top of page
Writer's picture Priyam

परिवार में आनंद

Updated: Apr 12




छगन के घर चोरी हुई, वह पुलिस में रिपोर्ट लिखवाने गया। पुलिस ने लिखते–लिखते पूछा, “क्या–क्या चोरी हुआ?” तो छगन बोला, “ज्वेलरी, पैसे, सीडी प्लेयर, मिक्सर, ग्राइंडर, फ्रिज, कपड़े, जूते, बर्तन, शो–पीस, डबल बेड, झुमर, कार्पेट …” पुलिस हवलदार लिखते–लिखते परेशान हो गया और बोला, “शॉर्ट में लिखाओ।” तो छगन बोला, “टीवी को छोड़कर सब कुछ चोरी हो गया।” सुनकर पुलिस को दाल में कुछ काला लगा, उसने पूछा, “टीवी क्यों चोरी नहीं हुआ?” तो छगन बोला, “वो तो मैं देख रहा था।”

आज तो हर घर में ऐसी छगन कथा चल रही है। छगन की स्टोरी जैसी ही आपकी स्टोरी है। टीवी देखते–देखते या यूँ कहें, कि ऊपरी फेंटसी का मजा लेते–लेते आपका पूरा घर लुट रहा है, और आप टीवी देखने में मग्न हैं। यदि अपना घर बचाना है, तो इस So Called फेंटसी को ख़त्म कर दो।

आपके बच्चों को भी पता ना हो कि आप श्रीमन्त हैं, तभी आप सच्चे श्रीमन्त हो।

यदि आप बीमार पड़ें और घर के सब लोग अपना प्रोग्राम कैंसल कर दें, सब अपने फोन बन्द कर दें और दिन–रात आपकी की सेवा में जुट जाएँ, सच्ची फेंटसी तो यही है। आपका बेटा आपसे यह कहे कि, “भले ही भारत के सभी लड़के पढ़ने के लिए विदेश चले जाएँ, मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाने वाला” – यही सही मायने में फेंटसी है। आपकी बेटी आपसे कहे कि, “भले सोसाइटी की सारी लड़कियाँ वेस्टर्न एन्ड मोडर्न ड्रैस पहनती होंगी, किन्तु मैं यह पागलपन हरगिज नहीं करूँगी”, सच्चे अर्थ में फेंटसी यही है। आपकी पत्नी आपसे यह कहे कि, “आप भले ही इससे आघे वेतन में काम करो तो चलेगा, किन्तु इतना बोझ लेकर काम करो, यह नहीं चलेगा, मुझे कुछ नहीं चाहिए” फेंटसी इसे कहते हैं। आपके बेटे की सगाई की बात चल रही हो, तकरीबन दोनों ओर से एक–दूसरे को पसन्द कर लिया हो, और अन्त में लड़की यह बोले कि, “मुझे अलग घर चाहिए” और आपका लड़का तुरन्त यह जवाब दे कि, “मैं अभी तुमसे अलग होता हूँ” – असली फेंटसी यही है। आप खाना खाने बैठे हो, आपका बेटा और बहू खाना परोस रहे हो, और बहू कहे, “पापा ! एक रोटी और लीजिए, एकदम गर्मागर्म है, आप तो कुछ खाते ही नहीं।” और अन्दर रूम से आपकी श्रीमती बोले, “तुम लोग इतना आग्रह करके रोज इनको ज्यादा खिला देते हो, फिर इनकी तबीयत ख़राब हो जाएगी तो!! अब ज्यादा मनुहार मत करो” सच्ची फेंटसी यह है। अपनी सारी सम्पत्ति बेटे के नाम करने वाला वसियत नामा बनाकर आप अपने बेटे के हाथ में सौंपो, और आपका बेटा फफक–फफक कर रोने लगे और उस वसियत नामा के कागजात को बॉल बनाकर फेंक दे, इसे सच्ची फेंटसी कहेंगे। आपकी बेटी के ससुराल से फोन आए, कि आपने अपनी बेटी को ‘देवी’ बनाकर भेजा था, अब तो ये हमारी ‘इष्ट कुल देवी’ बन गई है, फेंटसी इसे कहते हैं। आपके बेटे और बहू का विनय व्यवहार देखकर आपके पोते–पोती बिना सिखाए यह समझ जाएँ, कि आप ही इस घर के भगवान हैं, सच्ची फेंटसी यह है। कोई अरबपति भी यदि आपके घर 10-15 मिनिट के लिए भी आए और उसे लगे कि आपके घर में प्रेम और शान्ति की सम्पत्ति के सामने मैं तो भिखारी हूँ, सच्ची फेंटसी यह है।

