top of page

कोरोना वैक्सीन का सच

Updated: Apr 12




कोरोना वायरस से भी ज्यादा खतरनाक एवं हिंसक उन्हें मिटाने के नाम पर बनाया टीका होगा 

कुछ लोग ऐसा दावा कर रहे हैं कि, कोरोना के सामने लड़ने में श्रेष्ठ शस्त्र उनका टीका (Vaccine) होगा। वैक्सीन के धुर प्रचारक तो यहाँ तक कह रहे हैं कि, जब तक कोरोना का टीका बाजार में न आ जाये, तब तक दुनिया के सभी देश लॉकडाऊन में ही रहें। यदि कोरोना का टीका बाजार में आ जाये तो भारत समेत विविध देशों की सरकारें वो वैक्सीन जबरदस्ती देने के लिए कानुन भी बना सकती है। यह कानुन में टीका नहीं लगवाने वालों को सरकारी सहायता ना देने का और शायद जेल में भरने का प्रावधान भी हो सकता है। 

वर्तमान में पोलियो, चेचक, चिकनपॉक्स, नूर-बीबी, रूबेला इत्यादि के टीके जिस तरह तैयार किए जाते हैं, उन्हें देखते हुए यह कहने का मन हो रहा है कि, टीका ग्रहण को अनिवार्य करने वाला कानून भारत के हिन्दू एवं जैन धर्मावलम्बीयों की धार्मिक आस्था पर एक अजीब किस्म का आक्रमण होगा….. क्योंकि जितने भी वैक्सीन आ चुके हैं,इन सबमें मांसाहारी पदार्थों का प्रयोग किया जाता है और कुछ वैक्सीन्स तो गर्भपात किए शिशु के देह में से बनाई जाती है। कोई भी रोग के वैक्सीन (टीका) बनाते वक्त, उसमें उन रोग के जीवित वायरस का उपयोग किया जाता है। लैब (प्रयोगशाला) में वायरस को पनपने के लिए कोई न कोई माध्यम की आवश्यकता रहती है। कुछ वैक्सीन, पशुओं के खुन को माध्यम के रूप में इस्तेमाल करके बनाई जाती हैं तो कुछ वैक्सीन गर्भपात किए गए भ्रूण को माध्यम बनाकर तैयार की जाती है। 

पोलियो की वैक्सीन बनाने के लिए, एम.आर. सी.- 5 नामक ह्युमन सेल लाईन का उपयोग किया जाता है। एम.आर. की वैक्सीन बनाने के लिए आर.ए.-27/3 और WI-13 ह्युमन सेल लाईन का उपयोग किया जाता है। 

थोड़े साल पहले भारत में हैपेटाइटीस- A और B की वैक्सीन का बहुत प्रचार-प्रसार हुआ था। इस वैक्सीन की पैकिंग के साथ जो इन्सर्ट आता है, उसमें उसके निर्माण घटक की सूची भी दी जाती है। उसमें इन चीजों का- फोर्मेलिन, यिस्ट प्रोटीन, एल्युमिनियम फोस्फेट, एल्युमिनियम हाइड्रो-क्साइड, अमाइनो एसिड, फोस्फेट बफर पोलि-सोर्बेट, नियोमाइसिन सल्फेट एवं ह्युमन डिप्लोइड सेल्स का भी अन्तर्निवेश पाया जाता है, जिसमें से ह्युमन डिप्लोइड सेल्स को मनुष्य देह में से प्राप्त किया जाता है। 

टीका बनाने वाली कंपनियाँ अक्सर गर्भपात करने वाली क्लिनिक के संपर्क में रहती है। वे लोग जिस बच्चे की गर्भ में हत्या करते हैं, उनके शरीर को आइसबॉक्स में रखकर वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों की लैब में पहुँचा देते हैं। बाद में उसका उपयोग वायरस को पनपने के लिए माध्यम के रूप में किया जाता है। गर्भपात करने वाली इकाइयों की मुख्य कमाई ऐसे मृतदेहों का व्यापार है। 

