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आहार की श्रेष्ठता

Updated: Apr 7, 2024




वनस्पति आहार की श्रेष्ठता

  1. मनुष्य के लिए मांसाहार की अपेक्षा अधिक प्राकृतिक आहार है। 

  2. शाकाहार से सहन शक्ति बढ़ती है। 

  3. आरोग्य की वृद्धि के लिए भी यह मांसाहार से अधिक अच्छा है। 

  4. यह मांसाहार के समान अपवित्र और रोग वर्धक नहीं है। 

  5. क्षार विटामिन तथा जीवन द्रव्य की दृष्टी से भी मांसाहार की अपेक्षा यह उत्कृष्ट है। 

  6. दीर्घायु के लिए यह उत्तम है। 

  7. आर्थिक दृष्टी से यह सस्ता है। 

  8. इनकि उत्पत्ति करने से किसी व्यक्ति का नैतिक अधःपतन नहीं होता। 

  9. इस आहार के लिए शिकार जैसे घातक शौक और अनेक प्रकार की क्रूरता की आवश्यकता नहीं।

  10. शरीर शास्त्र तथा विकासवाद के अनेक विद्वानों ने इसे 

आशीर्वाद प्रदान किया है। अतः यह वैज्ञानिक भी है। 

  1. धर्म की योग्यता और हृदय की कोमलता के लिए शाकाहार अनुकूल है। 

  2. सात्विक है। 

  3. विदेश में शाकाहार बढ़ रहा है। नामांकित व्यक्तिओं, 

बोडी-बिल्डरो, किक्रेटरो ने शाकाहार अपनाया है। 

अण्डा आरोग्यनाशक है 

सम्पूर्ण विश्व में विज्ञान और चिकित्सा विज्ञान जैसे-जैसे संशोधन करता जा रहा है, वैसे-वैसे अंडा आरोग्यवर्धक के बदले आरोग्यनाशक सिद्ध होता जा रहा है। हृदयरोग, हाई ब्लडप्रेशर, कीडनी और पथरी में कारणभूत कालेस्ट्रोल है, जो एक अण्डा  में लगभग चार ग्रेन होती है। 

अमेरिका के फ्लोरिडा कृषि विभाग  ने डेढ़ वर्ष के संशोधन के बाद जाहिर किया था कि, ३०% अण्डों में डी.डी.टी. होता है, जो की खतरनाक जहर है। 

डॉ.ई.वी. मेक्कॉलम कहते कि, अण्डों में कार्बो-हाइड्रेट का सर्वथा अभाव है। कैल्शियम भी बहुत कम होता है। अतः पेट में सड़न पैदा होती है। अंडों में टी.बी. और संग्रहणी का रोग विशेष होने से वह खाने वाले को भी हो जाता है। दूध के साथ मांस या अण्डे खाना विपरीत आहार है, जिनसे सफेद दाग, खुजली, दरार सोयरासीस आदि चर्म रोग हो जाते हैं। इस बात के समर्थन में डॉ. आर. जे. विलियम्स और डॉ. रोबर्ट ग्रांस के कितने ही जानवरों पर प्रयोग सिद्ध किया है कि, ‘अण्डे के श्वेत भाग मैं एवीडिन नामक हानिकारक तत्त्व विद्यमान है, जो एग्जिमा, खुजली, दराद, चर्म केन्सर, सुजन आदि उत्पन्न करता है। 

डॉ.जे.एमन विल्कट और डॉ. केथोराहन निम्बो का कथन है कि, “अण्डे के सेवन से हृदय का स्पन्दन रुक जाने का गंभीर भय है। इससे पित्ताशय में पथरी, मानसिक रोग वगैरह दोष उत्पन्न होते हैं।”

डॉ.गोविंदराज कहते है कि, “अण्डे मे नाइट्रोजन, फास्फोरिक एसिड और चर्बी होती है। उससे शरीर में तेजाबीपन बढ़ता है जो अनेक रोगों का सृजक है।” 

Newer knowledge of Nutrition तथा How healthy are Eggs के लेखक कहते है कि, नर-मादा के रज-शुक्र में से उत्पन्न होने वाला अण्डा मलीन पदार्थ है। अण्डे की सफेदी में उस जीव के मल-मूत्र मिले हुए है। ऐसी गन्दगी खाना जुगुप्सनीय है। उसे स्पर्श करने वाले या खाने वाले रोगों और अपवित्रता को निमंत्रण देकर सात्त्वि-कता को खो देते है। 

जर्मन प्रोफेसर एग्नरवर्ग कहते है कि, अण्डे का समान कफकारक पदार्थ अन्य नहीं है। ५२% कफ उत्पन्न कर सर्दी, खाँसी श्वास आदि रोगों में कारण भूत बनता है। 

आजकल बाजार में मिलते, शक्तिप्रद कहे जाने वाले चाकलेट, ब्रेड, केक, आइस्क्रीम, बिस्कीट आदि में भी अण्डे मिलाये जाते है। इन्हें अपना अहिंसक समाज भी खुशी-खुशी खाता है व बच्चों को खिलाता है। ‘बच्चों की जठाराग्नि कमजोर होने से उन्हें अण्डे या अण्डों से निर्मित कोई वस्तु देना ही नहीं चाहिए।’ ऐसी बम्बई की हाफकीन इन्सिट्यूट संस्था की सलाह है। 

