
छगन : मेरा चिंटू देश के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज के रिसर्च विभाग में है।
मगन : अच्छा !! वह क्या काम करता है ?
छगन : रिसर्च सेंटर में रिसर्च करने वाले विद्यार्थी जो आधी जली सिगारेट, बिस्किट के पैकेट, रैपर आदि फेंक देते हैं, उन्हें उठाता है, सफाई कर्म-चारी है यह।
चिंटू वैसे तो श्रेष्ठ कॉलेज में है, किन्तु वहाँ उसका कार्य क्या है, अतिशय निम्नस्तरीय कचरा उठाने का। आप कहाँ हैं इस बात से अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आप वहाँ कर क्या रहे हैं। गिद्ध भी आकाश में बहुत ऊपर उड़ता है, किन्तु उसकी नजर किसे ढूंढती है? किसी मुर्दे को। कौआ किसी सुन्दर बाग में भी किसी कीड़े, मकोड़े और कॉकरोच को ही देखता है, और बगुला मान सरोवर में रहकर भी मछली का ही ध्यान धरता है।
हमें जन्म से जैनधर्म मिला, इस दुनिया का यह सर्वश्रेष्ठ धर्म कह सकते हैं, जिसकी दृष्टि में है अनेकान्त, जिसके चरण में है जीवदया और अहिंसा, हृदय में है मैत्री भाव और जिसके जीवन का आदर्श है अपरिग्रही साधु।
जन्म से ही ऐसा श्रेष्ठ धर्म मिला, अच्छी बात है, किन्तु यह धर्म प्राप्त करके हम क्या कर रहे हैं – यह अधिक महत्त्वपूर्ण है? यहाँ आकर भी यदि दूसरों की घटिया बातों पर ही अपना ध्यान होगा। तो यह कचरा बीनने का कार्य ही होगा। दूसरे के सुकृत में भी गलतियां ढूंढना वो बाग में गए कौए जैसा होगा। यदि पाप की बू से भरे अनीति और भ्रष्टाचार के कार्य करेंगे तो यह मान सरोवर के बगुले जैसा होगा। जैन धर्म प्राप्त करने के बाद भी अपनी विशेषता क्या रही ?
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