गुजरात में कुछ साल पहले विद्यालय में अध्ययनरत तमाम विद्यार्थीयों को MR – वैक्सीन (टीका) अनिवार्य कह कर दी थी, मगर हकीकत में वो स्वैच्छिक थी। सरकारी संसाधन एवं बल का उपयोग विद्यालयस्थ करोड़ों बच्चों को टीका लगाने में किया गया था। गांधीनगर के नजदीक स्थित एक जैन छात्रावास सह विद्यालय में आरोग्य विभाग के अफसर टीका लगाने हेतु अपने काफिले के साथ पहुँच गये थे। इन छात्रावास में बच्चों को प्रवचन देने के लिए आये हुए जैनाचार्य को जानकारी थी कि वैक्सीन निर्माण में मानव भ्रूण का उपयोग किया गया है। इन वैक्सीन के पैकिंग पर ही इन चीजों का निर्देश किया जाता है। जैनाचार्य ने उन आरोग्य विभाग के अफसर को बताया कि, हम धार्मिक कारणों से बच्चों को यह टीका लगवाना नहीं चाहते हैं। अधिकारियों के अत्यधिक आग्रह (दबाव) पर आचार्य श्री ने कहा कि, आप हमें लिखित में गारण्टी दो कि इस टीके (वैक्सीन) में कोई भी हिंसक पदार्थ का उपयोग नहीं किया गया है।’ 

आरोग्य विभाग के अफसर बिना वैक्सीन लगाये ही वहाँ से विदा हो गये थे। 

नाबालिग हो चाहे बालिग, किसी भी उम्र के पड़ाव पर शरीर में वैक्सीन के माध्यम से अन्य मनुष्यों के डी.एन.ए. घुसाने के कारण अनेक विकृतियाँ पैदा हो सकती है। एक मनुष्य के शरीर में, अन्य मनुष्य के डी.एन.ए. घुसाने से उसका म्यूटेशन (परिवर्तन) होता है, जिसके कारण टीका लेने वाले इन्सान को कैन्सर जैसे रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। वैक्सीन के कारण बच्चों की जो रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्युइन सिस्टम) होती है वह ओटो इम्युन प्रकार के रोग पैदा कर सकती है। 

वर्तमान में कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने के लिए जो प्रयोग चल रहे हैं, उसमें भी पहले वैक्सीन बनाने हेतु मानव भ्रूण का, कुत्ते का या घोड़े का उपयोग किया जायेगा। यदि शाका-हारी लोगों को यह टीका लगवाने के लिए जबरदस्ती की जाएगी तो उनके ऊपर धर्मभ्रष्ट होने की आफत मंडरा रही है। 

मीडिया के द्वारा कोरोना वायरस का इतना ज्यादा भय फैला दिया गया है कि दुनिया के कुछ भोले-भाले लोग कोरोना की वैक्सीन (टीका) आने का इंतजार करने लगे हैं,कि कब बाजार में वैक्सीन आयेगी? मगर वैक्सीन का एक काला सच यह भी है कि, जिस रोग की वैक्सीन ली जाती है, वह रोग ना हो तो, स्वस्थ इंसान भी उस रोगों का शिकार बन सकता है, वैक्सीन के कारण ही…..दुनिया में जब से वैक्सीन की शुरूआत हुई है, तब से उनके हेतु एवं उद्देश्य संदेह के दायरे में है। वैक्सीन हमें रोगों से कितना सुरक्षित रख सकते हैं, यह विवादास्पद है। 

सन्- 1796 में इंग्लैण्ड के डॉक्टर एडवर्ड जेनर ने चेचक का टीका खोजा था। उन्होंने यह टीका सबसे पहले अपने बेटे रोबर्ट को लगाया था। टीका लेने के कारण रोबर्ट के दिमाग को बड़ी क्षति पहुँची और वह मंदअक्ल हो गया। रोबर्ट सिर्फ 21 साल की उम्र में ही टी.बी.का शिकार होकर मर गया। इंग्लैण्ड के निवासियों को जब पता चला कि जेनर का बेटा वैक्सीन के ज़हर से मारा गया है, तब से इंग्लैण्ड में वैक्सीन विरोधी गुट खड़ा हुआ है। आज उनका आंदोलन दुनिया के अनेक देशों तक पहुंच गया है। 

अमरीका के करोड़ों लोग सामान्य फ्लू का टीका लेते हैं। यह वैक्सीन गर्भवती महिलाओं को भी दी जाती है।अमरीका के CDC (Centre for Disease Control) के द्वारा इस वैक्सीन को अनुमति देते वक्त, इस वैक्सीन से गर्भ पर क्या असर होगी, वह जाँचा ही नहीं गया था। फ्लू का टीका लेने के पश्चात् कई सारी महिलाओं को मरे हुए बच्चे पैदा होने लगे (मीसकरेज) या गर्भपात होने लगा तब जाँच करने पर पता लगा कि इसका कारण फ्लू का टीका था। 

