“पप्पा ! मुझे नए कपड़े दिलाओ ना! कल दिवाली है। मेरी सभी सखियाँ दो दिन से नए-नए कपड़े पहनकर घूम रही हैं। मुझे पुराने कपड़े पहनकर जाने में शर्म आती है। मुझे नए कपड़े चाहिए। चाहिए मतलब चाहिए ही… रोती-रोती पिंकी अपने पापा से शिकायत कर रही थी।
‘अच्छा बेटा !, कल तुझे ज़रूर नए कपड़े ला दूंगा।’ इतना कहकर नरेश भाई घर में चले गए।
दो दिन से उन्होंने और उनकी पत्नी ने खाया भी नहीं था। जैसे-तैसे बच्चों का पेट भरते थे। ऐसी परिस्थिति से अनजान सात साल की पिंकी नए कपड़ों के लिए ज़िद कर रही थी। और वे उसकी इस छोटी-सी ज़िद भी पूरी नहीं कर सकते थे।
लाचार नरेश भाई घर के पीछे के कमरे में जाकर बिलख-बिलखकर रोने लगे। इतने में उनकी पत्नी प्रियंका बेन पीछे से कंधो पर हाथ रखकर गीली आँखों से आश्वासन देने लगी। तब नरेशभाई बोले, “कहाँ 3 वर्ष पहले का हमारा वालकेश्वर का फ्लैट और पिंकी की अलमारी में रखे 60 जोड़ी कपड़े, और शेयर बाज़ार में पैसे डालने की एक भूल के कारण आज हम किराए की चाली सिस्टम की रूम में लाचारी में दिन बिता रहे हैं। हम हमारी बेटी की एक छोटी-सी इच्छा भी पूरी नहीं कर सकते हैं।”
उनकी पत्नी प्रियंका बेन ने आश्वासन देते हुए कहा, “आप जरा भी चिन्ता ना करो, ऊपर वाला सब अच्छा करेगा। आप पिंकी की जरा भी चिन्ता मत करो, मैं उसे समझा दूंगी।”
उस दिन शाम को नरेश भाई अपने घर के बाहर के आंगन में बैठे थे। तब एक सज्जन आये, और नरेश भाई के पास पड़ी हुई एक टूटी-फूटी, जर्जरित कुर्सी की ओर उँगली दिखाकर बोले, ‘भाई! यह कुर्सी आपको बेचनी है?’ नरेश भाई हँसकर बोले, “बेचनी तो है भाई, पर भंगार वाला भी उसे लेने को मना करता है।”
“आप को दिक्कत ना हो तो मुझे दे दो, पूरे पाँच सौ रूपये दूंगा।”
“साहब! मजाक मत करो। ऐसी नई कुर्सी का भाव भी इतना नहीं होगा।”
“हाँ! पर पुरानी कहाँ मिलती है? मुझे एन्टिक – पुरानी वस्तु संग्रह करने का शौक है।”
आखिर में उस सज्जन ने पाँच सौ रूपये में वह भंगार कुर्सी ले ली।
दिवाली के दिन नरेश भाई की बेटी पिंकी खिल-खिलाकर हँसती हुई, पीछे के कमरे में नये कपड़े पहनकर सहेलियों के साथ खेल रही थी। ठीक उसी समय, एक दिन पहले नरेश भाई और उनकी पत्नी की बात सुन चुके एक सज्जन सामने के फ्लैट की बालकनी में खड़े-खड़े नरेश भाई की बेटी को देखकर मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। उन सज्जन की पत्नी बालकनी में आयी और पूछा – ‘अरे! आप ये टूटी हुई कुर्सी कहाँ से उठा लाये? आपको तो पुरानी चीजों पर चिढ़ है, तो फिर क्यों पुरानी कुर्सी उठा लाये ?’ तो उस सज्जन ने संक्षिप्त में जवाब दिया, “खुशी के लिए” पत्नी बोली – ‘खुशी के लिए कुर्सी?’ ‘हाँ! खुशी के लिए! तू नहीं समझेगी!’
उस सज्जन के Thought के Beyond यह था कि –
“अपना ही ख्याल करके जिए, तो हम क्या जिए; जिंदगी का तकाजा है कि, कुछ औरों के लिए भी जिएँ।”
तीन प्रकार के जीव होते हैं।
♦ जो दूसरों के आँसू गिराये, वह शैतान है।
♦ जो खुद आँसू बहाये, वह इन्सान है।
♦ जो दूसरों के आँसू पोंछे वह महान है।
चलिये, हम भी संकल्प करते है कि –
मैं यथाशक्ति दूसरों के आँसू पोंछने का ही प्रयत्न करूँगा, परंतु कभी भी किसी के आँसू तो हरगिज नहीं गिराऊँगा।
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