top of page

क्षमा… एक अपरिचित सफर… 

Updated: Apr 12




आज 5 अगस्त का दिन… आज क्षमामंदिर का भूमिपूजन करना है। कल की ही बात है। एक भाई ज़ोर ज़ोर से फ़ोन पर किसी को आदेश दे रहे थे। अपनी भडास निकालने के साथ-साथ क्रोध से बोल रहे थे, ‘रख दे, फ़ोन रख दे तूं, जल्दी से रख दे साले … फोन रख दे ! 10 मिनट तक उनका प्रलाप सुनकर हमें हंसी आ रही थी एवं उनकी अज्ञानता पर करूणा भी…।

क्या सामने वाले की बातें सुनना बंद करने के लिए, सामने वाला अपना फ़ोन कट करे तो ही सफलता मिलेगी ? कितना पागलपन है !!!

हम यदि फ़ोन रख दे तो भी सामने वाले की बातें बंद होना तय है मगर इसके लिए सामने वाले पर निर्भर रहना कितना सयानापन माना जायेगा? यदि क्षमा याचना कर दे तो प्रसन्नता तो हमें ही मिलेगी ना! हम यदि क्लियर चैट कर दे तो फोन हैंग होने से बच जायेगा ना! सामने वाले ने हमारे कहने पर भी क्षमा नहीं अपनाई। माफी नहीं मांगी तो हम क्या कर सकते है? यदि वो क्लियर चैट ना करें तो फोन उसी का भारी होगा ना ! 

आत्मनिर्भर बनने के इस युग में आज भी अधिकांश लोग बेवजह दूसरो का बोझ अपने सर पर उठाकर परेशान हो रहे हैं।

एक गाँव का गंवार आदमी पहलीबार बस में चढ़ा था मगर अपनी गठरी उसने अपने सर पर ही रखी थी। किसी के पुछने पर उसने बताया, ‘इस बस ने मेरा इतना बड़ा बोझ तो उठाया ही है, अब इसे ज़्यादा बोझ कहां दूं ?

उस गंवार आदमी को कौन समझायें कि, तेरा बोझ उठाने वाली बस ने तेरी गठरी का भी बोझ साथ में ही उठाया है अब अलग से बोझ सर पर रखने की जरूरत नहीं है।

हम तो उस गंवार आदमी से भी गये-बीते है। हम अपनी फ़ालतू ज़िम्मेदारीयों के बोझ के साथ-साथ गाँव की चिंता का बोझ सर पर उठाकर चल रहे हैं और वह भी मुफ्त में। हमें उसका कोई भी शुल्क या मुनाफ़ा नही मिल रहा है फिर भी…।

अधिकांश बार देखा गया है कि क्रोध का कारण दूसरा ही होता है। सामने वाले ने यह किया, सामने वाले ने वो किया। इसने मुझे यह कहा, मेरे साथ उसने ऐसा व्यवहार किया। इत्यादि दूसरे के नाम पर एवं दूसरे के सर पर हम अपने क्रोध का ठिकरा फोडते रहते हैं।

हक़ीक़त में हम किसी ना किसी पर आधार रखते आए है। किसी ना किसी को अपने सुख एवं दुःख के लिए ज़िम्मेदार मानते रहे हैं। उसमें भी सुखों के लिए कम और दुःखो के लिए ज़्यादा…।

आत्मनिर्भर बनने से पहले आत्मज्ञानी बनना ज़रूरी है। आईए जानते हैं, आत्मा का असली स्वभाव क्या है, और वर्तमान में आत्मा का स्तर क्या है? क्षमा का वर्णन, क्षमा की महिमा एवं क्षमा के गुणगान से करोड़ों शास्त्र भरे पड़े हैं लेकिन हम आपको क्षमा के उन अपरिचित पहलुओं का परिचय करवाना चाहते हैं, जिससे आत्मनिर्भर बनने की दिशा में हमारी यात्रा शुरू हो सके।

अक्सर क्षमा की जब चर्चा होती है तो वो क्रोध के बिना अधूरी ही रह जाती है और लोगों में क्षमा एवं क्रोध में, क्रोध को ही ताकत का प्रतीक मान लिया जाता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो भी पता चलता है कि हक़ीक़त में क्रोध नहीं, क्षमा ही शक्तिशाली है।

➡️ रंगविज्ञान

रंगो में सफ़ेद रंग क्षमा का प्रतीक है और काला रंग या भड़कीला लाल रंग ग़ुस्से का…। क्षमा शांति का प्रतीक है मगर लोगों में शक्ति का आकर्षण होने से लोग क्रोध को शक्ति का प्रतीक मान लेते हैं, हक़ीक़त में क्रोध अशांति का प्रतीक है। शक्ति का नहीं। सफ़ेद रंग प्रकाश छोड़ता है (देता है) मगर काला रंग प्रकाश खा जाता है (ले लेता है) इसीलिए जैन श्रमणों का वेश शुक्ल रखा गया है और नाम क्षमाश्रमण।

