इस भव में लोन या ब्याज कुछ भी वापस नहीं करना है, लेकिन परलोक में आना, पाई, ब्याज, सिक्के समेत चुकाना पड़ेगा। ऐसा करार करने वालों को बिना कोई जान-पहचान के भी लाखों रुपये की लोन देने वाले आस्तिक सेठ से चार चोरों ने लाख-लाख रुपये की लोन ली और अपने वतन की ओर निकले। रात को बीच में एक गांव आया, वहां घांची की घाणी (कोल्हू) वाले स्थान में रुके। पशुओं की भाषा जानने वाले छोटे चोर ने दो बैलों की बातें सुनी कि, भवांतर में घांची का बैल बनकर भी कर्ज चुकाना पड़ता है, यह जानकर वह काँप उठा। चारों चोर वापिस लौटे और सेठ को लाख-लाख रुपये वापस लेने के लिए आग्रह करने लगे। पर सेठ तो परलोक में ही वापस लेने के करार पर अड़े रहे, तो चारों चोर किसी संत की शरण में गये, और अपनी परेशानी उन्हें बताई।
संत ने मार्गदर्शन दिया, पहली बात, इस तरह कर्ज लेना ही नहीं चाहिये। अब यदि ले ही लिया है तो इसी जन्म में ही उसकी भरपाई कर देनी चाहिये। पर यदि लेनदार मना कर रहा है, और तुम्हें परलोक में कर्ज लेकर नहीं जाना है, तो तुम्हें उतनी रकम का सुकृत करना चाहिये। पर कहीं पर भी तुम्हारा नाम नहीं आये, या किसी को पता ना चले इसकी बहुत सावधानी रखनी है, और आपके बदले उस लेनदार का नाम घोषित करना चाहिये। उसके नाम से यह पूरा सुकृत और पुण्य कर दो। प्रभु से भी अंतःकरण से प्रार्थना करो कि इस सुकृत का पुण्य उसे प्राप्त हो जाये।
हमारे यहाँ ऐसी बात आती है कि, एक भक्ति संपन्न श्रावक अपनी न्यायोपार्जित संपत्ति से प्रभु-प्रतिमा का निर्माण करवा रहा था। उसकी जानकारी के अनुसार यह संपूर्ण संपत्ति उसकी खुद की ही, अपने हक की ही है, फिर भी अपनी जानकारी के बाहर, दूसरे किसी के हक की संपत्ति का अंश भी इसमें आ गया होगा तो ? ऐसी शंका है। तो शास्त्रकारों ने दर्शाया है कि उस श्रावक को ऐसी भावना करनी चाहिये कि, यदि ऐसा कोई अंश इस संपत्ति में शामिल हो गया हो तो, उतने अंश का पुण्य उस हकदार भाग्यशाली को प्राप्त हो जाये। अस्तु…।
हमारी बात यह थी कि अनीति को टालना चाहिये। और उसे इसलिए टालना चाहिये कि, भविष्य में उसके कारण से धनप्राप्ति अति दुर्लभ बनती ही है, पर वर्तमान में भी धनप्राप्ति में अंतराय आ जाते हैं।
प्रश्न : पर महाराज साहेब! हमारा अनुभव तो ऐसा है अनीति से धनप्राप्ति में अंतराय नहीं पर अनीति से धनप्राप्ति सरल हो जाती है। पैसा बनाना हो तो अनीति करनी ही पड़ती है। अनीति से ही पैसा मिलता है। अल्पकाल में ही करोड़पति बनने वाले को देखकर हमें ऐसा ही विचार आता है कि कुछ उल्टा-सीधा किया होगा। नहीं तो इतने कम समय में इतने पैसे मिलते ही नहीं है। फिर अनीति से अंतराय होने की बात कहाँ आती है ?
उत्तर :- सूरिपुरंदर श्री हरिभद्रसूरि महाराज ने श्री शास्त्रवार्ता समुच्चय नामक ग्रंथ में कहा है कि
“सुख धर्मात् दु:खं पापात् सर्वशास्त्रेषु संस्थिति:।”
अर्थ :- दुनिया के किसी भी धर्मशास्त्र में दर्शायी हुई कोई एक समान बात है तो, यह है कि सुख धर्म से मिलता है, दु:ख पाप से आता है। इस बात पर किसी को कोई भी मतभेद नहीं है।
अनीति भी पाप है, इसलिए उससे दरिद्रता का दुःख आयेगा ही, श्रीमंत का सुख नहीं !
और दुनिया का निरीक्षण करेंगे तो पता चलता है की धर्मी लोग कम हैं और सुखी लोग भी कम हैं। पापी बहुत हैं और दुःखी लोग भी बहुत हैं। यह वास्तविकता भी हमें इसी नतीजे पर लाती है कि सुख धर्म से मिलता है और दुःख पाप से आता है।
प्रश्न : पर महाराज साहेब! आजकल तो विपरीत ही देखने को मिलता है। जो पाप करने में No.1 है, वह मजे करता है, और दूसरी तरफ धर्मात्मा लोग जैसे-तैसे अपना जीवन गुजार रहे हैं।
उत्तर : एक व्यक्ति को राष्ट्रपति ने किसी अवॉर्ड से नवाजा, और दूसरे को कोर्ट ने सजा दी। इन दोनों ने क्या किया होगा, यह आपको नहीं पता। पर यदि आपसे पूछा जाये कि, बोलो, पहले ने क्या किया होगा ? और दूसरे ने क्या किया होगा ?
