जिसे जितनी लोन चाहिए उतनी ले जाइये, किसी भी पहचान पत्र या दस्तावेज आदि की जरूरत नहीं है। इस भव में ना तो रकम वापस करनी है, ना ही ब्याज देना है; लेकिन पर (दूसरे) भव में पठानी ब्याज के साथ सब कुछ भरपाई कर देना होगा। इस बात का एक दस्तावेज भी दस्तखत करके देना होगा। ऐसी अजीबों-गरीब और विचित्र scheme प्रस्तुत करने वाले आस्तिक धनाढ्य की हम पिछले लेख में बात कर रहे थे।
दूर-दूर के शहरों में पहुँच चुकी इस योजना की बात सुनकर चार चोर आपस में चर्चा करने लगे, ‘हमें रोज पकड़े जाने का डर रहता है। समाज में हमारे परिवार कलंकित हो गये हैं, और फिर भी चाहिये उतना माल तो मिलता ही नहीं है। तो उससे अच्छा पाप का यह धंधा छोड़कर उस सेठ के पास चलते हैं, उससे हम चारों 1-1 लाख रूपये की लोन लेकर कोई अच्छा धंधा शुरू करते हैं। कुछ भी वापस नहीं करना है, इसलिए किसी भी प्रकार की कोई चिन्ता है ही नहीं।
चारों चोर परस्पर सहमत हुए। अपने गाँव से लंबा सफर करके इस सेठजी के पास आये। एक-एक लाख की लोन की माँग की।
सेठ : शर्त पता है ना?
चोर : हाँ पता है।
सेठ : तो करो दस्तावेज पर दस्तखत, और ले जाओ लाख-लाख रूपया। करार हो गया। चोरों को रूपये मिल गये। चारों बहुत खुश थे। तरह-तरह के मनोरथों का महल चुनना शुरू हो गया, और उन्होंने अपने गांव वापस जाने के लिए प्रवास शुरू कर दिया।
लंबी मंजिल काटनी थी, अंधेरा होने को था। सेठ जी के पास आते समय तो किसी भी प्रकार का डर या चिन्ता नहीं थी। उस समय रात को भी थोड़ा प्रवास कर लिया था। पर अभी सब के पास लाख-लाख रूपये का जोखिम था। रात को आगे बढ़ने में डर लग रहा था, चिन्ता होने लगी। (आपको भी अपने आपसे प्रश्न पूछना चाहिये कि, धनसंपत्ति ‘जोखिम’ है? यह निर्भयता और निश्चिंतता लाती है या भयभीतता और चिन्ता लाती है?)
योगानुयोग नजदीक में ही एक गाँव आया, इसलिए चारों ने उस गाँव में रात बिताने का निर्णय किया। पर अजनबियों को कौन आश्रय देगा? और जहाँ-तहाँ तो रुक नहीं सकते थे, फिर भी खोजबीन जारी रखी। तो एक घांची अपनी घानी (कोल्हू) बंद करके दुकान बंद करने की तैयारी में था। उन्होंने उसको एक रात रुकने के लिए जगह देने की विनती की। घांची ने कहाँ कि देखिये यहाँ नीचे तो मेरे ये दो बैल है, ऊपर एक मालिये जैसा बना है। उसके उपर सोना हो तो सो सकते हो, रात को यहाँ कोई नहीं आता है।
उन चोरों को यह जगह safe लगी, वे वहाँ रुक गये। घांची अपने घर के लिए रवाना हो गया।
चोरों ने अपनी सात पीढ़ियाँ मिलाकर ना देखा हो उतना धन हर एक के पास था, इस बात का एक तरफ उन्हें बहुत आनंद था, तो दूसरी ओर जगह safe होने पर भी चिन्ता और डर मन को सता रहे थे। इसलिए बार-बार नींद आती, और चली जाती थी। इस प्रकार रात आगे बढ़ रही थी, सबसे छोटे चोर को बिल्कुल नींद नहीं आ रही थी। वह पशुओं की भाषा का जानकार था। उसे आभास हुआ कि दो बैल परस्पर बातें कर रहे थे। उस चोर ने अपने कानों को तेज कर दिया।
एक बैल (A) दूसरे बैल को (B) कह रहा था कि, ‘दोस्त! तू तो भाग्यशाली है, तेरा इस घांची का पूर्व जन्म का कर्ज अब सिर्फ दो आना बाकी है। हम हड्डियाँ और शरिर के जोड़ो को तोड़-तोड़कर 2/3 घंटे में किसी ग्राहक का तेल कुचल देंगे। घांची को चार आना मजदूरी मिल जायेगी, उससे तेरा और मेरा दोनों का दो-दो आना कर्ज चुकता हो जायेगा। उसमें तेरा संपूर्ण कर्ज ब्याज समेत अदा हो जाने से तेरा छुटकारा हो जायेगा। पर मेरा तो छुटकारा कब होगा? भगवान जाने। अभी और इस घांची की कोल्हू में मुझे कितना पिसना पड़ेगा? इस विचार से भी आँखों के आगे अंधेरा छा जाता है।
B : मित्र अब तेरा कितना कर्ज बाकी बचा है?
