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गोडीजी का इतिहास – 6

Updated: Apr 7, 2024




काजलशा का काला कलेजा 

जिनमन्दिर के निर्माण में मात्र पत्थर ही नहीं लग रहे थे, बल्कि मेघाशा के मनोरथ भी लग रहे थे। प्रभु के आगमन से गोड़ी गाँव अब गोड़ीपुर बनने लगा था। यह गाँव अब किसी बड़े नगर जैसा सुशोभित दिखाई देने लगा था। अचिन्त्य महिमा-वान श्री पार्श्वनाथ प्रभु अब श्री गोड़ी पार्श्वनाथ के नाम से जन-जन के हृदय में निवास करने लगे थे। 

जिनालय की भव्यता देखकर सभी लोग मेघाशा के भाग्य, भक्ति और भावना की अनुमोदना करते थकते नहीं थे। प्रशंसा के पुष्पों की सुगन्ध गोड़ीपुर से भूदेशर पहुँची। काजलशा यह प्रशंसा सुनकर ईर्ष्या से भर उठा। ‘मेघाशा के साथ मेरा यश भी चारों ओर फैलना चाहिए’, इस गलत इरादे से वह अपने विशाल परिवार और नौकर चाकरों के साथ गोड़ीपुर में मेघाशा के घर जा पहुँचा। 

उदित होते सूर्य के समान प्रिय मेघाशा ने उसका स्वागत किया और उसे उचित स्थान पर बिठाया। कुछ औपचारिक बातें करने के बाद काजलशा ने अपने कलेजे की कोठरी में से काली बात को सुनहरा रंग देते हुए प्रस्तुत किया:

“तुम जिस जिनमन्दिर का निर्माण करवा रहे हो, उसमें मेरा आधा भाग रखो, जितने पैसे लगेंगे मैं दे दूँगा।  अब अपने साथ मेरा नाम भी जोड़ दो।”

मेघाशा, काजलशा की यह बात सुनकर आश्चर्य-चकित हो गया। किन्तु उसने पूरी स्पष्टता और साहस के साथ गौरवपूर्ण उत्तर देते हुए कहा कि, 

“जिस प्रभु की प्रतिमा के लिए तुम ‘पत्थर’ शब्द का इस्तेमाल कर चुके हो, उस प्रभु के प्रति तुम्हारा यह भाव कैसे उत्पन्न हुआ? मुझे तुम्हारे पैसे की जरा भी जरूरत नहीं है। प्रभु के प्रभाव से मेरे पास समुचित धन है, और यक्ष की सहायता भी है। और हाँ, वैसे भी ये प्रभु तो मेरे पिताजी ने भरवाए थे, इसलिए मुझे इस कार्य में कोई भागीदारी नहीं रखनी। मैं जिस समय प्रभुजी को लेकर आया था, उसी समय मैंने हिसाब में पूरा पैसा चुकता कर दिया था, इसलिए अब इसमें आपका कोई अधि-कार नहीं रहता।”

अपना बुरा इरादा नाकामयाब होता देखकर काजलशा मन ही मन बहुत क्रोधित हुआ। किन्तु ऊपर से शान्त प्रवृत्ति दिखाते हुए वहाँ से विदा हुआ। भूदेशर आते-आते उसने मन ही मन अनेक प्रकार के आयोजन किए। ईर्ष्या और अपमान की आग में जलते हुए काजलशा यश और मान की भूख में मेघाशा को यम की शरण में पहुँचाने के अधम मार्ग को अपनाने के लिए तत्पर हुआ। 

घर पहुँच कर उसने बगुले की भांति बाहर से उज्जवल और मन में मैली मुराद रखते हुए अपनी पुत्री सुव्रता* के विवाह का आयोजन किया, और विवाह में मेघाशा को बुलाकर विषप्रयोग के द्वारा उसके जीवन का अन्त करने का षड्यंत्र रचा। विवाह के मांगलिक प्रसंग पर उसने अपनी बहन और बहनोई को भांजे के साथ पधारने हेतु निमन्त्रण भेजा।

सावधान! मेघाशा सावधान!

