हम प्रथम प्रश्न के जवाब पर विचार मन्थन कर रहे थे।
जो लोग पुण्यशाली हैं, 3 – 4 घण्टे व्यवसाय करके इतनी कमाई कर लेते हैं, कि खर्च तो आराम से निकल जाता है, उपरान्त सम्मानजनक पूँजी भी एकत्र हो जाती है। ऐसे भाग्यशालियों को खाली समय में क्या करना चाहिए? इसके लिए हमारे पास तीन विकल्प हैं।
(1) नए-नए व्यापार चालू करके धन और लोभ बढ़ाना,
(2) भोग-विलास एवं पापवृत्तियाँ बढ़ाना, या
(3) धार्मिक प्रवृत्तियाँ बढ़ाना
इनमें से प्रथम विकल्प क्यों सही नहीं है, यह हम पिछले लेख में पढ़ चुके हैं। कोई भी सज्जन व्यक्ति दूसरे विकल्प को उचित माने, ऐसा सम्भव नहीं है। क्योंकि यह स्पष्ट बात है, कि भोग यात्रा का कभी अन्त नहीं होता। जो लोग भोग के मार्ग पर चल रहे हैं, उनसे पूछिए। मार्ग खत्म होने वाला है, या बस थोड़ा ही मार्ग बचा है – क्या कभी ऐसा अनुभव हुआ है? या जितना रस्ता निकला, बाकी का बचा रस्ता उससे कईं गुना अधिक है, आगे बहुत दूर जाना है, इसकी मंजिल मिलने के तो आसार ही नहीं दिखाई नहीं देते – ऐसा अनुभव हुआ है क्या ?
दूसरों से क्या पूछना, आप अपने आप से ही पूछिए!! TV खरीदा, मोबाइल लिया, इतने वर्षों से इस्तेमाल भी कर रहे हैं, अब अन्तःकरण से उत्तर दीजिए, क्या सन्तोष अनुभव हो रहा है? क्या तृप्ति के भाव आ रहे हैं? क्या कभी ऐसा महसूस हुआ है की बस छः-आठ महीने और, फिर सारी इच्छाएँ शान्त हो जाएगी ? या नई-नई अनेक नई-नई इच्छाएँ जन्म ले रही हैं, ऐसा लगा है।
यह बात कभी मत भूलिए, कि जीव जैसे-जैसे भोग के मार्ग पर आगे बढ़ता है, वैसे-वैसे तृप्ति नहीं, बल्कि अतृप्ति और तृष्णा की व्यापकता बढ़ती है। आपको स्मरण रखना होगा कि भोग-विलास की एक निश्चित सीमा तक ही सदाचार का पालन संभव है। जब भोग उस मर्यादा को लंघन करता है, तब सदाचार, पवित्रता और सज्जनता का भोग चढ़ जाता है।
आज TV और मोबाइल ने सदाचार आदि का भोग ले ही लिया है। परस्त्री को भी घूरकर देखा जा सकता है, गन्दी नजर डाली जा सकती है, अंगो-पांग भी देखे जा सकते हैं। सदाचार, पवित्रता आदि की बात ही कहाँ रही?
यह सत्य है कि भोग-विलास बढ़ने के साथ-साथ पाप भी निश्चित तौर पर बढ़ेंगे। चलिए, एक प्रश्न पूछता हूँ …
मान लीजिए कि आपकी सालाना आमदनी दस लाख और खर्चा छः लाख है, मतलब चार लाख की नेट बचत है। वैसे देखें तो खर्चा सारा चुकता कर दिया, कोई भी देनदारी बाकी नहीं है, ये चार लाख एक्स्ट्रा ही हैं। ऐसा पिछले दस वर्षों से हो रहा है। “ये पैसे एक्स्ट्रा ही हैं, तो गटर में डाल देते हैं” – क्या कभी ऐसा विचार मन में आया है ?
“अरे ! महाराज साहेब ! कैसी बात करते हैं? एक्स्ट्रा पैसे क्या गटर में बहाने के लिए होते हैं? मौका मिले तो ये पैसे इन्वेस्ट करके चार के चौदह करने चाहिए। नहीं तो बचत करके सुरक्षित रखने चाहिए, कभी भी काम आ सकते हैं। फेंकने ही होते, तो इतने कमाते ही क्यों ?”
