ब्रह्मचर्य का पूर्ण सत्य
- Muni Shri Tirthbodhi Vijayji Maharaj Saheb
- Apr 15, 2021
- 3 min read
Updated: Apr 7, 2024

Hello Friends,
आज हमें बड़े ही पेचीदे मामले पर वार्तालाप करने जा रहे हैं।
भगवान बनने की यात्रा पर निकले हैं हम, और हमारा अगला, यानी बारहवां पड़ाव है ब्रह्मचर्य।
शब्दों का उच्चारण तो भारी है ही, साथ ही इसके आचरण में अच्छे-अच्छों के पानी उतर जाते हैं।
आज समाज स्वतंत्र है, सेक्स या जातीय चेष्टा एवं जातीय जीवन के बारे में बड़े खुलेपन से लिखा जाता है, बोला जाता है, और तो और मन चाहे वैसे जिया भी जाता है।
वासना की तृप्ति को सुख का एवं जीवन का आनंददायक अविभाज्य अंग माना जाता है। विजातीय के प्रति आकर्षण से लेकर संभोग तक के सभी मुद्दों के बारे में सभी प्रकार के प्रसार माध्यमों में ढेर सारी जानकारी उपलब्ध है।
लोग यूँ कहते हैं कि अच्छे इन्सान बनो, फिर तुम्हारा व्यक्तिगत जीवन (प्राइवेट लाइफ) कैसा है-कैसा नहीं, उससे क्या लेना देना? तुम्हारी पर्सनल लाइफ कैसे जीनी वह तुम्हारे ऊपर निर्भर है, पर समाज के लिए हमेशा उपयोगी बनते रहो। हमेशा औरों का सम्मान और सहायता करते रहो, बस यही तो अच्छे इन्सान की पहचान है।
ऐसा मानना आधा सत्य है। पूर्ण सत्य तो यही है कि, वास्तव में अच्छे इन्सान बनना हो, तो निजी जीवन में भी पूर्णत: सुधार की आवश्यकता है। पहले खुद की नजरों में अच्छे बनो, फिर समाज की नजरों में अच्छे बनना। आदमी जब स्वच्छंद बनता है, तब भले ही वह ऐसा मानता है कि मैं तो बहुत बोल्ड बन गया, मैं चाहे ये करूँ, मैं चाहे वो करूँ, मेरी मरजी। परंतु वास्तव में वह अपनी खुद की ही नजरों में गिरता जाता है। किसी को पूछने की जरूरत नहीं होगी, उसकी खुद की अंतरात्मा ही उसे रोकती है, टोकती है, उसको भीतर से ही चुभन होती है, अंदर ही अंदर घुटन सी होती है। उसको स्वयं ही यह मालूम हो जाता है कि वह किसी गलत रास्ते पर चल रहा है।
युवा उम्र में विधवा हो चुकी अपनी ही पुत्रवधू को सुख देने के लिए उसके साथ अनैतिक संबंध रखे, (भौचक्के मत रह जाना, यह सत्य घटना है) और फिर ऐसा कहे, कि मैंने उसे सुख दिया, और मुझे भी सुख मिला; तो मानना चाहिए कि वह अपने पाप को ढकने के लिए वह असत्य तर्क का सहारा ले रहा है। उसे और किसी को पूछने की कुछ जरूरत ही कहाँ है, अपनी ही अंतरात्मा को पूछो, मैंने सही किया या गलत ? उसकी अंतरात्मा बोलेगी, तू बहुत बड़ा पापी है।
मित्रों! ब्रह्मचर्य का क्या मतलब है?
ब्रह्म का अर्थ है ज्ञान, चर्य का अर्थ है आचरण। हमेशा ज्ञान में मग्न रहना ही ब्रह्मचर्य है। ना, किसी से भागने की जरूरत नहीं है। पर जो अशुचि है, काला मैल है, उससे ऊपर उठकर, जो श्वेत धवल है, उसमें मन को मग्न बना देना ही ब्रह्मचर्य है।
एक युवा लड़का अपने बूढ़े माँ-बाप की मन लगाकर सेवा-चाकरी करता है, यह उसका ब्रह्मचर्य ही है। एक साधु भगवंत अपने बड़े उपकारी गुरु भगवन्तों की वेयावच्च करने में मग्न हो गये हैं, यह उनका ब्रह्मचर्य ही है। शक्तियों को गलत राह पर दौड़ने से थामे रखना, रोककर रखना मात्र ही ब्रह्मचर्य नहीं है, परन्तु शक्तियों को सही मार्ग पर ज्वार की भांति फैला देना, बिखेर देना सच्चा ब्रह्मचर्य कहा जाता है।
तो ए मेरे युवा दोस्तों! अय संसार का भविष्य!
आप अपनी शक्तियों को फिजूल चीजों के पीछे बहने मत दो, रोक लो उन्हें, जवानी के जोश को फालतू बह जाने मत दो, उसके कण-कण में से आत्म संतृप्ति को पा लो, ऐसा करो कि जीवन सफल बन जाए। आप समझदार हैं। मैंने इस लेख में इशारे किए हैं। ब्रह्मचर्य क्या है वह आप जान गये होंगे। अब आप हैं, और आपकी अंतरात्मा है।
ब्रह्मचर्य पद
(तर्ज : मेरे नैना)
व्रत में व्रत शिरमोर कहा है, ब्रह्मचर्य महान, व्रतधारी को प्रणाम…
देव भी जिनके पैरों की, रज माथे पर धरते; साधुजन भी हाथ जोड़ के, जिन की स्तवना करते; प्रकृति में जिनके संकल्पों के पड़े हैं निशान, कर उनका सम्मान… 1।।
सागर बाहुबल से तैरा, वह भी कहा आसान; और मेरूपर्वत पर चढ़ना, वह भी सरल सा काम; इस व्रत का पालन दुष्करतम, ऐसा शास्त्र का ज्ञान,
गुरुओं का ये बयान… 2।।
सेठ विजय विजया सेठानी, श्री स्थूलिभद्र स्वामी; कालखंड पर अमर रहेगी, व्रतधारी की कहानी; व्रतपालन जो शुद्ध करे, वो तीर्थंकर पद मान, आगम करे प्रमाण… 3।।
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