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फर्ज अदा करें वरना कर्ज चढ़ जाएगा।

Updated: Apr 8




पिछले लेख के अंतर्गत आखिर में यह प्रश्न किया गया था कि नौकरी करने वालों के लिए नीति और प्रामाणिकता क्या होती है?

इसका उत्तर यह है कि उसको धन की चोरी, समय की चोरी, काम चोरी, दिल चोरी और जानकारी (Data) की चोरी, आदि इस प्रकार की चोरी को टालना चाहिये। इनको हम क्रमशः समझेंगे।

धन की चोरी : नौकरों के द्वारा धन की चोरी अनेक प्रकार से की जाती है। जैसे कि, सेठ के गल्ले आदि से पैसे चुराना। दुकान के माल-सामान के लेन-देन, बेचने में अपना कमीशन रखना। 

सेठ की कंपनी के नाम से प्रवास करते समय सेकंड क्लास या बस द्वारा प्रवास करने पर भी, फर्स्ट क्लास का या टैक्सी का किराया लेना, सामान्य खर्चे से खाने पर भी फाईव स्टार होटल का चार्ज लेना। कंपनी की ओर से Travel Allowance, Stay Allowance, Food Allowance, House Rent इत्यादि जो भी लाभ मिलते हैं, उसमें हकीकत से ज्यादा रकम लेना आदि। उज्ज्वल भविष्य चाहने वाले को इन सभी धन की चोरी को टालना चाहिये। 

समय की चोरी : नौकरी का जो टाइम तय किया गया हो, उससे देरी से पहुँचना, जल्दी निकल जाना, Working Hours में मोबाइल पर बातें करते रहना, ऑफिस टाइम में बाहर चक्कर मारना या घर के काम निपटाना, खुद का कोई दूसरा Side Business हो तो उसका काम करना, ऐसा सब करके ऑफिस के कामों को टाल देना, और फिर ऑफिस का काम पूरा करने के लिए ओवरटाइम करके उसका ज्यादा पगार लेना, अनावश्यक छुट्टियाँ लेना आदि। भविष्य दरिद्रतामय न बनाना हो तो ऐसी सारी समय चोरी से दूर रहना चाहिये।

कामचोरी : जितने समय में जितना काम करना संभव हो, उससे कम काम करना, काम ना करने के तरह-तरह के बहाने बनाना, अपने हिस्से का काम दूसरों पर डाल देना, ऊपर बताया वैसे ऑफिस के काम के समय पर अपने काम करना, ऑफिस के काम से बाहर जाना हो और दो घंटे में काम पूरा हो जाने पर भी तीन घंटे बताकर एक घंटा ऑफिस का काम कम करना। भविष्य में Employee ना रहकर Employer बनना हो तो ऐसी कामचोरी नहीं करनी चाहिये।

≈  दिलचोरी : दिल से काम ना करना, काम सही से ना करना, ऊपर-ऊपर से जैसे-तैसे काम करना, अपनी काबिलियत का पूरा उपयोग ना करना, काम को अपना समझकर ना करना आदि सब दिलचोरी है। यह भी अनीति का ही प्रकार होने से, उसे टालना चाहिये। 

≈  जानकारी की चोरी : आपकी कंपनी में किस तरह माल बनता है? फलाना Product के घटक (Material) क्या है? आपकी कंपनी कहाँ से माल लेती है? कहाँ माल सप्लाई करती है? वगैरह गुप्त जानकारी को किसी अन्य व्यापारी द्वारा रूपये देने की लालच दिखाने पर उसे दे देना, यह जानकारी की चोरी है। यह चोरी भी प्रबल अंतराय कर्म खड़े करती है, इसलिए यह त्याज्य है। ऐसी अन्य किसी भी तरह की चोरी हो तो उसे भी त्याज्य समझना चाहिये।

महामंत्री वस्तुपाल-तेजपाल की बात आती है।

वे दोनों भाई अपनी प्रज्ञा और प्रतिभा के अनुरूप नौकरी की तलाश में निकले। एक राजा ने अपनी राज्यसभा में बुलवाया, और पान का बीड़ा देकर बात प्रारंभ की।

फिर इन दोनों की कार्यकुशलता और कार्यनिष्ठा को जानकर खुश हुआ। जब पगार की बात आयी, तो वे बोले, ‘1-1 लाख सैनिकों को जितना पगार देते हैं, उतना हम दोनों को देना होगा, यानी दो लाख सैनिकों के जितना पगार!’ राजा का दिल नहीं माना।

फिर दूसरे राज्य में गये। वहाँ के राजा को इन दोनों भाइयों को इतना पगार देने में फायदा दिखा, इसलिए दोनों को रख लिया। ‘हमारी वफादारी प्रथम देव, फिर गुरु फिर धर्म के प्रति रहेगी, और चौथे क्रम पर आपके प्रति रहेगी।’ राजा समझता था कि, जो अपने देव-गुरु-धर्म के वफादार रहेगा वह मेरा भी वफादार ही रहेगा। जो अपने देव आदि के प्रति भी बेवफा बन सकता है, वो तो किसके प्रति बेवफाई नहीं करेगा? यह शर्त कबूल करके भी राजा ने दोनों को रख लिया। 

