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पेट है या क़ब्रस्तान?




कुछ अभक्ष्य पदार्थों की सूचि नीचे दी जा रही है।

 

1.     जिलेटीन : यह प्राणियों की हड्डी का पाउडर है। इसका उपयोग जेली, आइस्क्रीम, पीपरमेन्ट, केप्सुल, च्युंगम आदि में होता हैं।

2.     जाजाब्स : रंगबिरंगी, रब्बर जैसी नरम और शक्कर लगाई हुई पीपर, जो जिलेटीन के मिश्रण से बनती है। इसे कभी न खाए और न ही मंदिर में कोई भी पीपरमेंट नैवैद्य के रूप में चढ़ाये।

3.     एक्स्ट्रा स्ट्रोंग सफेद पीपरमेंट : जिलेटीन तथा बोन पाउडर का मिश्रण इसमें काम लिया जाता हैं।

4.     जेली क्रीस्टल : इसमें जिलेटीन आता हैं।

5.     सेंडवीच स्प्रेड एवं मेयोनीज : इसमें अंडे का रस मिश्रित होता हैं। ब्रेड पर लगाकर इसका उपयोग किया जाता हैं। ब्रेड पाउं में अभक्ष्य मैदा, ईल और अनेक जन्तुओ का नाश, खमीर बनाते समय त्रस जीवों का अग्नि में संहार, पानी का अंश रह जाने से बासी आटे में करोडों त्रस जीव नये उत्पन्न हो जाते हैं। नये नये रोग को उत्पन्न करता हैं।

6.     बटर : मक्खन में असंख्य त्रस जीव होते हैं। जो विकार और राग पैदा करते हैं।

7.     चाइना ग्रास : समुद्री काई सेवाल आदि के मिश्रण से बनता है।

8.    वाइन बिस्कीट : (छोटी चपटी - गोल) इसमें अंडे का रस होता है।

9.     एनीमल टाइप बिस्कीट : भिन्न-भिन्न पशु-पंखी के आकार के होने से, मैंने घोडा खाया, मैंने सिंह खाया इत्यादि हिंसक भावना जागृत होती है। अतःनहीं खाना चाहिए और बच्चों को इसका मर्म समझाना चाहिए। यह दया-करुणा की घातक है।

10.  क्राफ्ट चीज : रेनेट फ्रोम काउज, दो तीन के जन्में हुए बछड़ो के जठर के रस से यह वस्तु बनती है। इसका उपयोग ब्रेड के उपरी हिस्से में लगाने व पीजा बनाने में होता हैं। इसे खाने से मांस भक्षण का दोष लगता हैं।

11.   आइस्क्रीम पाउडर : इसमें जिलेटीन आता हैं। तदुपरान्त विविध केमिकल्स व कॅलर मिलाये जाते हैं। रोगकारी है।

12.  फ़्रुटेला च्युइंग गम : इसमें बीफटेलो और हड्डी का पाउडर आता है। बीफटेलो - मांस और चरबी।

13.  मेन्टोस : इसमें भी बीफटेलो, बोन पाउडर, जिलेटीन का उपयोग किया जाता हैं। उपरोक्त (12,13) दोनो वस्तुओं का उपयोग स्कूल-कॉलेज में अत्यधिक मात्रा में विद्यार्थी वर्ग करते हैं।

14.  पोलो : सफेद एकस्ट्रा स्ट्रोंग पीपर जिसमें जिलेटीन एन्ड बीफ ओरीजीन, गाय - बैल के मांस का मिश्रण किया जाता हैं। छोटे बडे सभी इन्हें चूसते हैं। पेट में जानेवाले मांस के अणु तामसिक असर खडी करते हैं।

15.  नूडल्स (सेव) पेकेट : जिसमें चिकन पाउडर (मूर्गी का रसी) मिलाया जाता हैं। प्याज-लहसन के साथ अंडे का भी मिश्रण होता हैं। सुबह नास्ते के आइटम में इसका उपयोग होता हैं। यह वर्ज्य है।

16.  सुप पाउडर तथा सुप क्युब्ज : इसमें भी चीकन फ्लेवर का मिश्रण किया जाता है। जो मांसाहार का एक प्रकार है।

17.   पेप्सीन : साबुदाना की वेफरें, रतालुं कन्दमूल के रस से बनती हैं। सड़े हुए रतालु के रस के कुण्ड में असंख्य कीडों को पाँव तले कूचलने के बाद मशीन में गोल गोल दाना बनाते हैं, जिसे साबुदाना कहते हैं। इसमें अनंतकाय और अंसख्य त्रस जीवों की हिंसा होने से यह वर्ज्य है।