‘पहले ने कुछ अच्छा काम किया होगा, और दूसरे ने कोई गुनाह किया होगा।’
‘यदि इससे विपरीत हो तो ?’
‘महाराज साहेब! हो ही नहीं सकता। अच्छे काम की सजा और गुनाह का अवॉर्ड…impossible…
‘यह सिर्फ आपका ही अभिप्राय है या औसतन किसी भी बुद्धिमान व्यक्ति का ?’
‘महाराज साहेब! जिसमें थोड़ी-सी भी अक्ल होगी उसका जवाब यही होगा।’
ठीक … तो श्री हरिभद्रसूरि महाराज ने भी यही तो कहा है, अच्छा काम यानी धर्म, अपराध मतलब पाप। सुख कुदरत द्वारा दिया हुआ अवॉर्ड है और दु:ख कुदरत द्वारा दी हुई सजा है। बोलो सारी कड़ियां मिल रही है ना ?
‘पर धर्मात्मा दुःखी और पापी सुखी, ऐसा उल्टा भी कईं बार देखने को मिलता है, उसका क्या ?’
‘लगभग दस बजे के आस-पास डॉक्टर के पास गये हुए दो मित्रों में से एक ने शिकायत की कि, ‘डॉक्टर साहब ! कितनी विचित्र बात है। मैंने सुबह से कुछ नहीं खाया है, फिर भी मैं पांच बार टॉयलेट जाकर आया, और मेरे इस मित्र ने पेट भरकर नाश्ता किया था, फिर भी एक बार भी नहीं गया।‘
‘तूने आज भले ही कुछ भी नहीं खाया हो लेकिन कल तूने क्या खाया था?’
‘डॉक्टर साहब ! कल मैंने खमन ढोकले खाये थे, बहुत टेस्टी थे, भरपेट खाये थे।’
‘बस उसी के कारण तुझे आज पांच बार टॉयलेट जाना पड़ा, समझ में आया ?’
क्या आपको समझ में आया ? आज बार-बार टॉयलेट जाना पड़ रहा है, उसका कारण बीते हुए कल में भी मिल सकता है। उसी तरह इस भव में दु:खी रहने का कारण पूर्वजन्म में भी मिल सकता है। और इसी तरह इस भव में सुख ही सुख मिलने का कारण भी पूर्वजन्म में मिल सकता है। इस भव का पापी लेकिन सुखी व्यक्ति पिछले भव में धर्म करके आया है। इस भव का दु:खी लेकिन धार्मिक व्यक्ति पिछले भव में पाप करके आया है, ऐसा अनुमान अवश्य कर सकते हैं। पर सुख धर्म से मिलता है, और दु:ख पाप से आता है, इस नियम में अपवाद नहीं है।
एक लकड़हारा और उसकी पत्नी रोज जंगल में लकड़ियां काटने जाते थे। उनका नियम था कि जो सूखी लकड़ियां मिलेगी वे ही लेंगे, पेड़ से हरी लकड़ियां नहीं काटेंगे। वे सुबह-सुबह निकल जाते थे, थोड़ा बहुत मिल जाता था तो गाँव में वापस आ जाते थे। बाजार में जाकर उस लकड़े को बेचते थे। उससे जो भी पैसे मिलते थे उससे अपना सामान खरीदते थे और दिन पूरा करते थे। यह उनकी रोज की चर्या थी।
एक दिन इसी तरह निकले, जंगल में प्रवेश किया ही था कि एक सूखी लकड़ियों की गठरी दिखाई दी, तो लकड़हारे की पत्नी ने कहा कि, ‘चलो ! आज की मेहनत टल गई! यह गट्ठर लेकर गाँव में वापस चलते है।’
लकड़हारे ने मना कर दिया, ‘किसी ने मेहनत करके लकड़ियां चुन-चुन कर गठरी बनाई है। बेचारा कहीं पर पेशाब-पानी करने गया होगा, हम बिना हक का कैसे ले सकते हैं ? चल- चल ! हम अपनी मेहनत की लकड़ियां चुनते हैं!
दोनों जंगल में आगे बढ़े, पर योगानुयोग आज एक भी सूखी लकड़ी नहीं मिली। (जो भी थी, वह सारी उस व्यक्ति ने चुन ली होगी) दोपहर हो गई, शाम होने को आ गई। पर एक भी लकड़ी नहीं मिली। खाली हाथ वापस लौटे, और उस दिन भूखा ही सोना पड़ा। रात को पत्नी ने लकड़हारे से कहा, ‘यदि वह लकड़ियों की गठरी हमने ले ली होती तो इस तरह भूखा नहीं सोना पड़ता।’
‘तू अभी भी नहीं समझी ?’ लकड़हारे ने कहा।
‘सब समझ गई। यह नीति ही पूँछ पकड़ कर रखी इसलिए तो भूखे रहने की नौबत आ गयी।’
‘नहीं! यह तूने गलत समझा है, सच तो कुछ और ही है।‘
‘क्या’ ?