अरे भाग्यशाली ! मैं भी तो यही कहना चाहता हूँ। दुनिया में करोड़ों लोग ऐसे हैं, जो पुण्यशाली नहीं है। सुबह से देर रात तक मजदूरी करते हैं, तब जाकर बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी मिलती है। बचत की तो बात ही कहाँ है? न उनके पास पैसे बचते हैं, न वक्त और न ही पुण्य की बचत है। लेकिन जो लोग ३-४ घण्टे में ही जरूरत से ज्यादा कमा लेते हैं, उनके पास पैसे भी बचे, वक्त और पुण्य भी बचा।
अब जो पैसे बचे, उसका जैसा आपने कहा, उसे कहीं न कहीं इन्वेस्ट करते हैं, कोई गटर में नहीं बहाता, तो फिर बचे हुए समय और बचे हुए पुण्य का क्या करना चाहिए?
आप ही कहते हैं, Time is more than money, यदि पैसे गटर में नहीं डाल सकते, तो समय तो बिलकुल नहीं डाल सकते। उसका भी तो लाभदायक निवेश होना चाहिए। TV देखने बैठ गए, मोबाइल में गेम खेलने लगे, चैट करने में 2 – 3 घण्टे बिगाड़े। विचार कीजिए, क्या यह बचत हुई? इन्वेस्ट किया? या फिर गटर में डाला?
पुण्य के सन्दर्भ में भी ये ही तीन प्रश्न उपस्थित होते हैं। पुण्य को इस तरह गटर में डाल कर बर्बाद ही करना था, तो फिर पूर्वभव में प्रभु-पूजा, सुपात्र दान, तीर्थ यात्रा, सामायिक, प्रतिक्रमण, नवकार-जाप, जीवदया, अनुकम्पा आदि करके इतना ज्यादा पुण्य कमाने की जरूरत ही क्या थी?
एक बात समझ लीजिए, कि पैसे और समय – इन दोनों की तुलना में पुण्य का महत्त्व अनेक गुना अधिक है। क्योंकि यदि पुण्य प्रबल है, तो पैसे या समय हो या न हो, आपका काम जरूर होगा, किन्तु यदि पुण्य ही नहीं है, तो पैसा और समय होने पर भी वह आपके उपयोग में नहीं आ पाएगा।
इसलिए पैसे का Investment या Saving जितनी जरूरी है, उसकी तुलना में पुण्य का Investment और Saving कहीं अधिक जरूरी है, क्या यह बात आपको समझानी पड़ेगी?
बस! इसीलिए हम पुण्यशाली जीवों को कहते हैं कि तीसरा विकल्प अपनाना चाहिए। इसलिए Extra समय में धार्मिक प्रवृतियाँ बढ़ाइए। इस Extra पुण्य को (अर्थात् Extra मिले समय को) अष्टप्रकारी पूजा में, जिनवाणी श्रवण में, संघ के कार्यों में, साधर्मिक भक्ति, जीवदया और अनुकंपा के कार्यों में जोड़ें। इन सब कार्यों से ही आपका पुण्य invest होगा। और ये सब शेयर बाजार की नफे वाली कम्पनियाँ हैं। ये Index को कितना ऊपर लेकर जाएगी, दस रूपये के शेयर का 25, 50, 100, 200, 1000 कितना भाव आएगा? यह सब आपके हाथ में है। इस शेयर बाजार की तेजी भी आपके हाथ में है, और मन्दी भी। आप अपने शुभ भावों को जितना ऊपर ले जाएँगे, उतने ही इन शेयरों के भाव भी बढ़ते जाएँगे।
अब एक ऐसी बैंक की कल्पना कीजिए जिसमें आपका खाता है। यह बैंक खुद Balance update करती है, लेकिन खाता धारक को जानकारी नहीं देती। अनेक सौदे Cash में नहीं बल्कि Cheque से होते हैं। और यदि गलती से Overdraft हो गया तो बारह महीने की बमुशक्कत जेल होती है। अब खातेदार क्या करेगा? जैसे ही हाथ में पैसे होंगे, तुरन्त बैंक में जमा कर देगा, बेलेन्स घटना नहीं चाहिए।
कुदरत की बैंक का भी कुछ ऐसा ही है। हम सब इसके Account Holder हैं। हमारा दान, शील, तप, भाव – इन चारों में से हम जो भी धर्म करते हैं उससे हमारे पुण्य की Balance बढ़ती है और पूर्वभव के पुण्य की Balance उसमें Carry Forward होकर आती है।
इसके विपरीत, यदि संसार की मीठी नीन्द में सो गए, पुण्य का एक चैक Encash हो गया। सुबह उठे, एक और चैक फटा, Switch on किया तो लाइट चालू हुई (लाइट गई हुई नहीं थी, न ही फ्यूज उड़ा हुआ था), एक-एक चैक और Clear होता गया। शौच गए, और पेट साफ़ हुआ, नल चालू किया और पानी आ गया, इस प्रकार पूरे दिन जो भी कार्य किए, सबमें पुण्य के चैक का खर्च होता है, और पुण्य के Balance में से Debit होता रहता है।
अब यदि हमें पता करना है, कि पुण्य की कितनी Balance बची है, ताकि नया पुण्य किया जाये, तो कुदरत की यह बैंक हमें Balance नहीं बताती। किसी भोज में गए, थोड़ा ज्यादा खा लिया, Overdraft हो गया। अब आने वाले दिन पांच बार शौच जाना पड़ेगा, और तीन बार का भोजन भी छोड़ना पड़ेगा। यह एक प्रकार की सजा ही हुई। ये तो छोटे Overdraft हुए, इसलिए सजा भी छोटी हुई, यदि बड़ा Overdraft होता तो?
