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शराब का नशा अर्थात् मौत का कुँआ




शराब का नशा अर्थात् मौत का कुँआ

शराब का सेवन एक बार करने के बाद रूकना मुश्कील है। इसका शौक करने जैसा नहीं है, यह मौत का कुँआ है। इसलिए जीवन में पानी आने से पूर्व पाल बाँध लेना चाहिए। पीने जाने से पूर्व ही वापिस मुडना है। एक बार शराब के रिएक्शन को बराबर समझ लिया जाय तो कभी बार में प्रवेश नहीं होगा। युवावस्था में खून गरम रहता है। युवा बड़े से बड़े कामों को आसानी से कर सकता है।


अतः जिन्दगी को शराब के तालाब में नहीं डूबोना है। पेट का सत्यानाश नहीं करना है। परिवार को दुःखी नहीं करना है।


एक युवान बहुत शराब पीता था, किसी की नहीं मानता था। मन चाहे जिस तरह पैसा बिगाडता। एक दिन खूब पीकर घर आया। दुःखी और त्रासित माँ एवं पत्नी ने उसका खात्मा बोला दिया, यमशरण पहुँचा दिया। कैसी करूण कथा?

आज शराब का सेवन बेरोक-टोक बढ़ रहा है। हमारे देश में दारूबंधी का कानून निष्फल रहा है। दारुबंधी वाले क्षेत्रों में अधिक शराब पी जाती है। दारु बनाने की भट्टियाँ खुल्लेआम चल रही है। सम्पूर्ण विश्व में प्रतिदिन ढाई करोड शराब की बोतलें पी जाती है।


'क्रिसमस डे' के दिन चार करोड़ बोतल शराब मनुष्यों के पेट में जाती हैं। भारत में हर महिने अट्ठारह करोड़ विदेशी शराब की बोतलें आती है। चउदह लाख बोतलें तो सिर्फ बम्बई में लगती है।


कितनी ही बार पति पीने के लिए बार में जाता है, तब साथ में पत्नी पीने के लिए अपितु कम्पनी देने के लिए जाती है। इस तरह बार-बार पति को पीते देख, खुद भी पीना सिखाती है। कितनी ही पत्नियाँ भी अब शराब पीने लगी है, इतना ही नहीं, बल्कि अपनी संतानों को भी पीलाने लगी है "बेटा! थोडी थोडी पी! शरम मत रख, कुछ मॉडर्न बन...!" इन्हें अपने भविष्य की कोई चिन्ता नहीं है। भेड़ चाल की तरह मौत के कुएँ में गिरना।


पेट की दीवाल में जो स्क्रीन है, वह एकदम मुलायम है। टर्कीश के तौलिये के समान इस स्क्रीन पर चारों और रेशे-रेशे है। शराब के पेट में गिरते ही ये रेशे उन्हें सौखने का कार्य करते हैं। परिणामतः खून में अल्कोहल मिल जाता है।

शराब पीने के पश्चात् ब्लड टेस्ट किया जाय, तो उसमें अल्कोहल अवश्य मिला पाया जायगा।


एक रक्तदान शिबिर में युवान गए। उनके ब्लड में अल्कोहल होने से केम्प में उनका खून नहीं लिया। इन बातों से यह प्रतीत होता है कि आज के शराबी युवान अपने खून में अल्कोहल लेकर घूम रहे है। जिस अल्कोहल को चमडों के जूतों पर डालने से जूता भी सड़ जाता है, तो ऐसा ज्वलनशील अल्कोहल पेट में जाने पर, खून में मिल जाने पर कितनी हानि पहुँचाता होगा?


शराब पीते समय पेट में इन्स्युलीन झरने लगता है जिससे पेट में छाले हो जाते है तथा नर्वस सिस्टम पर भारी असर गिरता है। शराब पीकर वाहन चलानेवाले स्वयं एक्सीडेन्ट के भोग बनते हैं और दूसरों को भी क्षति पहुँचाते हैं।


अमेरिका से प्रकाशित एक पत्रिका लिखती है कि 'दुनिया में हत्या, आत्महत्या करने वालों में आधी संख्या शराबियों की है।' दुनिया में फैले खून-खराबे का आधा अपयश शराब को है, बाकी का आधा जुआ, वैश्यागमन, चोरी आदि अनिष्टों को है।


एक बार भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई रशिया गए थे। पार्लामेन्ट में सभी के लिए शराब की प्यालियाँ आई। सभी ने प्याले हाथ में लिए, पर मोरारजी तो यों ही बैठे रहे। तुरन्त शराब का ग्लास हटाकर चाय का कप उपस्थित किया गया। तब मोरारजी देसाई ने कहा,


"मैं चाय भी नहीं पीता हूँ। मेरी मान्यता है कि आरोग्यकारी प्रतिज्ञाओं में ही जीवन सुरक्षित है।"


आजकल बड़े शहरों में अनेक ऑफिसों में खुल्लेआम शराब पी जाती है। मानों शराब स्वागत का पेय बन गया हो ? आप कभी भूल से ऐसी आफिस में गए हो, और कोई शराब की ऑफर करे, तो बिना शर्म स्पष्ट मना कर देना। दुनिया में कितने ही माता-पिता शराबी पुत्र के लिए रो रहे होंगे? कितनी ही पत्नियाँ सिसक सिसककर रो रही होंगी? कितने ही बच्चें पिता की बुरी आदत से दुःखी होंगे ? कितने ही सज्जन लोग यह लत छोड़ने को कहते होंगे ? पर आदत हो जाने के बाद सत्त्वहीन जीव सुधरते नहीं है? बल्कि खुद का और दूसरों का जीवन बरबाद करते हैं। कहा भी है न कि,


"पहले आदमी आदत गिराता है, फिर आदत आदमी को गिराती है।" अतः इस कुसंग से सभी को बचना चाहिए। इसी में सभी का कल्याण है।

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