जब एक गैरसरकारी संस्था के द्वारा सर्वे किया गया तब पता चला कि यदि कोई गर्भवती महिला फ्लू का टीका लेती है तब गर्भपात की संभावना 4,250 प्रतिशत बढ़ जाती है। COVID -19 भी एक प्रकार का फ्लू है। अब तो यह भी सिद्ध हो चुका है कि कोरोना का मृत्यु दर भी फ्लू जितना ही है। यदि गर्भवती महिलाएँ कोरोना की वैक्सीन लेगी तो उनके गर्भ को क्षति पहुंचे बिना नहीं रहेगी। 

संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा कैन्या की 23 लाख महिलाओं को टीटनेस का टीका दिया गया था। इस टीका का क्या परिणाम आया होगा? वो निश्चित करने के लिए डॉ. वाहोमनगारे नामक डॉक्टर को जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उसने ढूंढ निकाला कि, टीका में महिलाओं की फर्टीलीटी (उत्पादन क्षमता) कम करने वाला हॉर्मोन डाला गया था। 

अमरीका के कानुन के मुताबिक हर बच्चे को उसकी पाँच साल की उम्र तक 27 प्रकार की वैक्सीन लेनी अनिवार्य हैं। अमरीकन बच्चे को सन् – 1962 तक सिर्फ 3 प्रकार की और सन्- 1983 तक 12 प्रकार की वैक्सीन ही लेनी पड़ती थी। बच्चों को जैसे-जैसे वैक्सीन देने का प्रमाण बढ़ता गया, वैसे-वैसे उनमें गंभीर रोगों का प्रमाण भी बढ़ता गया। 1980 में अमरीका में हर 10,000 बच्चों में से एक बच्चा ओटिज़म का शिकार बनता था, और सन्- 2017 में हर 36 बच्चों में से एक बच्चा ओटिज़म (मेन्टली डिसऑर्डर एण्ड अदर प्रोब्लम्स) का शिकार बन रहा था, जिसके लिए सिर्फ वैक्सीनेशन का बढ़ता दायरा जिम्मेदार था। 

विविध रोगों की वैक्सीन बनाने के लिए जिन-जिन चीजों का इस्तेमाल किया जाता रहा है, उनकी सूची पढ़ने पर पता चलता है कि, ऐसे जहरीले पदार्थ अपने शरीर में डालने के लिए हम कभी भी तैयार नहीं होंगे। 

 सेवाभावी लोग अपने रक्त का दान करते हैं, उसमें से प्लाज्मा अलग करके, ब्लडबैंक (कई सारी ब्लड बैंक) वैक्सीन बनाने वाली कंपनीयों को बेचकर कमाई करती हैं।

पूरा लेख पढ़ने के बाद पाठकों के लिए कुछ प्रश्न है,

Q. जिस कोरोना की इतनी हाय तौबा मची है, उसके मरीज़ की संख्या भारत जैसे राष्ट्र में 1 लाख नागरिक में सिर्फ 7 की है ( मृत्यु प्राप्त की तो इससे कम ही है ) तो कोरोना महामारी कैसे ?

Q. कोरोना ग्रसित मरीज बिना दवाई ही (86%) अच्छे हो रहे हैं तो टीका लेने की क्या आवश्यकता है ?

Q. वैक्सीन लेने वाले 60% ऐसे होते हैं, जिसे वह रोग वापिस हो सकता है, तो वैक्सीन लेने का क्या फायदा ?

Q. विश्व मैं लाखों प्रकार के वायरस आज भी विद्यमान है, हम कितनी वैक्सीन लेंगे ?

Q. वैक्सीन लेने के बाद यदि वैक्सीन से ही हानि होती है तो भी आप उन कंपनियों के सामने कभी केस नहीं कर सकते ऐसा कानून होने पर हम क्या करेंगे ? क्योंकि उसमें वर्तमान स्थिति ऐसी ही है।

Q. महाराणा प्रताप ने कितनी वैक्सीन ली होगी, जिससे उनका शरीर इतना सुदृढ़ था ?

Q. प्राणियों पर अत्यधिक अत्याचार करके बनाई वैक्सीन हमें कैसे स्वास्थ्य देगी ? शायद इन प्रश्नों का भगवान ही जवाब दे पाएंगे, भगवान को पूछे…

आधारभूत जानकारी प्रदाता – श्री संजयभाई वोरा

(क्रमशः)

Yorumlar


Languages:
Latest Posts
Categories
bottom of page