श्री कल्पसूत्र में एक कथा आती है, कुछ मुसाफिर एक जंगल से गुजर रहे थे, लेकिन जंगल उनके अनुमान से बड़ा निकला। गर्मी भी बहुत थी, इसलिए साथ में लिया हुआ पानी खत्म हो गया था। सबको प्यास लगी तो पानी की खोज में उन्हें एक जगह बहुत से पानी के चश्मे दिखाई दिये। पानी मिलने की उम्मीद में उन्होंने एक चश्मा फोड़ा, तो उसमें से मीठा, निर्मल और बहुत सारा पानी मिला। सबने अपनी जरूरत जितना पानी पी लिया। साथ में रखे घड़े आदि भी पूरे भर लिए। फिर भी उन्होंने दूसरा चश्मा फोड़ने का विचार किया।
एक वृद्ध और अनुभवी मुसाफिर बोला, कि हमें अपनी जरूरत जितना पानी मिल गया, तो फिर दूसरा चश्मा फोड़ने की क्या जरूरत है? लेकिन कुछ जोशीले युवक नहीं माने, उन्होंने दूसरा चश्मा भी फोड़ा। उसमें से चाँदी के सिक्के निकले, सबने बराबर भाग में सिक्के बाँट लिए। अब आप बताइए, क्या वो मुसाफिर आगे बढ़ेंगे?
“नहीं महाराज ! अब तो तीसरा चश्मा भी फोड़ने का मन होगा।”
“लेकिन क्यों? उद्देश्य तो सिर्फ प्यास बुझाने का था, उसकी जगह घड़े भी भर लिया, और तो और चाँदी भी मिल गई। अब और क्या चाहिए?”
⇒ “महाराज ! यदि तीसरे में से चाँदी और कोई अनमोल चीज मिल जाए, तो फोड़कर देखना चाहिए।”
⇒ “यदि दूसरे चश्मे से धूल-कंकर निकलते तो क्या तीसरा चश्मा फोड़ते?”
⇒ “बिलकुल नहीं ! धूल-मिट्टी के लिए फालतू में इतनी मेहनत क्यों करें?”