I ask you, आपको सच्ची फेंटसी चाहिए? यदि हाँ, तो झूठी फेंटसी छोड़ दीजिए। यदि आपको दोनों चाहिए, तो यह कदापि सम्भव नहीं है। पूरी जिन्दगी आप झूठी फेंटसी के पीछे भागते रहे, और साथ ही इस बात का रोना रोज रोते रहे, कि घर में आपकी किसी को पड़ी नहीं है, तो ये पागलपन आज ही छोड़ दीजिए।

  1. Artistry :

Family शब्द का दूसरा अक्षर है A, और यहाँ A Stands for Artistry. यानी कला–कौशल्य। आर्टिस्ट्री दो प्रकार की होती है, सच्ची और बनावटी।

छगन की पत्नी ने अपनी बेटी को धमकाते हुए डाँटा, “ऐसे पागलों की तरह क्यों चीख–चिल्ला रही है? तूं क्या बोल रही है, तुझे खुद को भी पता चल रहा है? इतनी जोर से आवाज? इतनी तेज शब्दों की बौछार? क्या है ये सब? अपने भाई को देख! कितना चुपचाप बैठा है। एक शब्द भी नहीं बोल रहा।“ बेटी ने जवाब दिया,” मम्मी! हम तो घर–घर खल रहे हैं। भाई पप्पा का रोल प्ले कर रहा है, और मैं आपका …।“

छगन ने एक बार अपने बेटे से पूछा, “ बता! गन और मशीनगन में क्या फर्क है?”

बेटे ने तुरन्त जवाब दिया, “ पप्पा! आप बोलते हैं वह गन है, और मम्मी बोलती है वह मशीनगन है।“

आर्टिस्ट्री हम सब में है, किन्तु लाख रूपयों का प्रश्न यह है कि हमारे अन्दर किस प्रकार की आर्टिस्ट्री है? और किस प्रकार की होनी चाहिए?

कुछ स्त्रियाँ अपनी जीभ से अपने ही संसार की कब्र खोदती हैं, कुछ स्त्रियों की लम्बी जीभ से उनके पति का जीवन छोटा हो जाता है, तो कुछ पतियों का मौन टूटते ही उनका संसार टूट जाता है। कुछ संतानें गाय का आँचल (थन) काट कर दूध प्राप्त करना चाहती हैं, तो कुछ माँ–बाप सुख और सुख के श्रेष्ठ साधनों से अपनी सन्तानों का सत्यानाश कर देते हैं।

बिना किसी कारण या किसी छोटे से कारण से झगड़ा करना भी एक कला है। किसी कारणवश यदि घर में माहौल थोड़ा टेंशन वाला हो जाए तो उस टेंशन को सौगुना बढ़ा देना भी एक कला है। सामने वाले व्यक्ति के हृदय में अपना सम्मान 50% तक पहुँच गया हो, तो -50% तक उसका अवमूल्यन करना भी एक कला है। अपने सिर में दर्द हो रहा हो, इस कारण घर के सभी लोगों के लिए सिरदर्द बन जाना भी एक कला है। हम घर में प्रवेश करें, उस समय घर के सब लोग इस ताक में हों कि कब हम घर से वापिस बाहर जाएँगे, ऐसा वातावरण बनाना भी एक कला है।

उपरोक्त सभी उदाहरण कला–कौशल्य के ही भाग हैं,  किन्तु यह सब नेगेटिव आर्टिस्ट्री हैं। यदि आपको फैमिली को बचाना है तो पॉजिटिव आर्टिस्ट्री सीखनी होगी।

स्वीटू की माँ का देहान्त हो गया तो उसके पिता ने दूसरी शादी की। पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने स्वीटू को समझाया कि, “ सौतेली माँ से सावधान रहना। वह तुझे मारेगी, डाँटेगी और जीना हराम कर देगी। वह तुझसे सच्चा प्रेम कभी नहीं करेगी। “

स्वीटू के मन में यह बात घर कर गई। लेकिन उसकी सौतेली माँ अच्छी थी। वह स्वीटू को सच्चा वात्सल्य देती थी, उसका ध्यान रखती थी, लेकिन स्वीटू को यह सब नेगेटिव लगता था। वह अपनी सौतेली माँ से अविनय करता, उसके मुँह पर सब कुछ सुना देता “ तू मेरी माँ नहीं है, तुझे मुझसे सच्चा प्रेम नहीं है “ और उसका दिल तोड़ देता। वह बेचारी अकेले में रोकर अपना दिल हल्का कर लेती थी।

एक दिन बॉल खेलते हुए पिता द्वारा लाया हुआ ताजमहल का महँगा शो–पीस स्वीटू से टूट गया। स्वीटू तो डर गया। पप्पा ऑफिस से आए। स्वीटू डर के मारे किचन में छिप गया और गेट के कोने में खड़ा होकर देखने लगा। पप्पा सोफे पर बैठे, टेबल पर देखा तो शो–पीस गायब था। उन्होंने पूछा, “ ताजमहल कहाँ गया? “

