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एक नौजवान नाविक की नाव में एक श्रीमंत सेठ सफर कर रहे थे। जब नाव बीच मझधार में पहुँची, तो भयंकर तूफान आया। नाव आकाश में हवा में उछलने लगी। सेठ तो बुरी तरह से डर गये, उन्हें तो अपनी नजरों के समक्ष यमराज दिखने लगे। नाविक जरा भी नहीं डरा। सद्भाग्य से दोनों सुरक्षित बच गये।
सेठ ने पूछा : नाविक! तेरे पिताजी की मृत्यु कहाँ हुई थी?
नाविक ने कहा : इसी दरिया में, ऐसे ही किसी तूफान में उनकी मृत्यु हुई थी।
सेठ : अच्छा! उनके पिता की मृत्यु कैसे हुई?
नाविक : इसी दरिया में।
सेठ : तो फिर तेरी सात पीढीयाँ इस दरिया में डूब कर मृत्यु की शरण हुई, तू ऐसा कहना चाहता है?
नाविक : हाँ, हाँ, इसी दरिया में ही उन सभी की मृत्यु हुई थी।
सेठ : ओहो! तो फिर तुझे इस दरिया में मौत का डर नहीं लगता?
कुछ देर रुककर नाविक ने सेठ से पूछा : सेठ! आपके पिता की मृत्यु कहाँ हुई?
सेठ : हॉस्पिटल की बैड पर।
नाविक : सेठ! उनके पिताजी?
सेठ : घर के बिस्तर पर।
नाविक : तो सेठ! आपकी सात पीढ़ियों की विदाई बिस्तर पर ही हुई है, आप ऐसा ही कहना चाहते हैं ना?
सेठ : हाँ! हाँ!
नाविक : सेठ! तो फिर आपको बिस्तर पर सोते समय मौत का डर नहीं लगता?
सेठ क्या बोलते? चुप हो गये!
आज इन्सान को मौत का डर है, पर मरकर कहाँ जाना है, उसका भय नहीं है।
‘प्रेम’ नाम का ढाई अक्षर सभी को अच्छा लगता है, पर ‘मृत्यु’ नाम का ढाई अक्षर अच्छे-अच्छे मांधाता, सत्ताधारी, शक्तिशाली, श्रीमंतो को भी कँपकँपा देता है।
श्रमण भगवान महावीर देव कहते हैं कि,
“जन्म विकृति है, मृत्यु प्रकृति है,
और इन्सान का चारित्र – संस्कृति है।”
जन्म लिया है तो मृत्यु तो होगी ही ना!
तो मृत्यु का डर क्यूँ रखना? मृत्यु को रोकना हमारे बस में नहीं है, पर मृत्यु को सुधारना तो अवश्य हमारे हाथ में है। जिसकी कोई गारंटी नहीं है, उसका नाम जिंदगी है, और जिसकी 100% गारंटी है उसका नाम मृत्यु है।
अब, जिसे मरकर सद्गति में जाना है, उसे अच्छी तरह से मरना पड़ेगा। और जिसे अच्छी तरह से मरना हो, उसे अच्छी तरह जीना पड़ेगा। तो अच्छे से जीने का मतलब क्या है?
अच्छा Education पाना, अच्छी Job पाना, अच्छी लड़की को पाना, अच्छा Area, flat, फर्नीचर, कार, यह सभी कुछ अच्छा मिल जाये उसे अच्छा जीवन कहते हैं? नहीं।
भगवान कहते हैं, यह सब कुछ अच्छा मिल जाने के बाद भी आप अच्छा जीवन ही जीयेंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है।
यह सभी अच्छा ही मिलेगा वैसा अपना पुण्य नहीं है, और शायद सब कुछ अच्छा मिल भी जाये तो भी अच्छा ही जीवन जीयेंगे उसका कोई भरोसा नहीं है।
इसलिए भगवान कहते हैं, बाहर का अच्छा मिलने से, जीवन अच्छा नहीं गुजरता, पर मृत्यु को नजरों के सामने रखने से अच्छा जीवन बिता सकते हैं।
“मौत जब तक नजर नहीं आती,
जिंदगी तब तक राह पर नहीं आती।”
“प्रभु की शरण” और “मृत्यु का स्मरण” यदि जीवन में होगा तो पापकार्य और पापबुद्धि जीवन में प्रवेश नहीं कर सकेंगे, और सत्कार्यों और धर्मबुद्धि चौबीसों घंटे हाजिर रहेंगे।
एक जगह पर कहीं लिखा गया था कि,
“लिखना तो ऐसा लिखना कि,
हमारे मरने के बाद दूसरों
को पढ़ना अच्छा लगे।
और जीना तो ऐसे जीना कि,
हमारे मरने के बाद
लोगों को हमारे बारे में
बोलना अच्छा लगे!”
चलो मृत्यु की तैयारी
आज से ही शुरू कर देते हैं।
ऐसी दशा हो भगवन्! जब प्राण तन से निकले…
गिरिराज की हो छाया, मन में न होवे माया,
तन से हो शुद्ध काया, जब प्राण तन से निकले!!!
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