उस समय लकड़हारे ने जो कहा, उसे सभी को दिल की डायरी में लिखकर रखना चाहिए।
लकड़हारे ने कहा कि, ‘बिना हक का लेने का सिर्फ सोचा तो हमें भूखा रहना पड़ा, यदि सच में ले लिया होता तो क्या से क्या हो सकता था ?’
इस तरह (अनीति आदि) पापों से (पैसे की प्राप्ति रूप) सुख मिल जाये, यह कभी भी संभव नहीं है। ऊपर से अनीति से अंतराय आते हैं। इस बात को हम अन्य रूप से भी समझ है कि गुनाह की Gift होती है ? – Impossible !
एक बैंक है। वह अपने Account holder को दो प्रकार की चैक बुक देती है। एक चैक बुक के सभी चैक काले हैं, और दूसरी चैक बुक के सारे चैक व्हाईट हैं। यदि ब्लैक चैक लिखा जाये तो जल्दी Clear होता है और पैसे हाथ में आ जाते हैं। पर यदि व्हाईट चैक लिखें तो Clear होने में देर लग जाती है। कभी-कभी 2/4 महीने भी लग जाते हैं।
बोलो, लोग कौन सा चैक डालेंगे ?
‘महाराज साहेब ! ब्लेक चैक ही ना… तुरंत पैसे हाथ में आ जाते हैं!
‘हाँ ! पर यदि इस बैंक की सिस्टम आपको मालूम पड़ेगी तो आपका अभिप्राय बदल जायेगा। एक खातेदार ने 1 लाख का ब्लेक चैक लिखा, शीघ्र क्लियर हो गया, उसे 1 लाख रुपये मिल गये। पर बैंक ने उसकी बैलेंस में से 10 लाख कम कर दिये। हाँ ! इस बैंक में एसी सिस्टम है कि यदि कोई ब्लेक चैक डालेगा तो कम से कम 10 गुना पैसे उसके Account से Debit हो जाएगा। पर यदि कोई व्हाईट चैक डालेगा तो क्लियर होने में थोड़ी देर लगेगी, पर 1 लाख का हो तो 1 लाख ही Debit होगे 10 लाख नहीं।
बोलो, अब कौन- सा चैक लिखना है ?
कुदरत की भी एक बैंक है। जिसमें सारे जीवों का पुण्य बैलेंस में होता है। किसी भी जीव को जब 1 रुपया मिलता है, तब इस पुण्य का चैक डाले बिना नहीं मिलता। और चैक डालोगे तो बैलेंस कम होगी, होगी और होगी ही। अनीति ब्लेक चैक है, और नीति व्हाईट चैक है। (एक बात समझने जैसी है कि, सिर्फ चेक लिखने से कभी भी पैसे नहीं मिलते है। बैलेंस होगा तो ही पैसे मिलेंगे, और यदि बैलेंस नहीं होगा और चेक लिखेंगे, या बैलेंस से ज्यादा रकम का चैक Overdraft तो वह Bounce होगा, और ऊपर से केस हो जाता है, सजा हो जाती है।)
इस हुंडा पंचमकाल का दुष्परिणाम यह है कि ब्लेक चैक जल्दी Clear हो जाता है, ऐसा लोगों को अनुभव होता है। White cheque clear होने में बहुत देर लगती है, ऐसा लगता है, ऐसा अनुभव होता है। इसीलिए लोग अनीति की ओर बढ़ते रहते है। हाँ, नीति से जब मानव 1 लाख रुपये प्राप्त करता है, तब कुदरत की बैंक उसके बैलेंस में से 1 लाख रुपये जितना ही पुण्य Debit करता है। पर यदि मानव अनीति का ब्लेक चैक Cash करता है, तब यह बैंक उसके पुण्य बैलेंस में से, जो पुण्य नीति से (व्हाईट चेक से) Cash करवाया होता तो कम से कम 10 लाख रुपये दिला सके उतने पावर वाला था, उतना पुण्य Debit कर डालता है। यह तत्काल 1 लाख रुपये का अंतराय हुआ कि नहीं ?
(भविष्य में तो बंधे हुए पापों के कारण अंतराय होने वाला ही है।)
याद रखना चाहिये कि! लाख रुपये जो मिले हैं, वे अनीति से नहीं, पर पुण्य से ही मिले हैं ना ? और 1 लाख रुपये का जो अंतराय हुआ है, वह अनीति से हुआ है।
इस तरह, अनीति से अंतराय बंधता है, यह बात स्पष्ट है।
हालांकि इस बात को हमने बैंक के दृष्टांत से देखा, इस बात को शास्त्रीय तर्क से आगामी लेख में देखेंगे।
Comments