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जिनशासन का जयघोष

Updated: Apr 12




जैनत्व के संस्कारों से सुवासित प्रभु महावीर के अनुयायी सभी संघ, सभी सम्प्रदाय, सभी गच्छ, सभी समाज, सभी ट्रस्ट सामूहिक या व्यक्तिगत स्तर पर कोरोना Covid-19 की वर्तमान परि-स्थिति में पंच-महाव्रतधारी श्रमण-श्रमणियों की भक्ति, सम्यक्द्रष्टि पुण्यात्माओं की भक्ति, आव-श्यकतानुसार अन्य लोगों को राहत-अनुकम्पा, जीवदया इत्यादि कार्यों में युद्ध स्तर पर तन, मन और धन से कार्यरत हैं। मैं उनकी हार्दिक अनु-मोदना करता हूँ। आज जैन समाज करोड़ों रूपये पानी की तरह मानव सेवा और अन्य सत्कार्यों में सदुपयोग कर रहा है, सबको धन्यवाद है।

प्रभु वीर द्वारा जैनों की रग-रग में ऐसे उत्तम संस्कार भरे गए, इसलिए बारहों महीने ऐसे सत्कार्यों की गंगा बहती ही रहती है। किसी भी प्रकार की आपत्ति, उपद्रव, भूकंप (कच्छ, लातूर), अतिवृष्टि (उत्तराखण्ड, बनासकांठा, सूरत, मुंबई), अनावृष्टि या महामारी जैसी विपत्तियों में मानवीय मूल्यों को उजागर करते हुए सत्कार्य करने में जैनों का विशेष योगदान सदैव रहता ही है।

वर्तमान समय में आणंदजी कल्याणजी पेढ़ी, वर्धमान सेवा केन्द्र, जितो, मुम्बई जैन संगठन, विविध राज्यों के हजारों संघ, ट्रस्ट, संस्थाएँ, गौतम अडाणी और टोरंट जैसे उद्योगपति, जैन डॉक्टर, जैन सेवाकर्मी, जैन सेवा संस्थाएँ आदि ने अनेक प्रकार से इन सत्कार्यों में तन, मन और धन से सहयोग देकर करोड़ों – अरबों का सद्व्यय किया है, और कर रहे हैं।

साथ ही दूसरी ओर इस वर्तमान स्थिति में बिगड़ी अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए केन्द्र एवं राज्य सरकारों की नजर सरकारी नियमों के अनुसार धार्मिक ट्रस्टों द्वारा बैंक में रखे गए देवद्रव्य और ज्ञानद्रव्य आदि समस्त क्षेत्रों की राशि पर है। ऐसे समय में अपनी जेब से एक भी पैसा खर्च न करने वाले कुछ तथाकथित ‘गरीबों के मसीहा’ कहलाने वाले तथाकथित समाज सेवक मात्र सीधा साधने के लिए ऐसा लिखते हैं कि, ‘बैंकों में धार्मिक संस्थाओं द्वारा करवाया गया पैसा FD के रूप में ऐसे ही पड़ा है?, ये किसी के काम न आए, तो कैसे चलेगा?’ ‘जैनों के पैसे ज्यादातर तो मन्दिरों और पत्थरों पर ही अनावश्यक रूप से व्यय होते हैं।’

तो, ऐसे अवसर पर सामूहिक या व्यक्तिगत रूप से सत्कार्य करने वाली सभी संस्थाओं, ट्रस्ट या संघ से अनुरोध है, कि आप कोई भी छोटा-बड़ा सत्कार्य कर रहे हैं, तो “भगवान महावीर के अनुयायी द्वारा” या “जैनधर्म के उपासकों द्वारा” या इस प्रकार के कोई Title द्वारा (TV या अन्य Media में) प्रचार करने में कमी न रखें। (किन्तु प्रचार वास्तविकता का ही करना है, बढ़ा-चढ़ाकर नहीं)

किसी व्यक्तिगत संस्था को इसकी Credit मिले, इससे बेहतर यह होगा कि समस्त जैनधर्म, समाज या भगवान महावीर का नाम लिया जाए। (सामने वाले का नाम और फोटो वगैरह न आए, यह भी ध्यान रखें) ताकि तथाकथित आधुनिक विचार-धारा वाले जैन, अजैन या सरकार को भी पता चले कि जैन लोग सिर्फ मन्दिर, मूर्ति और पत्थरों पर खर्च नहीं करते, बल्कि अबोल जीवों से लेकर मानव मात्र की सहायता हेतु आगे आने वालों में, पैसे खर्च करने वालों में अग्रिम पंक्ति में आते हैं।

जैन आबादी भारत की जनसंख्या का आधा प्रतिशत भी नहीं है, फिर भी जैन धर्म के अनुयायी समस्त मानव समाज के लाभ के लिए संकट के समय करोड़ों की राशि का सद्व्यय करते हैं। इस बात का बार-बार अखबार या अन्य मीडिया प्रचार आवश्यक है, ताकि लोगों की झूठी और ईर्ष्याभरी मानसिकता में बदलाव आ सके और धार्मिक संस्थाओं की FD पर से सरकार की नजर हट सके।

समाचारों के अनुसार वर्तमान परिस्थिति में जैनों ने राहत कार्य में करोड़ों-अरबों का सद्व्यय किया है। इससे अन्य धर्मावलम्बीयों में जिनशासन के प्रति सच्ची प्रभावना, अहोभाव और आदरभाव बढ़ेगा।

प्रभु महावीर के केवलज्ञान का उत्सव, और शासन स्थापना पर्व के इस उत्सव से सबके हृदय में शासन की स्थापना हो, सब लोग जिनशासन को प्राप्त करके केवलज्ञान द्वारा अनन्त सुखी बनें, यही शुभेच्छा !!

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