A : 100 रूपये, घांची को रोज 48 आना मजदूरी मिलती है, उसमें आधा तो दूसरे बैल का चुकता होता है। मेरे तो 2-4 आना ही चुकता होते है। इस तरह से 100 रूपये कब पूरे होंगे और कब मेरा छुटकारा होगा? कुछ कह नहीं सकते।
B : यार! कर्ज चुकाने का और कोई उपाय नहीं है?
A : है, पर next to impossible है।
B : कौन-सा उपाय है? तू मुझे बता तो सही !!
A : यदि राजा के पद्महस्ति के साथ मेरी कुस्ती हो जाये, और उसमें शर्त रखी जाये कि जो हारे उसके मालिक को जो जीते उसका मालिक 100 रूपये देने होंगे। और यदि मैं उस हाथी को हरा देता हूँ, तो उस घांची को 100 रूपये मिल जायेंगे, मेरा कर्ज पूरा हो जायेगा, मेरा छुटकारा हो जायेगा।
B : पर तू पद्महस्ति को जीत सकेगा?
A : हाँ ! जान पर खेलकर जीत लूँगा।
B : पर तुझे हाथी के साथ भिड़ाने का विचार और उसमें 100 रूपये की शर्त लगाने का विचार सिर्फ घांची को ही नहीं; पूरी दुनिया में किसी को भी आना संभव नहीं है। शायद किसी को यह विचार आ भी जाये तो घांची उसके लिए तैयार भी नहीं होगा। अपना बैल मर जाये और ऊपर से 100 रूपये चुकाने पड़ेंगे, घांची इतना मूर्ख नहीं है।
A : प्यारे! तेरी बात बिलकुल सच है, इसीलिए मुझे तो अभी बहुत समय तक यह मजदूरी करनी है।
इतना कहकर A ने लंबी साँस ली।
छोटा चोर ये सारी बातें सुन रहा था। ये दोनों बैल परस्पर गप्पे हाँक रहे हैं, या ये सारी बातें सच हैं ? और यदि सच होगी तो ब्याज के साथ एक लाख रूपये चुकाने के लिए कितने जन्म घांची के कोल्हू का बैल बनना पड़ेगा? इस विचार से वह काँप उठा। उसने तय कर लिया कि सुबह होने पर यहाँ से निकलना नहीं है, बल्कि क्या हो रहा है? वह देखना है कि यह सब बातें सच्ची है या झूठी ?
सुबह हुई। दूसरे चोर आगे के प्रवास के लिए तैयार हो गये। पर इस छोटे चोर ने मना कर दिया। हालांकि उसने किसी को इसका कारण नहीं बताया, लेकिन जिद करके एक दिन यहाँ पर ही रुकने के लिए बाकी के तीन चोरों को समझा लिया।
सभी रुक गये। घानी शुरू करने के समय होने पर घांची आ पहुँचा। कुछ ही देर में कोई ग्राहक आया। उसने अपने तिल कुचलने के लिए दिये। दोनों बैलों की मजदूरी शुरू हो गई। तीन घंटे के बाद सभी तिल कुचल गये। ग्राहक ने घांची के हाथ में चारा आने दिये। और बिना किसी भी कारण के दूसरा बैल (B) धरती पर गिर पड़ा। नहीं, सिर्फ गिर ही नहीं पड़ा उसके प्राण पखेरू भी उड़ गये। घांची की गुलामी से उसका छुटकारा हो गया।
यह देखकर छोटा चोर चौंक उठा। फिर सोचा, कि ये शायद योगानुयोग होगा तो? इसलिए दूसरी घटना का भी समाधान पाने का उसने निर्णय किया।
बिना कारण अचानक से बैल के मर जाने से घांची को गहरा सदमा लगा। और आज तक बैल ने जो सेवा की थी उसके मन में आज घानी बंद रखने का निर्णय करके उसने घनी बंद कर दी।
इसलिए बैल भी free हो जाने के कारण छोटे चोर ने घांची को बहुत आग्रह पूर्वक कहा कि तेरे इस बैल को मैं नदी पर स्नान करा लाता हूँ। थोड़ी हाँ-ना करने के बाद घांची ने इजाजत दे दी।
