प्रणाम मित्रों!
परमात्मा बनने के 20 Steps की हम बात कर रहे हैं। इस लेख की शुरूआत में आपको जरूर कुछ नया लगा होगा।
हर बार ‘Hello Friends’ कहकर शुरू होने वाली अपनी बात आज ‘प्रणाम’ शब्द के साथ प्रारंभ हुई है।
चूँकि आज की बात ‘अभिनव ज्ञान’ की है, तो आज हमें आपको एक अभिनव, यानि कि नया ज्ञान देना है। जब भी कोई जैन अन्य जैन से मिलता है, तब वह ‘हाय हेलो’ नहीं बोलता, बल्कि ‘प्रणाम’ शब्द कहता है। और जब कोई जैन किसी अन्यधर्मी से मिलता है, तब वह ‘जय जिनेन्द्र’ से बात की शुरूआत करता है। यह है एक ‘अभिनव ज्ञान’ जो शायद आपको पता नहीं होगा।
हम जिसे नहीं जानते थे, वैसा कुछ नया जानने को मिले, उसे कहते हैं अभिनव ज्ञान।
हर दिन सुबह सवेरे सूरज के उजाले धरती पर गिरे, उसके साथ हमारे मन में ज्ञान की नयी किरणें फैलनी चाहिए। किसी ने कहा है कि, जिन्दगी के अंत तक अगर ‘युवा’ ‘यंग मैन’ रहना चाहते हो, तो रोजाना कुछ न कुछ नया जानते रहो, सीखते रहो। जो व्यक्ति रोज सुबह कुछ नया जानने, ढूँढने, खोजने, छानबीन करने की अदम्य इच्छा के साथ जगता है, और रात को जो ढूँढा, जो पाया, जो उपलब्धि हुई, जो ज्ञान की पूंजी कमाई उसके कारण खुद ब खुद अपने आपको शाबाशी देता हुआ संतोष के साथ सोता है, उसे डायबिटीज़ का राक्षस, बी.पी. का भूत, अलसर की डायन और टेन्शन की चुड़ैल हमेशा दूर ही दूर भागते रहते हैं।
वास्तव में रोग हमारे शरीर में सामने से नहीं आते, हम उनको न्यौता देते हैं, हम ही उन्हें बुलावा भेजते हैं। निकम्मे बैठकर, यूँ ही इधर-उधर के गप्पें मारकर, चौराहे पर बैठ आती जाती पूरी आवाम को आँखे फाड़-फाड़कर देखकर, या फिर मोबा-ईल में फालतू गेम खेलकर न देखने लायक लिंक को देख-देखकर, और हमारा मन बिगाड़कर। कुदरत ने गुलशन बनाकर दिया हुआ था मन, लेकिन हमने खचाखच गन्दगी भर कर उसे खंड-हरों से भरा उजड़ वीरान बना देते है। और हमें कमजोर पाकर ही रोग रूपी आतंकवादी आतंक फैलाने चले आते हैं शरीर के इस मकान में।
अभिनव ज्ञान और अभिनव जानकारी (न्यू इन्फो-र्मेशन) में बहुत बड़ा लेकिन फिर भी बहुत बारीक अंतर है। ज्ञान आपको संतोष, प्रेम, प्रसन्नता और आनंद से भरपूर भर देता है, जबकि जानकारी आपको नया सिखाती जरूर है, पर वो सीखा हुआ आपको आनंद दे, यह जरूरी नहीं। आतंकवादी को बम बनाना और फोड़ना सिखाया जाए तो क्या होगा? वह और ज्यादा शैतान बनेगा, और दुनिया ज्यादा त्रस्त बनेगी।
मैंने सुना है कि जापान पर अमेरिका ने अणु बम फोड़े थे, उसके बाद आइंस्टाइन बोले थे कि मैंने अणु-विभाजन की प्रक्रिया को दुनिया के सामने रखकर बहुत बड़ी गलती कर दी। आपको ज्ञान देने वाले आपके माँ-बाप, शिक्षक, या गुरु तब बड़े आहत हो उठते हैं जब उनके दिये हुए ज्ञान का आप दुरुपयोग करते हैं।
तो, इन्फोर्मेशन न लें, पर रोज नया-नया ज्ञान लेते रहें। आपके मित्रों से, मोबाईल से, स्कूल से जो जानने को मिलेगा, वह ज्यादातर इन्फोर्मेशन के फोर्म में होगा, और आपके माँ-बाप से, गुरुदेव से, पाठशाला से या कल्याणमित्रों से आप जो कुछ भी जानेंगे, वह ज्ञान के स्वरूप में होगा।
कितनी सरल और सहज प्रक्रिया बता दी परमात्मा बनने की – अभिनव ज्ञान।
रोज कल्याणमित्रों के साथ संपर्क रखिए, कुछ नया जानिए, गुरु भगवंतो को वंदन करने जाइए, जिंदगी जीने की नई नई टिप्स लेते रहिए, पाठ-शाला में जाकर सूत्र सीखिए, तत्त्वज्ञान सीखिए। जैन धर्म में ज्ञान का इतना अगाध सागर पड़ा है, कि यदि आप रोज नये-नये पाँच विषय जानेंगे, और आपकी यदि सौ साल की आयु हो, यानि कि आपके पास 36,500 दिन हो, तो आपकी उम्र पूरी हो जाएगी, पर जिनशासन का ज्ञान पूरा न हो पाएगा।
तो मित्रों!
जब भी समय मिले उसे यूँ ही मत गँवाना,
कुछ नया जानकर ही सिर्फ
यदि परमात्मा बनने का मौका मिलता है,
तो उसे गंवाना नहीं चाहिए…
आपको क्या लगता है?
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