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आज यह लेख लिखते हुए अत्यंत आनंद अनुभव हो रहा है, क्योंकि आज का लेख संजीवनी पर है। वो संजीवनी नहीं, जो हनुमान लक्ष्मण के लिए लेने गए, ये संजीवनी तो उससे भी विशिष्ट है। आपको शायद यह महसूस हो, कि ऐसी संजीवनी तो किसी ऊँचे पर्वत या दुर्गम स्थान पर मिलती होगी। लेकिन नहीं, ऐसा नहीं है, यह संजीवनी तो घर-घर में मिलती है। तो आइए, जानते हैं इस विशिष्ट संजीवनी के बारे में…..कहते हैं, कि इस संजीवनी से अधिकतर रोग मिट जाते हैं। यह रोग होने के बाद उसे खत्म नहीं करती, बल्कि रोग हो ही नहीं, उससे पहले ही उसके मूल को खत्म कर देती है।
अधिकतर रोग टेंशन, चिन्ता और हताशा के कारण होते हैं। यह संजीवनी रोग पैदा करने वाले इस मूल को ही दूर फेंक देती है। और सबसे बड़ी बात यह है, कि यह संजीवनी बिलकुल मुफ्त मिलती है। यदि ऐसी संजीवनी मुफ्त मिलती हो, तो अब यह जानने की उत्कंठा अवश्य होती होगी कि आखिर यह संजीवनी क्या है? तो यह उत्तम संजीवनी है – हास्य। हास्य रूपी संजीवनी जितनी निर्दोष है, उतनी ही पावरफुल भी है।
हास्य की बात निकली है, तो गुजराती की वह कहावत याद आती है, कि ‘हँसे, उसका घर बसे।’ इस कहावत में हास्य से घर बसने तक की बात कह दी। क्यों! है न कमाल की संजीवनी!! तो जिसका घर अब तक नहीं बसा, उसे आज से ही दिल खोलकर हँसना शुरू कर देना चाहिए, लेकिन… घर बसने के बाद हँस पाएँगे कि नहीं, ये नहीं पता। इसीलिए आज की Smart Generation इस कहावत का Extension करते हुए कहती है, “हँसे, उसका घर बसे, लेकिन बसने के बाद कौन हँसे?” और यह सवाल करने वाले ज्यादातर लोग विवाहित ही होते हैं।
ये तो हुई हँसी पर कुछ हल्की-फुल्की बात, और वास्तव में देखा जाए, तो हँसने के बहुत अधिक लाभ हैं। दर्द कम करना हो, रोग प्रतिकारक शक्ति बढ़ानी हो, Stress कम करना हो, और लम्बा जीवन जीना हो, तो हास्य मदद करता है। उपरान्त हास्य के अनेक प्रकार भी होते हैं, जैसे खिल-खिलाकर हँसना, अट्टहास्य करना, मूक हँसी, झूठी हँसी आदि। किन्तु इन सबमें उत्तम है, खुले दिल से खिल-खिलाकर हँसना। वास्तव में तो यह हास्य ईश्वर के वरदान के समान है, और अनेक स्थितियों में वरदान जैसा कार्य भी करता है। जैसे यदि कोई व्यक्ति आपसे जीत जाए, और आप नैसर्गिक रूप से हँसें तो उसकी जीत फीकी पड़ जाती है। किसी के गुस्से के सामने आप मीठी मुस्कुराहट बिखेरो, तो उसका गुस्सा ठण्डा पड़ जाता है। जब खुद को गुस्सा आए, उस समय भी यदि हास्य की technique अपनाई जाए तो न केवल खुद का गुस्सा छूमन्तर हो जाता है, बल्कि दूसरों के चेहरे पर भी हँसी आ जाती है।
मुन्नाभाई MBBS मूवी में डीन का किरदार जब भी गुस्से में होता, तब वह गुस्से को कंट्रोल करने के लिए हास्य की Technique अपनाता। वह दृश्य देखकर हम भी हँस उठते हैं।
आज के ‘वर्ल्ड लाफ्टर-डे’ के अवसर पर एक और बात, यह हास्य और प्रसन्नता किसी सुख-सुविधा, साधन या अनुकूलता पर आधारित नहीं होता। यदि ऐसा होता, तो अमीर लोग सबसे अधिक खुश होते, गरीब हमेशा रोते हुए ही मिलते। लेकिन वास्तव में ऐसा देखने को नहीं मिलता। इसीलिए सन्त, महात्मा, जैन मुनि और तपस्वी इतने त्याग और प्रतिकूलता के बीच भी मुख पर मुस्कान बिखेरे रहते हैं। कोई अमीर व्यक्ति अपनी AC लक्ज़री कार में भी टेंशन में होता है, तो उसी समय फुटपाथ पर बैठा फकीर, प्रभु भक्ति में मस्त होता है। तो आज ‘वर्ल्ड लाफ्टर-डे’ से प्रतिकूलता में भी हँसते रहने की कला हँसते-हँसते सीखें।
अन्त में हास्य की सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है, कि यह बिलकुल मुफ्त है। मुफ्त के साथ-साथ यह पूरी तरह से Tax-free भी है। इसीलिए तो फोटो खिंचवाते समय हम हँसते रहते हैं, इस-लिए फोटो में हम अच्छे लगते हैं। यदि एक बार हँसने से फोटो अच्छा आ सकता है, तो रोज हँसने और हँसाते रहने से पूरा जीवन मजेदार और सुन्दर क्यों नहीं हो सकता ?
तो इस श्रेष्ठ जड़ी-बूटी और वरदान के समान इस हास्य के लिए मुझे इतना ही कहना है, कि “लाख दुःखों की एक दवा है, क्यों न आजमाए …” तो बस हँसते रहिए, हँसाते रहिए और जीवन को महकाते रहिए।
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