चल मेरे दोस्त! थोड़ा सा झुक जाते है…
- Muni Shri Tirthbodhi Vijayji Maharaj Saheb
- Apr 11, 2021
- 3 min read
Updated: Apr 8, 2024

Hello Friends!
अरिहंत बनने के बीस कदमों की बात हम कर रहे है। यूं देखे तो अरिहंत बनना बहुत मुश्किल है, और यूं देखे तो अरिहंत बनना बड़ा ही आसान है।
आज हम ऐसे पड़ाव के बारे में जानेंगे, जो हमें अरिहंत बना सकता है, वह है विनय। विनय का अर्थ होता है – झुकना। एक हिन्दी कविता में कहा है कि,
“झुकता है वह जिसमें जान है,
अक्कडता तो खास मुर्दों की पहचान है।”
अगर भगवान बनना इतना आसान हो, विनय से यदि भगवान बना जाए, तो हमें झुकने में कभी कोई हर्ज नहीं होना चाहिए।
हमारे यहाँ उत्तर भारत में एक संस्कृत श्लोक पढ़ा जाता है –
विद्या विनयेन शोभते। अर्थात् विद्या-ज्ञान की शोभा विनय ही तो है। बगैर विनय के विद्या शोभा नहीं देती।
दक्षिण भारत में तो विश्वविद्यालयों में संस्कृत श्लोक इस प्रकार बोला जाता है –
विद्या ददाति विनयम्। अर्थात्, विद्या का फल है विनय।
कभी-कभार हमारे मन में ऐसी धारणा होती है, कि पढ़ लें, डिग्री ले लें, और अपने पैरों पर खड़े हो जाएं, ताकि फिर जिंदगी भर किसी के सामने घुटने टेकने न पड़े, किसी के सामने सर झुकाना न पड़े।
कमाल की बात है।
पता नहीं चलता कि सिर झुकाने से हमें इतनी परहेज क्यों है? झुकने से ऐसा क्या है, जो हमने गवां देते हैं ? बल्कि झुकने से ही तो हमने ऐसा पाया है, जो कि हमारा था, और हम से दूर चला गया था।
दरअसल, अहंकार झुकने से हमें रोक लेता है। कभी-कभी मन में आता है, चलो! झुक जाएं, पर हमारा Ego हमें ऐसा करने नहीं देता।
ऐसी ही हालत गौतम स्वामी जी की भी थी। एक बार उन्होंने अपने अहंकार को इतना बड़ा कर दिया था, कि वे स्वयं प्रभु महावीर स्वामी जी के सामने भी झुक नहीं पाए थे।
पर जब प्रतीत हो गया, कि न झुकने से नुकसान है और झुकने से ही सच्चा कल्याण है, तब वे परमात्मा के सामने पूरे मन से झुके, और ऐसे झुके कि अपना जीवन बदल दिया। न झुककर उन्होंने सिर्फ अपने मिथ्या अभिमान को ही बचा रखा था, पर झुककर उन्होंने अपने मिथ्या अहंकार को गंवाया, और उसके सामने पाया? वे 50,000 केवलज्ञानी शिष्यों के गुरु बने, अनंतलब्धिओं के भण्डार बने, अप्रतिम सौभाग्य के धनी बने, और इन सबसे बढ़कर प्रभु महावीर के दिल में हमेशा के लिए स्थान प्राप्त करने वाले बने। अगर झुकने से इतना कुछ मिलता हो, तो भला कौन देव-गुरु के चरणों में झुकने से हिचकिचाएगा?
अंत में,
बड़े-बड़े साधक-संत अपनी गाड़ी खुद चलाकर मोक्ष की ओर बढ़ते है। वे बड़ी और कड़ी मेहनत करते हैं, और उनके आगे झुकने वाले लोग ज्यादा मेहनत किए बिना ही, सिर्फ उनके साथ जुड़ जाने पर ही मोक्ष की मंजिल को प्राप्त कर लेते हैं। अगर मोक्ष इतनी आसानी से मिलता हो, तो चल मेरे दोस्त! थोड़ा सा झुक जाते हैं…
।। विनय पद ।।
(तुझे देख देख…)
जब मैं विनय से नमता, तब कितना अच्छा लगता;
अक्कडता मुर्दा रखता, जिंदा हमेशा झुकता;
विनय धर्मनगर का द्वार; अब मोहे तार,
भवपार उतार, संसार पार करा…
मोक्षनगर की डगर, विनय से मिलती;
पूज्यों के विनय से, सब शक्तियाँ खिलती;
जो जितना नीचे झुकता, वो उतना ऊपर उठता;
विनय सर्वगुणों का सार… अब… (1)
विनय साथी है, विनय सखा भ्राता;
बुराइयों में घिरे, विनय है त्राता;
मुझको बचा ले अब, सुख दिला दे सब;
मैं तुझे करता सदा प्रणाम… अब… (2)
क्या क्या न देता तू, तुझे जो दिल में रखता;
इस भव में अगले, भव में भी सब देता;
अरिहंत बनने की, मुझ पर कृपा कराना;
इतनी है मेरी प्रार्थना… अब… (3)
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