छोटा चोर बैल को लेकर नदी की ओर जा रहा था। योगानुयोग उसी समय राजा के पद्महस्ति को नदी पर स्नान करवा के महावत वापस जा रहा था।
यह देखकर छोटा चोर बैल को रास्ते के बराबर बीच में चलाने लगा। महावत ने चोर को ललकारा, ओ! तेरे इस बैल को रास्ते के किनारे चला, और पद्महस्ति को मार्ग दे। चोर ने सुना अनसुना कर दिया। महावत ने फिर से राजशाही सुर में कहा; ‘तेरे बैल को किनारे पर ले, वरना ये हाथी उसे कुचल डालेगा। तो चोर ने महावत से कहा, तेरे हाथी को हटा, वरना ये बैल उसे पूरा कर देगा।
महावत झुकने को तैयार नहीं था क्योंकि, उसमें खुद का, राजा का और हाथी का अपमान था! चोर भी अपनी बात छोड़ने को तैयार नहीं था। क्योंकि वह तो सारे आंकड़े मिलाने के लिए इस पार या उस पार करने को तैयार था।
बात बढ़ गई। चोर ने महावत को कहा; हम शर्त लगाते हैं। हाथी और बैल को आमने-सामने भिड़वाते हैं। हाथी जीत जाये तो तुम मुझे 100 रूपये दोगे, और हारे तो मैं दूँगा। महावत परेशानी में पड़ गया। उसने राजा को समाचार भिजवाये। राजा को भी कुतूहल हुआ। वह स्वयं वहाँ आया। घांची को भी समाचार मिल गये, वह भी भागते-भागते वहाँ आया और चोर को कहने लगा, मुझे मेरा बैल गँवाना नहीं है। तू ये शर्त मत लगा। पर चोर ने उसे समझाया कि बैल हार भी जायेगा, मर जायेगा, तो भी मैं 100 रूपये तुम्हें दूँगा, और तेरे बैल की कीमत से ज्यादा रकम तुझे दूँगा, तू नया बैल ला सकेगा।
राजा और चोर के बीच शर्त लग गई। बैल और हाथी दोनों एक दूसरे को पटकने के लिए घमासान करने लगे। पर बैल ने जान की बाजी लगाकर हाथी को पटक दिया और खुद हाथी के उपर चढ़ गया।
हाथी हारा, बैल जीत गया। राजा 100 रूपये चोर को देने लगा, तो चोर ने कहा, ‘राजन! बैल इस घांची का है, इसलिए 100 रूपये उसे दीजिये। जैसे ही घांची के हाथ में 100 रूपये आये, कि दूसरी ही क्षण बैल जमीन पर गिरा और उसकी मृत्यु हो गयी। वह घांची की गुलामी से मुक्त हो गया।
कर्ज चुकाने की बात अक्षरश: सच हुई जानकर चोर की आँखों के आगे अंधेरा छा गया। उसने अपने तीनों साथियों को सारी बात बतायी। चारों ने तय किया कि लाख-लाख रूपये के कर्ज के साथ परलोक में नहीं जाना है। जन्मों जन्मों घांची के बैल या भरूच के पाड़े बनकर उस कर्ज को चुकाने की हमारी औकात (शक्ति) नहीं है।
चारों चोर सेठ के पास वापिस आये। आप के दिए हुए यह ये लाख-लाख रूपये वापस ले लीजिये, और हमें कर्ज से मुक्त कर दीजिये। लेकिन सेठ ने मना कर दिया, ‘मैं तो परलोक में ही वापस लूंगा।’ आखिर में मामला राजा के पास पहुँचा, लेकिन राजा ने सेठ के पक्ष में निर्णय किया कि, जो करार हुआ है वह सोच-समझकर किया है। अब आप सब मुकर जाओगे तो नहीं चलेगा।
पर चोरों को अब ये रूपये भारी जंजाल जैसे लग रहे थे। किसी भी हालत में इस भार को रखने के लिए वे तैयार नहीं थे। सेठ और राजा नहीं माने, तो वे एक संत की शरण में गये।
संत ने क्या सलाह दी? यह हम आगामी लेख में देखेंगे।
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