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अहिंसा से रक्षा और हिंसा से युद्ध

Updated: Apr 7




मानव जीवन का उद्देश्य तो अनाहारी पद प्राप्त करने का है। परन्तु यह तब तक नहीं हो सकता, जब तक अधिक अहिंसा का पालन हों। सात्त्विक जीवन जीने के लिए आहार में विवेक आवश्यक हैं। अन्नाहारी या शाकाहारी जीवन में करुणा है, दया का झरना है। जबकि मांसाहारी जीवन में कठोरता, क्रूरता और तामसी भाव की बढ़ोतरी है।

बमों की खोज पदार्थ विज्ञान में हुई है, तो अहिंसा की शोध आत्मज्ञान में हुई है। भौतिक प्रयोग-शाला में अणुशक्ति का प्रदर्शन हुआ है, तो आध्यात्मिक प्रयोगशाला में अहिंसा की अनंत शक्ति का दिग्दर्शन हुआ है। 

भगवान महावीर ने कहा है कि – “प्रत्येक प्राणी की आत्मा हमारे समान है। सभी को सुख प्रिय है, दुःख अप्रिय है। जीवन प्रिय है, मरण अप्रिय है। अत: हे आत्मन्‌! दयालु बन, इसी में तेरा कल्याण निहित है। खुद के समान सभी में आत्मा के दर्शन कर।” जिनके पास ऐसी आँख है, ऐसी दृष्टी है, वह सच्चा मनुष्य है। दुनिया को लहु की धारा से रक्त नहीं करना हो तो हमें सही अर्थों में मानव बनना पडेगा। इसी में जीवमात्र के प्रति प्रेम, मैत्री और बंधुता प्रकट होगी।

किसी आदमी ने कहा – “इश्वर ने विश्व के प्राणियों को मनुष्य के लिए अर्जित किया है, मनुष्य सबसे बड़ा है, इसलिये मनुष्य किसी को भी खा सकता है।” तब एक सज्जन विचारक ने कहा – “संसार के सभी प्राणियों में मनुष्य बड़ा है। इसका अर्थ यह नहीं होता है, कि वह अपने से छोटे प्राणियों को खा जाए। बल्कि अपने से छोटे प्राणियों की रक्षा करे।” वास्तव में यही उसका फर्ज और कर्तव्यपरायणता है। इससे वह मानव कहलाने के योग्य रहेगा, अन्यथा शैतान बनकर रह जाएगा।

शाकाहार मात्र प्रचार नहीं है, अपितु विवेक पूर्ण विचार है। चिंतन करने से मालूम होगा कि आहार का उद्देश्य शरीर को तंदुरुस्ती प्रदान करना है, और इस शरीर द्वारा सुन्दर विचार, सुन्दर भावना, सुन्दर कार्य करना है। हमारी तरह प्रत्येक चैतन्यवंत प्राणी सुख की अभिलाषा करता है और दुःख से दूर रहना चाहता है। तब ऐसे निर्दोष प्राणियों को मार-कर पेट भरने से मन में सद्विचार कैसे आ सकते हैं?

प्रसिद्ध चिंतक बर्नाड शॉ के सन्मान में एक भव्य भोज समारोह आयोजित किया गया था। भोज्य पदार्थ में मांसाहार था। बर्नाड शो ने भोजन आरम्भ नहीं किया, तब सभी ने आग्रह करते हुए कहा :

“भोजन प्रारंभ कीजिए।’ बर्नाड शॉ अपने स्थान से उठ कर खडे हुए बोले “मेरा पेट कब्रिस्तान नहीं है, जो मरे हुए प्राणियों को दफनाऊँ?”

शाकाहार मात्र पेट भरने के लिए नहीं है, परन्तु पवित्रता, सात्विकता और चरित्र निर्माण के लिए भी आवश्यक है।

बम संहारक है और अहिंसा रक्षक। हम देख रहें हैं कि आज बड़े-बड़े राष्ट्र शस्त्रों से नहीं  का संग्रह कर रहे हैं। यदि उनसे पूछें कि “शस्त्रों का संग्रह और सर्जन किसलिए कर रहे हैं?” तो वे कहेंगे “शान्ति के लिए, अहिंसा के लिए, युद्ध विराम के लिए,।” कितनी हास्यास्पद बात है। खून से सने कपड़े खून से धोये नहीं जा सकते है, बल्कि पानी से धोये जाते हैं। इसी प्रकार विश्व को शान्ति हिंसा शस्त्रों से नहीं, किन्तु अहिंसा से मिल सकती है। 

आचरण के साथ साथ हमारी बुद्धि भी विपरीत हो गई है, इसका मूल कारण पेट है। जिसमें डाला गया आहार अहिंसक, निर्दोष और पवित्र नहीं है। हमारे महापुरुषों का अहिंसा धर्म का सिद्धांत हम भूलते जा रहे है।

विदेश से आनेवाले विचारवान शाकाहारी कहते है, कि ‘उनके देश में धन है, समृद्धि है। पर बमों का डर है। हिंसा का भय है। मन में अशान्ति है। जिसे दूर करने के लिए अहिंसा के अतिरिक्त दूसरा श्रेष्ठ मार्ग नहीं है।’ विश्व को अहिंसा का मार्ग बताने-वाले भगवान महावीर के मैत्री अभयदान के उप-देश को आचरण में लाने की आवश्यकता है। इसी से सर्वत्र सुख, शान्ति, सन्तोष, और सलामती प्राप्त होगी। अन्यथा हिंसा के नग्न तांडव, वैर-झेर या अहंकार से विश्व में युध्द, अशान्ति, दुःख और अराजकता ही सबको आज प्रतयक्ष है।

