कही पे निगाहें, कही पे निशाना
- Panyas Shri Nirmohsundar Vijayji Maharaj Saheb
- May 10, 2020
- 6 min read
Updated: Apr 12, 2024

एक मेडिकल स्टोर पर बड़ा बोर्ड लगाया गया था, यदि लाभ न हो तो दवाई के पैसे वापिस दिए जाएंगे…।
किसी ने वहां से दवाई खरीदी थी। 4 दिन के बाद वह आदमी पैसे वापिस लेने आया तो मेडिकल स्टोर वाले ने पुनः बोर्ड पढ़ने का अनुरोध किया। आदमी ने पढ़कर कहा, आप लाभ की निश्चित गारंटी दे रहे हो, लेकिन मुझे तो इस दवाई से कोई लाभ नही हुआ है।
स्टोर के मालिक ने कहा, मगर मुझे तो हुआ ना? मैंने यह गारंटी आपको दी ही नही है कि आपको अवश्य लाभ होगा ही होगा।
मै इस चुटकुले को आज के समय में वास्तविकता में तब्दील होता देख रहा हूं। पूरे विश्व में कोरोना का कहर, कोरोना की हाय-तौबा मची हुई है। ऐसे वक्त में मैं आपके सामने कोरोना की अंदर की बातें बताने आया हूं।
एक विज्ञापन आप सभी ने शायद देखा होगा ‘दाग भी अच्छे हैं। सर्फ एक्सेल का यह विज्ञापन सिद्ध कर रहा है कि आपके कपड़े गंदे हों तो अच्छा ही है (हमारे लिए)। ठीक उसी प्रकार कुछ चंद पूंजीपतियों की मलिन मानसिकता ‘रोग भी अच्छे हैं’ की बनी हुई है। कैसे? आइये जानते हैं चंद शब्दों में…….पूर्व के काल में इतिहास ऐसे सज्जनश्रेष्ठ वैद्यराज की गवाही दे रहा है जो अपने पास आए मरीजों को स्वस्थ किए बिना शुल्क नही लेते थे। जो मरीज़ अपनी चिकित्सा से ठीक ना हो और मृत्यु को प्राप्त हो जाए तो उसके परिवार से एक पैसा भी लेना पाप मानते थे (झंडु वैद्य)। कई बार तो चिकित्सा निःशुल्क करते थे। उनके बाद आए कुछ वैद्यराज असाध्य कक्षा के रोगी को पहले ही मना कर देते या फिर जो मरीज़ उनका परहेज पालने में सक्षम ना हो, उसे द्वार से ही विदा कर देते, ताकि प्रकृति का विश्वासघात ना हो और घर आया मरीज़ झूठे विश्वास में ना रहे।
तत्पश्चात आये डॉक्टरी युग में दया, मानवता और सेवा के उद्देश्य से डॉक्टर बनने वालों में से कई सारे ऐसे निकले जो अपना अध्ययन खर्च वसूल करने के लिए मरीज़ से पैसे लेने लगे। मरीज़ अच्छा हो या ना हो पैसे लेना अनिवार्य…।
आगे के काल में रोग हो या ना हो, टेस्टिंग के पैसे लेने शुरु हो गए। अनावश्यक टेस्टिंग के लिए कुछ लैब से सेटिंग्स और अनावश्यक दवाई देने के लिए कुछ फार्मा कंपनियों से कमिशन का दौर चला।
आगे के टाईम में पूर्ण रूप से मेडिकल सेवा, सेवा न रहते हुए बड़ा धंधा बन गया। Everything is fair in love and war इस कहावत में और एक शब्द जुड़ गया and Business. गंदा है, मगर धंधा है और घंधे में सबकुछ जायज है। रोग ना हो तो भी रोग का डर दिखाकर पैसे बनाने वाले इस लाइन में धीरे-धीरे बढ़ने लगे।
अब वर्तमान में यह स्थिति बन चुकी है कि कुछ अति उत्कृष्ट अधमाधम मानसिकता वाले लोगों ने रोग ना हो तो रोग इंसान के शरीर में डालकर, उसके शरीर को डैमेज करके अपने उत्पाद बेचने का प्रारंभ किया है।
जिस वुहान लैब से वायरस लीक हुआ, वह लैब ऑफिशियली जैविक शस्त्र (Biological Weapons) निर्माण करने का कार्य कर रही थी। चाइना की उस लैब को अमेरिका विगत दस सालों से करोड़ों डॉलर की फंडिंग कर रहा था। गुप्त षड़यंत्र के तहत इस वायरस को पूरी दुनिया में फैलाया गया, वो भी जानबूझकर…। नाम चमगादड़ का दिया गया, मगर चमगादड़ का मार्केट बंद नही किया गया। सीफुड मार्केट को दिखावे के लिए थोड़े दिनों के लिए बंद किया गया।