एक-एक दिन करते करते छः महीने बीत गये। राजा ने अभी भी कोई काम बताया नहीं था। इसलिए दोनों भाइयों ने राजा को कहा, हमें काम दीजिये, बिना काम के पगार लेना तो बहुत बड़ी अनीति है, ऐसा पगार हमें हजम नहीं होगा, और हमारे भविष्य को तो यह बिलकुल अंधकारमय ही बना देगा। यह तो कामचोरी कहलायेगी, जो हमें कबूल नहीं है।

तब राजा ने कहा, आपके योग्य काम ही आपको बता सकते हैं। मामूली काम आपको नहीं सौंप सकते, इसलिए आज तक काम नहीं बताया है। पर अब ऐसा काम उपस्थित हुआ है, जो आपको बताता हूँ। फलाने राजा पर विजय प्राप्त करना है। 

राजा ने उसी राजा का नाम दिया, जिनके पास वस्तुपाल-तेजपाल पहले गये थे। दोनों थोड़ी सेना लेकर निकल पड़े। राजा को हराया, पर मारा नहीं, और कहा कि, ‘आपके पान का बीड़ा खाया था। इसलिए आपको नहीं मारेंगे। पर आपका दो लाख सैनिकों का लश्कर कहाँ गया? उन्होंने आपको जिताया नहीं?

बात यह है ! नियत किया गया पगार लेना, पर नियत किया गया काम ना करना, यह भी एक प्रकार की चोरी है, अनीति है। 

मुझे पूना के एक एन्जीनीयर युवक का किस्सा याद आता है।

कंपनी के काम से उसे बार-बार अलग-अलग स्थानों पर जाना होता था। कंपनी का Food Allowance देने का नियम था, पर वह पक्का जैन श्रावक था। घर से ही खाना लेकर जाता था, बाहर का कुछ भी नहीं खाता था। इसलिए वह कंपनी से Food Allowance का एक भी पैसा नहीं लेता था। उसके ऊपरी अधिकारी भी उसको कहते थे कि, यह तो तेरे हक का पैसा है, तू क्यों नहीं लेता ? पर उसका जवाब स्पष्ट होता था, भोजन के लिए मैंने खर्चा किया ही नहीं है तो उस खर्चे का पैसा कैसे ले सकता हूँ? साल के तकरीबन दो लाख रुपये वह छोड़ देता था। 

एक अन्य पार्टी ने उसे ऑफर की, कि तेरी कंपनी का जो Product तू संभालता है, उसका मेन्यूफेक्चरिंग युनिट हम शुरू करने वाले हैं। Investment हमारा होगा, तुझे हफ्ते में दो-तीन घंटे का Guidance देना होगा। तेरे हिस्से के, साल में सात से आठ लाख मिलेंगे। 

पर, इस युवा का सत्व! ‘यह तो मेरी कंपनी के साथ Cheating है’ ऐसा कहकर उसने इस ऑफर को ठुकरा दिया। याद रहे कि उसने नया घर खरीदा था, और बैंक के होम लोन के हफ्ते अभी तक पूरे नहीं हुए थे। लेकिन फिर भी ऐसा स्वाभिमान ? 

लगभग 40 वर्ष पहले हमारा चातुर्मास कच्छ-भुज में था। उस समय वहाँ की देना बैंक की शाखा के Next to Manager की पोस्ट पर हमारे एक महात्मा के सगे भाई थे। उस समय उनकी पगार 4,000 रूपये की थी। उनकी पोस्ट के हिसाब से विशेष जाँच किए बिना भी एक लाख रुपये तक की लोन मंजूर करने का उनको अधिकार था। कोई ऐसी कमजोर और अधूरे दस्तावेज वाला व्यक्ति यदि ऐसा ऑफर देता कि, हमारी लाख रुपये की लोन पास कर दो तो, आपको 4-5 हजार रूपये दे देंगे। तो ‘यह बैंक के साथ धोखाधड़ी है’ ऐसा कहकर वे हिम्मत से ऐसी ऑफरों को नकार देते थे। वे कहते थे कि, ‘बैंक मुझे बहुत कुछ देती है। फिर मेरे चार- पाँच हजार रूपयों के लिए बैंक के लाख रूपये डूब जाये, ऐसा करने की मुझे क्या जरूरत है?’

