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दक्षिण भारत के सुप्रसिद्ध शहर में मेरा रात्रि प्रवचन चल रहा था। 40 साल की उम्र के बाद आपको डॉक्टर लोग एन्यूअल हेल्थ चैक-अप करने के लिए प्रेरित करते है।
एक साल में एक बार फुल बोडी चैक-अप करा लेना चाहिए ऐसा वे कहते है। मैं आपको पूछता हूँ कि आप लोगों को इस वार्षिक फुल बोडी चैक-अप में कितने टेस्टींग करने पड़ते है?
जैसे ही मैंने श्रोताजनों को प्रश्न पूछा, मुझे सामने बैठे श्रोताओं में से एक श्रोता ने जवाब दिया ‘साहेबजी तकरीबन 350 टेस्टिंग होते है अलग-अलग’
मैं तो सुनकर चौंक ही गया, क्योंकि मेरी धारणा से कई गुना बड़ा आँकडा मैं सुन रहा था। सुनने के बाद मुझे हकीकत में ऐसा महसूस हुआ कि इतने सारे टेस्टींग क्या दवाई बेचने के धंधे की स्ट्रेटेजी तो नहीं है? एक आँकडा चौंकाने के लिए और काफी था।
भारत देश में लगातार केन्सर के मरीज बढ़ते जा रहे है। इसमें भी ब्रेस्ट केन्सर सबसे अधिक तेजी से बढ़ रहे है। अकेले ब्रेस्ट केन्सर से पीड़ित मरिज टोटल केन्सर में 26% हो चुके है। केन्सर के मरीजों में अभिवृद्धि का एक कारण यदि मैं आपको कहूँ कि ‘केन्सर की वर्तमान टेस्टींग पद्धति है’ तो आप मान सकते हैं क्या?
प्रतिवर्ष एक बार सभी प्रकार के टेस्टींग करने को शायद इसीलिए कहा जाता हैं, ताकि आप इस ट्रैप में फँसकर रोगों के शिकार आसानी से हो जाओ।
आइये जानते है, केन्सर के टेस्टींग से हम केन्सर के पेशन्ट कैसे बनते है?
यदि यहाँ पर महिलाओं में होने वाले ब्रेस्ट केन्सर की ही बात करें तो भोली-भाली महिलाओं में एक डर बिठाया जा रहा है कि 40 साल के बाद आपके शरीर में केन्सर आने की संभावना है, अतः आप टेस्टींग करवा लो, (स्क्रीनींग-मेमोग्राफी या फिर पेटस्कैन, बायोप्सी जैसे केन्सर टेस्टींग के नामचीन फार्मूला फ्रॉड है या फ्रेन्ड है आगे पता चलेगा)
साइकोलोजी भी ऐसी ही तैयार की गई है कि,
‘Prevention is Better than Cure’
अचानक केन्सर का 4th Stage पता चले तो मौत के अलावा कोई चारा ही ना बचे, इससे अच्छा है कि केन्सर बोडी में पनपने से पहले ही आपको पता चल जाये और पहले से ही पता चलने पर आप ट्रीटमेण्ट करवा ले तो आप बच जाये।
यहाँ पर याद रहे कि, 40 साल के बाद हर साल एक बार मेमोग्राफी (ब्रेस्ट केन्सर टेस्टींग) के लिए डॉक्टर्स आप पर दबाव बनाते है। आपको प्रेरित करते ही रहते है।
मेमोग्राफी करवाने के लिए गई महिला बेचारी केन्सर के टेस्टींग के नाम से केन्सर माफियाओं के ट्रैप में फँस जाती है।
1. मेमोग्राफी में स्तन का परीक्षण किया जाता है, ऐसा कहने से ज्यादा बेहतर यह रहेगा कि, स्तनधारी महिलाओं को प्रताड़ित या परेशान किया जाता है, क्योंकि मेमोग्राफी एक पेट स्कैन है और एक पेट स्कैन यानी 500 एक्स-रे...
जब कोविड की दूसरी लहर चल रही थी (याद कीजिए सन् - 2021 – April – May) तब लोग डर के मारे घड़ाघड सीटी स्कैन करवाने लगे थे। बार-बार सीटी स्कैन करवाने वालों को एम्स के डिरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने चेताया की पूरी जिंदगी में सिर्फ दो बार ही सीटी स्कैन करना सुरक्षित है। इसका कारण भी उन्होंने बताया था कि, एक सीटी स्कैन यानी 350 एक्सरे।
मैं यहाँ पर पाठकों को पूछना चाहुँगा कि विशेषज्ञ रणदीपजी के शब्दों पर गौर करें तो पता चलता है कि एक एक्सरे में जितने रेडिएशन छाती को छलनी करते है, 350 एक्सरे बराबर एक सीटी स्कैन अधिक छलनी ही करने की ताकत रखता है। यदि पूरी जिंदगी में सिर्फ दो बार ही सीटी स्कैन करना चाहिए तो 500 एक्सरे के बराबर एक पेट स्कैन प्रति वर्ष एक बार कैसे करा सकते है? रेडिएशन ही केन्सर कर देगा।
इतने सारे रेडिएशन से कौन सी महिला बचेगी?