18.  टूथ पेस्ट : प्रायः इसमें अंडे का रस, हड्डी का पाउडर तथा प्राणिज ग्लीसरीन का मिश्रण होता हैं। सुबह के समय दाँतो की सफाई के लिए किए जाने वाले पेस्ट से हिंसक वस्तुओं का दोष लगता हैं। इससे बचने के लिए आयुर्वेदिक निर्दोष मंजन का प्रयोग करना श्रेयस्कर है।

19.  इन्सुलिन इन्जेक्शन : कत्ल किए गए भेड़, बकरे, सुअरों के पेन्क्रीयाज नामक अवयव से बनाये जाते हैं।

20. कसाटा आइस्क्रीम : अलग - अलग कम्पनियाँ इसे बनाती हैं। इसमें अंडे का रसवाली केक मिलाई जाती हैं। जिलेटीन, रसायनिक द्रव्यों का मिश्रण होता हैं। यह अभक्ष्य और रोग कारक हैं।

21.  नहाने के साबुन : अधिकतर साबुनों में प्राणिज चर्बी मिलायी जाती हैं। जिसे टेलो कहते हैं। हिंसक पदार्थों का त्याग अपनाकर निर्दोष जीवन जीए यह दयावान व्यक्ति का कर्तव्य है।

22.  सौंदर्य प्रसाधन : लिपस्टीक, आइब्रो, शेम्पू में जानवरों की हड्डी का पाउडर, रक्त एवं भिन्न-भिन्न अवयवों का रस और चर्बी का मिश्रण होता हैं। खरगोश, बंदर और चूहों पर प्रारंभ में प्रयोग किया जाता हैं। जिसमें असंख्य प्राणी मौत के घाट उतर जाते हैं। अंध हो जाते है। इनका मेकअप में शरीर शोभा के लिए स्त्री-पुरुष भरपूर उपयोग करते हैं। अहिंसा प्रेमियों को इसका अवश्य त्याग करना चाहिए।


लिपस्टीक में चरबी, खून तथा मछली का मांस सूखाकर, उसे पीसकर उपयोग में लिया जाता हैं। होठों पर लगी जुदा-जुदा रंग वाली लिपस्टीक पर जितनी बार जीभ का स्पर्श होता है, उतनी हि बार मांस के अणु पेट में प्रवेश करते हैं। अतः आज से ही इसके त्याग करने का संकल्प लेना चाहिए।

 

साबुदाना का इतिहास : 'आँखों देखा हाल' के अनुसार साबुदाना के कंद को सेलम प्रान्त में कलंग कहते हैं। Torpeo इसका अंग्रेजी नाम है। इसका वजन 5 किलो जितना होता हैं। ऊपर का छिलका निकालने के बाद खुली जगह पर 4-5 महीने पड़ा रखते हैं, जिससे इस पर काई और फूलन होती रहती हैं। और अनगिनत त्रस जीव उत्पन्न हो जाते हैं। बाद में उसे सड़ाकर, पैरों तले रौंद कर, अनंत जीवों का कचूमर निकालकर साबुदाना बनाया जाता हैं।

 

तदुपरांत पीपरमेन्ट में मिठास, बस्किीट में मिठास, सेलाइन इन्जेक्शन तथा सेलाइन बॉटल, डीटरजेंट पाउडर, डेट आदि साबुन, कपड़े के लिए स्टार्च पाउडर तैयार किया जाता हैं। जिसके वेस्टेज गंदे रस में अपार कीड़े खदबदाते हैं। उस पर प्रोसेस करने पर घोर भयंकर हिंसा होती हैं। अतःइस रस वाणिज्य नामक कर्मादान के व्यापार को पापभीरू लोगों को नहीं करना चाहिए। कर्मादान का धंधा भारी पापकर्म का बंध करवाकर असंख्य काल के लिए नरक-निगोद की अनंती पीड़ाओं की भेंट दिलवाता हैं।

 

पीझा में सात या उससे अधिक दिनों की बासी मैंदे की रोटी तथा समोसा के लिए मैदे की बासी पट्टियों में असंख्य त्रस जीवों का संहार होता हैं। अतः अभक्ष्य है। आजकल केटरस कचोरी-समोसा वगेरह में बासी पट्टियो का उपयोग करते हैं। अतः बिना सावधानी बचना मुश्किल है।

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