क्षमा वजन में हल्की होती है, क्रोध भारी। सफ़ेद रंग भी वजन में हल्का-फुल्का और काला रंग भारी। बादल भी सफ़ेद होते है तब हल्के और पानी से भरने के बाद काले बादल भारी हो जाते है। अंग्रेज़ी शब्द ‘Light’ के दोनों अर्थ क्षमा में घुल-मिल जाते। जो क्षमा रखता है वो हल्कापन महसूस करता है, साथ में प्रकाश भी प्रदान करता है।

आत्मा का असली स्वभाव क्षमा है, क्रोध नहीं।

छ: लेश्या के विज्ञान में भी प्रथम स्थान शुक्लवर्ण की शुक्ललेश्या का है और अंतिम स्थान काले रंग की कृष्णलेश्या का। क्रोधी को कृष्णलेश्या सहज है – क्षमाशील को शुक्ललेश्या –

➡️ ध्वनिविज्ञान

  1. संगीत और उसमें भी शास्त्रीय, शांत, मधुर, लय-बद्ध संगीत सिर्फ़ और सिर्फ़ क्षमा एवं शांतरस को प्रस्तुत करता है।

  1. क्षमावान ही उसमें प्रगति कर पाता है बाक़ी विकार पोषक, कामवासना उद्दीपक संगीत क्रोधी व्यक्ति भी बजा सकता है।

  1. क्रोध में आवाज़ क्यों उंची हो जाती है? किसी ने प्रश्न पुछा था। जवाब मिला, क्योंकि जब क्रोध आता है, तब नज़दीक रहे इन्सानों के भी दिल बहुत दूर होते है और प्रेम में हमेशा आवाज़ छोटी होती है या नि:शब्द माहौल, क्योंकि दिल बहुत क़रीब होते है।

➡️ आरोग्य विज्ञान

दिल्ली के मैक्स हॉस्पिटल के डॉक्टर समीर मल्होत्रा कहते है कि ग़ुस्सा आपकी रोग प्रति-रोधक क्षमता (इम्युनीटी पावर) कम करता है।

आयुर्वेद विज्ञान कहता है कि जितने भी शारीरिक रोग है वो अधिकांशतः मनोविकार से ही पैदा होते है। आसक्ति से कफजन्य रोग, आवेश (क्रोध) से पित्तजन्य रोग (acidity, छाला पड़ना इत्यादि) मूढता – अज्ञान से वायुजन्य रोग (गेस, अपच, डकार इत्यादि) 

➡️ धर्मविज्ञान

कई सारे शास्त्रों में लिखा है कि, जिसे क्रोध अधिक सताता हो, उन्हें कामविकार भी अधिक होते है। इस बात का प्रमाण वैज्ञानिक भी दे रहे हैं। जो ज़्यादा क्रोध में लिप्त पाये गये उनमें टेस्टोस्टोरेन (मेल (पुरूष) होर्मोन) अधिक मात्रा में पाये गये। क्रोध के वक़्त दिमाग़ में डोपामाइन ज्यादा रीलीज होने लगता है। ये वही डोपामाइन है, जो कामक्रिया और अन्य उत्तेजनात्मक प्रक्रिया में ज्यादा रिलिज होता है।

नशा करने वाले, शराब-ड्रग्स लेने वाले को भी क्रोध एवं काम के दौरे ज़्यादा आते है और वे लोग नशा भी उसीलिए करते है (डोपामाइन रिलीज़ होने से आत्मा झूंठी आत्मसंतुष्टि और प्रचंड आत्मशक्ति का अहसास करती है)

हक़ीक़त में, उपशम का अंतिम परिणाम सुंदर है, उत्तेजना का अंतिम परिणाम बेहद डरावना है।

जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के सूत्रधार जनरल डायर को हंटर कमिटि ने फटकार लगाई। भारतीय सेनापति ने उसे डिसमीस किया। 

Q. सन्-1921 में मनकी भयानक अशांति के बीच उन्हें लकवा लग गया। सगे-सबंधी-रिश्तेदारों ने उस-का साथ छोड़ दिया और एक दिन उसकी दिमाग़ी नस फट गई। सन्-1927 में उसने प्राण त्याग दिए मगर कैसे ?