भारत सरकार द्वारा प्रकाशित हेल्थ बुलेटिन में, अंडे, मांस, मछली से सस्ते-गुणकारी शाकाहारी खाद्यान्नों में अधिक प्रोटीन बताया गया है। शाकाहारी आहार बिना हानि पहुँचाएँ शक्ति प्रदान करता है। जबकि अंडे आदि का सेवन अनगिनत नुकसान करते है। आरोग्य के लिए हानिकारक, मिलावटी पदार्थ, दवाइयों पर प्रतिबंध लगाया जाता है। पर अनेक नामांकित डॉक्टरों द्वारा हानिकारक सिद्ध हो चुके अण्डे, मांस पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया जाता है? मनुष्य की जान लेने वाले अण्डे के प्रचार के समक्ष आरोग्यमंत्री कोई कठोर कदम नहीं उठा सकते है? यह भारत देश के लिए बड़े शरम का विषय है। जन-जनमें सही बात की जानकारी और क्रान्ति लानी आवश्यक है। अतः सर्वत्र साहित्य का प्रचार, प्रदर्शनी, और संत-सतीओं का, वक्ताओं का प्रवचन माध्यम आज कल अतीव जरूरी है। 

भारत सरकार प्रजा के स्वास्थ्य का नाश करने वाले, अनेक रोगों को फैलाने वाले अण्डों के उत्पादन को, पोल्ट्री फार्म को सबसीडी-लोन देकर भारतवासियों का घोर अहित कर रही है न? प्रत्येक भारतवासी को, डॉक्टरों को इस भयानक अण्डे का बहिष्कार कर स्वास्थ्य मंत्री, केन्द्र सरकार द्वारा प्रतिबंध लाने की सख्त आवश्य-कता है। सभी पाठ्य पुस्तकों में अण्डे की खराबी नामांकित डॉक्टरों के अभिप्राय के साथ प्रकट करना चाहिए। भ्रामक प्रचार सख्त रुप में बंद होना चाहिए। इसमें आरोग्य का कानून भी सहा-यक है। जागिए और सबको जगाइए। अन्यथा नुकसान बढ़ता रहेगा। 

अहिंसा प्रधान भारत में जहाँ भगवान राम, कृष्ण महावीर ने जन्म लिया, आज उसी अहिंसा प्रधान देश भारत में ६५ प्रतिशत लोग मांसाहारी बन गये है। अहिंसा के सिद्धान्तों को विश्व के कोने-कोने में पहुंचाने वाले भारत में प्रतिदिन लगभग २५ लाख मुर्गों को, ५ लाख बकरों को, ५० हजार गोवंश को देश के कोने-कोने में फैले कत्लखानों में बहुत ही बड़ी निर्दयता से मौत के घाट उतार दिया जाता है। 

सरकार का उद्देश्य सिर्फ विदेशी मुद्रा कमाने तक रह गया है। पशु-पक्षियों पर जो अत्याचार हो रहा है इससे सरकार को कोई मतलब नहीं है। बहु-राष्ट्रीय कंपनियों को मांसाहारी भोज्य-पदार्थ बेचने के लिए सरकार प्रोत्साहन दे रही है। 

भारत सरकार ने मेकडोनाल्ड नामक अमेरिकन कम्पनी को हैम्बर्ग आदि मांसाहारी भोज्य पदार्थ बेचने के लिए देश भर में ४०० मैकडोनाल्ड सामिष जलपान-गृहों को स्थापित करने की स्वीकृति दी है। विदेशी मुद्रा के लालच में सरकार पशु हत्या की अनेक योजनाएं स्वीकृत कर रही है। एक पौंड मांस प्राप्त करने के लिए लगभग १६ पौंड अनाज पशुओं को खिलाया जाता है। उतनी सामग्री का अगर सीधे भाजन के लिए उपयोग किया जाये तो, उस मांस से प्राप्त होने वाली प्रोटीन (शक्ति वर्धक तत्त्व) की मात्रा से पांच गुना अधिक पोषक तत्त्व प्राप्त हो सकते है। 

आजीवन वनस्पति-घास-तृण या अनाज खाकर निर्वाह करनेवाले जैसे-गाय-बैल, भैंस, घोडे, ऊंट, हाथी, गधे, बकरे-बकरी, हरण-खरगोश आदि शाकाहारी जीवन जीते है। घास के अभाव भूख सहन करना उन्हें मंज़र है। पर गंदी चीज नहीं खाते है। क्या मानव जाति जानवरों से भी गई गुजरी है?

मांसाहारी मानवों के विचारों में उग्रता-क्रूरता, दया हीनता, आकृति-प्रकृति में  तामसपना, तमो-गुण, पतनोन्मुखी आचरण, कुत्सित विचार एवं व्यवहार शरीर का आभा मंडल दुर्गन्ध से वासित एवं धर्म के प्रति विमुखता। 

शाकाहारी मानवों की वृत्ति सात्विक, विचारो में नम्रता, सरलता, सादगी सहृदयता एवं सद्व्य-वहारिकता, मुखाकृति, सौम्य-शालीन, ऊर्ध्व-मुखी आचरण, शरीर का आभा मंडल तेजोमय एवं मन-मस्तिष्क धार्मिक संस्कारों से सुसम्पन्न।

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