स्वीटू की धड़कनें एक्सप्रेस ट्रेन की तरह दौड़ने लगी। वह सोचने लगा कि मेरी सौतेली माँ सब कुछ बता देगी और पप्पा मेरी धुलाई कर देंगे। डर के मारे वह कांपने लगा। उधर सौतेली माँ बोली, “ साफ–सफाई करते हुए मुझसे टूट गया। “ सुन कर पप्पा का गुस्सा सातवें आसमान को छू गया। उन्होंने आव देखा न ताव, पेपर–वेट उठाकर सीधे मम्मी के सर पर मारा और गुस्से में घर से बाहर निकल गए।

स्वीटू दौड़कर आया और माँ के गले लग गया और जोर–जोर से रोने लगा, “ तू ही मेरी सच्ची माँ है। तू मुझसे सच्चा प्रेम करती है।“ फिर स्वीटू ने अपने हाथों से माँ के घाव पर मरहम लगाया, पट्टी की। उसकी माँ मुस्कुरा रही थी। इस एक आर्टिस्ट्री ने उसे जीवन भर का सुख दे दिया था।

कुछ सत्यवादी अपने ‘सत्य’ के ‘बम्ब’ से पूरे घर का सत्यानाश कर देते हैं। जबकि इन्हीं सत्यवादियों को बिजनेस या जॉब में झूठ बोलने की आर्टिस्ट्री नहीं सीखनी पड़ती। I ask you, यदि बाहर आर्टिस्ट्री नहीं आती हो, तो Maximum कितना लॉस होगा? और घर में आर्टिस्ट्री नहीं आती हो तो Minimum कितना लॉस होगा? शान्ति से विचार करेंगे तो आपको महसूस होगा कि आप टॉप क्लास के स्टुपिड हैं।

मुझे वह कविता याद आती हैः

रंग है, तरंग है, अँगूठी के संग है_

नौ ग्रहों के नंग हैं, फिर भी जीवन तंग है।

आपकी यह इच्छा है कि आपका बेटा किसी पार्टी या विशेष प्रसंग में भी चौविहार का नियम न तोड़े। अब वह किसी बर्थ–डे पार्टी में जाकर आया, और आपको पता चला कि उसने वहाँ रात्रि भोजन किया है। नॉर्मली ऐसी स्थिति में आप उस पर बुरी तरह से टूट पड़ते हैं। किन्तु आपको समझदारी रखनी है। दूसरे दिन आप उसके लिए एक गिफ्रट लाइये और घर के सभी सदस्यों के सामने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहिये कि, “ दीप ने ऐसी पार्टी में जाकर भी अपना सत्त्व बरकरार रखा। जब सब लोग केक खा रहे थे, तब भी उसने अपना चौविहार अखण्ड रखा, यह करना कितना मुश्किल काम होता है? मेरी वर्षों की भावना का दीप ने मान बनाए रखा है। इसने तो आज हमारा स्टेटस बढ़ा दिया, I am proud of my son, well done!! “

दीप तुरन्त ही, अन्यथा उसी दिन भीगी पलकों से आपके पैरों में गिर कर माफी माँगेगा, और कहेगा, “ पप्पा! मैंने रात्रि भोजन किया है, किन्तु आगे से मैं ऐसा कभी नहीं करूँगा। भले कितना ही बड़ा व हाईफाई इवेंट क्यों न हो, किन्तु मैं रात को नहीं खाऊँगा। “

May be आपका दीप इस तरह न भी सुधरे, may be उसे सुधारने की गिफ्रट कुछ डिफरेंट हो, किन्तु आप बस एक बात का जवाब दीजिए– जब आप उसे सुधारने का प्रयास करते हैं तब ‘उसके’ स्वभाव को समझकर ‘उसके’ स्वभाव के अनुसार उसे सुधारते हैं? या आप ‘अपने’ स्वभाव के अनुसार उसे सुधार रहे हैं? जब आप उसे उसके स्वभाव के अनुसार सुधारने की परवाह किए बिना अपने ही अनुसार उसे सुधारने की कोशिश करते हैं, तो हकीकत में आप उसे बिगाड़ रहे हैं।

प्रेम और वात्सल्य जताने की भी एक आर्टिस्ट्री होती है, और थप्पड़ मारने की भी एक आर्टिस्ट्री होती है। बिना आर्टिस्ट्री के आँख बन्द करके कोई भी कार्य करना जोखिम भरा हो सकता है।

(क्रमशः)

Comments


Languages:
Latest Posts
Categories
bottom of page