Q. वेदना से तड़पते हुए, तार-तार रोते हुए, अपना सर पटकते हुए ( आधे शरीर में लकवा था) प्राण त्यागने से पहले उनके शब्द थे, “जो कोई भी अपने आप को मेरी तरह चतुर समझता हो और कुछ भी करने से डरते ना हो, शरमाते ना हो उन लोगों को जान लेना चाहिए कि उनका अंत कैसा आने वाला है ?“

6 अगस्त, सन् – 1945 को हिरोशीमा पर अणुबम फैंकने वाले मेजर इयरली का आत्मसाक्षात्कार पढ़ने जैसा है। फेंकते वक्त धारणा थी कि लोग मुझे बहादुर मानेंगे, मेरी प्रसिद्धि बढेगी, मुझे प्रसन्नता मिलेगी मगर बम फेंकने के बाद पुरा उल्टा हुआ। लगातार आत्महत्या की इच्छा। अंदर से टुट गया। अपराध की दुनिया में प्रवेश। और बंदूक़ की दुकान लुटने के जुर्म में जेल हुई। पागल हो गया अंत में। 

9 अगस्त को नागासाकी पर बम फेंकने वाले फ्रेड ओलोवी को भी अंत में तड़पते हुए, रोते हुए मौत मिली।

दूसरी ओर चाणक्य ने राष्ट्र एवं धर्म के लिए कई सारी हत्याएं की थी मगर अंतिम समय में सभी से निवृत होकर एक पद्मासन में ध्यान लगाकर वो बैठे थे तब उनके राजनैतिक शत्रु सुबंधु ने उसे ज़िंदा जला दिया, फिर भी उनकी समाधि अखंडित रही क्योंकि उनकी क्षमा अखंडित थी। वे पाँचवें देवलोक में गए हैं। कुमारपाल महाराजा ने भी वीरता से युद्ध किया।

धर्म रक्षा के लिए शौर्य के साथ किये युद्ध में उन्हें ग़ुस्सा भी करना पडा होगा मगर उनकी क्षमा अखंडित रही क्योंकि क्षमा का अर्थ कायरता नहीं है।

एक रहस्य समझने जैसा है, ‘क्षमा वीरस्य भूषणम्’ (क्षमा वीर का आभूषण है।) मगर साथ में ‘वीरता क्षमाया: भूषणम्’ (वीरता क्षमा का आभूषण है।) भी याद रखने जैसा सूत्र है।

आज क्षमाशील पुरूषों की वीरताशून्य मुखमुद्रा क्षमा का उपहास करवा रही है। क्रोध की क्रिया करना और क्रोध का भाव लाना, दोनों में बडा अंतर है। वीतरागी क्रोध क्रिया से भी मुक्त होते है, इसीलिए शासन चलाने के लिए उसी को सौंपते है जो राग-द्वेष से युक्त होते है यानी शासनरक्षा के लिए जो क्रोध करना जानते है। जो लोग क्षमापथ पर चल रहे है, उनकी रक्षा के लिए क्रोध करना भी क्षमा ही है।

धर्म के रक्षक यदि धर्मशत्रु पर क्षमा दिखायेंगे तो धर्म खत्म हो जाएगा। राष्ट्र के रक्षक यदि राष्ट्र शत्रु पर क्षमा का व्यवहार करेंगे तो राष्ट्र बर्बाद हो जाएगा। धर्मरूचि अणगारने क्षमा रखते हुए ज़हरीली सब्जी बहरानेवाली ब्राह्मणी को माफ कर दिया और समाधिमृत्यु पाया मगर उनके गुरु-देवश्रीने मुनिहत्या करनेवाली महिला को माफ़ नहीं किया, देशनिकाल की सजा करवाई।

भगवान महावीरने भले ही क्षमा रखकर गोशालक को माफ किया मगर सुनक्षत्र-मुनि एवं सर्वानुभूति मुनिने अपने गुरु की निंदा क्षमाशील रहकर सही नहीं, उन्होंने सामना किया।

अपने पर आये कष्ट में क्षमा रखना धर्म है, राष्ट्र, धर्म या अन्य जीवों पर आये आक्रमण में क्षमा का भाव दिल में सुरक्षित रखते हुए वीरता दिखाना धर्म है। क्योंकि वीरता ही क्षमा का आभूषण है, कायरता नहीं। क्रोध और वीरता अलग-अलग है। वीरता को क्रोध मान लेना निरी मूर्खता है। वीरता प्रकाश है तो गुस्सा गर्मी है। बिना गर्मी का प्रकाश हमेशा के लिए आवकार्य होता है और जिसमें प्रकाश ना हो सिर्फ और सिर्फ गर्मी हो ऐसा गुस्सा कभी भी स्वीकार्य नहीं है। औरों के लिए दिखाई गई वीरता बलिदान है। गंदे स्वार्थ के लिए औरों पर दिखाया गया क्रोध बहादुरी नहीं, बेव-कूफी है। औरों को दबाने में बहादुरी बताना बदमाशी है, औरों को बचाने में बहादुरी बताना पराक्रम है। 

जो क्षमा सज्जनों की या शुभतत्वों की सुरक्षा ना कर पाए वो क्षमा दंत विहीन भुजंग जैसी सामर्थ्यहीन क्षमा है।

महावीर की क्षमा हंमेशा के लिए महावीर की ही क्षमा रहती है, 

कायरों की कल्पना से भी वह परे होती है।

Comments


Languages:
Latest Posts
Categories
bottom of page