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गाँव में एक बाँसुरी बेचने वाला बाँसुरी की सुरीली तान बजाता-बजाता गलियों में घूम रहा था। एक बालक ने मम्मी से जिद की, ‘मम्मी ! मुझे भी बाँसुरी चाहिए।’ मम्मी ने 10 रू. की बाँसुरी खरीद ली। बालक ने बाँसुरी बजायी पर सुर अच्छा नहीं लगा। वह बोला, ‘मम्मी ! दूसरी ले लो, यह नहीं।’ दूसरी बाँसुरी ली, उसमें से भी अच्छा सुर नहीं निकला। ‘मम्मी ! ये भैया जो बाँसुरी बजा रहा है वो ही खरीद लो।’ बाँसुरी वाले ने अपनी वाली बाँसुरी दे दी। बालक ने उसमें भी प्रयत्न किया, फिर भी सुर अच्छा नहीं निकला। वह बोला, ‘मम्मी ! जाने दो। सारी ही बाँसुरियाँ खराब हैं, मुझे नहीं चाहिये।’
यह बालक यदि दुनिया की सारी बाँसुरियाँ बजा ले, फिर भी अच्छा सुर नहीं निकलेगा, क्योंकि बाँसुरी बदलने से सुर अच्छा नहीं निकलता, पर बाँसुरी बजाने की शैली बदलने से अच्छा सुर निकलता है।
“बेलन बदलने से अच्छी रोटी नहीं बनती है; तरीका बदलने से रोटी अच्छी बनती है।“
“पैन बदलने से अच्छे अक्षर नहीं निकलते, सुलेखन की शैली बदलने से अच्छे अक्षर निकलते हैं।“
“अच्छा बैट मिल जाने से हम कोई विराट कोहली नहीं बन जाते हैं।“
हाथ-पैर हिलाने मात्र से हम अच्छे स्वीमर नहीं बन सकते हैं।
संक्षिप्त में बात इतनी ही है कि,
“आप क्या करते हैं यह महत्वपूर्ण नहीं है, आप कौन-सी शैली से करते हैं यह महत्व रखता है।“
आपको क्या मिला है यह महत्त्वपूर्ण नहीं है, आप उसका कैसा उपयोग करते हैं, यह महत्व रखता है।
“जिस छुरी से सब्जी छीलते हैं, यदि उसका प्रयोग ठीक से नहीं किया तो उँगली भी छिल सकती है।“
उसी तरह, कर्मबंध का आधार आप क्या करते हैं, उस उपर उतना नहीं है, जितना आप कौन से अध्यवसाय, यानी विचार से करते हैं, उस पर है।
For example, आप आम खाने का कार्य कर रहे हैं, उसमें आपको मजा आ रही है। अब यह कार्य कौन-कौन से प्रकार से हो सकता है, और वह कौन-कौन से विचारों से भी मजा लेकर कर सकते है, कि जिसके आधार पर शुभ-अशुभ कर्मबंध हो सकता है:
? आम को चुराकर भी खा सकते हैं और मजा ले सकते हैं।
? आम किसी से पूछकर ले सकते हैं।
? आम मुफ्त में लेकर खा सकते हैं।
? आम दूसरों के पैसे से खा सकते हैं।
? आम खुद के पैसे से लेकर खा सकते हैं।
? पहला आम प्रभु को नैवेद्य चढ़ाकर फिर खा सकते हैं।
? पूज्य साधु-साध्वीजी भगवंतों को वहोरा कर फिर खा सकते हैं।
? आम दूसरों को खिलाकर खा सकते हैं।
? अपने हिस्से के सारे आम दूसरों को देकर मजा ले सकते हैं।
? सारे आम दूसरों को देकर तीसरे को बताये बिना मजा ले सकते हैं। (गुप्तदान)
? मैंने दूसरों को दिया है, इस बात को भूलकर भी मजा ले सकते हैं।
? साक्षीभाव से, ज्ञाता-दृष्टाभाव से इस कार्य को देखते हुए भी मजा ले सकते हैं।
कार्य एक ही है, पर विविध विचारधारा से अलग-अलग कार्यशैली से उसके परिणाम में शुभ/अशुभ कर्मबंध में फर्क पड़ता है।
चलिए आज से संकल्प करते हैं कि,
दिन में कम से कम एक कार्य इस तरह करूँगा कि जिसके अलग-अलग कम से कम 10 एन्गल – दृष्टिकोण को सोचकर फिर उसमें जो तीव्र शुभ कर्म का अनुबंध कराए उस शैली से कार्य करने का प्रयत्न करूँगा।
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