एक बार के लिए मानिए कि आपकी वार्षिक आमदनी 10 लाख रूपये है, और पूरे वर्ष का कुल खर्च 8 लाख रूपये है। मतलब 2 लाख रूपये की शुद्ध बचत है। पिछले अनेक वर्षों से यही सिल-सिला चल रहा है। तो क्या आप मुझे बताएँगे, कि सारा खर्च निकल गया, एक पैसे का भी पेमेंट बाकी नहीं है, ये दो लाख Extra ही है, तो इसे गटर में डालो न !! क्या आपने ऐसा कभी किया है ?
‘नहीं’
‘क्यों? सारे Extra ही तो है, डाल दो गटर में।’
‘महाराज साहेब ! पैसे हैं। गटर में ही डालने होते, तो ज्यादा कमाते ही क्यों? इसकी तो बचत करनी होती है। सुरक्षित रूप से बढ़ता रहे, इस प्रकार Investment करना होता है, ताकी भविष्य में काम आए।’
‘मैं भी आपसे यही कहना चाहता हूँ, कि दिन के 24 में से 22 घण्टे तो Occupied हैं, दो घण्टे का Extra Time है, ऊपर से पूरी दुनिया तो यही कहती है कि Time is more than money. यदि Extra money को गटर में नहीं डाल सकते तो Extra time को गटर में कैसे डाल सकते हैं? हालाँकि Time को बचाकर इकट्ठा तो नहीं किया जा सकता, इसलिए हमारे पास दो ही विकल्प बचते हैं, या तो Invest करें, या गटर में डालें।’
‘साहेब जी ! हमारे यहाँ तीन शब्द हैं, दुरूपयोग, उपयोग और सदुपयोग। Extra वाले दो घण्टे हम TV या Mobile में सीरियल या मूवी देखकर बिताते हैं। भले ही यह सदुपयोग नहीं है, पर दुरूपयोग भी तो नहीं है। मात्र उपयोग है, क्योंकि हमें इससे मनोरंजन मिलता है। इसलिए इस Extra Time को हम न तो Invest कर रहे हैं, न ही गटर में डाल रहे हैं, बस खर्च कर रहे हैं – क्या ऐसा नहीं कह सकते ?’
‘देखिए भाग्यशाली ! रोटी, कपड़ा और मकान आदि जीवन की आवश्यक वस्तुओं में जो पैसा जाए, उसे खर्च या उपयोग कहते हैं।’
‘महाराज ! आप तो संयमी हैं, त्यागी हैं लेकिन हम सांसारिक हैं, हमारे लिए तो मनोरंजन भी जीवन-आवश्यक वस्तु ही हुई न ?’
‘पुण्यशाली ! मनोरंजन (आनन्द) तो हमारे लिए भी आवश्यक है। किन्तु यह आनन्द कैसे प्राप्त करना? सूअर विष्ठा में लोटकर आनन्द प्राप्त करता है, राजहंस मोती का चारा खाकर, मानसरोवर में सैर करके आनन्द प्राप्त करता है।’
‘महाराज साहेब ! TV, मोबाइल आदि मानसरोवर है या गटर ?’
‘आप ही बोलो ! शराब के नशे में चूर व्यक्ति गटर में गिरेगा या मानसरोवर में ?’
‘लेकिन साहेब ! शराब तो व्यसन है, और व्यसन तो गटर ही होती है।’
‘शराब को व्यसन क्यों कहते हैं? इसमें तो शराबी को और कहीं से न मिले, ऐसा आनन्द मिलता है। क्या इस आनन्द को जीवन-आवश्यक आनन्द नहीं कह सकते ?’