कुदरत ने उनकी प्रामाणिकता की कैसी कदर की? एक बार उन्होंने मुझसे कहा कि, ‘मेरे संतोष का प्रतिबिम्ब मेरे परिवार पर पूरी तरह से पड़ा है। मेरी श्राविका साड़ी या किसी भी चीज की कभी भी माँग नहीं करती। मेरे संतानों की भी, कभी भी कोई Demand नहीं होती है। मनोरंजन की या स्पोर्ट्स की चीजों की भी नहीं, इसीलिए, मेरी तो 4,000 में से भी अच्छी खासी बचत हो जाती है। 

पैसे से ज्यादा प्रामाणिकता को मूल्यवान समझने वाले ऐसे अन्य भी अनेक सत्वशाली, पुण्यशाली नरवीर नजर के सामने हैं। 

उज्ज्वल भविष्य की चाहना करने वालों को अनीति का लालच छोड़ देना चाहिये। श्री संतिकरं स्तोत्र के रचयिता श्री मुनिसुंदरसूरि महाराजा ने श्री अध्यात्मकल्पद्रुम ग्रंथ में हम साधुओं के लिए एक बात लिखी है, जिसका हम विचार करेंगे। इस ग्रंथ के 13वे यति शिक्षोपदेशाधिकार में उन्होंने बहुत सख्त बातें लिखी है। संयम का स्वीकार करने के बाद, शक्ति होने पर भी, जो स्वाध्याय, तप, त्याग, वैयावच्च, संयमपालन आदि में प्रमादी बन जाते हैं, ज्यादा गड़बड़ी करते हैं, ऐसे शिथिल साधु को संबोधित करते हुए उन्होंने लिखा है कि, यहाँ पर अप्रमाद की साधना करने से मिलने वाला सुख समुद्र के जितना है। प्रमादजन्य सुख जलबिंदु के समान है, पर प्रमादजन्य कर्मो के कारण परलोक में आने वाला दुःख समुद्र जितना है। तुझे भरूच का भैंसा बनना पड़ेगा, तेली के यहाँ तेल निकालने वाला बैल बनना पड़ेगा, आदि।

पूज्यश्री बताते हैं कि, श्रावक, या तेरे सांसारिक चाचा, मामा आदि किसी भी तरह के संबंध के बिना तेरी गोचरी, पानी, वसति, वस्त्र, पात्रा, दवाई, वंदनादि द्वारा जो भक्ति करते हैं, वह एकमात्र तेरे संयम के नाम पर करते हैं। यदि तू उत्तम संयम पालन करेगा, तो तू तर जायेगा, परंतु संयम के नाम पर ये सब लेने के बाद, यदि संयमपालन में तूने गड़बड़ी की तो यह सब तेरे सर पर कर्ज बन जाने वाला है। पठानी ब्याज के साथ यह सब चुकाने के लिए तुझे भरूच का भैंसा बनना पड़ेगा।

नौकरी करने वाले हर किसी को ये बातें बराबर समझ लेनी चाहिए। धनचोरी, कामचोरी आदि करने से यहाँ मिलने वाला सुख जलबिंदु के समान है। जबकि यह सब छोड़कर पगार के योग्य काम करके वफादारी की नीति के प्रभाव से परलोक में मिलने वाला सुख तेरी कल्पना के बाहर होगा। धनचोरी आदि के कारण यहाँ मिलने वाले बूंद के समान सुख के सामने, उन सारी अनीतियाों से किए गये कर्मों के कारण परलोक में मिलने वाला दुःख तेरी कल्पना के बाहर होगा।

तय किए गए वेतन आदि के बदले में, जितना काम कर देने का तय किया गया हो, उतने काम को नजर में रखकर सेठ या कंपनी तुझे पगार आदि देती है। पर वह काम करने में यदि तू गड़बड़ करता है तो, पगार के बदले में योग्य काम रूप, जरूरी Return तू नहीं दे रहा है। इसलिए यह अनीति है। तेरे द्वारा दिये हुए काम रूपी Return से जितना पगार आदि तूने ज्यादा लिया है, यह सब तेरे सर पर कर्ज रूप बन जाता है, जो भविष्य में पठानी ब्याज के साथ – आने, पाई और सिक्के सहित तुझसे सब कुछ वसूल किया जाएगा। उसके लिए शायद तुझे गुलामी प्रथा के गुलाम भी बनना पड़ सकता है। तेरे पास से काली मजदूरी कराने के बाद एक पैसा भी ना देकर, पूर्व में (इस जन्म में) तेरे द्वारा की हुई गड़बड़ी की वसूली की जाएगी, या तेली के यहाँ बैल बनायेंगे, Nothing is Impossible.

वर्तमान में ऐसी सारी अवस्थाओं में से गुजर रहे दुःखी जीवों को देखकर, हर एक विचारक को हर एक प्रकार की अनीति को टालना चाहिए। फिर चाहे वह व्यापारी हो या चाहे नौकरशाह हो। 

इस विचार को ज्यादा व्यापक फलक से विस्तृत करेंगे तो :

मान लो कि आप श्री संघ के ट्रस्टी हैं, श्री संघ आपको ट्रस्टी के रूप में मान-सम्मान देता है, हर जगह आपको आगे करता है। हर जगह आपका नाम बिना चढ़ावे के लिखता है। यह सब रुतबा पाकर यदि आप ट्रस्टी के पद की अपनी फर्ज अदा ना करते हो तो, यह सब आपके सिर पर कर्ज के रूप में चढ़ेगा, और भविष्य में आने, पाई और सिक्के के साथ आपको सब कुछ चुकाना पड़ेगा।

सुज्ञ – बुद्धिमान व्यक्ति को यह बात हर चीजों में समझनी चाहिए।

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