सुबह पति जब तैयार होकर घर से बहार निकल रहा था, तब अंदर से उनकी श्रीमतीजी (पत्नी) आयी, उनके हाथ में केशर-बादाम-पिस्तावाला दूध रखा और पत्नी ने कहा “आप यह दूध पीकर ही जाना” पति को कुछ शंका हुई अत: पुछा “लेकिन क्यों ?”
श्रीमती ने कहा, “मैं कह रही हूं, इसलिए पीकर जाओ”
पति – नहीं! पहले ये बताओ क्यों “
श्रीमती – आज नागपंचमी हैं, पूरे शहर में नाग को ढूंढने कहाँ जाऊँ? इसलिए मैंने आपको…
सिर्फ नागपंचमी के दिन ही नहीं, परंतु इंसान हर रोज नाग को दूध पिलाता है और यह नाग है – हमारे भीतर रहे दोष…
जिसके द्वारा भीतर रहे हुए दोष बहुत ही प्रबल बने ऐसी चेष्टा करना – यही तो है सर्प को दूध पिलाने जैसी चेष्टा …
सर्प को दूध पिलाने से उसके अंदर रहे हुए विष (ज़हर) की भी वृद्धि होने वाली है।
एक तो मन में वासना है और उसके बावजूद भी टी.वी., मोबाइल में नारी दर्शन करना…
एक तो मन में क्रोध की आग है और उसके बावजूद भी हिंसक दृश्यों को देखना…
एक तो मन में लोभ का सागर है और उसके बावजूद भी जो नई-नई वस्तुएं दिखाई दी उसे, प्राप्त करने की इच्छा…
एक तो मन में आहार संज्ञा की लालसा है और उसके बावजूद भी नई-नई होटल, नई-नई डिश, चाहे अभक्ष्य हो या अपथ्य, सभी खाने की लालसा…
एक तो मन में अभिमान का पर्वत है और उसके बावजूद बात-बात में ‘मैं’ और ‘मेरा’ का ही रटण…
बहुत ही भयंकर है यह नागपंचमी!
जिस नाग को हमने दूध पिलाकर पुष्ट किया, वही नाग हमें दंश देगा, हमारे शरीर में विष फैलेगा, हम स्वयं तड़प-तड़प कर मरेंगे तब हमें हमारी भूल का अहसास होगा, परंतु तब तक सारी बाजी हमारे हाथ से निकल गई होगी।
रात दिन मजदूरी कर करके, टेंशन ले लेकर, वर्षों के बाद जो धन इकट्ठा किया, इस धन का उपयोग किस में करेंगे? विष पीने में? सर्प को पालने में? जिससे हमें दुःख प्राप्त होने वाला है उसमें ?
होटल-सिनेमा-फैशन-व्यसन-टी.वी.-मोबाइल इस सब का उपयोग, हैवी डाईबीटीस में गुलाब-जामुन खाने के समान है।
चलो संकल्प करें : जो मुझे परेशान करने वाले है एवं दु:खी करने वाले तत्त्व है, उनसे तो मैं दूर ही रहूँगा, उन्हें पुष्ट नहीं करूँगा।
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