सुखी होना चाहते हो या दुःखी?
- Muni Shri Krupashekhar Vijayji Maharaj
- Jul 17, 2024
- 2 min read
Updated: Jul 28, 2024

जापान का राजा बड़ा सा जहाज लेकर समंदर की सफर करने निकल पड़ा। सागर के जो टापू थे वह उनको देखने थे। साथ में बहुत सारे सेवकों और सहायकों को सेवा के लिए रखा था। जहाज धीरे-धीरे समुद्र के मध्यभाग में आए हुए टापूओ की और आगे बढ़ रहा था। सभी आनंद से गीत गाते हुए नाचते-कूदते सफर का मजा ले रहे थे।
अचानक ही समंदर में तूफान शुरू हो गया। और धीरे-धीरे तूफान बढ़ने लगा। जहाज भी यहाँ से वहाँ टकराने लगा। जहाज में जो रसोई बनाने के लिए एक रसोइया को लाया गया था वह रोने लगा। धीरे-धीरे उसके रोने की आवाज इतनी बढ़ गई की सभी के कान दुखने लगे।
राजा ने गुस्से होकर कहा, “इस रसोइया को उठाकर समंदर में फेंक दो। कब से रो-रोकर दूसरों को परेशान कर रहा है।”
मंत्री ने राजा को समझाते हुए कहा “राजन! उसे दरिया में फेंकने की जरूरत नहीं है। आप मुझ पर छोड़ दे। मैं उसे रोने-से रोक लूँगा। राजा ने जो कुछ करना पड़े, उसे करने की मंजूरी मंत्री को दे दी।
मंत्री रसोईया के पास गए। और उसे रस्सी से बांधकर जहाज पर से नीचे लटकाया। रसोईया तो एकदम घबरा गया। लटकते-लटकते तूफान का सामना करना बहुत मुश्किल था। कुछ ही देर में उसे ऐसे ही रखकर मंत्री ने उसे फिर से जहाज के अंदर ले लिया।
जैसे ही वह जहाज के अंदर आया तब उसे रस्सी खोलकर मुक्त कर दिया गया। और वह तुरंत ही दौड़कर एक कोने में जाकर बैठ गया और बिल्कुल मौन हो गया। राजा ने ऐसा कैसे हुआ यह जानने के लिए मंत्री से पूछा, तो मंत्री ने कहा- राजन! इंसान तब तक चिल्लाता रहता है, और फरियादें करता रहता है, कि जब तक वह खुद वर्तमान में जिस स्थिति में जी रहा हो उससे बुरी परिस्थिति को देखा नहीं हो। जब वह वर्तमान परिस्थिति से भी अधिक खराब परिस्थिति का अनुभव करता है तब उसे वर्तमान परिस्थिति ज़्यादा अच्छी लगती है।”
श्रमण भगवान प्रभु श्री महावीरदेव सुखी होने का एक सुंदर-सा मार्ग बताते हैं कि साधनाकाल दरमियान भगवान, दिसंबर महीने की कडाके की ठंड में शरीर को ठंड सहन करने में और मन को स्वस्थ रखने में सफलता मिले इसके लिए खुद बाहर खुले में थोड़े समय काउस्सग्ग करके वापिस स्वस्थान में या किसी मकान में आते थे तो ठंड कम लगती थी।
इसके पीछे भी यह सायन्स है कि- खुदको आए हुए दुःख से अधिक दुःख की कल्पना या अनुभव, वर्तमान दुःख को सहज-सरल और सहनशील बना देता है।
वर्तमान में जो शारीरिक-मानसिक-आर्थिक-कौटुंबिक दुःख हमें आये है उसमें... “मुझे इससे अधिक दुःख आया होता तो...” यह कल्पना ही हमे इस वर्तमान दुःख को हँसते-हँसते सहन करने का बोल देती है।
हमें मिला हुआ सुख हमेशा कम ही लगता है, इसलिए मनुष्य सुख प्राप्त करने से थकता नहीं है। उसी तरह मिला हुआ दुःख भी कम लगे तो समतापूर्वक सहन करने का बल मिलता है।
तो चलिए, सुखी होने के लिए हम संकल्प करते हैं कि...
“मुझे जो सुख मिला है, उसे अधिक ही मानूँगा और मुझे जो दुख मिला है उसे कम ही मानूँगा!”
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