मोक्षेण योजनात् योग:।
हमारा किया हुआ वो ही धर्म “योग” बन सकता हैं, जो हमें मोक्ष के साथ जोड़े। उसके लिए पूज्य महोपाध्याय श्री यशोविजयजी म.सा ने योग-विंशिका ग्रंथ में पांच प्रकार के “आशय” बताये है। उसमें प्रथम आशय “प्रणिधान” बताया है।
प्रणिधान यानि संकल्प। संकल्प की बहोत बड़ी ताकत होती है। संकल्प का जितना ज्यादा कडा पालन करते जाये उतनी उसकी सिद्धि तक पहुंचने की ताकत बढ़ती जाती है। जैसे “अभरक” नाम की औषधि को एक हजार बार जब पीसा जाता है, तब वह चमत्कारी संजीवनी औषधि बन जाती है।
दृढ़ संकल्प की क्या ताकत है,चलो देखते हैं ,
प्राय: डेढ़सौ साल पहले अमेरिका में एक प्रख्यात अभिनेता हो गए। उनका नाम चार्ल्स कालगन था।
उनकी नाटकमंडली बहोत लोकप्रिय थी। चार्ल्स का अभिनय भी बहोत असरकारक था, उसे पैसे का पागलपन भी नहीं था, सबको निर्दोष मनो-रंजन देना वो ही उसका मुख्य लक्ष्य था।
और दुनिया तो ऐसे निःस्पृह मनोरंजक के पीछे पागल तो बनती ही है। चार्ल्स के हजारो चाहक थे, जहाँ जाये वहाँ मान-सन्मान मिलता था,चार्ल्स मूलरूप से कैनेडा के प्रिंस द्विपका निवासी था, और उसे अपनी मातृभूति के प्रति बहुत लगाव था, वह अपने चाहको से बार-बार कहता था की में जब मर जाऊ तब मुजे मेरी मातृभूमि में ही दफनाना।
एक कहावत है की – महेमान और मौत कब आये वो पता नहीं चलता,
एक बार अमेरिका के टेक्सास में एक समन्दर किनारे के नजदीक चार्ल्स का नाटक चाल रहा था। चार्ल्स उसमें एकाग्र बनकर अभिनय कर रहा था। वहाँ पर उसे दिल का दौरा पड़ा, चार्ल्स वहीं पर गिर पड़ा। सभी दर्शक आघात के सागर में जा गिरे, स्मशान-वत् सन्नाटा छा गया, कोई मानने को तैयार न था की चार्ल्स हमारे बीच रहे नहीं।
हजारो चाहक इकट्ठा हुए, सबको चार्ल्स की अंतिम इच्छा पता थी, लेकिन कहा टेक्सास और कहाँ केनेडा का प्रिंस द्विप? हजारो कि.मी. दूर थी चार्ल्स की जन्मभूमि, तब आज जैसी विमान सेवा भी नहीं थी। टेक्सास के समन्दर किनारे आये हुए कब्रस्तान में दफनाना तय हुआ। चांदी के पतरा-वाले कोफ़ीन में चार्ल्स का मृतदेह रखकर, उस पर सुवर्ण अक्षर से लिखा था, “यहाँ अमेरिका का प्रख्यात अभिनेता चार्ल्स कालगन सोया हुआ है। जिसने जीवन की अंतिम घडी तक जगत को मनोरजंन दिया हैं।“ हजारो चाहको कि उपस्थिति में दफ़नाने की अंतिमविधि हुई। रोती आंखो को लेकर सब अपने घर गये।
ये घटना के थोड़े दिन बाद टेक्सास के समन्दर किनारे पर बड़ा तूफान आया। वो तूफान ने कब्रस्तान की दिवारे तोड़ दी, जमीन खीसक गयी, सारे कोफ़ीन तैरते तैरते दरिया में बहने लगे। चार्ल्स का कोफ़ीन भी बहने लगा लेकिन आश्चर्य इस बात का हुआ की समन्दर की लहरें और हवा के कारण सारे कोफ़ीन वेस्ट इंडीज की ओर बह रहे थे जबकि एक मात्र चार्ल्स का कोफ़ीन ही दरियाइ प्रवाह के सामने उत्तरकेनेडा के हडसन बंदर की और बहने लगा।
दस महीने की लंबी मुसाफरी बाद चार्ल्स का कोफ़ीन अपनी मातृभूमि प्रिन्स द्विप पर जा पहुंचा। मछुआरों ने खींचकर जमीन पर लाकर देखा और पढ़ा तो पता चला ये तो अपनी ही मातृभूमि को बहुत प्यार करने वाला चार्ल्स का कोफ़ीन है। उसकी अंतिम इच्छा यहाँ पर ही दफ़न होने की थी, लेकिन जो कार्य उसके हजारो चाहक न कर सके वो कार्य कुदरत ने करके दिखाया।
हजारो लोगों ने मिलकर चार्ल्स की फीर से अंतिमविधि की। सबकी जुबान पर एक ही बात हो रही थी की चार्ल्स का संकल्प सिद्धि तक पहुंचा।
जब संकल्प शुद्ध और निस्वार्थ मन से और दृढ़ प्रणिधान से किया जाता है तब वह संकल्प को पूर्ण करने के लिए सारी कायनात काम पर लग जाती हैं।
हमें भी हमारी मनुष्य ज़िंदगी को सफल, सुंदर और सार्थक बनाने हेतु शुभ संकल्प करना चाहिए।
जैसे की,
? मुजे संयमी बनना है।
? मुजे ब्रह्मचारी बनना है।
? मुजे जिनाज्ञा चुस्त बारह व्रतधारी श्रावक जीवन जीना है।
? मुजे पापमुक्त और प्रसन्नता युक्त जीवन जीना है।
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