प्रभु गर्भ में भी पूर्णजागृत थे।
गर्भ सृजन का स्थान है, सृजन शरीर का होता है।
प्रभु सृजन से परे हैं।
जो नजदीक है, इतना पास कि आप उसे पास भी नहीं कह पायेंगे,
कह देंगे की यह तो मैं ही हूँ, इतना पास,
पास से परे होना ही जागृति है।
पास में ढल जाने से अपनापन मिश्रित हो जाता है।
जो पास में है वो हम बन जाते हैं, और जो हम हैं,
वो पास में हो जाता है।
ज्ञानी इसी अवस्था को मूढ़ता / अज्ञानता / मिथ्यात्व जैसे
शब्दों से सूचित करते हैं।
त्रिशला रानी की कोख में जो जीव था,
वे परमात्मा इसलिए थे क्योंकि वे पूर्णजागृत थे।
उनकी पूर्णजागृति इतनी प्रचंड थी,
जो सहस्त्रों को जगाने वाली थी।
उस जागृति का सम्मान था कि जिसके कारण
इन्द्रों ने भी स्तुति की।
भक्ति से भरे भावों की अंजलि समर्पित की।
जिस दिये में ज्योति जगमगाती हो,
उस दिये का मूल्य अमूल्य हो जाता है।
जिस देह में पूर्णजागृति से प्रदीप्त परमात्मतत्त्व हो,
उस देह के स्वागत में प्रकृति अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन करती है।
क्योंकि वो अनुपम हैं, अनुत्तर हैं, अलौकिक हैं।
धन-धान्य, स्वर्ण, मणि, यश आदि सभी शुभतत्त्वों की
वृद्धि प्रभु के गर्भ में आने से प्रारंभ हो गई थी।
चारों ओर अप्रकट बालक की चर्चा हो रही थी।
पर प्रभु ने कभी भी ऐसा नहीं माना कि
ये सब मेरे कारण हो रहा है। जो हो रहा है वह मैं नहीं हूँ।
मैं तो सिर्फ मैं ही हूँ
प्रभु का दर्शन निर्मलतम था।
मैं के साथ और किसी का जुड़ना ही मलिनदर्शन है।
जब हम ‘मैं’ से अपरिचित होते हैं, तभी तो
दूसरी चीज को ‘मैं’ बनाकर काम चला लेते हैं।
वास्तविकता तो यह है कि, ‘मैं’ बनाया
इसलिए काम खड़ा हुआ।
असली ‘मैं’ को कुछ काम ही नहीं, कुछ प्रयोजन ही नहीं है,
पूर्ण है वो।
प्रयोजनशून्यता ही पूर्णता है।
जब तक वो नहीं मिलती तब तक
एक ही प्रयोजन हो, कि मैं प्रयोजनशून्य हो जाऊँ।
माता त्रिशला रानी के मन में ढेरों प्रयोजन हैं,
गर्भ में रहे हुए जीव से।
लेकिन प्रभु को किसी से कुछ प्रयोजन नहीं है।
अब सारे प्रयोजन एवं आयोजन कर्म के उदय एवं समयानुसार अवस्थाएँ देख लेंगे।
प्रभु तो उनको भी सिर्फ देख रहे हैं।
और वह भी बिना प्रयोजन, अर्थात् स्वभाव से।
स्वभाव निष्प्रयोजन होता है।
अग्नि में उष्णता, जल में शीतलता,
आकाश में अलिप्तता क्यों है?
कहना पड़ेगा, यूँ ही है, अर्थात् स्वभाव का कोई कारण नहीं है।
वैसे ही ज्ञान वह स्वभाव है।
स्वभाव ही मैं हूँ।
प्रभु इस शुद्ध निजत्व अनुभव में लीन थे।
और बाहर जन्म होने की प्रतीक्षा हो रही थी।
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