⇒ “यही जीवन का सूत्र है, लाभ ही लोभ को बढ़ाता है और लाभ से कभी सन्तोष नहीं होता।”
उस वृद्ध मुसाफिर के रोकने पर भी सभी उत्साहित युवकों ने तीसरा चश्मा भी फोड़ा। उसमें से स्वर्ण मुद्राएँ मिली। और सब ने आपस में बाँट ली। फिर तो वृद्ध मुसाफिर की पूरी अवगणना करते हुए उन्होंने चौथा चश्मा भी फोड़ा, उसमें से बहुमूल्य रत्न निकले, सबकी आँखें चमक उठी, और सब ने रत्न भी आपस में बाँट लिए।
अब पांचवां ढेर फोड़ने की तैयारी थी, उस वृद्ध ने बहुत समझाया कि तुम्हारी सात पीढियाँ खा सके इतना धन मिल चुका है, अब तो सन्तोष करो, लेकिन उसकी कोई सुनने वाला नहीं था।
‘अरे बूढ़े ! तुम्हारी तो ‘साठे बुद्धि नाठी’ हो चुकी है, तुम्हारी सुनते तो इतना भी नहीं मिलता। अपना पागलपन छोड़ो। आज हमारा पुण्य जोरों पर है, इसलिए हमें रोकने की कोशिश मत करो। जिन्दगी में ऐसे मौके रोज-रोज नहीं मिलते।’
वृद्ध मुसाफिर की ना-नकुर के बीच सबने पांचवां चश्मा फोड़ा, और Overdraft हुआ। पानी, चाँदी, स्वर्ण और रत्न लेने के चक्कर में एक के बाद एक पुण्य का चैक Encash होता गया
और पुण्य की Balance खत्म हो गई। वे सब Overdraft करने गए और, उन्हें भयंकर सजा हुई। उस चश्में से चण्डकौशिक सर्प जैसा एक दृष्टि विष सर्प निकला। उसने अपना विष छोड़ा, और सब लोग यमलोक पहुँच गए। उस वृद्ध ने सच्ची सलाह दी थी, इसलिए वनदेवता ने उसे बचाया और उचित स्थान पर छोड़ दिया।
कल्पसूत्र की यह कथा आज के समय भी उतनी ही प्रस्तुत है। अपने व्यापार-धन्धे में मेहनत करके बहुत पैसे कमाए। कटौती कर-कर के बचत की और पच्चीस वर्ष में पच्चीस लाख की पूंजी जमा की। अब शेयर मार्केट में Easy Earning दिखने लगी। पच्चीस सालों में नहीं कमाया, उतना चार-पांच सालों में कमाना। अपने धन्धे में इतना Bright Future नहीं दिख रहा था। इसलिए पच्चीस में से पांच निकाले, और शेयर में डाल दिये। पांच के सात हुए, फिर नया सौदा किया, सात के दस हुए तो जमा पूंजी में से दस और निकाले। अब बीस लाख से धन्धा किया। कुछ ही समय में बीस के पैंतीस हो गए, तो जमा पूंजी के बाकी के पांच भी शेयर में लगा दिए। दो-तीन साल में ही पूंजी बढ़कर 70 की हो गई।
अपने किसी खास बड़े-बुजुर्ग ने राय दी, कि अब शेयर मार्केट से बहार निकल जाओ। इस जिन्दगी में जितने चाहिए, उतने तो बन ही गए हैं। इसलिए सन्तोष कर ले…
जब इतनी आसान कमाई हो रही हो तो क्या ऐसी सलाह पसन्द आएगी? वह बुजुर्ग फिर से सलाह देता है कि मेहनत के 25 लाख तो निकाल ले। बाकी के पैसों से खेलना हो तो खेलते रहना।
तो आप कहते हैं, “अरे ! अभी तो मेरे सारे Stars अनुकूल चल रहे हैं, पुण्य जोरों पर है, ऐसा Chance रोज-रोज थोड़े ही मिलता है? अभी तो ये 70-75 भी कम पड़ रहे हैं, मैं तो डेढ़ करोड़ का धन्धा करने वाला हूँ।” और वास्तव में कर डाला।
पांच के सात, सात के दस… इस प्रकार हर Step पर पुण्य के चैक Encash होते गए, Balance घट रही थी। कुदरत की बैंक तो Balance बताती नहीं। 70 तक पहुँचते-पहुँचते Balance खत्म हो चुकी थी। अब साहस करके बड़ा सौदा किया, Overdraft हुआ। कर्म सत्ता ने सजा के रूप में ऐसा फटका मारा कि कमर टूट गई। पत्नी के गहने बिक गए, फ्लैट बिक गया, भाड़े के रूम में रहना पड़ रहा है। मन में भारी आघात और उदासी छाई हुई है।
यदि ऐसे दिन देखने की इच्छा नहीं है, तो लोभ पर ब्रेक मारने की जरूरत है, सन्तोष धारण करने की जरूरत है। और जब भी Chance मिले, पुण्य का Balance बढ़ाने की जरूरत है।
इसलिए जो लोग 3 – 4 घण्टे में ही जरूरत से ज्यादा कमा लेते हैं, उन्हें बचे हुए Time में नया धन्धा या भोग-विलास न करके धर्म बढ़ाना चाहिए। ऐसे उपदेश वास्तव में सार्थक हैं।
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