‘महाराज साहेब, शराब इसलिए व्यसन है, क्योंकि :
(a) शराब की तलब लगने पर शराबी को शराब के अलावा और कुछ नहीं दिखता,
(b) जिस कार्य से बहुत लाभ हो सकता हो, ऐसे महत्त्वपूर्ण कार्य को दरकिनार करके वह शराब की ओर भागता है,
(c) उस समय यदि उसे कोई शराब पीने से मना करे तो वे सब उसे अपने शत्रु लगते हैं, उसका बस चले तो वह उनके साथ मार-पीट के लिए भी तैयार हो जाए,
(d) शराबी जग रहा हो और घर में चोर घुसकर चोरी कर ले, तो उसे कुछ पता नहीं चलता, वह चोरी होते हुए रोक नहीं सकता,
(e) शराबी घर में आए मेहमान का योग्य सत्कार नहीं कर सकता,
(f) शराब से समय का, आरोग्य का, सम्पत्ति का और परिवार का नाश होता है,
उपरोक्त अनेक कारणों से शराब को व्यसन कहते हैं।’
‘देखिए भाग्यशाली! उपरोक्त कारणों से तो मोबाइल व्यसन ही नहीं महाव्यसन है। आपकी बताई छः की छः बातें मोबाइल पर अधिक असरदार तरीके से लागू होती है। यह पढ़कर देखिए, फिर कहिए कि इसे महाव्यसन कहें कि नहीं:
(a) आदमी खाली समय में मोबाइल में यू-ट्यूब और गूगल आदि पर कुछ न कुछ Search करता है। इसमें By Chance कोई अश्लील site खुल जाए तो 99.99% chance है कि उन्हें यह देखना पसन्द आएगा। क्योंकि अनादिकाल के संस्कार वह लेकर आया है। पसन्द आया, मतलब अब वह उसे दूसरी, तीसरी और चौथी बार देखने का मन होगा ही। और यह बात कब व्यसन बन जाएगी, यह पता भी नहीं चलेगा। फिर बस वही तलब बार-बार उठेगी, कि एकान्त मिले, और देखूँ।
इंस्टाग्राम आदि पर कोई अपरिचित वि-जातीय से परिचय हो जाए, फिर तो बस उसके साथ ही सम्पर्क करते रहने का व्यसन इतना गाढ़ हो जाता है, कि रात के एक बजे भी मोबाइल बन्द करने का मन नहीं होता।
PUBG आदि गेम के व्यसन तो जग-जाहिर है।
खाना खाते समय बालक इधर-उधर ना दौड़े इसलिए उसके हाथ में मोबाइल पकड़ा दिया जाता है। और देखते-देखते उस बालक को भी यह व्यसन हो जाता है। अब बिना मोबाइल के वह खाना भी नहीं खा पाता।
(b) दसवीं या बारहवीं कक्षा की पढ़ाई हो, तो भी Students मोबाइल नहीं छोड़ सकता। ऐसा ही अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यों में होता है। TV पर IPL की Live Telecast हो रही मैच देखने में ऑफिस आदि के कितने कार्य ठप्प हो जाते हैं ? यह बात किसे पता नहीं है।
(c) PUBG खेल रहे बेटे को यदि माँ कोई काम के लिए कहे, तो उसे अपनी माँ भी दुश्मन जैसी लगने लगती है। दसवीं में पढ़ने वाली लड़की को मोबाइल में टाइम न बिगाड़ने के लिए पिता बार-बार कह रहा था, तो ‘प्यार की नदी’ कहलाने वाली बेटी ने पिता की हत्या कर दी ऐसी घटनाएँ भी बन चुकी है।
(d) TV और मोबाइल में मशगूल व्यक्ति न तो घर में हो रही चोरी रोक सकता है, न ही उचित अतिथि सत्कार कर सकता है, यह बात बहुत लोगों को अनुभवसिद्ध है।
(f) TV और मोबाइल में घण्टों का समय बर्बाद होता है। Online Education से बच्चों को आरोग्य की समस्याएँ होने लगी है। मैदान की खुली हवाओं में खेलना बन्द हो गया होने के कारण अनेक लोग स्वास्थ्य-लाभ से वंचित हैं। देर रात तक जगने के कारण स्वास्थ्य का तो कचूंबर निकल चुका है, ये सब बातें कौन नहीं जानता ?
उपरोक्त अनेक कारणों से मोबाइल महाव्यसन है, गटर के समान है। फिर पैसे से भी अधिक मूल्यवान समय को इस गटर में क्यों डालना ?