जिनमन्दिर के निर्माण का कार्य तीव्र गति से चल रहा था। मूलनायक का गर्भगृह, पबासन, रंग-मण्डप, चौकी आदि तैयार हो चुके थे। शिखर तथा सामरण के कार्य बाकी थे। शिल्पी आदि भी अपने हृदय और प्राण झौंककर अविरत कार्य को आगे बढ़ा रहे थे। 

मेघाशा अपने मनोरथों का मंथन करते हुए रात्रि के समय निद्राधीन था, उसी समय खेतलवीर यक्ष स्वप्न में प्रकट हुए और कहा, 

“मेघाशा! सावधान रहना। तुम्हारा आयुष्य अल्प है। विषप्रयोग से तुम्हारी मृत्यु होगी। प्रभुजी की प्रतिष्ठा करके सुकृत कमा ले, और अपना जीवन सफल कर ले।” संकेत देकर यक्ष अन्तर्ध्यान हो गया।  

मेघाशा प्रातःकाल में उठा, अपने प्राभातिक कार्य करके अपने स्नेही स्वजनों और संघ को आमन्त्रित किया। सबको सम्बोधित करते हुए उसने अपने मन की बात कही,

“जिस घड़ी की आप सभी आतुरता से राह देख रहे थे, ऐसे श्री गोड़ी पार्श्वनाथ भगवान को सिंहासन पर विराजित करने, प्रतिष्ठित करने की मेरी भावना है। गर्भगृह, पबासन आदि तैयार हो चुके हैं। अब भव्य अष्टाह्निका महोत्सव पूर्वक तथा अत्यन्त ठाठ-बाट के साथ प्रभु की प्रतिष्ठा करने के मेरे मनोरथ में आपका भी पूरा सहयोग रहे, ऐसी आपके समक्ष नम्र विनती करता हूँ।”

श्री संघ ने कहा, शुभस्य शीघ्रम्, अच्छा कार्य है, शीघ्र कीजिए। 

मेघाशा ने श्रेष्ठ मुहूर्त निकलवाया, भव्य मण्डप बनवाया, अनेक गाँवों के संघ को आमन्त्रित किया, चौक पुराई, ढोल नगाड़े बजवाए, श्री संघ का स्वामीवात्सल्य किया, विपुल मात्रा में धन का सदुपयोग किया। 

वि. सं 1494 की महा सुदी 5, गुरुवार के शुभ मुहूर्त्त पर उसने श्री गोड़ी पार्श्वनाथ प्रभु को प्रति-ष्ठित किया। राजा उदयपाल भी इस शुभ प्रसंग पर उपस्थित थे। राजा तथा श्री संघ ने मेघाशा को ‘संघवी’ पद अर्पण करके पगड़ी पहनाई। 

संघवी मेघाशा की यशकीर्ति की बातें अब काज-लशा से जरा भी सहन नहीं हो रही थी। दांवपेच और प्रपंच के जाल बुनकर उसने अपनी पुत्री सुव्रता के विवाह का मुहूर्त निकलवाया। तुरन्त विवाह तय करके कुमकुम पत्रिका लिखी, बहन-बहनोई को सपरिवार आमन्त्रण दिया। 

मेघाशा ने सन्देश वाहक को सविनय कहा, “जिना लय के शिखर का कार्य चल रहा है। जब तक यह कार्य पूरा नहीं होता मेरा यहाँ से जाना सम्भव नहीं है। काजलशा की बहन और मेरे दोनों पुत्र विवाह में अवश्य आएँगे।” मृगादेवी अपने दोनों पुत्रों के साथ भूदेशर पहुँची। बहनोई मेघाशा की अनुप-स्थिति से काजलशा बेचैन हुआ। 

