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पैसा याँ बुद्धि

Updated: Apr 7, 2024




एक बार टीचरने चिंटू को पूछा, 

“बोल! 1) पैसा, और 2) बुद्धि, इन दोनों में से यदि तुझे कोई एक चीज पसंद करके लेनी हो, तो तू कौन सी चीज लेगा?”

चिंटू, “टीचर मैं तो पैसा लूँगा।”

टीचर ने कहा, “मैं होता, तो बुद्धि माँगता।”

चिंटू, “टीचर! आपकी बात बराबर है। जिसके पास जिस चीज की कमी, वह व्यक्ति वही चीज मांगता है।” टीचर का मुँह गुस्से से लाल हो गया, और चिंटू वहाँ से भाग गया।

बुद्धिशाली लोग सुखी होते हैं, पर उनके सुख के पीछे कोई जादू नहीं होता है, बल्कि वह सुख बुद्धि की ही देन होती है। बुद्धि होने के कारण ही बुद्धि-शाली लोग:

  1. सभी निर्णय बहुत सोच समझकर और सही तरीके से करते हैं।

  2. व्यर्थ बहस में समय बर्बाद नहीं करते।

  3. ज्यादातर समय जीवन को ज्यादा जीवंत बनाने के लिए बिताते हैं।

  4. गलत नीति-नियमों को पकड़कर नहीं रखते।

  5. कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य रखकर रास्ता निकाल लेते हैं।

  6. अपनी बुद्धि को सद्बुद्धि में रूपांतरित करने का प्रयत्न करते हैं। 

मतलब यह, कि: 

दूसरों को निरंतर दुःख देते रहने के विचारों में व्यस्त रहने वाली बुद्धि, दुर्बुद्धि है।

अपने सुख के लिए अविरत चिंतित विचार-धारा, बुद्धि है, और

अपनी आत्मा के हित, और दूसरों के सुख की चिंता करने वाली बुद्धि, सद्बुद्धि है।

महात्मा गाँधी एक बार प्रवास पर निकले हुए थे। रेल्वे स्टेशन पर बहुत भीड़ होने के कारण ट्रेन तक पहुँचने में देर हो गई, और ट्रेन शुरू हो गई। आखिर में ट्रेन पकड़ तो ली, पर पहली ही सीढ़ी पर पैर रखते ही उनके पैर से एक चप्पल निकल कर गिर गई। अब ट्रेन छोड़कर नीचे भी नहीं उतर सकते थे, और एक चप्पल पहनी हुई भी अजीब लग रही थी। एक क्षण के लिए गाँधीजी के दिमाग में कोई विचार आया, और उन्होंने तुरंत दूसरे पैर की चप्पल भी निकाल कर फेंक दी।

यह दृश्य देख रहे एक भाई को आश्चर्य हुआ, और उसने गाँधीजी से कारण पूछा।

गाँधीजी ने हँसते हुए कहा, “भाई! मेरी एक चप्पल गिर गई थी। मैं उतरकर उसे वापस तो नहीं ले सकता था। और बची हुई एक चप्पल मेरे किसी भी काम की भी नहीं थी। घर जाकर मुझे उसे फेंकनी ही थी। इसलिए मैंने मेरी मानवता भरी बुद्धि से तुरंत निर्णय लिया कि, यदि चप्पल बाद में फेंकनी ही है तो अभी क्यों ना फेंक दूँ? जिससे किसी गरीब इंसान को दोनों चप्पल इकट्ठे मिले, तो वह उसका उपयोग कर सके।”

यह सुनकर वह भाई दंग रह गया।

अपने नुकसान से भी दूसरों का फायदा करवा दे, इसे सद्बुद्धि कहते हैं!

“श्रीमंत व्यक्ति अपने पैसों से बुद्धिशाली 

नहीं बन सकता है। 

पर बुद्धिशाली व्यक्ति अपनी सद्बुद्धि से पैसों से 

और हृदय से अवश्य श्रीमंत बन सकता है।”

चलिए संकल्प करते हैं कि,

हम दुर्बुद्धि से दूर रहेंगे, और 

हमारी बुद्धि को सद्बुद्धि में रूपांतरित करेंगे।

उसके लिए निःस्वार्थ भाव से दूसरों के सुख की, 

और हमारी आत्मा के हित की चिंता करेंगे।

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