जिसे इस गटर में लोटने का मन होता रहता हो, उसी में उसे मजा आए, क्या वह सूअर नहीं है ?
इससे बेहतर तो क्यों न मानसरोवर का राजहंस बनें ?
Extra Time में प्रभुभक्ति, सामायिक, जाप, स्वा-ध्याय आदि करने वाले वस्तुतः मोतियों के दाने चुग रहे हैं। क्योंकि इन सबसे उसे मन, वचन, काया और आत्मा, सभी स्तरों पर अद्भुत लाभ होता है।
प्रश्न : हमारे जीवन के लिए मनोरंजन भी आव-श्यक है, इन सब में मनोरंजन कैसे मिलेगा ?
उत्तर : इन सबमें अपरम्पार मनोरंजन (आनन्द) भरा हुआ है। मनः प्रसन्नतामेति पूज्यमाने जिनेश्वरे… प्रभुजी की पूजा-भक्ति करने से प्रसन्नता की लहरें उठती हैं। सामायिक का अर्थ है समताभाव। मन को disturb करने वाले पदार्थ तो क्रोधादि कषाय हैं। समता में वे शान्त हो जाते हैं, इसलिए मन में ठहराव आता है, मन शान्त-उपशान्त बन जाता है। मन की शान्ति से बड़ा कोई और सुख है दुनिया में ?
जाप में एकाग्र बना चित्त समस्त चिन्ता, विषाद, आघात और व्यथा को भूल जाता है, फिर सुख और आनन्द की अनुभूति क्यों नहीं होगी ?
स्वाध्याय तो आनन्द का खजाना है, जिसके साथ तो 12 वर्ष तक भोग-विलास किया, जिसका अल्प-विरह भी मन को मंजूर नहीं, ऐसी रूप-सुन्दरी कोशा वेश्या के प्रेमालाप, नृत्य, अंगो-पांग, कामोत्तेजक बातें, उन्मादजनक गीत-संगीत स्थूलिभद्र महामुनि को इनका जरा भी आकर्षण नहीं हुआ, स्पर्श नहीं हुआ ऐसा आकंठ आनन्दा-नुभव उन्हें स्वाध्याय में हो रहा था।
प्रश्न : हमें तो इन सबमें आनंद अनुभव नहीं होता, मात्र नीरसता लगती है, इन सबसे आनन्द कैसे प्राप्त करें ?
उत्तर : वैसे तो अमेरिकी लोगों को क्रिकेट में जरा भी मजा नहीं आता, उन्हें यह नीरस खेल लगता है। तो क्या आपको भी क्रिकेट नीरस लगता है? मालिक के रहते घर में चोरी हो जाए या BP से बढ़कर हार्ट अटैक भी आ जाए तो कुछ पता ना चले इस हद का क्रिकेट में तो आपका पागलपन होता है।
इसके कारणों पर आगे विचार करेंगे, कि किसी को जिस बात में आनन्द नहीं बल्कि त्रस्तता अनुभव होती हो उसी बात में दूसरे को आनन्द का अतिरेक कैसे आता है ?
फ़िलहाल बात यह है, कि जीवन में मनोरंजन, सुख और आनन्द आवश्यक है, यह बात सही है, लेकिन यह सब प्राप्त करने का मार्ग मानसरोवर के राजहंस जैसा होना चाहिए। Extra Time को उसकी भाँति बिताना चाहिए। एक सुभाषित में कहा है:
काव्यशास्त्रविनोदेन, कालो गच्छति धीमताम्।
व्यसनेन च मूर्खाणां, निद्रया कलहेन वा।।
अर्थ : बुद्धिमान पुरुषों का समय काव्य, शास्त्र, स्वाध्याय आदि में व्यतीत होता है, जबकि मूर्खों का समय व्यसन, विषय प्रवृत्तियों, निद्रा और झगड़े में बीतता है।
फिर से याद कर लें, Extra पैसे गटर में नहीं डाल सकते, तो पैसे से अधिक मूल्यवान Time को भी गटर में नहीं डाल सकते।
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