट्टे हैं।’ चिंटू को स्वीटी ने भाव नहीं दिए, इसलिए चिंटू ने समाधान के लिए बहाना खोज लिया कि वह बहरी है।
'नए सैंडल लिए हैं' यह कोई बहरे द्वारा दिया हुआ जवाब नहीं है। वह कहना चाहती है कि यदि ऐसी बात करोगे, तो इसी सैंडल से फटकारूँगी। चिंटू यह समझता है, पर मन को मनाने के लिए, और अपने अहम् के कारण उसने दूसरा अर्थ पकड़ लिया। यूँ तो एक अपेक्षा से यह जवाब मन को मनाने के लिए अच्छा है। धारणा और अपेक्षा का भंग होने पर मन टूट जाता है, हताश हो जाता है, जीवन से रस उठ जाता है, और मरने तक के ख्याल आ जाते हैं। उससे अच्छा तो यह है कि यदि जीव इस तरह भी समाधान कर ले, तो मन की स्वस्थता बरकरार रहेगी, जीवन में रस रहेगा और अन्य चीजों में मन लगा रहेगा।
बाकी अपने जीवन की सरलता के लिए अन्य कोई वस्तु, साधन या व्यक्ति स्थाई रूप से सहायक नहीं होता। खुद को यदि स्वस्थ रहना आ जाए, तो प्रतिकूलता भी साथी बन जाती है। सोक्रेटिस की तो झगड़ालू पत्नी भी उसके फिलोसोफर बनने में उपयोगी बन गई थी। बिगड़ा हुआ मोबाइल, हमें यह बताने में निमित्त बनता है कि उसके सिवा भी जगत में बहुत कुछ आत्मीय और आनंदपूर्ण है।
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