महिलाओं का शरीर कोई पत्थर या लोहे का तो बना नहीं है।
2. इंजेक्शन की सुई के माध्यम से मेमोग्राफी के दौरान महिलाओं के शरीर में FDG घूसाते है, किसी को पता ना हो तो बता दूँ कि, FDG एक केन्सर कारक कार्सेनोजेनिक मटेरियल है।
FDG (Flouro Dioxi Glucose) एक ख़तरनाक कैमिकल आप के शरीर में टेस्टींग के लिए नहीं, केन्सर मैकिंग के लिए घुसाया जाता है।
डॉ. विश्वरूपरोय चौधरी ने तो विश्वभर के रेडोयोलोजीस्टों को आह्वान किया था, यदि मेमोग्राफी केन्सर टेस्टींग से ही केन्सर नहीं होता है तो मेरे पास आकर मुझसे 10 लाख रुपये ले जाइये। कोई आज तक लेने नहीं गया है।
3. मेमोग्राफी के दौरान महिलाओं के स्तन को दो धातु की प्लेट में आधे घंटे तक 20 k.g. वजन देकर दबाया जाता है, जिससे उनके स्तन में रहे कोमल टिश्युज फट जाते है। फटे हुए वो टिश्यु बाद में सड़ने लगते है, और वो ही टिश्यु आगे जाकर केन्सर में तब्दील हो जाते है।
एक संतरे को मशीन में डालकर प्रेशर देकर पीचका दिया जाये और दूसरे संतरे को वैसा का वैसा अखण्ड रखा जाये, तो सच बोलो कौन सा संतरा लम्बा टिकेगा? जिस पर मशीन से वार नहीं किया गया है। जिस पर मशीन से प्रेशर नहीं बनाया गया है।
4. केन्सर टेस्टींग और केन्सर ट्रीटमेण्ट डॉक्टर को तो दोनों हाथों में लड्डू ही है लेकिन आप यदि थोड़े भी समझदार होंगे तो टेस्टिंग की इस घिनौनी चाल में बिल्कुल भी नहीं फँसोगे।
आप यहाँ पर प्रश्न कर सकते हो कि तो फिर केन्सर हो गया हो तो पता कैसे चलेगा?
पता तुरंत ही चलता है। अपना शरीर भी स्वयं बता देता है कि, हमारे शरीर में केन्सर पनपने लगा है।
गाँठ जैसा लगे, थकान अत्यधिक लगे, अनेक ऐसे लक्षण हो जिससे पता लगता है कि हमें केन्सर हुआ है। लेकिन यदि इन्होंने बताई राह पर चलेंगे तो तड़प-तड़प कर मरना तय है।
नवजोतसिंह सिद्धु की पत्नी स्वयं भी डॉक्टर है। उन्हें केन्सर होने पर पहले तो एलोपैथी के रास्ते पर ही चली थी लेकिन जब एलोपैथी डॉक्टर ने हाथ उठा दिया और कह दिया कि अब सिर्फ 40 दिन की आप मेहमान हो तब मरता क्या ना करता? आखिर नैचरोपेथ की राह पर वह ठीक हुई। अंत में प्राकृतिक चिकित्सा के गुण गाये।
ऐसा ही एक किस्सा मुंबई की एक महिला का है (वैसे तो सैकड़ो क़िस्से है ऐसे) उसे भी डॉक्टर ने कुछ दिन ही बताये थे। आखिर वो महिला भी नैचुरोपैथ से ही ठीक हुई और आज भी तंदुरुस्त है, जीवित है।
मृत्यु के लिए केन्सर आये तो हमें मंजूर है लेकिन हमारे ही पागलपन के कारण हम केन्सर बुलाये वो कैसे चलता है?
कीमोथैरापी केन्सर मिटाने के लिए नहीं केन्सर के मरीजों को मिटाने के लिए डिजाइन की गई है, केन्सर बढ़ाने के लिए है, ऐसा डॉक्टर विश्वरूप खुल्लेआम बोल रहे है।
अंत में एक बात अवश्य बताना चाहूंगा। एक रहस्य है, कीमोथैरापी जो लेता है वह केन्सर से नहीं मरता है ऐसा दिखता हैं, वो हार्ट अटैक से मरते हो ऐसा देखा गया है। हकीकत ऐसी है कि, केन्सर शरीर में होने वाली सेल्स की अप्रत्याशित वृद्धि को कहते हैं, वो ही सेल्स की जब अप्रत्याशित अत्यधिक हानि होने लगती है तब हार्ट डिसीज होता है, हार्ट फेल हो जाता है।
कीमोथैरापी शरीर के सेल्स को कम करने के चक्कर में हृदय की क्षमता को ही समाप्त कर देती है।
क्या आपने किसी कीमोथेरेपी लेने वाले को देखा है? उनके बाल झड़ गए होते हैं, चमड़ी काली पड़ गई होती है। शरीर विषाक्त बन जाता है। मुंह में ऊनके छाले हो गए होते है। ना खा सकता है, ना बोल सकता है, ना सो सकता है, ना बैठ सकता है। बेचारा जीते जी नरक की वेदना भुगतता रहता है।
मौत तो पीड़ादायक है ही, लेकिन जीवन को कितना पीड़ादायक बनाकर रखा है कुछ लोगों ने... रोते-रोते जीने के बजाय मुझे तो हंसते-हंसते मरना पसंद है,
आप क्या पसंद करना चाहेंगे?
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