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हेलो फ्रेंड्स !
C.A. बनना मुश्किल हैं,
F.A. बनना उससे भी ज्यादा मुश्किल हैं।
लेकिन परमात्मा बनना तो सबसे ज्यादा मुश्किल है।
इसलिए तो दुनिया के हर एक इंसान चाहे वो C.A. हो चाहे C.F.A., चाहे डॉक्टर हो चाहे इंजीनियर हो, चाहे अमीर हो चाहे शहनशाह हो, वो भगवान के दर पर माथा टेकता है , प्रभु के चरणों में शीश झुकाकर और हाथ जोड़कर खड़ा रहेता हैं।
झुकने वाला चाहे कितना ही बड़ा हो पर आखिर वह इंसान हैं. वो सामने वाला भगवान हैं , हा वो मंदिर में बैठने वाला भी कभी इन्सान ही था तब वो भी तो झुका था, आज सब को वह झुकाता हैं। हम चाहे कितनी भी मनमानी कर ले आखिर तो उपरवाले की मरजी मुताबिक होने वाला है, यह समज लो।
पर फिर भी भगवान बनना इतना मुश्किल भी नहीं कि हम भगवान बन ही न पाये। अलबत्ता हकीकत यह हैं की दुनिया की डिग्री लेने में जितनी मेहनत पड़ती है, उससे कई गुना कम महेनत भगवान बनने में लगती हैं।
अगर 20 चैप्टर्स में हम महारत पा लें तो मान लो कि हम भगवान बन गयें। उन 20 चैप्टर्स में महारत पाने के लिए कुछ ज्यादा भी तो नहीं करना, सिर्फ झुकना हैं।
जिसको नमन करने पर हम तीर्थंकर नाम कर्म का अर्जन कर सकते हैं, ऐसा तृतीय स्थान हैं – प्रवचन पद।
प्रवचन यानी तीर्थंकर श्री सर्वज्ञ भगवान ने बताया हुआ संविधान – रुल्स & रेगुलेशन्स।
कभी कभार हमे लगता हैं कि हमारे भगवन ने हमें बहुत ज्यादा ही बंधनो में बांध रखा है। खाने पीने की बात हो, मौज शौक की बात हो पैसा कमाने की बात हो, हर एक जगह पर भगवान हमे रोकते हैं और टोकते हैं।
जिंदगी जीने के विषय में सभी भगवान चाहे क्रिस्चियन के हो या मुसलमान के, वो जितने उदार (?) है, उतने ही हमारे भगवान ज्यादा ही संकुचित हैं। वो हमें हमेशा रोकते रहेते है,
फिर ऐसे उनके संविधान पर जो हमारी मजा को आंनद को नष्ट कर डाले – हमें सम्मान कैसे होगा ? भगवान को थोड़ा उदार (?) संविधान बनाना चाहिए था।
ऐसे प्रश्न आज कल हम सभी के दिलो दिमाग में डेरा डालकर बैठे हैं, और हमारी भीतरी श्रद्धा को डिगमिगा रहे है।
पर हमने वाकई में भगवान को जाना नहीं हैं। भगवान तो एक साइन बोर्ड की भाँति है, जिसका काम हमें सावध करना है. उस पर लिखी बात को हम मानें या न माने हम स्वतंत्र है। पर हा, मानने वाला तात्कालिक दुःख पाकर भी पंरपरा में सुख पाता हैं और न मानने वाला तात्कालिक सुख का आनंद लेकर भी आगे जाकर दुःख ही दुःख पाता है।
अभी चुनना हमारे हाथ में है।
Q. हमे कायमी सुखी होना है या क्षणिक सुखी ?
Q. हमे क्षणिक दुःख पसंद हैं या कायमी दुःख ?
Q. साईन बोर्ड को इग्नोर करने वाला कभी सुखी हुआ हैं क्या ?
और अभी किसने साइन बोर्ड को गलत माना है क्या? हम तो धन्यवाद करते हैं साइन बोर्ड का और उसे रखने वाले का ! तो भला हम भगवान का और भगवान के प्रवचन का धन्यवाद क्यों नहीं करते ? हम क्यों नहीं बोलते की ” प्रभु तूने मुझे बचा लिया “।
तो दोस्तों! मुझे तो जिन प्रवचन बहुत-बहुत-बहुत ही ज्यादा प्रिय है। आप भी इस को जानिए, अपनाइए, जीवन में खुशहाली भरिए और कुछ न कर सके, तो आखिर चलिए “एक गीत गुन-गुनाते है”
।। प्रवचन पद ।।
(तर्ज : उडजा काले कावा तेरे…)
जिनप्रवचन सुखदायी बंदे,
जिनप्रवचन हितकारी, (2 )
मोहअंधरे निवारी बंदे, ज्ञानप्रकाश प्रसारी ,
मिथ्याभान विनाशी बंदे, केवलज्ञान विलासी,
अजब है जिनप्रवचन, जय जय जिनप्रवचन……(1)
क्या करना और कैसे जीना, तुझसे ही तो सीखा,
तेरे हर पन्नों पर मेरे, हित का वर्ण लिखा;
फिर भी हम अज्ञानी तेरी, राह न चलते बेचारे;
चोरासी के चक्कर काटे, अब तू हमें बचाले…….(2)
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