हमारे पास इसके पुख्ता सबूत हैं कि कोरोना कोई महामारी नही, महाभेजामारी साबित होने वाली है। कोई भी प्राकृतिक वायरस कभी भी इतना बड़ा क्षेत्र कवर नही कर सकता, क्योंकि हरेक देश का प्राकृतिक तापमान भिन्न-भिन्न होता है। ऐसा नोबेल पुरस्कार विजेता जापान के वैज्ञानिक भी कह रहे हैं।
इस कोरोना को महामारी सिद्ध करने के लिए जी-जान से मीडिया लगा हुआ है, ठीक उसके सामने इसे सामान्य बीमारी बताने के लिए, सबूतों के साथ सिद्ध करने के लिए कुछ व्हिसल ब्लोअर (समाज को जागृत करने वाले हितचिंतक) भी लगे हुए हैं अनवरत प्रयास में।
क्यों कुछ लोग इसे सामान्य बीमारी मान रहे हैं, उसके तथ्यों को पहले हम देखेंगे।
आप कहेंगे कि यदि यह कोरोना महामारी नही है तो अमरीका-इटली में इतने लोग क्यों मर रहे हैं ? इसका जवाब है कि 22 अप्रैल का लेटेस्ट रिपोर्ट देखें तो अमेरिका में 7.61 लाख कोरोना के पॉजिटिव मरीज़ और 40000 करीब मौतें। मगर, हर साल अमेरिका में फ्लू से मरने वाले 60 से 80 हजार नॉर्मल हैं और 8 लाख के लगभग मरीज़ अस्पताल में आते ही हैं, सिर्फ फ्लू का नाम बदलकर कोरोना कर दिया गया है। 16 अप्रैल के टाइम्स ऑफ इंडिया में WHO ने खुद स्वीकार किया है कि यह कोरोना ILI (इन्फ्लूएंजा लाइक इलनेस) जैसी सामान्य बीमारी है, जिसमें 1000 में से 1 की मौत होती है।
और आश्चर्य की बात करूं तो अमेरिका में डॉक्टरों को विशेष पुरस्कार (प्रलोभन) देकर एक कपट-लीला को अंजाम दिया जा रहा है। किसी अन्य रोग से मरे लोगों को भी कोरोना से मरे दिखाया जा रहा है। अरे! दूसरे रोगों का बना हुआ डेथ सर्टिफिकेट (मृत्यु प्रमाणपत्र) भी परिवर्तित किया जा रहा है और जिसका टेस्ट भी न हुआ हो ऐसे अमेरिकन की मृत्यु कोरोना से हुई, ऐसा बताया जा रहा है (विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारी…)
(स्वास्थ्य विभाग) इटली की ऑफिशियल वेब-साइट में लिखे आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलेगा कि 22/25 हजार मौतों में सिर्फ 1200 की मौत कोरोना से हुई है। उनमें भी कोरोना के साथ मरे या कोरोना के कारण मरे, उसकी जांच होनी बाकी है, क्योंकि कोरोना ग्रस्त मरीज़ का पोस्टमार्टम ही नही किया जा रहा है।
यह इसलिए भी सामान्य बीमारी है, क्योंकि इससे ग्रस्त लोगों में से 80 प्रतिशत बिना दवाई के अच्छे हो रहे हैं। जो 20 प्रतिशत हैं उनमें से भी 15 प्रतिशत सामान्य दवा से और जो मर रहे हैं, उनकी उम्र 60 से 70 वर्ष के ऊपर की होने के साथ अन्य अनेक गंभीर बीमारी भी कारण हैं।
इतनी बड़ी तादाद कोरोना पॉजिटिव आने में एक कारण टेस्टिंग भी है, जिन्हें उसके बारे में विशेष जानकारी चाहिए वे मेरा बड़ा लेख पढ़ने का कष्ट करें। जिन्हें कोरोना के बिल्कुल भी लक्षण नहीं हैं, उन्हें भी इस चमत्कारी किट से कोरोना ग्रस्त बताया जा रहा है।
जो एक जमाने में विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O) के नेशनल प्रोग्राम ऑफिसर रहे थे और जिन्होंने भारत के सरकारी आरोग्य विभाग में भी अपनी सेवाएं प्रदान की हैं, वो डॉ. देवदास बता रहे हैं कि भारत में कोरोना से डरने की बिल्कुल जरुरत नही है, क्योंकि भारत में लोग गंदगी में जीने के आदी हैं, अतः उनके शरीर में कोरोना से लड़ने की विशेष क्षमता विकसित है।
वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज के डॉ.जय भट्टाचार्य जी बहुत ही महत्वपूर्ण बात बता रहे हैं स्वीडन-जापान जैसे देशों ने कोरोना पर नियंत्रण लॉकडाउन नही रखने से पाया। भीड़ में रहने वाले लोगों की इम्युन सिस्टम भीड़ से ही मजबूत हो जाती है, जिसे Herd (हर्ड) इम्युनिटी कहते हैं।
अब दूसरा एंगल भी देख लेते हैं। यदि कोरोना को महामारी मान भी लें तो उससे फायदा किसको होने वाला है? आपने कुछ गुंडे लोगों की नीति (?) देखी होगी। 3-4 गुंडे किसी लड़की की छेड़खानी करने लगते हैं और एक खलनायक उस लड़की को अपनी जान की बाजी लगाकर बचा लेता है और बाकी लोगों को भगा देता है। भोली – भाली लड़की उस महा खलनायक को अपना जिस्म सौंप देती है और सब कुछ लुट जाने के बाद पछतावा करती है।
व्यापार पत्रिका द इकॉनोमिस्ट के जनवरी माह के मुखपृष्ठ पर कुछ सांकेतिक शब्दों में गुप्त संदेश छिपा हुआ है। कुछ प्रबुद्ध सज्जनों ने उसका राज़ ज्ञान चाहा तो चौंक गए। इकॉनोमी को ध्वस्त करने की बू उस कवर पेज से आ रही थी।
डिजिटल करन्सी बिटकॉइन, Neo, Ripple, Euthereium इत्यादि को लॉन्च करने की मानसिकता से रिसेशन लाया गया है। कुछ लोग कह रहे हैं कि लॉकडाउन हटने के बाद कई धन-पति कंगाल हो जाएंगे, मैं कह रहा हूं कि धनपति कुछ लोग ही नही, विश्व के कई देश भी बर्बाद हो जाएंगे। कुछ महिने पहले ही सुप्रीम कोर्ट (भारत) ने डिजिटल करन्सी को वैधता दे दी है।
New World Order के अपने विचार को समस्त विश्व में लागू करने के लिए चंद लोगों के द्वारा पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था तहस-नहस करने की योजना के साथ ही विश्व की अधि-कांश फालतू (Useless) आबादी को कम करने की भी प्लानिंग कब की बनाई जा चुकी है।
हम इसे माने या न मानें, कोरोना का डर मीडिया के द्वारा फैलाने में वो ही कुछ लोग हैं, जो लोग पूर्व में HIV (एड्स) का डर फैलाकर यौन शिक्षा (Sex Education) लाना चाहते थे। आज कोरोना का डर फैलाकर अपनी वैक्सीन बेचना चाहते हैं।
लेख लंबा ना हो जाये इसलिए यहां पर सबूत प्रस्तुत नही कर रहा हूं, मगर जिन्हें अधिक जान-कारी चाहिए वे हमारा संपर्क जरुर कर सकते हैं।
कोरोना के गुंडे से डरने वाले वैक्सीन के गुंडों के हाथों में ना फंस जाएं, ऐसी प्रभु से प्रार्थना… मगर, हमारे धैर्य की परीक्षा में हमें सफल होना कितना जरुरी है, यह आखिरी दृष्टांत से समझने की कोशिश कीजिए।
12 साल तक वैशाली में बंद लोगों के धीरज ने जब जवाब दे दिया तब कूलवालक जैसे भ्रष्ट साधु को भी इसका उपाय पूछा गया… और इलाज के रुप में जो बताया गया वो रोग से भी कई गुना ज्यादा खतरनाक था। 40 दिन के लॉकडाउन से त्रस्त लोग W.H.O से इलाज पूछेंगे तो शायद जवाब मिलेगा वैक्सीन…, जो कोरोना से भी ज्यादा खतरनाक होगा…।
रोग से ज्यादा खतरनाक रोग का उपाय नही होना चाहिए। कोरोना से ज्यादा खतरनाक उसके लिए सूचित उपाय हैं। वो कौन-कौन से उपाय हैं और कैसे ज्यादा खतरनाक हैं…? यह लेकर अगले लेख में फिर से मिलेंगे…
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