प्रभु महावीर माता त्रिशला रानी के गर्भावास से, शरीर से
पूर्ण निष्पन्न होकर निष्क्रमण प्राप्त करने को हैं,
जन्म होने को है…..
और पूरा ब्रह्मांड सुखद ऊर्जाओं से परिव्याप्त
हो रहा है,
चन्द्र की निर्मल ज्योत्स्नाओं से सृष्टि पर अमृत
बरस रहा है,
अकारण आनंद का अखंड-पट आकाश में व्याप्त
हो रहा है,
चारों गतियों के जीवों का हृदय आह्लाद के स्पर्श से
रोमांचित हो रहा है।
प्रकृति का यह सब उत्सव स्वयंभू हो रहा था,
क्योंकि स्वयं में स्वयं ढल जाने वाले
प्रभु का पृथ्वी पर परम अवतरण हो रहा था।
मध्यरात्रि में जब जन्म हो रहा था
तब प्रभु जान रहे थे कि शरीर बाहर आ रहा है,
मैं नहीं;
शरीर के जन्म को प्रभु ने उस अस्तित्व पर रह कर देखा,
जो शरीर नहीं था, जो मन भी नहीं था,
जो संवेदनाएँ भी नहीं थीं,
जिधर जन्म या मृत्यु कुछ नहीं है सिर्फ अखंड जीवन है।
जन्म लेता हुआ देह औरों के लिए आज तक अदृश्य था,
अब दृश्य बनने जा रहा था,
पर प्रभु के लिए तो शरीर जब गर्भ में बन रहा था,
तब भी दृश्य था,
बन जाने के बाद भी दृश्य ही रहा,
और बनकर बाहर आता हुआ भी शरीर दृश्य से अतिरिक्त कुछ नहीं था,
प्रभु केवल दृष्टा रहे…
दृष्टा हुए बिना संयोग दृश्य रूप में भासित
नहीं होते,
संयोग को संबंध के रूप में महसूस नहीं करते,
मात्र दृश्य के रूप में ही जानना
शुद्ध-दृष्टाभाव के बिना संभव नहीं है।
शरीर में जन्म होने की प्रक्रिया चल रही थी,
और प्रभु में वह प्रक्रिया ज्ञात होने की प्रक्रिया
चल रही थी,
दोनों स्वतंत्र रूप से भिन्न हैं,
दोनों के बीच कोई मिलावट नहीं है,
जब मिलावट ही नहीं हो, तो ‘दो’ भी कहाँ बचेगा?
‘दो’ का अस्तित्व मिलावट ही तो है,
यहां
जिसका जन्म हो रहा है उसमें वो नहीं है,
शरीर का जन्म हो रहा है, किन्तु शरीर में प्रभु नहीं है,
शरीर और आत्मा का मिलन है, मिलावट नहीं,
स्पर्श है, तादात्म्य नहीं,
‘दो’ जब एक-रूप में प्रतीत होते हैं तब वो मिलावट है,
तब वो तादात्म्य है।
पर दो जब दो-रूप में ही प्रतीत होते हैं तब वो मिलावट है
तब वो तादात्म्य है,
पर दो जब दो-रूप में ही प्रतीत होते हैं तब वो सिर्फ
मिलन ही है, स्पर्श है…
‘दो’ का एक न होना, मतलब एक का एक होना।
प्रभु ‘दो’ से परे हैं,
प्रभु का शरीर दो से (माता-पिता से) एक हुआ,
लेकिन प्रभु शरीर से एक नहीं हुए,
क्योंकि स्वतंत्र रूप से एक होने की ज्वलंत अनुभूति
प्रभु की प्रकट थी,
अपने एकत्व को संजोये हुए आत्मा का देह के
साथ आविर्भूत होना, वही है जन्म कल्याणक…
Comentários