न्हवण जल का प्रभाव 

जिनमन्दिर के शिखर के कार्य की देख-रेख हेतु मेघाशा गोड़ीपुर में अकेला रुका। बहनोई मेघाशा के ना आने के कारण काजलशा स्वयं भूदेशर से गोड़ीपुर आया। काजलशा को इस प्रकार अचा-नक आता देख मेघाशा आश्चर्यचकित हुआ।  हृदय में विष और मुख पर अमृत जैसे शब्दों से काजलशा ने मेघाशा से बात की, 

“तुम तो बहुत बड़े आदमी हो गए हो, अब मुझ गरीब की कुटिया में क्यों आओगे? जिनालय के कार्य के लिए थोड़े दिन सूचना जारी कर दो, उस हिसाब से कार्य होता रहेगा। लेकिन तुम्हारे बिना मेरे घर में होने वाले विवाह में शोभा कैसे आएगी? इसलिए तुम्हें तो आना ही पड़ेगा। मैं स्वयं तुम्हें लेने के लिए आया हूँ और तुम्हारे बिना मैं वापस नहीं जाऊँगा।”

काजलशा के कपट भरे वचन सुनकर सज्जन और सरल हृदय वाले मेघाशा ने अपनी सहमति दी। घर और जिनालय से जुड़े कार्यों में मग्न मेघाशा को पता ही नहीं चला कि कब शाम हुई। रात्रि के समय साला और बहनोई अलग-अलग शयनकक्ष में विश्राम करने चले गए। 

मध्य रात्रि को खेतलवीर यक्ष मेघाशा के शयन कक्ष में प्रकट हुआ और कहने लगा,

“मेघाशा! मैंने तुम्हें पहले ही बताया था कि तुम्हारा आयुष्य अल्प है। तेरा साला काजलशा तेरे प्रति ईर्ष्या रखता है, और तुझे यमलोक पहुँचाना चाहता है। इसीलिए यह तुम्हें भूदेशर ले जाने के लिए इतना आग्रह कर रहा है।”

मेघाशा को विश्वास नहीं हुआ कि काजलशा अपनी ही बहन को विधवा बनाने के लिए कैसे तैयार हो गया

यक्ष ने बात आगे बबढ़ाई

“सुन, तू जरा भी भय मत रखना। श्री गोड़ीजी पार्श्व-नाथ प्रभु की तुझ पर अत्यन्त कृपा है। तू प्रभु का न्हवण जल अपने साथ ले जाना। दूध या दूध से बनी किसी भी चीज का सेवन मत करना। तुझे विष का असर नहीं होगा।”

यक्ष की बात सुनकर मेघाशा आश्वस्त हुआ। 

अगले दिन सूर्य उदित हुआ, आकाश स्वर्णिम रंगों से रंगा हुआ था। काजलशा और मेघाशा ने प्राभा-तिक कार्य पूर्ण करके श्री गोड़ी पार्श्वनाथ प्रभु की अन्तर्मन से भक्ति की। मेघाशा ने प्रभु का न्हवण  जल चांदी की डिबिया में भरा और अपने घर आया। मध्याह्न के समय तक काजलशा ने बैल-गाड़ी तैयार कर ली थी और मेघाशा को साथ लेकर चलने के लिए आतुर होने लगा। मेघाशा आवश्यक सामग्री तैयार करने लगा, किन्तु इंतजार कर रहे काजलशा के आतुरता भरे शब्दों से वह व्याकुल हो गया और न्हवण जल से भरी डब्बी अपने साथ लेना भूल गया। 

बैलगाड़ी में बैठने के बहुत समय बाद मेघाशा को याद आया, किन्तु अब वापस जाना सम्भव नहीं था। 

अन्ततः काजलशा अपना तय किया हुआ कार्य करके ही रहा, और मेघाशा को भूदेशर अपने घर लेकर गया।

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