शाकाहार सिर्फ पेट पूर्ति के लिए नहीं है। अपितु इसका उद्देश्य रक्त की नदियाँ बन्द करना है, क्रूरता के संस्कार समाप्त करना है और दिल को प्रेम, वात्सल्य और करुणा से पल्लवित कर दयालु बनाना है।

आप एक सुन्दर फल को देखते है, तो आँखों में प्रेम उमड़ आता है, सूँघने पर सुरभि प्राप्त होती है, स्पर्श करने पर मुलायम प्रतीत होता है और जीभ को मनभावन लगता है। जबकि माँस के टुकड़े को देखते ही घृणा उत्पन्न होती है, गन्ध से नाक सिकुड़ जाती है, हाथ से छूने को भी मन नहीं करता है। तो फिर खाने की तो बात ही कहाँ? गंदी वस्तुएँ पेट में जाने से विचार भी खराब ही आते हैं। जब तक मांसाहार रहेगा, तब तक युद्ध विराम हो नहीं सकते। युद्ध के मूल में प्राणी हिंसा का ही भाव है। जो व्यक्ति प्राणियों के प्रति निष्ठुर है, वह मानव के प्रति क्रूर क्यों नहीं हो सकता है? आज मनुष्य का शत्रु वनचर प्राणी नहीं, अपितु स्वयं मनुष्य ही है। आज खून-खराबा बढ़ गया है, क्योंकि हिंसा की भावना प्रबल हो चुकी है। क्रूरता को उत्तेजना देने वाली वस्तु पेट में जा गिरी है।

Vegetarianism is not a fanatic idea, but it is to avoid the world from war.

मनुष्य और पशुओं में क्रूरता की तुलना करें, तो कौन ज्यादा क्रूर मालूम पड़ेगा? पशुओं ने अधिक मानव संहार किया या मनुष्यों ने? आज के सम्पूर्ण कत्लखाने और विलास के साधनों का मूल्यांकन मनुष्य को जंगली पशु से भी अधिक क्रूर और निष्ठुर साबित करता है। युद्धों में तो मनुष्य का संहार अविराम चल रहा हैं।

अफ्रिका के जंगलों में मनुष्य को खा जाने वाले नरभक्षी मानवों को एक पादरी ने धर्म उपदेश दिया। उसके उपदेश का बड़ा अच्छा प्रभाव हुआ। कितने ही जंगली मनुष्यों ने नरभक्षण करना छोड़ दिया। उस समय यूरोप में प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था। पादरीने स्वाभाविक अपने प्रवचन में इस युद्ध का और इसमें हजारों मनुष्यों के मरने का जिक्र किया। यह सुनकर एक जंगली ने उनसे प्रश्न किया कि – “इतने सारे लोगों को वे मार रहें हैं तो उन्हें खायेंगे कब?” पादरी के प्रश्न करने वाले को समझाया कि यह युद्ध मानव माँस के लिये नहीं हो रहा है। तब उस आदमी ने दूसरा प्रश्न किया – “युद्ध में मनुष्य को मारकर खाते नहीं हैं, तो फिर मारते क्यों हैं?” इस प्रश्न का उस पादरी ने प्रत्युत्तर दिया, दुश्मनावट-वैर है।

पशुओं में भी एक विशाल वर्ग वनस्पति और घास पर ही जीवित है। जबकि आज मनुष्यों में क्रूरता के संस्कार गर्भपात तक पहुँच गए है और भविष्य में यह वृद्ध-पात (बुजुर्ग-हत्या) तक भी पहुँच जाये तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। वास्तव में यह अयोग्य आहार, विकार का तामसिक और द्वेष भावों से पूर्ण कितना विषैला परिणाम है?

हृदय की निष्ठुरता को दूर करने तथा दिल में वात्सल्य भाव प्रकट करने के लिए शुध्द आहार-विहार अत्यन्त आवश्यक हैं। करुणानिधान भग-वान के समवसरण में जन्मजात एक-दूसरे के वैरी पशु, जैसे-सिंह और हिरण, बाघ और बकरी, बिल्ली और चूहा भी आपसी वैर भाव भूल जाते थे। यह भगवान में सिद्ध हो चुकी अहिंसा का प्रत्यक्ष प्रभाव था। ‘अहिंसा तत्‌ : सन्निधौ वैरत्याग:’, अर्थात्‌ अहिंसक व्यक्ति के पास जीव का वैर भाव शान्त हो जाता है।

आज विज्ञान द्वारा आविष्कृत Atom Bomb विश्व के संहार के लिए है। यदि हम में अहिंसा, दया, कोमलता के भाव रहेंगे तो युध्द का अन्त संभव है, वास्तविक शान्ति स्थापित हो सकती है। अन्यथा कठोरता और निष्ठुरता से विश्व का विनाश होने में क्षणभर नहीं लगता है। अत: शाकाहार श्रेष्ठ ए ग्रेड का आहार है।

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